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भारत का मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड निष्फल?

समान नागरिक कानून को देश के सभी राज्यों में लाने की तैयारी

उत्तराखंड राज्य के समान नागरिक कानून का देश भर में स्वागत

Thursday 8 February 2024 03:30:29 PM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

uniform civil law of uttarakhand welcomed across the country

देहरादून। उत्तराखंड ने समान नागरिक कानून लाकर देश में इतिहास रच दिया है। देश के सामाजिक ताने-बाने के उज्जवल भविष्य केलिए एक समान बदलाव लाने वाली यह ऐतिहासिक सच्चाई है। यद्यपि अपवाद को छोड़कर यह समान नागरिक कानून समस्त उत्तराखंड वासियों केलिए है, किंतु इसका देशभर के राज्यों में विस्तार अवश्यंभावी है। उत्तराखंड में समान नागरिक कानून का सर्वाधिक असर वहांके मुस्लिम समाज पर पड़ना लाजिम है, जिसके दायरे में उनके बहुविवाह, तलाक, हलाला, मुस्लिम बालिकाओं की शिक्षा, शादी की उम्र जैसे महत्वपूर्ण विषय आ गए हैं। ग़ौरतलब हैकि अभीतक भारत के मुसलमानों की सामाजिक और जीवनशैली से जुड़े मामलों पर फैसले या फतवे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड या शरियत के नाम पर दिए जाते थे। यहां यह कहने में दो राय नहीं हो सकतीं कि यदि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुसलमानों की इन समस्याओं के निवारण में ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाता तो उसकी जगहंसाई नहीं हो रही होती और न ही समान नागरिक कानून का ऐसा कोई विचार पैदा होता। समान नागरिक कानून को देश के सभी राज्यों में लाने का मार्ग प्रशस्त हो गया है, जिसकी भाजपा शासित राज्यों में तैयारी भी शुरू हो गई है।
उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने विधानसभा चुनाव में अपने घोषणा पत्र में ही कह दिया थाकि वह उत्तराखंड राज्य में समान नागरिक कानून लागू करेगी और भाजपा की सरकार बनते ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसकी तैयारी शुरू कर दी थी। धामी सरकार ने समान नागरिक कानून को लाने से पहले इसके विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श किया। इस कानून का ड्राफ्ट तैयार करने से पहले दूसरे देशों में लागू समान नागरिक कानून का अध्ययन किया गया, उत्तराखंडवासियों और सहमति-असहमति के बीच इस्लामिक एवं विभिन्न धर्मों के विद्वानों से राय ली गई, इसके कानूनी पहलू परखे गए, जिसके बाद इस कानून का ड्राफ्ट तैयार किया गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने करतलध्वनि से उत्तराखंड विधानसभा में इसे प्रस्तुत किया और अगले दिन ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। यद्यपि यह कानून खासतौर से भारत के मुस्लिम समाज की सामाजिक जीवनशैली केलिए सर्वाधिक सुधारवादी और प्रगतिवादी माना जा रहा है, किंतु अपवाद को छोड़कर इस कानून का मुस्लिम समाज विरोध कर रहा है। उत्तराखंड में यह कानून बन चुका है, लिहाजा इस राज्य में अब मुसलमानों को समान नागरिक कानून के हिसाब से ही चलना होगा।
उत्तराखंड राज्य के इस नए सामाजिक ताने-बाने का देश की राजनीति पर असर पड़ना लाजिम है। मुस्लिम समाज में इसे लेकर दो राय प्रमुख हैं, जिनमें एक यह हैकि भारत मुस्लिम समाज अपनी महिलाओं केलिए आजादी नहीं चाहता है और अगर चाहता भी है तो उसमें भेद है और दूसरी यह हैकि वह तलाक हलाला शादी फतवों और बालिकाओं की शिक्षा के मामलों में भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और शरियत के पीछे चलता है, जिसकी इस्लामिक विद्वान केवल अपनी सुविधानुसार और मुंह देखकर व्याख्या करते आ रहे हैं। यही कारण हैकि मुस्लिम समाज के एक तबके में इस्लामिक विद्वानों से सहमति नहीं है, जिसके स्वर आएदिन सुनाई देते हैं। यह सच हैकि उत्तराखंड में इस कानून के लागू होने से मुस्लिम समाज की जीवनशैली में ऐतिहासिक बदलाव देखा जा सकेगा, जिसमें भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और शरियत के इस्लामिक विद्वानों की प्रासंगिकता घटती चली जाएगी। भारत में लोकतंत्र और सामाजिक जीवन में बहुत खुलापन है, जिसमें केवल मुस्लिम समाज ही ऐसा है, जो बहुत संकुचित और अपने सामाजिक रीतिरिवाजों और खासतौर से महिलाओं के मामलों में किसी और का दखल नहीं चाहता है, ऐसी बातों ने भारत में समान नागरिक कानून लागू करने का मार्ग प्रशस्त किया है। कोई माने या न माने इस कानून से मुस्लिम महिलाओं में खुशी है और समान आज़ादी महसूस की जा रही है।
उत्तराखंड राज्य देश का पहला समान नागरिक संहिता वाला राज्य तो बन ही गया है, उसने यह ऐसा काम कर दिया है, जिससे देश की राजनीति पर खासा असर पड़ेगा। देश और देश का मुस्लिम समाज जानता हैकि भारतीय जनता पार्टी ही मुस्लिम महिलाओं के जीवनस्तर जीवनशैली और उनके तलाक जैसे मामलों में सुधार केलिए सबसे आगे है और इसी कारण उसे मुसलमानों का प्रतिरोध झेलना पड़ता है, इसके बावजूद भाजपा सरकार ने मुस्लिम समाज केलिए ऐसे ऐतिहासिक कदम उठा दिए हैं, जिनसे मुस्लिम राजनीति भी गच्चा खा रही है। मुस्लिम महिलाएं भाजपा केप्रति विश्वास और सहानुभूति का नजरिया रख रही हैं, जिससे सुना जाता हैकि वे चुनाव में वोटिंग के समय भाजपा की तरफ झुकाव रखती हैं, इस वजह से मुसलमानों का पुरुष वर्ग बहुत असहज है, क्योंकि वह चाहकर भी मुस्लिम महिलाओं में भाजपा की तरफदारी को नहीं रोक पा रहा है। भाजपा मुस्लिम विरोधी स्थापित की जाती है, मगर अपवादों को छोड़कर मुस्लिम महिलाओं पर इसका असर नहीं दिखता है। सच तो यह हैकि मोदी सरकार में मुस्लिम महिलाएं मकान गैस चूल्हा जनधन जैसी बड़ी महत्वाकांक्षी कल्याणकारी योजनाओं का औरों से ज्यादा लाभ उठा रही हैं और यह लाभ मुसलमानों में सभी वर्गों की महिलाएं उठा रही हैं। भारत में समान नागरिक कानून खासतौर से मुस्लिम महिलाओं केलिए एक संरक्षक की मानिंद होने जा रहा है और भाजपा भी यही चाहती है कि मुस्लिम महिलाएं किसी तरह आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी बनें, जो अभी तक नहीं हैं।
चूंकि यह विषय संविधान की समवर्ती सूची में है, इसलिए यह समान नागरिक कानून उत्तराखंड विधानसभा में पारित होने के बाद राज्यपाल के यहां होते हुए अंतिम मंजूरी केलिए राष्ट्रपति के यहां जाएगा, उनकी मंजूरी के बाद इसे उत्तराखंड में लागू करने केलिए उत्तराखंड सरकार की अधिसूचना जारी हो जाएगी। इस कानून में शादी, तलाक, हलाला, विरासत और गोद लेने जैसे संवेदनशील मामले शामिल हैं। इसमें विवाह प्रक्रिया को लेकर जो प्राविधान किए गए हैं, उनमें जाति, धर्म या पंथ की परंपराओं और रीतिरिवाजों से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। वैवाहिक प्रक्रिया में धार्मिक मान्यताओं पर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसे लेकर हिंदू सिख ईसाई समुदाय में कोई प्रतिरोध सामने नहीं है, केवल मुसलमानों ने ही इसका विरोध किया है, उसमें भी सभी मुसलमान विरोध नहीं कर रहे हैं, इसलिए देखना होगाकि इसका असर कहां तक पड़ता है। इतना तो तय माना जा रहा कि जो राजनीतिक दल केवल मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करके मुसलमान वोटों के लाभ की लालसा रखते हैं, वे जरूर संकट में दिखाई पड़ेंगे। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इसके सूत्रधार तो बन ही गए हैं।

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