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'संस्कृत हमारी सांस्कृतिक धरोहर का कोष'

उपराष्ट्रपति का संस्कृत विरासत को आगे बढ़ाने का आह्वान

राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के दीक्षांत में मेधावी सम्मानित

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Tuesday 30 April 2024 11:14:59 AM

convocation ceremony at national sanskrit university tirupati

तिरुपति (आंध्र प्रदेश)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा हैकि संस्कृत अलौकिक भाषा है और यह हमारी आध्यात्मिकता की खोज एवं परमात्मा से जुड़ने के प्रयासों में एक पवित्र सेतु के रूपमें कार्य करती है। तिरुपति में राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के तीसरे दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने संस्कृत को झंझावतों में मानव सभ्यता केलिए एक सांस्कृतिक आधार के रूपमें वर्णित किया। उन्‍होंने कहाकि आजके ऊहापोहभरे दौर में संस्कृत एक अद्वितीय शांति प्रदान करती है, वह आज के संसार से जुड़ने केलिए हमें बौद्धिकता, आध्यात्मिक शांति और स्वयं केसाथ एक गहरा संबंध बनाने केलिए प्रेरित करती है। दीक्षांत समारोह के पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पत्नी डॉ सुदेश धनखड़ केसाथ तिरुमाला मंदिर में दर्शन किए। अपने अनुभव के बारेमें बताते हुए उन्होंने कहाकि यहां व्यक्ति दिव्यता, आध्यात्मिकता और उदात्तता के सबसे निकट आता है, मैंने खुदको धन्य महसूस किया और सभी केलिए आनंद की प्रार्थना की।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि शेषचलम पहाड़ियों के शांत वातावरण केबीच भगवान वेंकटेश्वर का यह पवित्र निवास भारत की समृद्ध आध्यात्मिक विरासत का एक दीप्तिमान प्रतीक है। भारतीय ज्ञान प्रणालियों के पुनरुद्धार और प्रसार में राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों की भूमिका पर बल देते हुए उपराष्ट्रपति ने नवीन पाठ्यक्रम विकसित करने और विषयपरक अनुसंधान को बढ़ावा देने का आह्वान किया, ताकि संस्कृत की समृद्ध विरासत और आधुनिक शैक्षणिक आवश्यकताओं केबीच अंतर को कम किया जा सके। उन्होंने कहाकि संस्कृत जैसी पवित्र भाषा न केवल हमें परमात्मा से जोड़ती है, बल्कि संसार की अधिक समग्र समझ की दिशा में भी हमारा मार्ग प्रशस्त करती है। जगदीप धनखड़ ने बहुमूल्य प्राचीन पांडुलिपियों के संरक्षण में डिजिटल प्रौद्योगिकियों के बढ़ते उपयोग की आवश्यकता का भी उल्‍लेख किया।
उपराष्ट्रपति ने कहाकि संस्कृत हमारी सांस्कृतिक धरोहर का कोष है तथा उन्‍होंने इसके संरक्षण और संवर्धन को राष्ट्रीय स्‍तर पर प्राथमिकता दिए जाने पर बल दिया। उन्‍होंने कहाकि ऐसा करना हमारा राष्‍ट्रीय कर्तव्य है। उपराष्ट्रपति ने कहाकि संस्कृत को आज की आवश्‍यकताओं के अनुसार विकसित किया जाए और इसकी शिक्षा को आसान बनाया जाए। यह देखते हुएकि कोईभी भाषा तभी जीवित रहती है जब उसका उपयोग समाज में किया जाता है और उसमें साहित्य रचा जाता है उपराष्‍ट्रपति ने हमारे दैनिक जीवन में संस्कृत के उपयोग को बढ़ाने की आवश्यकता बताई। उपराष्‍ट्रपति ने संस्कृत के समृद्ध और विविध साहित्यिक कोष का उल्लेख किया। उन्‍होंने कहाकि संस्‍कृत में न केवल धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथ शामिल हैं, बल्कि चिकित्सा, नाटक, संगीत और विज्ञान संबंधी सबके कल्‍याण वाले कार्य भी शामिल हैं। जगदीप धनखड़ ने कहाकि इस विस्तार के बावजूद मुख्यधारा की शिक्षा में संस्कृत का एकीकरण सीमित है, जो अक्सर बाधित होता रहता है, इसका कारण लंबे समय से चली आरही उपनिवेशवादी मानसिकता है, जो भारतीय ज्ञान प्रणालियों की उपेक्षा करती है।
संस्कृत का अध्ययन केवल एक अकादमिक खोज नहीं है उपराष्‍ट्रपति ने इसे आत्मअन्‍वेषण और ज्ञानोदय की यात्रा के रूपमें वर्णित किया। उन्होंने संस्कृत की विरासत को आगे लेजाने का आह्वान किया और कहाकि संस्‍कृत न केवल शैक्षणिक ज्ञान, बल्कि परिवर्तन का मार्ग प्रशस्‍त करती है। उन्‍होंने छात्रों का आह्वान कियाकि वे इस अमूल्य विरासत के दूत बनें, जिससे यह सुनिश्चित हो सकेकि इसकी संपदा भावी पीढ़ियों तक पहुंच सके। इस अवसर पर राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एन गोपालस्वामी आईएएस (सेवानिवृत्त), राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर जीएसआर कृष्ण मूर्ति, भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान तिरुपति के निदेशक प्रोफेसर शांतनु भट्टाचार्य, संकाय, विश्‍वविद्यालय कर्मी और छात्र उपस्थित थे।

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