Wednesday 14 May 2025 01:27:49 PM
मीर यार बलूच
क्वेटा (बलूचिस्तान)। बलूचिस्तान देश पाकिस्तान के जबरन कब्जेवाला एक समृद्ध इतिहास वाला देश है, जहां स्वतंत्रता केलिए पाकिस्तान से निर्णायक संघर्ष चल रहा है। बलूचिस्तान सदियों से विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के संगम का साक्षी रहा है। भारत केसाथ बलूचिस्तान का ऐतिहासिक संबंध प्राचीन व्यापार मार्गों और साझा आध्यात्मिक परंपराओं से जुड़ा हुआ है। हिंदू, सिख और ईसाई धर्मों ने इस भूमि पर अपनी साझा संस्कृति और दोस्ती की छाप छोड़ी है, जो बलूचिस्तान में स्थित मंदिरों, गुरुद्वारों और चर्चों में परिलक्षित होती है। ये धार्मिक आध्यात्मिक स्थल एक साझा विरासत के प्रतीक हैं और आज भी प्रासंगिक हैं। प्राकृतिक संपदा से अत्यंत समृद्धशाली बलूचिस्तान हमेशा से विदेशी आक्रमणों और कब्जे का शिकार हुआ है। बलूचिस्तान भरोसेमंद दोस्त और वीरों का देश है, जिसके पास सांप्रदायिक सांस्कृतिक सौहार्द, मंदिर गुरुद्वारे चर्च की सदियों पुरानी विरासत है।
बलूचिस्तान देश के लोगों का इतिहास अपनी संप्रभुता और स्वतंत्रता को बनाए रखने के संघर्षों से भरा हुआ है। बलूच लोगों ने मंगोलों, तुर्कों और ब्रिटिश उपनिवेशवादियों से अपने देश की रक्षा की थी और 27 मार्च 1948 से ही बलूच अपने देश बलूचिस्तान पर पाकिस्तान के कब्जे के अवैध का विरोध करते आ रहे हैं, बलूचिस्तान केलिए कुर्बानियां देते आ रहे हैं, हजारों बलूच अपने भाई-बहन और बच्चों का पाकिस्तान द्वारा लगातार कत्लेआम दुनियां में किसी से छिपा नहीं है। हमें गर्व हैकि बलूचिस्तान की स्वतंत्रता केलिए बलूचिस्तान मुक्ति संग्राम में केवल मुस्लिम बलूच ही नहीं, बल्कि हमारे अल्पसंख्यक समुदाय, विशेष रूपसे हमारे हिंदू भाई-बहनों का भी बड़ा योगदान है।
ब्रिटिश सेना ने वर्ष 1839 में जब बलूच राजा नवाब मेहराब खान के महलों पर हमला किया, तब उनके वित्तमंत्री दीवान चंद मचल थे, जो एक हिंदू थे। वे बलूच राजा केसाथ कंधे से कंधा मिलाकर बलूच किले की रक्षा केलिए लड़े और अपने दो पुत्रों केसाथ शहीद हो गए। पाकिस्तान की कट्टरपंथी सेना ने 17 मार्च 2005 को जब बलूचिस्तान के डेरा बुगटी गांव पर हमला किया तो सैन्य अभियान में 70 से अधिक बलूच लोग मारे गए। पाकिस्तान की सेना ने भारी तोपखाने और गनशिप हेलीकॉप्टरों से बलूच राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता समर्थक नेता नवाब अकबर खान बुगटी के महल पर हमला किया। पाकिस्तान की सेना ने मंदिरों और गुरुद्वारों पर भी हमला किया, जिसमें 25 से अधिक हिंदू मारे गए, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे।
बलूचिस्तान पश्चिमी और दक्षिण एशिया का एक क्षेत्र है, जो ईरानी पठार के सुदूर दक्षिण पूर्व में है। यह भारतीय प्लेट और अरब सागर के तट से सटा हुआ है। रेगिस्तान और पहाड़ों का यह शुष्क क्षेत्र मुख्य रूपसे बलूच लोगों का बसाया हुआ है। बलूचिस्तान क्षेत्र तीन देशों में विभाजित है-ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान। प्रशासनिक रूपसे इसमें पाकिस्तानी प्रांत बलूचिस्तान, ईरानी प्रांत सिस्तान और बलूचिस्तान और अफगानिस्तान के दक्षिणी क्षेत्र शामिल हैं, जिसमें निमरुज, हेलमंद और कंधार प्रांत शामिल है। इसकी सीमा उत्तर में खैबर पख्तूनख्वा, पूर्व में सिंध और पंजाब और पश्चिम में ईरान क्षेत्रों से लगती है। बलूचिस्तान की कुल जनसंख्या लगभग करीब बीस मिलियन से भी ज्यादा है। यहां बलूची भाषा बोली जाती है।
बलूचिस्तान में मंदिर, गुरुद्वारे और चर्च न केवल धार्मिक आस्था के पवित्र स्थल हैं, बल्कि वे सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व भी रखते हैं। बलूचिस्तान और भारत के संबंधों के संदर्भ में तो ये पवित्र स्थल साझा इतिहास, सांस्कृतिक आदान प्रदान और सद्भाव को बढ़ावा देने के मार्गों के प्रतीक हैं। यह रिपोर्ट बलूचिस्तान और भारत के बीच द्विपक्षीय और सांस्कृतिक संबंधों में इन मंदिरों, गुरुद्वारों और चर्चों की भूमिका, उनके स्थानों और उनके योगदान की पड़ताल करती है। बलूच लोग जो मुख्य रूपसे मुस्लिम हैं, उन्होंने पाकिस्तान की कट्टरपंथी सेना और धार्मिक चरमपंथी समूहों द्वारा हिंदू धार्मिक स्थलों को निशाना बनाए जाने से बचाया है। मंदिर केवल पूजा स्थल ही नहीं हैं, बल्कि वे उससे भी अधिक सांस्कृतिक विरासत, ऐतिहासिक महत्व और आध्यात्मिक पवित्रता के प्रतीक हैं।
बलूचिस्तान और भारत के संबंधों के संदर्भ में हिंदू मंदिर सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने और साझा इतिहास को दर्शाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बलूचिस्तान के लासबेला में सुप्रसिद्ध हिंगलाज माता मंदिर पाकिस्तान अधिकृत बलूचिस्तान के हिंगोल नेशनल पार्क में है। देवी हिंगलाज का यह पवित्र स्थल बलूचिस्तान के पहाड़ों और रेगिस्तानों के बीच है, जो कराची शहर से लगभग 215 किलोमीटर पश्चिम में है। हर साल आयोजित होने वाली हिंगलाज यात्रा बलूचिस्तान की सबसे बड़ी हिंदू तीर्थयात्रा है, जिसमें 5,00,000 से अधिक श्रद्धालु भाग लेते हैं। हिंगलाज माता मंदिर 51 शक्ति पीठों में से एक है, जो हिंदुओं केलिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह वह पवित्र स्थान है, जहां देवी सती का सिर गिरा था। यह मंदिर न केवल बलूचिस्तान के हिंदुओं, बल्कि भारत और दूसरे देशों के श्रद्धालुओं को भी आकर्षित करता है।
हिंगलाज मंदिर से जुड़ा एक अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बाबा चंद्रगुप ज्वालामुखी है, जो भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है और हिंगलाज माता मंदिर जाने वाले तीर्थयात्रियों केलिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। लासबेला में झूलेलाल मंदिर, कलात ज़िला में शिवाला मंदिर, बोलन ज़िला में काली देवी मंदिर इस क्षेत्रमें कभीसे फल-फूल रहे हिंदू आबादी के ऐतिहासिक अस्तित्व का प्रतीक है। ये मंदिर बलूचिस्तान और भारत के लोगों केबीच साझा परंपराओं और आध्यात्मिकता के विश्वास माने जाते हैं।
बलूचिस्तान की दोस्ती और विश्वास की अनेक दास्तानें हैं, लेकिन एक दास्तां यहां बहुत प्रासंगिक है। वर्ष 1947 में बलूचिस्तान का एक हिंदू अपना घर छोड़कर भारत चला आया और अपनी दुकान की चाबियां एक बलूच को सौंप गया, लेकिन आज तक उस बलूच ने उस दुकान की सुरक्षा की है। बलूच आज भी अपने हिंदू दोस्त के बलूचिस्तान वापस आने का इंतज़ार करता है, ताकि वह दुकान की चाबियां अपने दोस्त को लौटा सके। उम्मीद हैकि भारत और बलूचिस्तान के लोग जल्द ही एक-दूसरे के देश का दौरा करेंगे और आज़ाद बलूचिस्तान में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की महकती फुहारों का आदान प्रदान होगा। (मीर यार बलूच लेखक, स्वतंत्र पत्रकार, मानव संसाधन कार्यकर्ता और आज़ाद बलूचिस्तान आंदोलन के सदस्य हैं)।