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'सशस्त्र क्रांतिवीरों के प्रयासों से मिली है आजादी'

इतिहासकार एनालिसिस व शोध से देश के गौरव की व्याख्या करें-गृहमंत्री

रेवोल्यूशनरीज़-द अदर स्टोरी ऑफ़ हाउ इंडिया वोन इट्स फ़्रीडम पुस्तक पढ़ें

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Thursday 12 January 2023 01:34:30 PM

historians should explain the country's pride with hard work and research-home minister

नई दिल्ली। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एक कार्यक्रम में संजीव सान्याल की पुस्तक 'Revolutionaries-The Other Story of How India Won Its Freedom' का विमोचन किया और संबोधन की शुरूआत प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देकर की। अमित शाह ने कहाकि यह पुस्तक न केवल क्रांतिकारियों के जीवन का वर्णन करती है, बल्कि उनकी विचारधारा, उनके मानवीय मूल्यों और उन आघातों का भी वर्णन करती है, जिनसे वे गुज़रे थे। उन्होंने कहाकि आजादी का एकही दृष्टिकोण हमेशा से हमें बताया गया, जबकि देश को आजाद कराने में अनेक व्यक्तियों, विचारों एवं संगठनों का बहुमूल्य योगदान था, यह पुस्तक उन्हीं सशस्त्र आंदोलन को जनता को बताने का एक अच्छा प्रयास है। गृहमंत्री ने कहाकि इतिहास को बारीकी से पढ़ना और उसके संदेश को आनेवाली पीढ़ियों में सटीक तरीके से देना हर पीढ़ी का दायित्व है। उन्होंने कहाकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज़ादी के अमृत महोत्सव के वर्ष में 15 अगस्त को पंच प्राण की बात की थी और विरासत पर गर्व एवं गुलामी की निशानियों से मुक्ति पंच प्राणों का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
गृहमंत्री अमित शाह ने कहाकि जिस देशकी पीढ़ी को अपनी विरासत पर गर्व नहीं होता है, वो कभी अपने देश को महान नहीं बना सकती, गुलामी के काल की मान्यताओं और सोच को लेकर चलने वाले लोग कभी देश की सोच को गुलामी से मुक्त नहीं कर सकते। उन्होंने कहाकि भारतीय इतिहास के लेखन को गुलामी की सोच से मुक्ति दिलाने की ज़रूरत है और वीर सावरकर ने सबसे पहले यह प्रयास किया था। अमित शाह ने कहाकि देश वर्ष 1857 की क्रांति को गदर के नाम से जानता था, लेकिन पहलीबार वीर सावरकर ने 1857 की क्रांति को सबसे पहला स्वतंत्रता संग्राम कहा और वहीं से नरेटिव को बदलने की शुरुआत की। अमित शाह ने कहाकि इतिहास कई मान्यताओं को जन्म देता है, लेकिन इसे हार-जीत के आधार पर नहीं लिखा जा सकता, क्योंकि प्रयासों केभी कई पहलू होते हैं। अमित शाह ने कहाकि इतिहास को वास्तविकता, प्रयासों के मूल्यांकन और प्रयासों के सभी पहलुओं के एनालिसिस के आधार पर लिखना चाहिए और तभी इतिहास अपने आपमें परिपूर्ण होता है। उन्होंने कहाकि सशस्त्र क्रांति के इतिहास केसाथ भी कुछ ऐसाही हुआ, क्योंकि कई इतिहासकार इस प्रयास को विलुप्त करने में लगे रहे, कई लोगों ने इसे कम महत्व दिया। उन्होंने कहाकि ऐसे लोगों को ये मालूम नहीं हैकि जब भगत सिंह को फांसी दी गई उस दिन लाहौर से लेकर कन्याकुमारी तक किसीके घर में चूल्हा नहीं जला था, भगत सिंह की शहादत ने हर किसी के मन में कभी ना बुझने वाली देशभक्ति की ज्वाला प्रदीप्त करने का काम किया था।
गृहमंत्री ने कहाकि अगर सशस्त्र क्रांति के योगदान का मूल्यांकन करना है तो इसे आइसोलेट नहीं किया जा सकता है, क्योंकि बहुत सारे लोग मानते हैंकि सशस्त्र क्रांति की जगाई गई देशभक्ति की ज्वाला के आधार परही आज़ादी का आंदोलन सफल हुआ था। गृहमंत्री ने कहाकि अगर सशस्त्र क्रांति की समानांतर धारा ना चली होती तो स्वतंत्रता में शायद कई दशक और लग जाते। उन्होंने कहाकि देश में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने मात्र वंदे मातरम लिखकर चेतना को जागृत किया, ग़दर पार्टी के प्रयासों ने समग्र देश के अंदर अनेक स्थानों पर जबरदस्त सुषुप्त चेतना की जागृति और निर्माण किया, जोकि एक बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने कहाकि इतिहास में इन प्रयासों को जो उचित सम्मान मिलना चाहिए दुर्भाग्य से वह नहीं मिला, आजादी केबाद हमारे इतिहास को हमारे दृष्टिकोण से लिखने और हमारे स्वतंत्रता आंदोलन को भारतीय दृष्टिकोण से मूल्यांकन करके युवा बच्चों के सामने रखने की जिनकी जिम्मेदारी थीकि इसमें कहीं ना कहीं चूक हुई है, अंग्रेजीयत के चश्मे से पढ़कर इतिहास को लिखा गया, जिसके चलते कन्फ्यूजन हुआ। उन्होने विश्वास जतायाकि इस किताब के जरिए इस धुंध को साफ करने का काम होने वाला है। उन्होंने कहाकि लोग कहते हैंकि विभिन्न कारणों से आजतक इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा गया, लेकिन अब हमें इसे सही तरीके से लिखने से कोई नहीं रोक सकता।
अमित शाह ने इतिहास के विद्यार्थियों और अध्यापकों का आह्वान कियाकि वे देश के गौरव को बिना तोड़े-मरोड़े अपनी मेहनत और रिसर्च से व्याख्यायित कर वास्तविक इतिहास की रचना करें और ऐसे 300 व्यक्तियों की खोज करें, जिन्होंने भारत को एक महान देश बनाया। अमित शाह ने कहाकि सन् 1857 से पहले और बादमें कभीभी इस देशके किसी भी कोने में अंग्रेजों को स्वीकारा नहीं गया, बल्कि एक-एक इंच जमीन केलिए क्रांतिकारियों ने संघर्ष किया और लड़ाई लड़ी जो आजादी बरकरार रखने काही एक संघर्ष थी और जिसे इतिहास में उचित स्थान मिलना चाहिए। उन्होंने कहाकि कई सारे ऐसे लोग थे, जिन्होंने कुछ ना प्राप्त होने की स्थिति मेभी 1857 की क्रांति में लड़ाई लड़ी और इसी क्रांति ने देशकी जनता के मन में शिवाजी महाराज केबाद पहलीबार स्वराज के संस्कार डालने का प्रयास किया और वहींसे हमारी आजादी की लड़ाई की भूमिका की नींव भी डाली गई। गृहमंत्री ने कहाकि चाहे अहिंसक आंदोलन हो या सशस्त्र क्रांति सबकी नींव 1857 की क्रांति मेही है और इनसब जानकारियों को समाहित करके सच्चे ऐतिहासिक तथ्यों को देशकी नई पीढ़ी के सामने रखने की जिम्मेदारी सरकार केसाथ-साथ इतिहासकारों कीभी है। गृहमंत्री ने कहाकि किताब के आठों अध्याय में एक निरंतरता है और इन्हें अलग-अलग करके नहीं पढ़ा जा सकता, प्रत्येक अध्याय दूसरे अध्याय के साथ एक सूत्र में जुड़ा हुआ है।
गृहमंत्री ने कहाकि आजतक सशस्त्र क्रांति के इतिहास को छुटपुट व्यक्तिगत प्रयास बताया जाता था, लेकिन इस पुस्तक को पढ़ने केबाद स्पष्ट हो जाएगाकि यह छुटपुट व्यक्तिगत प्रयास ना होकर सोच समझकर किया गया सामूहिक प्रयास था। अमित शाह ने कहाकि पुस्तक पढ़ने से सशस्त्र क्रांति की अवधारणा का पता चलेगा और हम जान पाएंगेकि सशस्त्र क्रांति करनेवाले स्वभावगत हिंसा के पथके अनुयाई नहीं थे, बल्कि उन्होंने बंदूकधारी अंग्रेजों से लड़ने और उनसे देश को आजाद करवाने केलिए हिंसा को जरिया बनाया, वे भी उत्कृष्ट मानवीय मूल्यों का अनुकरण करने वाले लोग थे, जिनका गलत चित्रण कर उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय किया गया। उन्होंने कहाकि देश को आजादी दिलाने में साहित्यकारों, किसान आंदोलनों केजरिए अंग्रेज हुकूमत को हिलाकर जनजागृति करनेवाले किसानों, देशके कोने में फैले हुए जनजातीय समाज, सबका योगदान था, जनजातीय समाज ने 1857 से पहले भी अपनी परंपरा को प्रदूषित ना होने देने केलिए अंग्रेजों के खिलाफ शस्त्र उठाकर लड़ाई लड़ी। उन्होंने कहाकि सशस्त्र क्रांतिकारियों ने देशभक्ति से प्रेरित होकर दुनियाभर की अनेक घटनाओं से प्रेरणा लेकर अंग्रेजों के चंगुल से देश को आजाद कराने केलिए एक भागीरथ प्रयास किया। अमित शाह ने कहाकि 1909 में वीर सावरकर ने सशस्त्र क्रांति के सफल होने केलिए इसके अखिल भारतीय स्वरूप को तय करने की आवश्यकता पर बल देने केलिए अभिनव भारत की स्थापना की, जिसे आजादी केबाद स्वंय उन्होंने ही बंदकर दिया, क्योंकि उसका उद्देश्य समाप्त हो गया था।
गृहमंत्री ने कहाकि इन भागीरथ प्रयासों को छुटपुट प्रयास का नाम देकर इन महान प्रयासों का अवमूल्यन नहीं करना चाहिए, व्यक्ति की व्यक्तिगत देशभक्ति ही अपने आपमें बहुत महान होती है, एक समूह, एक विचारधारा केतहत देश को आजाद कराने के प्रयास को हमें समझकर स्वीकारकर प्रचारित करना होगा। गृहमंत्री ने कहाकि देश को आजाद कराने केलिए कई लोगों ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया, कईबार घर की कुर्की हो गई, परिजनों को जेल में डाल दिया गया, कई लोग अंडमान निकोबार में कालापानी की सजा भुगतते रहे और फांसी चढ़ गए, इन प्रयासों को कतई व्यक्तिगत और विफल प्रयास नहीं कहा जा सकता। अमित शाह ने कहाकि जब नरेंद्र मोदीजी गुजरात के मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने श्रीश्याम कृष्ण वर्मा की अस्थियां इतने सालों बाद वापस लाने का काम किया, क्योंकि श्यामजी अपनी वसीयत में कहकर गए थेकि मेरी अस्थियों को देश आज़ाद होने केबाद ही प्रवाहित किया जाए। उन्होंने कहाकि इस प्रयास को कोई कैसे छुट-पुट प्रयास कह सकता है, ऐसे सभी लोगों ने आज़ादी के स्वप्न को आकार देने का काम किया और वीर सावरकर जैसे लोगों ने ज़मीन पर लड़ाई लड़ने का काम किया। अमित शाह ने कहाकि हमें इतिहास को एक्स्ट्रीमिस्ट बनाम मॉडरेट्स की धारा से निकालकर वास्तवदर्शी बनाना होगा। उन्होंने कहाकि किसी एक आंदोलन का महिमामंडन करने केलिए हज़ारों लोगों की तपस्या, बलिदान को कैसे नकारा जा सकता है।
अमित शाह ने कहाकि हमें समझना होगाकि हमें आजादी अनुदान में नहीं मिली है, लाखों लोगों के बलिदान और रक्त बहाने केबाद ये आजादी मिली है। उन्होंने कहाकि जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा कर्तव्यपथ पर लगी है तो मन को बहुत संतोष मिलता है, नेताजी किसी की स्पर्धा में नहीं है और स्पर्धा के भाव से उनके कामों और महान प्रयासों का अवमूल्यन कैसे किया जा सकता है, क्योंकि नेताजी वो तेजपुंज हैं, जो पीढ़ियों तक हज़ारों युवाओं को देशभक्त बनने की प्रेरणा देगा। उन्होंने कहाकि नेताजी सुभाषचंद्र बोस और आईएनए को जितना सम्मान और स्थान देश के इतिहास में मिलना चाहिए था, वो नहीं मिला। अमित शाह ने कहाकि देश के युवा का रूझान बदल रहा है और देशकी मान्यताएं भी बदल रही हैं। उन्होंने कहाकि हमारे यहां देश केलिए कई वर्षों तक संघर्ष करने वाले लोगों का इतिहास है और वो ही हमारे क्रांतिवीरों के प्रेरणास्त्रोत थे। अमित शाह ने कहाकि सही नरेटिव को कुछ लोगों ने दबाकर रखा और ऐसे लोगों को कहना चाहता हूंकि इतिहास बहुत क्रूर होता है और ये अंधेरी रात्रि में बिजली की तरह चमकता है और इसे स्वीकार करना ही पड़ता है। उन्होंने कहाकि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को कोई दबा नहीं सकता, लुप्त नहीं कर सकता और छिपा नहीं सकता। अमित शाह ने कहाकि हमारे यहां व्यक्ति, राष्ट्र और संस्कृति कभी अलग नहीं रहे हैं, ये तीनों एक ही हैं और इस मूल विचार के आधार परही सशस्त्र क्रांति की नींव पड़ी थी।

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