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भगीरथी प्रयासों के बावजूद पानी की बर्बादी

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Friday 26 April 2013 06:58:13 AM

wastage of water

नई दिल्‍ली। जल संसाधन मंत्री हरीश रावत ने लोकसभा में बताया कि जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण आदि के कारण देश में जल संसाधनों की मांग के बढ़ने से पेश आने वाली चुनौतियों को देखते हुए भारत सरकार ने राष्ट्रीय जल नीति, 2002 की समीक्षा की। नई राष्ट्रीय जल नीति, 2012 में देश में जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन हेतु कई सिफारिशें की गई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की व्यवस्था करने के लिए राज्यों को राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के अंतर्गत पेयजल आपूर्ति स्कीमों की आयोजना, निष्पादन और कार्यान्वयन का अधिकार दिया गया है, जबकि शहरी विकास मंत्रालय, जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन, पूर्वोत्तर क्षेत्र शहरी विकास कार्यक्रम, संसाधनों का गैर समापनीय केंद्रीय पूल (नॉन लैप्सऐबल सैंट्रल पूल) और उपग्रह की व्यवस्था वाले नगरों में शहरी अवसंरचना विकास स्कीम जैसी स्कीमों, कार्यक्रमों के अंतर्गत, शहरी क्षेत्र, महानगरों में जलापूर्ति की व्यवस्था करने में राज्य सरकारों, शहरी स्थानीय निकायों के प्रयासों में सहयोग कर रहा है।
जल संसाधन मंत्री ने बताया कि देश में जिन क्षेत्रों में जलस्तर में गिरावट आ रही है, वहां भूजल स्तर में गिरावट को रोकने के लिए कृत्रिम पुनर्भरण, वर्षा जल संचयन एवं भूजल विकास के विनियमन को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न कदम उठाए गए हैं। जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन एवं भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण के लिए भारत सरकार ने आठवीं, नौवीं, दसवीं और ग्यारहवीं योजना अवधियों के दौरान प्रायोगिक, प्रदर्शनात्मक कृत्रिम पुनर्भरण परियोजनाओं का कार्यान्वयन किया है। इसके अतिरिक्त राज्य सरकारों और अन्य संगठनों को वर्षा जल संचयन एवं कृत्रिम पुनर्भरण के लिए तकनीकी सहायता दी जाती है। जिन क्षेत्रों में भूजल की गुणवत्ता अच्छी नहीं है। वहां सुधारात्मक उपायों में जलापूर्ति के वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध कराने पर जोर दिया जाता है।
उन्‍होंने बताया कि जल की उपलब्धता में मौसमी, भौगोलिक और वार्षिक परिवर्तिता और पर्याप्त भंडारण की कमी के कारण काफी मात्रा में जल, विशेषकर मॉनसून मौसम के दौरान, अप्रयुक्त रह जाता है और समुद्र में बह जाता है। वर्तमान आकलन के अनुसार देश में जल की औसत वार्षिक उपलब्धता 1869 बिलियन घन मीटर है। इसके अतिरिक्त, वर्ष 2009 में क्रमश: केंद्रीय जल आयोग और केंद्रीय भूमि जल बोर्ड ने यह अनुमान लगाया है कि विभिन्न प्रयोजनों के लिए लगभग 450 बिलियन घन मीटर सतही जल और लगभग 243 बिलियन घन मीटर भूमि जल का उपयोग किया जा रहा है, शेष जल का समुद्र में बह जाना माना जा सकता है।
उन्‍होंने बताया कि भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए राज्य सरकारें बांधों, चैक बांधों और खेत तालाबों के निर्माण जैसे विभिन्न उपाए करती हैं। भारत सरकार, त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम और जल निकायों की मरम्मत, नवीकरण और पुनरूद्धार जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से तकनीकी और वित्तीय सहायता देकर भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए राज्य सरकारों के प्रयासों में सहयोग करती है। उन्‍होंने बताया कि प्रारूप राष्ट्रीय जल नीति (2012) एक राष्ट्रीय जल संरचना कानून बनाने, अंतर्राज्यीय नदियों तथा नदी घाटियों के इष्टतम विकास के व्यापक विधान, सिंचाई अधिनियमों, भारतीय भोगाधिकार अधिनियम, 1882 में संशोधन करने आदि की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।
जल को सुरक्षित पेयजल तथा स्वच्छता की प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करने, खाद्य सुरक्षा अर्जित करने, कृषि पर निर्भर निर्धन लोगों को आजीविका प्रदान करने में सहायता प्रदान करने तथा न्यूनतम पारिस्थितिकी आवश्यकताओं हेतु उच्च प्राथमिकता से आवंटन करने के पश्चात आर्थिक वस्तु माना गया है, ताकि इसके संरक्षण और कुशल उपयोग को बढ़ावा दिया जा सके। नदी की पारिस्थितिकीय आवश्यकताओं को इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जाना चाहिए कि नदी प्रवाहों में कम अथवा शून्य प्रवाह, कम बाढ़ (फ्रेशेट), अधिक बाढ़ तथा प्रवाह विभिन्नता जैसी विशिष्टताएं पाई जाती हैं और इन आवश्यकताओं में विकास संबंधी आवश्यकताओं को शामिल किया जाना चाहिए। नदी प्रवाहों के एक भाग को यह सुनिश्चित करते हुए पारिस्थितिकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अलग रखा जाना चाहिए कि अनुपातिक न्यून अथवा उच्च प्रवाह उस समय प्राकृतिक प्रवाह स्तर के संगत होना चाहिए।
जल संसाधन संरचनाओं के अभिकल्पन और प्रबंधन में जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर अनुकूलन कार्यनीतियों को अपनाने तथा स्वीकार्य मानदंडों की समीक्षा पर जोर दिया गया है। जल के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए जल के विभिन्न प्रयोजनों हेतु बैंचमार्कों अर्थात जल फुटप्रिंट तथा जल लेखापरीक्षा को विकसित किया जाना चाहिए। परियोजना वित्तपोषण को जल के कुशल और किफायती उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए एक साधन के रूप में सुझाया गया है। जल विनियामक प्राधिकरण का गठन करने की सिफारिश की गई है। जल के पुन:चक्रण और पुन:उपयोग को प्रोत्साहन देने की सिफारिश की गई है।
जल प्रयोक्ता संघ को जल प्रभार एकत्र करने तथा इसका एक भाग अपने पास रखने, उन्हें आबंटित जल की मात्रा का प्रबंधन करने तथा उनके अधिकार क्षेत्र में रखरखाव करने के लिए सांविधिक शक्तियां प्रदान की जानी चाहिएं।
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जलापूर्ति के निर्धारण में भारी असमानता को दूर किए जाने की सिफारिश की गई है। जल संसाधन परियोजनाओं और सेवाओं का सामुदायिक सहभागिता से प्रबंधन किया जाना चाहिए। राज्य सरकारों अथवा स्थानीय शासी निकायों के निर्णयानुसार सेवा प्रदान करने हेतु निर्धारित शर्तों को पूरा करने के लिए सार्वजनिक निजी सहभागिता मॉडल के अनुसार निजी क्षेत्र को सेवा प्रदाता बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिसमें असफलता होने पर दंड दिया जाना शामिल हो। राज्यों को प्रौद्योगिकी के अद्यतनीकरण, डिजाईन पद्धतियों, आयोजना एवं प्रबंधन पद्धतियों, वार्षिक जल संतुलन तथा स्थान और बेसिन का लेखा तैयार करने, जल प्रणालियों के लिए जल विज्ञानीय संतुलन तैयार करने तथा बैंचमार्किंग और निष्पादन आकलन के लिए पर्याप्त अनुदान जारी किया जाना चाहिए।

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