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आस-निराश की घड़ियों में नेताजी का देहावसान!

सफलताओं और विफलताओं से भरा रहा मुलायम सिंह यादव का जीवन

नारायण दत्त तिवारी ने तो लीडर बनाया और लालू यादव ने कांटे बिछाए!

Monday 10 October 2022 10:50:36 AM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

mulayam singh yadav (file photo)

लखनऊ/ गुरुग्राम। देशकी नई पीढ़ी के सामने समाजवाद को सत्ता और परिवारवाद का पर्याय स्थापित करने वाले 'धरतीपुत्र' नेताजी मुलायम सिंह यादव नहीं रहे! गुरुग्राम में विश्वप्रसिद्ध मेदांता अस्पताल के उत्कृष्ट चिकित्सा कक्ष में जीवनरक्षक प्रणाली पर आज सवेरे उन्होंने 82 वर्ष की उम्रमें अंतिम सांस ली। मुलायम सिंह यादव की कुशलक्षेम जानने और उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामनाएं करने केलिए मेदांता अस्पताल में कल राततक राजनेताओं सपा नेताओं और कार्यकर्ताओं का तांता लगा रहा, मगर आज सुबह ये शुभकामनाएं श्रद्धांजलियों में बदल गईं। मुलायम सिंह यादव राजनीतिक सफलताओं के चरम पर पहुंचने के बावजूद यह 'टीस' साथ लेगए हैंकि उनके सामने ही उनका राजपुत्र अखिलेश यादव विफल हो गया है और दूसरी 'टीस' यहकि देशके किसीभी राजनीतिक दल ने उनके प्रधानमंत्री बनने की चिरइच्छा को भी पूरा नहीं होने दिया और सबसे बड़ा कांटा तो बिहार के छत्रप और उनके सजातीय राजनेता लालू प्रसाद यादव ही रहे, जिन्होंने सर्वदा उनकी राहों में कांटे ही कांटे बिछाए। आज भलेही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की पराकाष्ठा और उनके राजनीतिक प्रचंड से भयभीत मुलायम सिंह यादव के उत्तराधिकारी अखिलेश यादव और बिहार के लालू यादव एवं उनके राजनेता पुत्र तेजस्वी यादव एकजुट हो रहे हैं। 'का वर्षा जब कृषि सुखाने'?
मुलायम सिंह यादव ने अपने गांव सैफई से लेकर इटावा, मैनपुरी, लखनऊ और दिल्ली तकके राजनीतिक और सामाजिक जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव और बड़े संघर्षों का सामना किया है। राजनीति की नई पीढ़ी को नहीं मालूम है, मगर जानने वाले कहते हैंकि कांग्रेस के दिग्गज नेता एवं उत्तर प्रदेश के कईबार मुख्यमंत्री रहे नारायणदत्त तिवारी नेही मुलायम सिंह यादव को असली लीडर बनाया है। जानकार येभी कहते हैं और यह वास्तविकता भी हैकि राजनीति और सत्ता के वर्चस्व केलिए यदुवंशियों की अंदरूनी लड़ाई बहुत खतरनाक ज्वालामुखी बनकर उन्हींपर फट रही है, जिसमें वे आपस में लड़-मरते आ रहे हैं। राजनीतिक पतन की ओर जाते दिखरहे मुलायम परिवार की सामाजिक राजनीतिक और सत्ता केलिए प्रभुत्वकारी लड़ाऊ रणनीतियां सदासे उन्हीं केलिए संकट बनती रही हैं, जिसकी समय-समय पर नेताजी मुलायम सिंह यादव को ही बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। राजनीतिक और सत्ताकी महत्वाकांक्षाएं पूरी करने केलिए इस यदुवंशी परिवार के इतिहास केसाथ अनेक अच्छी-बुरी, कही-अनकही, सजातीय-सामाजिक, थाना-पुलिस, कोर्ट-कचहरी प्रतिद्वंद्वियों को शत्रु मानकर उन्हें कुचलकर आगे निकलने की अनेकानेक कहानियां और निर्मम घटनाएं जुड़ी हुई हैं। सजातीय बलपर एक मास्टर से क्षेत्रीय राजनीति में कूदने के वर्षों में मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार पर चंबल के डाकुओं एवं अपराधियों को संरक्षण देनेके आरोप लगे तो उनपर गंभीर धाराओं में आपराधिक मुकद्में भी दायर हुए, जो उनके सरकार में आने पर खत्म कराए गए।
मुलायम सिंह यादव ने अपने फैसलों, आलोचनाओं और प्रतिरोध का हदसे बाहर जाकर सामना कियाहै और वक्त की नजाकत देखकर अपने राजपुत्र अखिलेश यादव और परिवार को गंभीर संकटों से बचाने केलिए देशकी नरेंद्र मोदी सरकार के सामने समर्पण भी किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोकसभा में अपने भाषण में मुलायम सिंह यादव का 2019 के लोकसभा चुनाव में विजयी होने और उन्हें फिरसे प्रधानमंत्री बनने का आर्शीवाद कोई यूंही नहीं था, बल्कि यह सपा सरकार में रहकर भ्रष्टाचार के तूफान में फंसे और लंबे समय केलिए जेलके दरवाजे पर पहुंचे पुत्र एवं परिवार को बचाने की उनकी एक बड़ी सोची-समझी रणनीति थी, जो उनके जीतेजी सफल रही और जिसके चलते मुलायम सिंह यादव के महत्वाकांक्षी पुत्र और मुख्यमंत्री रहे अखिलेश यादव, भाई शिवपाल सिंह यादव, प्रोफेसर रामगोपाल यादव पर अकाट्य प्रमाणों सहित भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों पर आजतक कोई कार्रवाई सामने नहीं आई, जबकि उनके सखा और सपा सरकार के परम सहयोगी मंत्री भाईजान मोहम्मद आजम खां, उनकी पत्नी और उनके पुत्र अब्दुल्ला आजम खां को भ्रष्टाचार के ही आरोपों में भाजपा सरकार ने लंबे समय जेलमें डालकर उनका लगभग सारा राजनीतिक और आर्थिक साम्राज्य तबाहकर दिया है। नरेंद्र मोदी आजभी मुलायम सिंह यादव के उन्हें दोबारा प्रधानमंत्री बननेके आर्शीवाद का ज़िक्रकर उनकी राजनीतिक रणनीतिक सहृदयता का सम्मान करते हैं। मुलायम सिंह यादव के बारेमें यहभी कहा जाता हैकि वे जिसके साथ खड़े हुए तो डंके की चोट पर और जिससे दुश्मनी पाली तो वह भी इंतकाम और उसके अंजाम तक पाली। उन्हें जाननेवाले और आजकी पीढ़ीके उनसे जुड़े लोग भी कहते हैंकि यही मुलायम परिवार की रीत और कार्यप्रणाली है।
पश्चिम उत्तर प्रदेश के प्रचंडजाट और किसाननेता चौधरी चरण सिंह मुलायम सिंह यादव के पहले राजनीतिक गुरू रहे हैं। उन्होंने मुलायम सिंह यादव को सरकार में मंत्री बनाया और अपनी पार्टी लोकदल का प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया। चौधरी चरण सिंह केबाद उनके सामने सबसे गंभीर राजनीतिक चुनौतियों का दौर शुरू हुआ। मुलायम सिंह यादव ने सदैव कांग्रेस विरोध की राजनीति की, जिसमें उनको उनके ही गढ़में मैनपुरी के सजातीय कांग्रेस नेता बलराम सिंह यादव से तगड़ी चुनौती मिली। केंद्र और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रहने के कारण मुलायम सिंह यादव की एक नहीं चली, परिणामस्वरूप इस राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने भयंकर हिंसक दुश्मनी का रूपले लिया, जो लंबी चली। इसमें दोनों ओरसे एवं बड़ी संख्या में एक-दूसरे के समर्थक बेमौत मारे गए। राज्यमें कांग्रेस सरकार होनेके कारण क्षेत्रमें बलराम सिंह यादव का सजातीय एवं राजनीतिक पलड़ा बहुत भारी था, मगर इस दौरान उनसे एक बड़ीभारी राजनीतिक गलती हुई, जिसमें उन्होंने नारायणदत्त तिवारी विरोधी कुछ फितरती कांग्रेसी नेताओं के उकसावे में आकर मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी से पंगा ले लिया। नारायणदत्त तिवारी ने इसके बाद बलराम सिंह यादव की राजनीतिक ताकत से संघर्षकर रहे मुलायम सिंह यादव पर हाथ रख दिया और बलराम सिंह यादव किनारे लगाना शुरूकर दिया। मुलायम सिंह यादव केलिए सत्ताके गलियारे खुलगए, जिससे विपक्षमें होनेके बावजूद उनकी एक शक्तिशाली लीडर बननेकी महत्वाकांक्षाएं परवान चढ़ती गईं। वे एटा इटावा मैनपुरी में सजातीय प्रभुत्व की राजनीति मेही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश में विपक्षकी राजनीति मेभी छाते गए, बलराम सिंह यादव उनसे पिछड़ते चले गए और कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के भरपूर सहयोग के बावजूद वे मुलायम सिंह यादव के सामने फिरकभी टिक नहीं पाए।
मुलायम बनाम बलराम की राजनीतिक प्रभुत्व की हिंसक लड़ाई थमने केबाद एकसमय ऐसाभी आयाकि जब बलराम सिंह यादव नेही मुलायम सिंह यादव की ताकत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। उस समय इनदोनों नेताओंसे क्षेत्रकी जनताने बड़ा सवाल कियाकि जब तुम दोनों को अंतमें यही करना था, तोइस वर्चस्व की लड़ाई मेजो निर्दोष मारेगए और परिवार के परिवार उजड़ गए तो उनका क्या दोष था और उनका क्या होगा? मुलायम सिंह यादव और बलराम सिंह यादव की राजनीतिक शत्रुता और उसके हस्र को इटावा ऐटा मैनपुरी के बहुत लोग आजभी अपने हाथ की रेखाओं की तरह जानते हैं। बलराम सिंह यादव के सामने मुलायम सिंह यादव को लीडर बनाने में अगर नारायणदत्त तिवारी का आर्शीवाद नहीं मिला होतातो मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश की राजनीति मेंकभी नज़र नहीं आते और तबवे केवल इटावा ऐटा और मैनपुरी मेही राजनीतिक संघर्ष करते रहे होते। मुलायम सिंह यादव पर धोखेबाजी केभी आरोप लगते रहे हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीतिक शक्ति से अभिभूत होकर अपने ही गुरू चौधरी चरण सिंह के पुत्र और एकमात्र राजनीतिक उत्तराधिकारी चौधरी अजीत सिंह कोही बड़ा तगड़ा झटका दिया। मुलायम सिंह यादव ने अनेक अवसरों पर उत्तर प्रदेश की सत्तापर वर्चस्व की राजनीति में कांग्रेसियों केही उकसावे में आकर नारायणदत्त तिवारी को भी हिट किया है, परंतु उन्होंने इसमें इतनी गुंजाईश जरूर रखीकि जबकभी आमना-सामना हो तो शर्मिंदगी न हो। इससे वे कभी-कभी नारायणदत्त तिवारी के जीवन के अंतिम और कठिन समय में उनका 'कर्ज' भी उतारते दिखे।
मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस विरोध की राजनीति करते हुए, कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी के आर्शीवाद से कांग्रेस के समर्थन सेभी एकबार अपनी सरकार बनाई। लंबे समय अनेक गैर कांग्रेसी दिग्गज राजनेताओं केसाथ काम करने केबाद अपनी ही समाजवादी पार्टी बनाई, जिसकी उत्तर प्रदेश में उनके नेतृत्व में जोड़-तोड़ से सरकारें भी बनीं। मुलायम सिंह यादव ने बसपा और भाजपा की विफलता से सपा को पूर्ण बहुमत मिलने पर भाई शिवपाल सिंह यादव और सखा आजम खां कोभी अंदरखाने नाराज करते हुए अपने पुत्र अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया। मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार में रहते भाईयों भतीजों रिश्तेदारों और सजातीय मित्रों को आरोपों की परवाह किए बिना सरकारी सेवाओं या राजनीति में जहां-तहां स्थापित किया। उन्होंने अपनी राजनीतिक सफलता केलिए बसपा के संस्थापक अध्यक्ष कांशीराम सेभी हाथ मिलाने और उन्हें इटावा से लोकसभा चुनाव लड़ाने जिताने का काम किया। मुलायम सिंह यादव ने इसके बदले बसपा के समर्थन से सपा की गठबंधन सरकार बनाई। चूंकि यह गठबंधन बेमेल था, इसलिए ज्यादा नहीं चल पाया और बसपा ने मुलायम सिंह यादव सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिसकी प्रतिक्रियास्वरूप बसपा विधायकों केसाथ बैठक कर रहीं बसपा महासचिव मायावती को लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस में कुत्सित उद्देश्य से घेर लिया गया, लेकिन भाजपा के हस्तक्षेप से यह अनहोनी टल गई। इस लोमहर्षक घटना के तुरंत बाद मुलायम सिंह यादव सरकार का पतन हो गया और भाजपा के समर्थन से मायावती सरकार ने शपथ लेली। मुलायम सिंह यादव केलिए स्टेट गेस्ट हाउस कांड इतनी बड़ी मुसीबत बनाकि मायावती ने मुलायम सिंह यादव के बड़े-बड़े सपने चकनाचूर कर दिए। मुलायम सिंह यादव भलेही एकबार सपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल हुए हों और उनके पुत्र अखिलेश यादव ने पिछले लोकसभा चुनाव केलिए बसपा से दोबारा और विफल गठबंधन किया हो।
आज उत्तर प्रदेश की राजनीतिक स्थिति यह हैकि राज्य में भाजपा का प्रचंड शासन है और बसपा केबिना सपा या कांग्रेस का उत्तर प्रदेश की सत्ता में आनेका ख्वाब कतई असंभव है। यह बहुत बड़ी 'टीस' है, जिसने मुलायम सिंह यादव को गहरे राजनीतिक अवसाद में धकेले रखा है। यद्यपि मुलायम सिंह यादव को सबसे तगड़ा झटका तो बिहार के सजातीय नेता लालू प्रसाद यादव से मिला है, जिसमें मुलायम सिंह यादव प्रधानमंत्री नहीं बन पाए। एक अवसर ऐसा आयाकि लालू प्रसाद यादव ने केंद्र में कांग्रेस की गठबंधन सरकार में और सोनिया गांधी के दरबार में मुलायम सिंह यादव की कोई पूछ नहीं होने दी। कांग्रेस गठबंधन सरकार को समाजवादी पार्टी के 39 सांसदों के बिन मांगे समर्थन देनेके बावजूद भी मुलायम सिंह यादव प्रभावहीन ही रहे। उस समय देशमें बॉलीवुड सत्ता और राजनीति के विख्यात 'खिलाड़ी' अमर सिंह उनके 'सूत्रधार' 'सलाहकार' और 'राजदार' हुआ करते थे। ऐसाभी हुआकि जब मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह बिना बुलाए ही सोनिया गांधी के 'विशिष्ट डिनर' में पहुंच गए। बिना बुलाए मेहमान के रूपमें मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह की बहुत किरकिरी और सब तरफ आलोचना भी हुई। देशके राजनीतिक फलक पर पहुंचकर अपने राजनीतिक महत्व से अभिभूत और अहंकारवश मुलायम सिंह यादव ने देशकी राजनीति में बड़े-बड़े राजनीतिक दिग्गजों जैसे-हरियाणा के चौधरी देवीलाल, दिग्गज नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हेमवती नंदन बहुगुणा, देशके वामनेता और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु, पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, अपने ही राजनीतिक पालनहार नारायण दत्त तिवारी, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, जॉर्ज फर्नांडिस, भाजपा, कांग्रेस आदि को समय-समय पर बड़े तगड़े झटके दिए और कड़वी भाषा में कहें तो धोखे दिए।
मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक गुरू चौधरी चरण सिंह के महत्वाकांक्षी पुत्र चौधरी अजीत सिंह को उत्तर प्रदेश की राजनीति और मुख्यमंत्री की कुर्सी की लड़ाई में जबरदस्त धूल चटाई। मुलायम सिंह यादव ने पश्चिम उत्तर प्रदेश की जाटलैंड के इस दिग्गज चौधरी को यूपी में चलने ही नहीं दिया। अंतत: एक समय बाद चौधरी अजीत सिंह को मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक दासिता स्वीकार करनी पड़ी। आज चौधरी अजीत सिंह नहीं हैं, मगर उनका पुत्र जयंत चौधरी मुलायम सिंह यादव के राजपुत्र अखिलेश यादव की राजनीतिक गुलामी करने को मजबूर है। अखिलेश यादव की असीम कृपा सेही जयंत चौधरी राज्यसभा में जा सके हैं। अपवाद को छोड़कर हर पिता अपने पुत्र केलिए वही करता है, जो मुलायम सिंह यादव ने अपने एकमात्र पुत्र अखिलेश यादव केलिए किया। बुराई भी मोल ली। अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने और सत्ता की मलाई लूटने में मुलायम सिंह यादव परिवार में ही राजनीतिक वर्चस्व और सत्ता की जंग शुरू हो गई, जिसमें भाई शिवपाल सिंह यादव की उपेक्षा का विवाद और परिवार में विघटन के झगड़े सड़क पर आ गए। मुलायम सिंह यादव इस राजनीतिक झंझावाद में बहुत बुरे उलझ गए। यह विवाद बलराम सिंह यादव से नहीं था और ना ही दूसरे राजनीतिक दलों से कोई मुकाबला। इसबार भाई शिवपाल सिंह यादव इस लड़ाई के केंद्रबिंदु बन गए, जिन्होंने अखिलेश यादव की मनमानियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया जो आजतक खुला हुआ है, जिसका हस्र यह हुआ हैकि इसमें समाजवादी पार्टी अच्छे से निपटती रही और मुलायम सिंह यादव चाहकर भी कुछ नहीं कर पाए।
कहने वाले कहते हैंकि मुलायम सिंह यादव ने अपने जीतेजी परिवार को उसके भ्रष्टाचार पर भाजपा सरकार की कड़ी कार्रवाई से बचाए रखने की भरपूर कोशिशें कीहैं और इसके लिए वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सद्भावनाएं प्राप्त करने में सफल भीरहे हैं। मुलायम सिंह यादव के देहावसान केबाद ये सद्भावनाएं कबतक बनी रहेंगी, यहतो समय ही बताएगा। इतना सच सामने हैकि मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल सिंह यादव नेतो समय रहते अपने भविष्य का मार्ग सुखद और निश्चित कर लिया है, लेकिन मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति से घिरचुके अखिलेश यादव चल पाएंगे? इसमें बहुत बड़ा संशय कायम है। विचारणीय बात यह हैकि मुलायम सिंह यादव के सामने ही बिहार के उनके सजातीय छत्रप लालू यादव राजनीतिक उपद्रव करते आए हैं, जिसमें दोनों परिवारों में रिश्तेदारी होने केबाद कुछ शांति हुई है, लेकिन राजनीति में बाप-बेटा रिश्तेदार-नातेदार बेमानी हो जाते हैं, इसलिए सत्ता और राजनीति पर वर्चस्व की लड़ाई में बिहार के नए सजातीय क्षत्रप तेजस्वी यादव क्या अखिलेश यादव के सजातीय नेतृत्व की चिर इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं को यूंही पूरा होने देंगे? जैसा लालू प्रसाद यादव मुलायम सिंह यादव केसाथ करते आए? शायद बिल्कुल नहीं। मुलायम सिंह यादव के निधन से अखिलेश यादव और उनकी समाजवादी पार्टी गहरे अवसाद में चली गई है, जिससे जल्दी उबरने की उम्मीद कम है। अब तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव में सजातीय वर्चस्व की जंग छिड़ सकती है। परिवार में एकजुटता बनाए रखने या दूसरों को अपने से जोड़ने एवं जोड़े रखने काजो विशेषगुण मुलायम सिंह यादव में था, अपवाद को छोड़कर वह गुण अखिलेश यादव में कभी नहीं दिखाई दिया। मुलायम सिंह यादव ने पुत्र अखिलेश यादव सेही बड़ा धोखा खाया है, जिसमें अखिलेश यादव ने उनके जीतेजी उनको समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और बाकी पदों से भी अपदस्त कर सपा पर कब्जा किया है, चाहे यह पिता-पुत्र की कोई रणनीति रही हो या धोखा।
मुख्यमंत्री कार्यकाल में मुलायम सिंह यादव के अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर कारसेवकों पर गोली चलवाने, जिसमें अनेक कारसेवकों की मौतें हुई थीं और उत्तराखंड राज्य निर्माण के युवाओं एवं महिला आंदोलनकारियों को रामपुर तिराहे पर बर्बरतापूर्वक कुचलवाने, बसपा के सरकार से समर्थन वापस लेनेपर लखनऊ में मीराबाई मार्ग गैस्ट हाउस में बसपा महासचिव मायावती की हत्या करने के विफल प्रयास, अपने प्रत्येक मुख्यमंत्रित्व काल में जनाधार बढ़ाने केलिए मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति को बढ़ावा देकर उत्तर प्रदेश में विभिन्न शहरों कस्बों गांवों तक सांप्रदायिक दंगों, जातीय मामलों और सरकार में घोर भ्रष्टाचार में मुलायम सिंह यादव को मुकद्मों, जांचों, बदनामियों, जनसामान्य के भारी विरोध और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। पहलवानी और आधुनिक हथियारबंद अंगरक्षकों के शौकीन मुलायम सिंह यादव और राजपुत्र अखिलेश यादव की सरकार मेभी दंगों अराजकता और भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा है, जिस कारण समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में भाजपा से लगातार विधानसभा का चुनाव हारती आ रही है। सपा का ऐसाही हाल लोकसभा चुनाव मेभी होता आरहा है और लगता हैकि उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा अपना खाता भी न खोल पाए। अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा की ऐसी ही दुर्दशा हो रही है। मुलायम सिंह यादव के अवसादग्रस्त रहने केपीछे घरमें कलह, प्रतीक यादव और अपर्णा बिष्ट, चुनावों में सपा की बड़ी पराजय और पुत्र अखिलेश यादव की लगातार रणनीतिक विफलताएं मुख्य कारण मानी जाती हैं, जो मुलायम सिंह यादव की अंतिम सांस के साथ ही रहीं। देखना हैकि मुलायम सिंह यादव के बाद अब क्या होने वाला है।
मुलायम सिंह यादव की बाकी राजनीतिक और पारिवारिक ​स्थिति पर प्रकाश डालें तो वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के अलावा देशके रक्षामंत्री भी रह चुके हैं। मुलायम सिंह यादव अपने पांच भाई-बहनों में रतनसिंह यादव से छोटे और अभयराम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव, राजपाल सिंह यादव और कमला देवी से बड़े थे। प्रोफेसर रामगोपाल यादव इनके सगे चचेरे भाई हैं। मुलायम सिंह यादव ने इटावा के जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्रसे चुनाव जीतकर अपना राजनीतिक सफर शुरू किया। उन्होंने उत्तर प्रदेश में पिछड़ेवर्ग समाज का सामाजिक जीवनस्तर सुधारने में महत्वपूर्ण कार्य किए। वे समाजवादी नेता रामसेवक यादव के प्रमुख अनुयायी थे और 1967 में पहलीबार विधानसभा सदस्य चुने गए और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री बने। वे 5 दिसंबर 1989 से 24 जनवरी 1991 तक, 5 दिसम्बर 1993 से 3 जून 1996 तक और 29 अगस्त 2003 से 11 मई 2007 तक उत्तर प्रदेश के तीनबार मुख्यमंत्री हुए, प्रतिपक्ष के नेता भी रहे। इसबार की सपा सरकार में उन्होंने अपने पुत्र अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री तो बनाया, किंतु वे सफलतापूर्वक सरकार चलाने में विफल ही रहे और बुरी तरह से भाजपा से विधानसभा चुनाव भी हार गए। मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के यादव समाज के छत्रप कहलाए गए। समाजवादी पार्टी में उन्हें नेताजी कहा जाता है। वे देशमें आपातकाल में जेल भी गए। मुलायम सिंह यादव ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं और पंद्रहवीं लोकसभा के सदस्य चुने गए। उन्होंने मैनपुरी, संभल और कन्नौज से लोकसभा चुनाव लड़े और जीते। उन्होंने ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, जर्मनी, स्विटजरलैंड, पोलैंड और नेपाल आदि देशों की यात्राएं कीं। देश और प्रदेश केप्रति उनकी सेवाओं का स्मरण करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलियां अर्पित की जा रही हैं। 

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