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उप-राष्‍ट्रपति ने मीडिया को दिखाया आईना

पेड न्‍यूज़ काले धन व घुसपैठियों का मीडिया पर असर‌

लोकतंत्र के प्रहरी की आजादी खतरे में-हामिद अंसारी

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Monday 17 June 2013 04:00:29 AM

mohd. hamid ansari delivering the inaugural address at the “biennial session of national union of journalists (india)”

नई दिल्‍ली। उप राष्‍ट्रपति मोहम्‍मद हामिद अंसारी ने राष्‍ट्रीय पत्रकार संघ के द्विवार्षिक अधिवेशन में भारतीय मीडिया की छवि को पेड न्‍यूज़ और औद्योगिक एवं राजनीतिक घरानों के पिछलग्‍गू जैसी भ्रष्‍ट करतूतों से नेस्‍तनाबूद करने वालों को उनका नाम लिए बगैर बेनकाब किया। उप-राष्‍ट्रपति के भाषण में समझने वालों के लिए बहुत कुछ था, उनकी चिंता में आम आदमी का हक था और कुछ बिकाऊ और ठेकेदारों के मीडिया को कड़ी फटकार थी। उन्‍होंने मीडिया के अतीत में जाकर कहा कि वह लोकतंत्र में अपनी संभावित भूमिका निभाने में समर्थ बनाने के लिए तथा जनता के हित को सर्वाधिक महत्‍व देने के लिए प्रेस को समान अवसर उपलब्‍ध कराने के प्रयासों में अग्रणी रहा है, उसने देश में प्रेस की बेहतरी के लिए अथक काम किया है, किंतु आज वह जिस तरफ जा रहा है, वह चिंताजनक स्‍थिति है, मीडिया इस्‍तेमाल हो रहा है, इसमें अब संदिग्‍ध लोगों का काला धन लगा है, जिससे लोकतंत्र और अभिव्‍यक्‍ति की आजादी खतरे में है।
उप राष्‍ट्रपति मोहम्‍मद हामिद अंसारी ने कहा कि प्रेस सूचना देती है और शिक्षित करने के साथ मनोरंजन भी करती है, लोकतंत्र में जनता की राय बनाने, अनुमान लगाने और उसके प्रचार-प्रसार में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती है, प्रेस जनता के हित का अभिभावक, घटनाओं का ईमानदार साक्षी और सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने का माध्‍यम है होना चाहिए। यह जनता की इच्‍छा के अनुरूप राज्‍य की नीतियों के निर्माण और कार्यान्‍वयन के लिए संवाद सुगम बनाने के जरिए जनता और सरकार के बीच पुल का भी काम करती है, स्‍वतंत्र, निष्‍पक्ष, ईमानदार और उद्देश्‍यपरक प्रेस हर तरफ पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए सक्षम साधन है, इसलिए प्रेस की आजादी लोकतंत्र के सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण घटकों में से एक है तथा इससे राष्‍ट्र के चरित्र का पता चलता है, इसके महत्‍व को सारांश रूप में फ्रांस के राजनेता टैलीरैंड के शब्‍दों में समझा जा सकता है-'प्रेस की आजादी के बिना सरकार का कोई प्रतिनिधि नहीं हो सकता।' प्रेस को अपनी निर्धारित भूमिका निभाने के लिए, इसे स्‍वतंत्र, निष्‍पक्ष, भेद-भाव मुक्‍त और बिना किसी पूर्वाग्रह के समाज के सभी वर्गों से जुड़े समाचार और विचार देने चाहिएं, इसे निहित स्‍वार्थों की चापलूसी करने से बचना चाहिए, यदि इसे कुछ खास बात कहनी है तो उसे खुलकर कहना चाहिए।
मोहम्‍मद हामिद अंसारी ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा कि प्रेस ने स्‍वाधीनता संग्राम में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई तथा खुद गांधीजी भी संभवत: अपने समय के सर्वाधिक प्रभावशाली संपादक और पत्रकार रहे, स्‍वतंत्र भारत में प्रेस ने लोकतंत्र के आधार स्‍तंभ के रूप में काम किया है तथा अपनी जवाबदेही के कारण यह अधिकांशत: जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतरा है, आज मीडिया आकार और समाचार देने में बहुत विकसित हो चुका है, आज करीब 93,985 पंजीकृत प्रकाशन, समाचार और सामयिक घटनाक्रम की श्रेणी में 850 स्‍वीकृत टीवी चैनल तथा समाचार की श्रेणी से भिन्‍न 437 चैनल हैं, खुद दूरदर्शन भी 37 चैनल चला रहा है, इसके अलावा 250 से अधिक एफएम रेडियो केंद्र और असंख्‍य इंटरनेट वेबसाइट काम कर रही हैं, जिससे पता चलता है कि भारत में मीडिया का कितना व्‍यापक क्षेत्र और प्रभाव है और इसमें पेड न्‍यूज़ जैसा भ्रष्‍ट चलन मीडिया की छवि को कैसे बट्टा लगा रहा है, समय-समय पर मीडिया संबंधी ऐसे घटनाक्रम सामने आए हैं, जो परेशानी पैदा का कारण रहे हैं, उनसे मीडिया की वस्‍तुपरकता और विश्‍वसनीयता पर सवालिया निशान लगे हैं।
उन्‍होंने कहा कि क्रॉस मीडिया स्‍वामित्‍व, पेड न्‍यूज़ या पैसा लेकर समाचार देना, संपादकों तथा उनके संपादकीय की आजादी की घटती भूमिका, मीडिया कर्मियों के काम करने की दशाओं में सुधार और उनकी सुरक्षा बढ़ाने की जरूरत इन सवालों पर विचार करने के लिए हमारे पास तीन महत्‍वपूर्ण और प्रासंगिक दस्‍तावेज मौजूद हैं-भारत में क्रॉस मीडिया स्‍वामित्‍व के बारे में सूचना और प्रसारण मंत्रालय के दृष्‍टांत पर भारतीय प्रशासनिक स्‍टॉफ कॉलेज की रिपोर्ट-2009, मीडिया स्‍वामित्‍व के प्रश्‍न पर भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण का फरवरी 2013 का परामर्श पत्र, पेड न्‍यूज़ के बारे में 6 मई 2013 को आई सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय स्‍थायी समिति की रिपोर्ट। उन्‍होंने कहा कि इन सबके निष्‍कर्ष से बहुत व्‍यथित करने वाली तस्‍वीर सामने आती है, मीडिया में बड़े बिजनेस घरानों की घुसपैठ की व्‍यवसायिक जरूरत तथा इसके फलस्‍वरूप बाजार में प्रभुत्‍व नजर आया है, इन्‍होंने स्‍पर्धा और मीडिया की आजादी के विरूद्ध काम किया है, भारतीय प्रशासनिक स्‍टॉफ कॉलेज को पता चला है कि चोटी के 23 टीवी नेटवर्क में से 11 की प्रिंट और रेडियो में हिस्‍सेदारी है तथा बाकी नेटवर्क के टे‍लीविजन सहित कम से कम दो मीडिया प्‍लेटफार्म में हित हैं, चार नेटवर्क के केबल/डीटीएच प्रसारण में सीधे संबंध पाए गए हैं।
उप राष्‍ट्रपति ने कहा कि वि‍ज्ञापन से प्राप्‍त होने वाली आय की वृद्धि‍ में मंदी और छोटे एवं स्‍वतंत्र प्रकाशनों के कारण कीमत संबंधी प्रति‍योगि‍ता के कारण समाचार माध्‍यमों में समाचारों की गुणवत्‍ता पर दबाव पड़ा है और समाचार माध्‍यम के बहुलतावाद में गि‍रावट हुई है, ऐसा कहा जाता है कि‍ भारत के लगभग 300 समाचार चैनलों में से अधि‍कांश चैनल घाटे में चल रहे हैं और संदि‍ग्ध संपत्‍ति‍, काला धन और भारत तथा वि‍देश के संदि‍ग्‍ध नि‍जी इक्‍वि‍टी नि‍वेशकों पर नि‍र्भर हैं, इस परि‍दृश्‍य में समाचार माध्‍यम अनैति‍क तरीके अपनाने के लि‍ए दवाब में हैं।
उन्‍होंने कहा कि ट्राई के दस्‍तावेज में इस समस्‍या की व्‍यापक चर्चा की गई है, इसने ‘अनि‍यंत्रि‍त स्‍वामि‍त्‍व’ और ‘टीवी चैनलों में पेड न्‍यूज, कार्पोरेट और राजनीति‍क लॉबी बनाने, पक्षपातपूर्ण वि‍श्‍लेषण करने और राजनीति‍क क्षेत्र तथा कार्पोरेट जगत दोनों में गैर जिम्‍मेदराना भवि‍ष्‍यवाणी करने के साथ ही सनसनी फैलाने के लि‍ए गैर-जवाबदेह रिर्पोटिंग करने’ के बीच स्‍पष्‍ट सीमा रेखा खिंची है, इसमें बताया गया है कि‍ खासतौर पर वहां स्‍थि‍ति‍ और भी भयानक है, जहां इसका नि‍यंत्रण अथवा स्‍वामि‍त्‍व व्‍यापारि‍क अथवा राजनीति‍क हि‍तों से जुड़े घरानों के हाथों में है, इस दस्‍तावेज का यह नि‍ष्‍कर्ष है कि‍ वि‍चार की बहुलता और वि‍वि‍धता सुनि‍श्‍चि‍त करने के क्रम में जनहि‍त में समाचार माध्‍यम के स्‍वामि‍त्‍व का नि‍यमन करना आवश्‍यक है। पेड न्‍यूज़ पर आधारि‍त स्‍थायी समि‍ति‍ की रि‍पोर्ट में ट्राई और सूचना और प्रसारण मंत्रालय से कहा गया है कि‍ समाचार माध्‍यम में पेड न्‍यूज़ के साथ ही संदि‍ग्‍ध संपत्‍ति‍यों के वि‍षय में प्राथमि‍कता के आधार पर वि‍चार कि‍या जाना चाहि‍ए, इसमें इस बात का प्रस्‍ताव कि‍या गया है कि समाचार माध्‍यम के स्‍वामि‍त्‍व के प्रश्‍न पर तत्‍काल ध्‍यान दि‍या जाना चाहि‍ए, इससे पहले कि‍ यह हमारी लोकतांत्रि‍क संरचना के लि‍ए चुनौती बनकर उभर जाए।
स्थायी समि‍ति‍ ने समाचार माध्‍यम के संदि‍ग्‍ध स्‍वामि‍त्‍व और पेड न्‍यूज़ की समस्‍या के समाधान के लि‍ए एक उपयुक्‍त, ठोस और कारगर उपाय लागू करने का सुझाव दि‍या है, इसे या तो एक वैधानि‍क मीडि‍या परि‍षद के जरि‍ए साकार कि‍या जा सकता है, जि‍समें ईमानदार ख्‍याति ‍प्राप्‍त व्‍यक्‍ति‍त्‍वों को शामि‍ल कि‍या जाए अथवा भारतीय प्रेस परि‍षद को मुद्रि‍त समाचार माध्‍यम के लि‍ए एक नि‍यामक नि‍काय के रूप में काम करने दि‍या जाए तथा इलेक्‍ट्रॉनि‍क समाचार माध्‍यम के लि‍ए भी एक ऐसा ही नि‍काय स्‍थापि‍त कि‍या जाए, इन दोनों वि‍कल्‍पों में समाचार माध्‍यम के मालि‍कों अथवा इच्‍छुक पक्षों को नि‍यामक नि‍काय का हि‍स्‍सा नहीं होना चाहि‍ए, स्‍थायी समि‍ति‍ ने इस बात पर भी जोर दि‍या है कि‍ सरकार और संबंधि‍त नि‍यामक नि‍कायों को मीडि‍याकर्मि‍यों के कार्य की शर्तों में सुधार करना चाहि‍ए, जि‍समें अनुबंध आधारि‍त रोज़गार और परि‍श्रमि‍क परि‍दृश्‍य शामि‍ल हों, यह भी सुनि‍श्‍चि‍त कि‍या जाना चाहि‍ए कि‍ संपादकीय कर्मचारि‍यों की स्‍वायत्‍तता सुनि‍श्‍चि‍त हो, इस प्रकार यह प्रतीत होता है कि समस्‍या की प्रकृति और इसके परि‍माण‍ के बारे में एक वि‍स्‍तृत वि‍श्‍लेषण ‍के जरि‍ए लोगों के सामने और वि‍शेषकर सरकार और संसद के सामने बड़ी चुनौती है, ऐसे में इसके व्‍यापक सुधार का कार्य तुरंत शुरू कि‍या जाना चाहि‍ए, इसमें वि‍फल रहना व्‍यापक तौर पर इस आशंका की अभि‍व्‍यक्‍ति‍ होगा कि‍ कि‍सी वि‍शेष हि‍त के लि‍ए ऐसा हो रहा है।
उप राष्‍ट्रपति का कहना है कि समाचार माध्‍यम में संस्‍कृति‍, नैति‍कता और भ्रष्‍टाचार का मुद्दा केवल भारत देश के लि‍ए ही नहीं है, बल्‍कि‍ यह अन्‍य लोकतांत्रि‍क व्‍यवस्‍थाओं में भी शामि‍ल है। न्‍यूज़ ऑफ द वर्ल्‍ड घोटाले के बाद हाल में यूनाइटेड किंगडम में लेवेशन इन्‍क्‍वायरी रि‍पोर्ट का मुद्दा इसका उदाहरण है। यह उल्‍लेखनीय है कि‍ सरकार ने 70 वर्षों से कम समय में सातवीं बार इस रि‍पोर्ट की शुरूआत की है, जो प्रेस की चिंताओं के बारे में सरोकार रखती है। प्रेस के जनता, पुलिस और राजनीतिज्ञों से संबंध और व्‍यवहार की विस्‍तृत पड़ताल करने के बाद लिवसन रिपोर्ट ने एक स्‍वतंत्र बोर्ड से संचालित निष्‍पक्ष, स्‍वतंत्र और स्‍वनियंत्रक संस्‍था बनाने की सिफारिश की है, जिसके अध्‍यक्ष और सदस्‍यों की नियुक्ति पारदर्शी, स्‍वतंत्र और सरकार तथा उद्योग के प्रभाव से मुक्‍त हो। लिवसन रिपोर्ट ने भविष्‍य के लिए भी नियामक मॉडल की विशेष सिफारिश की है, जिसमें पत्रकारों की सुरक्षा, सूचनाओं तक पहुंच, मीडिया रोज़गार, प्रेस तथा राजनीति, बहुलता तथा मीडिया स्‍वामित्‍व की चर्चा है। इसकी समाप्ति इस टिप्‍पणी के साथ होती है कि ‘गेंद अब राजनीतिज्ञों के पाले में है’। यह महत्‍वपूर्ण है कि स्‍थाई समिति ने भी सूचना और प्रसारण मंत्रालय से लिवसन रिपोर्ट की सिफारिशें और उससे जुड़े घटनाक्रमों पर विचार करने को कहा है। समिति ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय से कहा है कि इस महत्‍वपूर्ण विषय पर वह बिना देर किए व्‍यापक और शीघ्र कार्रवाई करे, यह कार्रवाई हर हालत में अगले आम चुनाव की दस्‍तक से पहले होनी चाहिए ताकि फिर से पेड न्‍यूज़ की बात न उभरे।
उप राष्‍ट्रपति ने कहा कि मीडिया की नैतिक आचार संहिता के बारे में भी कुछ कहना जरूरी है, स्‍थाई समिति के समक्ष मीडियाकर्मियों के कामकाजी माहौल और उनके पारिश्रमिक के बारे में हुई सुनवाई में एक गवाह ने टिप्‍पणी की कि ‘दो तरह के पत्रकार हैं, पहले ऐसे पत्रकार हैं जो किसी विचारधारा तथा पत्रकारिता के सिद्धांतों से प्रभावित नहीं होते, ऐसे पत्रकार खुश हैं, लेकिन दूसरी तरह के पत्रकार वास्‍तविक पत्रकार हैं, लेकिन दुःखी हैं’। उन्‍होंने कहा कि निष्‍कर्ष के तौर पर मैं 20वीं शताब्‍दी के प्रख्‍यात और सम्‍मानित अमरीकी पत्रकार वाल्‍टर लिपमैन के शब्‍दों का स्‍मरण दिलाना चाहूंगा, उन्‍होंने कहा था-सच बताना तथा बुराई की निंदा करना और महान से विमुख रहने से बड़ा पत्रकारिता में कोई कानून नहीं है। लिपमैन ने यह भी कहा कि पत्रकार और राज्‍य प्रमुख के बीच उचित दूरी होनी चाहिए। उन्‍होंने आशा व्‍यक्‍त की कि बुद्धिमत्‍ता, अनुभव और विशेषज्ञता संपन्‍न मीडिया के महानुभाव समस्‍या पर विचार विमर्श कर ऐसे नतीजे पर पहुंचेगे जो मीडिया के सभी वर्गों, जनता और लोकतंत्र के हित में होगा।

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