स्वतंत्र आवाज़
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स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम का 15वां गौरवशाली वर्ष!

देश, समाज और राष्ट्रवादी पत्रकारिता के लिए समर्पित स्वतंत्र आवाज़

लंबे सफर में हमारा साथ देने केलिए आपका कोटि कोटि धन्यवाद!

Thursday 5 January 2023 02:20:06 PM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

swatantraawaaz.com logo

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम आज अपने जीवन के 15वें गौरवशाली वर्ष में प्रवेश कर गया है। इसके लिए उन सभी का कोटि-कोटि धन्यवाद, जिनके अनुकरणीय सहयोग सम्मान और समर्थन ने स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम को भारत के ऑनलाइन हिंदी मीडिया में एक प्रतिष्ठित और पेशेवर हिंदी दैनिक समाचार पोर्टल की ख्याति दी है। स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम देश समाज और राष्ट्रवादी पत्रकारिता केलिए समर्पित स्वतंत्र आवाज़ है, जिसने उच्चकोटि के कंटेंट प्रस्तुतिकरण जवाबदेही और जिम्मेदारीपूर्वक अपने पत्रकारिता धर्म से कभी समझौता नहीं किया है, इसीलिए उसने अपने जीवनकाल के हरक्षेत्र में अनेक अकथनीय संघर्ष और उतार-चढ़ाव देखे हैं। स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम के ये 14 वर्ष इन्हीं सच्चाईयों के साक्षी हैं। इस यात्रा में हमने पत्रकारिता पेशे केप्रति अपनी वचनबद्धता को सिद्ध किया है, तभी हम आपकी कसौटी पर खरे उतर पाए हैं, टिक पाए हैं और इतना लंबा सफर पूरा कर सके हैं। 
स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम 5 जनवरी 2008 को जब अस्तित्व में आया, तब हमारे देश में ऑनलाइन मीडिया का कोई चलन या प्रभाव ही नहीं था। हिंदी पत्रकारिता के चुनिंदा समाचारपत्र घरानों और अपवाद को छोड़कर स्वतंत्र रूपसे ऑनलाइन हिंदी मीडिया में आने की नतो दिलचस्पी दिखाई देती थी और नाही उस लायक जानकारी समझ एवं आज जैसे तकनीकी संसाधन थे। उस समय अंग्रेजी को छोड़कर किसी हिंदी समाचार पोर्टल केलिए यह समझाना एक बहुत बड़ी चुनौती थी, सवाल थे और ज्यादातर तो उपहास होता थाकि ये क्या है? जबकि प्रिंट के बाद देशमें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आया और उसके बाद ऑनलाइन मीडिया का यह सनसनीखेज तूफान दिखाई दिया जो तीसरी मीडिया क्रांति में बदल गया और जो ऑनलाइन और सोशल मीडिया के नाम से अपने चरम की ओर बढ़ता जा रहा है।
ऑनलाइन मीडिया को लेकर कई संशय और कुछ अवधारणाएं भी व्यक्त की जा रही हैं, लेकिन जागरुकता और सावधानी के अभाव में इसको ठीक से समझा नहीं जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण यह हैकि दुनिया की आधुनिक तकनीकें जब वहां बूढ़ी हो जाती हैं, तब वह कोई जादू या अजूबा बनाकर भारत में पेश की जाती हैं। भारत में राजीव गांधी सरकार में कंप्यूटर आया, मगर बाद की सरकारों की दिलचस्पी के अभाव में देशमें पुन: इस तकनीक का सन्नाटा छाया रहा। नरेंद्र मोदी सरकार आने पर सही मायनों में भारत में कम्प्यूटर तकनीक का नया युग शुरू हुआ, जिसने आते ही देशमें तकनीकी क्रांति को देश के अर्थतंत्र, शिक्षा और विकास का मुद्दा बनाया और उस पर भागीरथी प्रयास किए। इस कारण आज हम देश में हर तरफ तकनीकी क्रांति देख रहे हैं। इसमें हमें इसबात पर गौर करने की आवश्यकता हैकि हम तकनीक का किस प्रकार उपयोग और सदुपयोग करें। देश इस समय प्रतिभाओं से समृद्धशाली है। हमें इन प्रतिभाओं को भटकने से बचाना है और उनकी प्रतिभा का देशके हरक्षेत्र के विकास में अधिकतम उपयोग करना है।
भारतवासियों केलिए यह अत्यंत गौरव का विषय हैकि दुनिया के विकसित देशों ने सूचना और प्रौद्योगिकी तकनीक पर हमारी प्रतिभाओं का लोहा माना हुआ है और हम उसका वैश्विक स्तर पर शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं, मगर खेद हैकि हमारी प्रतिभाओं का एक वर्ग जो तकनीक के दुरुपयोग पर लगा हुआ है, वह दुखद है और निराशाजनक है। हमें सफलता अर्जित करने केलिए शार्टकट और तकनीक के दुरुपयोग से बचना चाहिए, हम उसका सदुपयोग कर न केवल अपनी दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति कर सकते हैं, अपितु दूसरों को भी इस प्रगति का भागीदार बना सकते हैं। बात ऑनलाइन मीडिया की हो रही है तो विकसित दुनिया के बड़े-बड़े समाचारपत्र बहुत पहले ही ऑनलाइन हो चुके हैं, मगर जैसाकि हमने कहा तो भारतीय पत्रकारिता और हिंदी पत्रकारिता में इसकी बहुत देर से शुरुआत हुई है। याद कीजिएगा कि जब दुनिया के देशों में कम्प्यूटर का चलन आम हो गया, तब वह राजीव गांधी की सरकार में भारत में दिखाई दिया, इसके बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने ही इसके विस्तार पर काम किया है।
स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम दैनिक समाचार पोर्टल भी इस सदी के पहले दशक में 5 जनवरी 2008 को ऑनलाइन मीडिया क्षेत्र में इस नफे नुकसान कीकि कोई इसे देखेगा कि नहीं, यह चल पाएगा कि नहीं की चिंता के बगैर ऑनलाइन कर दिया गया था। हमारी आशंका कोई निर्मूल नहीं थी और ऐसा हुआ भीकि एक लंबे समय तक दर्शक और पाठक वर्ग में ऑनलाइन मीडिया का संज्ञान नहीं लिया गया और इसमें बेहद कम दिलचस्पी देखी गई। आज तो ऑनलाइन मीडिया ही सरताज है, जिसके सामने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का खड़ा होना बड़ी चुनौती बन चुका है। ऑनलाइन मीडिया में आज समाचार पोर्टल लाने की होड़ मची है और बड़े समाचारपत्र घरानों की मनमानी से उखड़े बड़े-बड़े नामधारी पत्रकार ऑनलाइन पत्रकारिता में दिखाई दे रहे हैं। जिनके पास विश्वसनीय कंटेंट है, उनके लिए यह उनकी आय का भी जरिया बन चुका है। स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम केबाद ऑनलाइन हिंदी मीडिया में बहुत लोग आए, मगर उनमें से ज्यादातर कुछ ही समय बाद परिदृश्य से गायब भी हो गए, क्योंकि शॉर्टकट से रातों-रात सफलता हासिल नहीं की जा सकती।
ऑनलाइन हिंदी पत्रकारिता में अनेक लोग और संस्थान संसाधनविहीन हैं, वे जैसे-तैसे चल रहे हैं, मगर जिनके पास संसाधन हैं, वह अपने अनैतिक लाभ केलिए इनका जमकर दुरुपयोग कर रहे हैं। यद्यपि यह भी एक सच्चाई हैकि ऑनलाइन मीडिया के दुरुपयोग का खेल लंबा चलना मुश्किल है, क्योंकि इसमें दर्शक और पाठकवर्ग को फर्जी कंटेंट से गुमराह करने के बड़े नुकसान भी हैं और भारत सरकार ऐसे पोर्टलों या ऑनलाइन चैनलों पर उन्हें बंद कराने की कार्रवाई तक कर रही है। हमारी भी ऐसे लोगों से विनती है जो इसका दुरुपयोग कर रहे हैं और देश और समाजविरोधी फर्जी कंटेंट पोस्ट कर रहे हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए और ऑनलाइन हिंदी पत्रकारिता की पवित्रता को बनाए रखा जाना चाहिए, ताकि जनसामान्य का ऑनलाइन मीडिया पर विश्वास मजबूत हो। वैसेही झूंठे, प्लांट और सनसनीखेज समाचारों एवं जहरीली डिबेट के कारण जनसामान्य देश के अधिकांश टीवी समाचार चैनलों से भारी निराश है। इसी संदर्भ में हमारा यह भी कहना हैकि मतभिन्नता की परिभाषा को भी अभिव्यक्ति की आजादी के ऐसे दृष्टिकोण से निर्धारित किया जाना चाहिए, जिसकी एक सीमा हो।
हिंदी पत्रकारिता और खासतौर से ऑनलाइन हिंदी पत्रकारिता का मार्ग बहुत महंगा भी है। इसकी सफलता केलिए यदि संसाधन सबसे बड़ी आवश्यकता है तो उससे बड़ी आवश्यकता तथ्यों से समृद्धशाली कंटेंट की है। यदि हमारे पास कंटेंट है तो हमारे लिए कोई भौगोलिक सीमा मायने नहीं रखती है और यदि कंटेंट नहीं है तो थोड़ा भी चलना बहुत मुश्किल है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमें पढ़कर बच्चे अपनी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियां करते हैं, वे हमें पढ़कर आईएएस आईपीएस और अन्य अखिल भारतीय सेवाओं में जाते हैं, मगर हम आज जो कंटेंट परोस रहे हैं, वह अधिकांशतः बहुत गैर जिम्मेदाराना है, तथ्यात्मक नहीं है, उसमें गुणवत्ता नहीं है, जिस कारण वह किसी केलिए भी उपयोगी नहीं है। अपवाद को छोड़कर आज चाहे समाचारपत्र हों और चाहे समाचार चैनल हों, अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल पाए जा रहे हैं। क्या यह हम सबके लिए शर्मनाक स्थिति नहीं है और क्या हमें अपनी कार्यप्रणाली पर आत्मिक मंथन नहीं करना चाहिए? हमारा यह लिखना हमारी ही नहीं, समाज की भी चिंता है और जब हम ऑनलाइन हैं, जिसपर विभिन्न क्षेत्रके विद्वान विशेषज्ञ भी मौजूद हैं, बड़ी-बड़ी रिसर्च मौजूद हैं, सबकुछ अच्छे से अच्छा मौजूद है तो हमें उनसे तुलना करके देखना चाहिए कि कंटेंट की गुणवत्ता में हम कहां हैं और वो कहां हैं।
भारत सरकार ऑनलाइन पत्रकारिता की न्यू मीडिया के नाम से तीसरी कैटेगरी स्थापित कर चुकी है। उसपर कानून भी बना चुकी है। गौर करने वाली बात हैकि कुछ नए ऑनलाइन समाचार पोर्टलों ने इस तकनीक का दुरुपयोग करते हुए कुछ टीवी समाचार चैनलों की फर्जी टीआरपी की तरह फर्जी रैंक और हिट्स का खेल शुरू कर दिया है। भारत में या भारत में दिखने पढ़े जानेवाले दूसरे देशों के ऑनलाइन मीडिया के उन समाचार पोर्टलों या यूट्यूब चैनलों का संज्ञान लिया जा रहा है, जोकि सुनियोजित रूपसे देशविरोधी, सामाजिक सद्भाव विरोधी कंटेंट का अड्डा बने या बन रहे हैं। जिसके अनेक मामले सामने आए हैं, जिन्हें समाज ने समझ लिया है और इसी कारण भारत सरकार को भी ऐसे पोर्टलों या ऑनलाइन चैनलों पर नियंत्रण केलिए कड़े कानून लाने पड़े हैं। यह वह मंथन चिंतन है, जो सभी से ये सवाल कर रहा है और जिनके संतोषजनक उत्तर नहीं मिल रहे हैं।

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