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देशमें ऑनलाइन विवाद समाधान पर जोर

नीति आयोग की ओडीआर पॉलिसी प्लान फॉर इंडिया रिपोर्ट

किफायती प्रभावी और समयबद्ध न्याय पाने में मिलेगी सहायता

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Tuesday 30 November 2021 01:22:57 PM

niti aayog's odr policy plan for india report

नई दिल्ली। नीति आयोग ने विवाद से बचने, रोकथाम और ऑनलाइन समाधान केलिए ‘डिजाइनिंग द फ्यूचर ऑफ डिसप्यूट रिजॉल्युशनः द ओडीआर पॉलिसी प्लान फॉर इंडिया’ रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में उल्लेखित सिफारिशों के लागू होने से तकनीक के इस्तेमाल से और हर व्यक्ति केलिए न्याय की प्रभावी पहुंच केलिए ऑनलाइन विवाद समाधान (ओडीआर) के माध्यम से नवाचार में भारत को वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनाने में सहायता मिल सकेगी। यह रिपोर्ट 2020 में कोविड संकट के दौरान नीति आयोग की ओडीआर पर गठित समिति की तैयार कार्ययोजना का परिणाम है और इसकी अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) एके सीकरी ने की है। रिपोर्ट भारत में ओडीआर फ्रेमवर्क को अपनाने से जुड़ी चुनौतियों से पारपाने केलिए तीनस्तरीय उपायों की सिफारिश करती है।
नीति आयोग की ओडीआर रिपोर्ट ढांचागत स्तरपर यह डिजिटल साक्षरता, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार और ओडीआर सेवाओं के वितरण केलिए पेशेवरों को तटस्थ रूपमें प्रशिक्षित करने की दिशा में काम करने का सुझाव देती है। व्यवहारगत स्तरपर रिपोर्ट सरकारी विभागों और मंत्रालयों से जुड़े विवादों के समाधान केलिए ओडीआर को अपनाने की सिफारिश करती है। नियामकीय स्तरपर रिपोर्ट ओडीआर प्लेटफॉर्म और सेवाओं के विनियमन केलिए नरम रुख अपनाने की सिफारिश करती है। इसमें इकोसिस्टम में विकास को प्रोत्साहन और नवाचारों को बढ़ावा देते हुए स्व-विनियमन के उद्देश्य से ओडीआर सेवा प्रदाताओं को मार्गदर्शन केलिए डिजाइन और नैतिक सिद्धांतों का निर्धारण शामिल है। रिपोर्ट कानूनों में जरूरी संशोधन करके ओडीआर केलिए मौजूदा विधायी ढांचे को मजबूत बनाने पर भी जोर देती है। रिपोर्ट भारत में ओडीआर केलिए चरणबद्ध कार्यांवयन के फ्रेमवर्क की पेशकश करती है।
ओडीआर डिजिटल प्रौद्योगिकी और पंच निर्णय, सुलह व मध्यस्थता जैसे उपायों के इस्तेमाल से विशेष रूपसे लघु और मध्यम मूल्य के मामलों से जुड़े विवादों का समाधान है। यह पारंपरिक अदालती व्यवस्था के बाहर विवाद से बचने, रोकथाम और संकल्प केलिए प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की प्रक्रिया का उल्लेख करती है। विवाद समाधान के माध्यम के रूपमें यह सार्वजनिक अदालती व्यवस्था के विस्तार और उससे इतर दोनों के तौरपर प्रदान किया जा सकता है। दुनियाभर में विवाद समाधान की क्षमता विशेष रूपसे प्रौद्योगिकी के माध्यम से पहचानी जा रही है। ओडीआर को कोविड-19 के कारण पैदा बाधाओं से निपटने केलिए सरकार, व्यवसायों और यहां तककि न्यायिक प्रक्रियाओं को प्रोत्साहन मिला है। गौरतलब हैकि कोविड-19 महामारी के चलते समाज का एक बड़ा तबका समय से न्याय हासिल करने में नाकाम रहा है, लंबी अदालती प्रक्रियाओं पर और अधिक बोझ बढ़ाने वाले विवादों की बाढ़ आ गई है।
भारत सरकार के प्रमुख नीतिगत थिंकटैंक के रूपमें नीति आयोग ने उन लोगों को किफायती, प्रभावी और समयबद्ध न्याय दिलाने में सहायता के उद्देश्य से प्रौद्योगिकी और नवाचार का उपयोग करने केलिए एक परिवर्तनकारी पहल की, जिनको इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। ओडीआर में अदालत के बोझ को कम करने में सहायता करने और मामलों की विभिन्न श्रेणियों के कुशलतापूर्वक समाधान की पूरी क्षमता है। इसे ई-लोकअदालत के माध्यम से अदालत से जुड़े वैकल्पिक विवाद समाधान केंद्रों में तकनीक के एकीकरण के माध्यम से न्यायपालिका को समर्थन देने केलिए एकीकृत भी किया जा सकता है और इसे आंतरिक विवादों केलिए सरकारी विभागों के भीतर भी पेश किया जाना चाहिए। न्यायपालिका (उच्चतम न्यायालय के वर्तमान और पूर्व न्यायाधीशों), अटॉर्नी जनरल, वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों, उद्योग के प्रतिनिधियों, शैक्षणिक संस्थानों और सिविल सोसायटी के संगठनों के अलावा घरेलू व अंतर्राष्ट्रीय विधिक और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ परामर्श किया गिया।
इस पहल को समर्थन केलिए व्यापक सहमति थी। वास्तव में इन विचार विमर्शों में एक के दौरान उच्चतम न्यायालय की ई-समिति के प्रमुख न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने माना हैकि 'हर अदालत के सामने आनेवाले विविध मुकदमों में बेहद मौलिक और बहुत छोटे नहीं, बल्कि महत्वपूर्ण विवादों का समूह होता है, जिन्हें अदालत के सामने नहीं आना चाहिए। मोटर दुर्घटना दावे, चेक बाउंस के मामले, व्यक्तिगत आघात के दावे जैसे मामले और ऐसे मामले जो निपटारे केलिए ओडीआर के पास जा सकते हैं, इनमें शामिल हैं। नीति आयोग की ओडीआर पहल सराहनीय है और मसौदा रिपोर्ट को सावधानीपूर्वक संकलित कर लिया गया है। यह विवाद समाधान और तकनीक के बीच इंटरफेस व भारत में इसके लिए संभावनाओं का अनूठा विश्लेषण है।' समिति के सदस्यों में नीति आयोग के सीईओ, विधिक मामलों के विभाग में सचिव, न्याय विभाग में सचिव, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम उपक्रम मंत्रालय में सचिव, उपभोक्ता मामलों के विभाग में सचिव, उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग में सचिव, कॉरपोरेट कार्य विभाग में सचिव शामिल हैं।
यह रिपोर्ट एक सहयोगात्मक और समावेशी अभ्यास का निष्कर्ष है और इसे बड़े पैमाने पर ओडीआर को लागू करने में भारत को ग्लोबल लीडर बनाने की दीर्घकालिक योजना के एक शुरुआती बिंदु के रूपमें काम करना चाहिए। ओडीआर को कैसे विवाद से बचाव, रोकथाम केलिए शुरुआती संपर्क बिंदु के रूपमें आगे बढ़ाया जा सकता है और समाधान कब लागू होगा यह रिपोर्ट इसके लिए रोडमैप निर्धारित करती है। रिपोर्ट को न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एके सीकरी, नीति आयोग के वीसी डॉ राजीव कुमार, प्रोफेसर रमेश चंद, डॉ वीके सारस्वत और डॉ वीके पॉल, सीईओ अमिताभ कांत, सचिव (विधि) एके मेंदीरत्ता और नीति आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में जारी किया गया। न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एके सीकरी ने माना हैकि ओडीआर एक ऐसा विचार है, जिसका समय आ गया है, मैं सही समय पर इस विशेषज्ञ समिति के गठन की नीति आयोग की पहल की सराहना करता हूं, रिपोर्ट खासी महत्वपूर्ण है और प्रभावशाली होगी, जिसके लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका सहित सभी हितधारकों के साथ परामर्श किया गया है।
नीति आयोग के वीसी डॉ राजीव कुमार ने कहाकि नीति आयोग ने उन उपायों पर खासा काम किया है, जो न्याय की मांग करने वाले हर व्यक्ति केलिए न्याय की दक्षता और उसकी पहुंच बढ़ाने में सहायता कर सकती है। ओडीआर को विवादों के समाधान में लंबा सफर तय करना होगा और रिपोर्ट को तेजी से लागू करने की जरूरत है। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहाकि ओडीआर रिपोर्ट के माध्यम से हमारा उद्देश्य एक टिकाऊ फ्रेमवर्क तैयार करना है, जो सक्रिय रूपसे दावों की विविध श्रेणियों केलिए पहले उपाय के रूपमें वक्त की कसौटी पर खरा उतरने केलिए सामंजस्य स्थापित करता है और बना रहता है। सचिव (विधि) अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कहाकि यह भारत में विवाद समाधान के परिदृश्य को बदलने में सहायक होगी और ओडीआर तंत्र को मजबूत बनाने के लिए पहले ही कदम उठाए जा चुके हैं।

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