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कबीर ने समाज को जगाया और चेताया-राष्ट्रपति

संत कबीरदास की समाधि सांप्रदायिक एकता की एक दुर्लभ मिसाल है

मगहर में संत कबीर अकादमी एवं अनुसंधान केंद्र का उद्घाटन किया

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Sunday 5 June 2022 03:50:50 PM

president ramnath kovind

मगहर। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज मगहर के कबीर चौराधाम में संत कबीरदास को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहाकि आज विश्व पर्यावरण दिवस है, संत कबीरदास की समाधि एवं मजार पर श्रद्धासुमन अर्पित करने केबाद उन्होंने समाधि के निकट एक पौधा भी लगाया है। उन्होंने कहाकि कुछ वर्ष पहले बोधगया से लाए गए छोटे से बोधिवृक्ष को मैंने राष्ट्रपति भवन में आरोपित किया था, अब वह पौधा बड़ा हो गया है और विश्वास हैकि आज लगाया गया पौधा भी बड़ा होकर कबीर साहब की समाधि पर आनेवालों को छाया और शीतलता प्रदान करेगा। राष्ट्रपति ने इस अवसर पर संत कबीर अकादमी एवं अनुसंधान केंद्र तथा स्वदेश दर्शन योजना का भी उद्घाटन किया। उन्होंने कहाकि रिसर्च सेंटर में संत कबीर की चित्र-प्रदर्शनी, ऑडिटोरियम, पुस्तकालय और शोधार्थियों केलिए आवास आदि का लोकार्पण करते हुए प्रसन्नता है, इसकी आधारशिला चार साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखी थी।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहाकि आज हमसब यहां जिस महान संत का स्मरण कर रहे हैं, वे यद्यपि पुस्तकीय ज्ञान से वंचित रहे फिरभी उन्होंने साधु-संगति से अनुभव-सिद्ध ज्ञान प्राप्त किया, उस ज्ञान को उन्होंने पहले स्वयं जांचा-परखा, आत्मसात किया और तब लोगों के सामने प्रकट किया, इसीलिए आज लगभग 650 वर्ष गुजर जाने केबाद भी उनकी शिक्षाएं जनसाधारण से लेकर बुद्धिजीवी वर्ग में एकसमान लोकप्रिय हैं। उन्होंने कहाकि संत कबीरदास ने बंगाल से पंजाब, राजस्थान और गुजरात तक की यात्रा की, वे भारत से बाहर ईरान और बलख भी गए। राष्ट्रपति ने कहाकि संत कबीरदास जिस समय प्रकट हुए थे, वह समय भारत में विदेशी आक्रांताओं के आक्रमणों, मार-काट और लूट-पाट का था, ऐसे विषम वातावरण में श्रद्धा-विश्वास, प्रेम और मैत्री का संदेश फैलाने केलिए संत कबीरदास स्वयं लोगों केबीच गए। राष्ट्रपति ने कहाकि संत कबीरदास लोगों केसाथ सीधा संवाद करते थे, कभी-कभी वे एकदम ठेठ शब्दों का प्रयोग करते थे। राष्ट्रपति ने कहाकि उस समय ऊंच-नीच, जात-पात और छूआछूत की तंद्रा में निमग्न जनता को झकझोर कर जगाने केलिए ऐसा करना जरूरी भी था, क्योंकि जागृत व्यक्ति ही समाज का कल्याण कर सकता है, इसलिए उन्होंने समाज को पहले जगाया और फिर चेताया। उन्होंने कहाकि संत कबीरदास का पूरा जीवन मानव धर्म का श्रेष्ठतम उदाहरण है, उनके निर्वाण मेंभी सांप्रदायिक एकता का संदेश छिपा था, आज एकही परिसर में कबीरदास की समाधि एवं मजार बनी हुई है और सांप्रदायिक एकता की ऐसी मिसाल दुर्लभ है।
राष्ट्रपति ने कहाकि भारत का यह सौभाग्य रहा हैकि समाज में समय-समय पर उत्पन्न हो जानेवाली कुरीतियों और असमानताओं को दूर करने केलिए ऋषि-मुनि, आचार्य-सदगुरु, समाज-सुधारक और संत प्रकट होते रहे हैं, इसी परंपरा में संत कबीरदास ने अपने युग में प्रचलित अनेकानेक विचारधाराओं को समन्वित करके उन्हें सहज लोकबानी में प्रस्तुत किया। राष्ट्रपति ने कहाकि हमारे समाज ने उनकी बानी और शिक्षा को दिल से अंगीकार किया, इसी कारण जब दुनिया की अनेक बड़ी-बड़ी सभ्यताओं का नामोनिशान मिट गया, तब हमारा भारतवर्ष हजारों वर्ष की अटूट विरासत को लेकर आज भी मजबूती से खड़ा है। राष्ट्रपति ने कहाकि ऐसी मान्यता हैकि संतों के आगमन से धरती पवित्र हो जाती है, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मगहर की यह भूमि भी है, संत कबीरदास यहां पर लगभग 3 वर्ष तक रहे, ऊसर-बंजर तथा अभिशप्त मानी जानेवाली यह भूमि उनके आगमन से खिल उठी। राष्ट्रपति ने कहाकि यहां के लोगों की परेशानी का मुख्य कारण था-जल का अभाव, कहा जाता हैकि संत कबीरदास के आमंत्रण पर नाथपीठ के सिद्ध महापुरुष भी यहां पधारे थे, उनके प्रभाव से यहां का तालाब जलसे भर गया, ‘गोरख तलैया’ से आमी नदी की धारा भी प्रवहमान हो गई, अकाल से त्रस्त इस क्षेत्र के लोगों का जीवन संवारने केलिए ही मानो संत कबीरदास मगहर आए थे।
रामनाथ कोविंद ने कहाकि वे सच्चे पीर थे, वे लोगों की पीड़ा समझते थे और उस पीड़ा को दूर करने का उपाय भी करते थे। राष्ट्रपति ने कहाकि संत कबीरदास का जन्म एक गरीब और वंचित परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने उस अभाव को कभी अपनी निर्बलता नहीं माना, इसे उन्होंने अपनी शक्ति बना ली। उन्होंने कहाकि आजभी संत कबीरदास की शिक्षाएं आम लोगों के साथ-साथ बुद्धिजीवियों में भी समान रूपसे लोकप्रिय हैं। उन्होंने कहाकि कबीर के समय में ऐसी मान्यता थीकि काशी में शरीर छोड़ने वाले लोग स्वर्ग में जाते थे और मगहर में मरनेवाले लोग नरक में जाते थे, इस अंधविश्वास को झूंठा साबित करने केलिए संत कबीरदास अपने अंतिम दिनों में मगहर चले आए, वे मानते थेकि ईश्वर कोई बाहरी सत्ता नहीं है, वह तो कण-कण में व्याप्त है, उसे बाहर क्यों ढूंढ़ा जाए, वह तो हमारे अंदर है, बिल्कुल उसी तरह जैसे कस्तूरी का वास हिरण की नाभि में होता है। राष्ट्रपति ने कहाकि संत कबीरदास ने समाज को समानता और समरसता का मार्ग दिखाया, उन्होंने कुरीतियों, आडंबरों और भेदभाव को दूर करने का बीड़ा उठाया और गृहस्थ जीवन को भी संतों की तरह जिया, निकट अतीत में वैसा ही जीवन संत रविदास और गुरु नानकदेव ने व्यतीत किया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहाकि संत कबीरदास की पवित्र वाणी ने सुदूर पूर्व में श्रीमंत शंकरदेव से लेकर पश्चिम में संत तुकाराम और उत्तर में गुरु नानकदेव से लेकर छत्तीसगढ़ में गुरु घासीदास तकको प्रभावित किया।
राष्ट्रपति ने कहाकि संत कबीरदास ने समाज को समानता और सद्भाव का मार्ग दिखाया, उन्होंने हमेशा इस बात पर बल दियाकि समाज के सबसे निर्बल वर्ग केलिए करुणा और सहानुभूति के बिना मानवता की रक्षा नहीं की जा सकती, असहाय लोगों की मदद के बिना समाज में सद्भाव नहीं हो सकता। राष्ट्रपति ने कहाकि उन्हें खुशी हैकि राज्यपाल के रूपमें उत्तर प्रदेश को आनंदीबेन पटेल का मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है, वे संत कबीरदास की शिक्षाओं के अनुरूप अपने आचरण से सामाजिक कुरीतियों को मिटाने केलिए सजग प्रयास करती रही हैं, वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी एक ओर अंध-विश्वास एवं गैर-बराबरी को दूर करने केलिए निरंतर प्रयासरत हैं और दूसरी ओर जनकल्याण के कार्यों में दिन-रात जुटे हुए हैं। राष्ट्रपति ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आज उनके जन्मदिन पर बधाई दी और उनके दीर्घायु और यशस्वी होने की कामना की। राष्ट्रपति ने कहाकि उन्हें विश्वास हैकि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश राज्य विकास और समरसता के पथ पर मजबूती से यूं ही आगे बढ़ता रहेगा। राष्ट्रपति ने संतकबीरनगर में शिक्षा, संस्कृति एवं पर्यटन से जुड़ीं 86.76 करोड़ लागत की विभिन्न विकास परियोजनाओं का लोकार्पण भी किया।

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