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'बच्चों को उनकी पसंदीदा कलाविधा सीखने दें'

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडु का स्कूलों और अभिभावकों से आग्रह

उत्कृष्ट प्रदर्शन कला के क्षेत्रमें योगदान केलिए सम्मान प्रदान

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Sunday 10 April 2022 02:24:06 PM

awarded for contribution in the field of outstanding performing arts

नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडु ने स्कूलों और अभिभावकों से आग्रह किया हैकि वे बच्चों को उनकी पसंद की किसी भी कलाविधा को सीखने केलिए प्रोत्साहित करें। उन्होंने कहाकि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने और बढ़ावा देने केलिए अपनी बुनियाद की तरफ वापस जाने की आवश्यकता है। उन्होंने भारतीय समाज में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की अपील की। उपराष्ट्रपति ने अफसोस जताया कि पश्चिमी संस्कृति के प्रति दीवानगी के कारण हमारी कठपुतली जैसी पारंपरिक लोककला विधा लुप्त होती जा रही है, जिसे समाज की सक्रिय भागीदारी केसाथ पुनर्जीवित करने की जरूरत है। उन्होंने कहाकि कम उम्र में रचनात्मकता और कला के संपर्क में आने से बच्चों को उनकी विधा में अधिक जागरुक बनने और उन्हें अधिक सार्थक जीवन जीनेमें मदद मिलेगी। उन्होंने कहाकि शैक्षणिक संस्थानों को पाठ्यक्रम में कला विषयों को समान महत्व देना चाहिए।
उपराष्ट्रपति संगीत नाटक अकादमी और ललितकला अकादमी फेलोशिप के साथ-साथ 2018 के अकादमी पुरस्कार और 62वें कला पुरस्कारों की राष्ट्रीय प्रदर्शनी में बोल रहे थे। उन्होंने विभिन्न कलाकारों को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन कला और ललितकला के क्षेत्रमें योगदान के लिए सम्मान प्रदान किया। आजादी के अमृत महोत्सव समारोह का जिक्र करते हुए वेंकैया नायडु ने कहाकि कई गुमनाम नायकों ने देशकी आजादी केलिए बलिदान दिया, लेकिन आम जनता उनकी गाथाओं से काफी हद तक अनजान है, क्योंकि हमारे इतिहास की किताबों में उनपर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। उन्होंने इन विकृतियों को दुरुस्त करने और इन अल्प ज्ञात नायकों के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान पर प्रकाश डालने की अपील की। स्वतंत्रता आंदोलन में देशभक्ति की भावना जगाने में दृश्य और प्रदर्शन कला की भूमिका पर उपराष्ट्रपति ने कहाकि ब्रिटिश उत्पीड़न की कहानियों को प्रभावीढंग से बताने केलिए कला शक्तिशाली राजनीतिक हथियार के रूपमें इस्तेमाल की गई थी। उन्होंने बतायाकि कैसे रवींद्रनाथ टैगोर, सुब्रमण्यम भारती, काजी नजरूल इस्लाम और बंकिमचंद्र चटर्जी के ओजपूर्ण देशभक्ति गीतों और कविताओं ने जनता में राष्ट्रवाद की भावना भरने का काम किया।
उपराष्ट्रपति ने जोर दियाकि शक्तिशाली कलात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान हमारे स्वतंत्रता संग्राम का अभिन्न हिस्सा है और इसे भुलाया नहीं जाना चाहिए। उन्होंने अतीत को वर्तमान और भविष्य से जोड़ने वाली निरंतरता के सूत्र को मजबूत करने में कलाकारों के योगदान की सराहना करते हुए कहाकि कला संस्कृतियां लोगों को एकजुट करती हैं, प्रभावित करती हैं, प्रेरित करती हैं और इस प्रकार इस प्रक्रिया में परिवर्तन का एक शक्तिशाली एजेंट बन जाती हैं। उन्होंने कहाकि हम सबका कर्तव्य हैकि हम अपनी भव्य सांस्कृतिक परंपराओं और विभिन्न कला विधाओं को संरक्षित करें और उन्हें बढ़ावा दें। उपराष्ट्रपति ने कहाकि भारत में अति परिष्कृत कला की एक महती परंपरा है, जो प्राचीन ग्रंथों में वर्णित सिद्धांतों पर आधारित है। उन्होंने दृश्य और प्रदर्शन कलाओं को संरक्षित करने की अपील की, क्योंकि ये कलाएं राष्ट्र की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत केसाथ जुड़ी हुई हैं और हमारी राष्ट्रीय पहचान बनाती हैं।
केंद्रीय पर्यटन संस्कृति और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री जी किशन रेड्डी, अध्यक्ष संगीत नाटक अकादमी और ललितकला अकादमी उमा नंदूरी, सचिव संगीत नाटक अकादमी तेम्सुनारो जमीर, सचिव ललितकला अकादमी रामकृष्ण वेडाला, संयुक्त सचिव वाणिज्य मंत्रालय संजुक्ता मुद्गल, संयुक्त सचिव संस्कृति, प्रतिष्ठित कलाकार और गणमान्य व्यक्ति इस अवसर पर उपस्थित थे। केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहाकि भारतीय परंपरा के ध्वज को धारण करते हुए इसे देश के भीतर और बाहर ऊंचा उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले फेलो और पुरस्कार विजेताओं के योगदान को मान्यता देना मंत्रालय और भारत सरकार केलिए प्रसन्नता और गर्वकी बात है। उन्होंने खुशी व्यक्त कीकि ललित कला अकादमी ने इस वर्ष पुरस्कारों को 15 से बढ़ाकर 20 कर दिया है। उन्होंने कहाकि हम सभी इस बात से सहमत हैं कि कला एक सभ्य समाज का सूचक है, यह नसिर्फ एक सांस्कृतिक पहचान बनाती है, बल्कि लोगों को एकजुट करने का भी काम करती है। उन्होंने कहाकि यह भारत जैसे विविधता वाले देश केलिए विशेष रूपसे सही है, हमारे आरंभिक दौर के स्वतंत्रता सेनानियों ने इसे पहचाना और इतिहास की धारा को बदलने केलिए अपनी शक्ति का इस्तेमाल किया।
जीके रेड्डी ने कहाकि गर्व केसाथ पीछे मुड़कर देख सकते हैंकि आजादी के 75 साल में हम कितने आगे आ गए हैं, पूरा भारत हर्ष के साथ आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है और हमारे स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों को श्रद्धांजलि दे रहा है। उनमें से कई कलाकार थे जिन्होंने अपने शांतिपूर्ण और रचनात्मक तरीके से भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, नाटकों और संगीतपूर्ण नाटकों में कहानियों को इस तरह से बताया जिससे आम आदमी आसानी से जुड़ सके। इसी तरह कवियों और चित्रकारों ने भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई। उपराष्ट्रपति ने विज्ञान भवन नई दिल्ली में आयोजित इस संयुक्त समारोह में वर्ष 2018 केलिए संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप और संगीत नाटक पुरस्कार और वर्ष 2021 के लिए ललितकला अकादमी के फैलोशिप और राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए।
संगीत नाटक पुरस्कार विजेताओं में मधुप मुद्गल-हिंदुस्तानी गायन मल्लादी सुरीबाबू-कर्नाटक गायन मणि प्रसाद-हिंदुस्तानी गायन एस करीम और एस बाबू-कर्नाटक वाद्य यंत्र-नागस्वरम (संयुक्त पुरस्कार)। ललित कला अकादमी के राष्ट्रीय पुरस्कार आनंद नारायण दाबली, भोला कुमार, देवेश उपाध्याय, दिग्विजय खटुआ, घनश्याम कहार सहित अन्य विजेताओं को प्रदान किया गया।

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