स्वतंत्र आवाज़
word map

आपदा के वालंटियर्स क्यों घर बैठ गए?

ग्राम प्रधान के अधीन भी होना चाहिए आपदा प्रबंधन तंत्र

आपदा से निपटने की एक परियोजना की अकाल मौत...

Friday 18 June 2021 08:33:21 AM

अशोक मधुप

अशोक मधुप

disaster volunteers training (file photo)

भारत सरकार या राज्य सरकार की वह परियोजना जो जनसामान्य में बुनियादी सुविधाओं रोटी कपड़ा और मकान और जनजीवन की रक्षा और सुरक्षा के लिए बड़ी आशा की किरन बनकर सामने आती है, वह स्थानीय सरकारी तंत्र की अरुचि या सरकारी और निजी क्षेत्रके गठबंधन की विफलता से निष्फल हो जाती है या निष्फल कर दी जाती है, उससे सबसे ज्यादा जनसामान्य को ही आघात पहुंचता है। यह सर्वविदित है कि अपवाद को छोड़कर केंद्र सरकार या राज्य सरकार की भारी भरकम बजट वाली सरकारी योजनाएं एक समय बाद विभिन्न कारणों से ऐसे ही दम तोड़ते देखी गई हैं या अपने मुकाम पर पहुंचकर कुछ चलकर सिमटती बंदरबाट हुई हैं, जैसे उदाहरण के लिए आपदाओं से निपटने केलिए एक समय सरकार की एक शानदार परियोजना सामने आई और सरकारी आपदाओं के सामने ओझल हो गई।
हाल ही में भारत का दो भयानक तूफान से सामना हुआ है। तोक्ते और यास नामके इन तूफानों ने देशके दक्षिण और पश्चिम क्षेत्रमें जमकर कहर बरपाया है। दोनों बार राहतकार्य केलिए सेना लगानी पड़ी। आज़ादी के 74 साल बादभी हम स्थानीय स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिए स्थानीय नागरिकों से नियंत्रित एक स्वतंत्र व्यवस्था विकसित नहीं कर पाए हैं। जब-तब जरूरत पड़ती है तो सेना को बुलावा भेज दिया जाता है। ऐसा करना आपातकाल में तो ठीक है, मगर रोज-रोज नहीं। यहां एक सवाल सीधे सामना करता है कि आपदाओं से निपटने के लिए स्थानीय स्तर पर जो कुछ प्रशिक्षित वालंटियर्स तैयार किए गए थे वे क्यों घर बैठ गए? देश में आपदाओं से निपटने की जो एक अच्छी परियोजना परवान चढ़ी थी, उसे कौन सी आपदा निगल गई? सरकार की यह एक प्रशंसा योग्य पहल थी, जिसके पास स्थानीय आपदाओं से निपटने का कारगर जवाब होता।
भारत सरकार ने देश में बार-बार आने वाली ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए वर्ष 2005 में एक आपदा प्रबंधन प्राधिकरण बनाया था। देश के राज्यों में इसकी शाखाएं स्थापित की गईं। इसका बड़ा प्रचार भी हुआ था। उद्देश्य था-आपदा प्रबंध केलिए अलग से पूरा तंत्र बनाना। देश के कुछ राज्यों के जनपदों में इसके कार्यालय खोलकर प्रशिक्षित वालंटियर्स बनाने का काम किया गया। योजना बनीकि आपदा प्रबंधन में गांव-गांव ऐसे प्रशिक्षित कार्यकर्ता तैयार किए जाएं, जो किसी आपदा आते ही अपने आप राहत कार्य में लग जाएं। भारत सरकार की कभी सोच थीकि बाढ़ भूकंप और महामारी जैसी किसी भी आपदा को आने से नहीं रोका जा सकता, तथापि आपदा आने के बाद के बचाव कार्यों केलिए गांव-गांव तक प्रशिक्षित तंत्र विकसित कर लिया जाए, जो आपदा आते ही राहत कार्य के लिए खुद सक्रिय हो जाए। उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में ये तंत्र विकसित करने पर काम हुआ। वालियंटर बनाए गए। ब्लॉक स्तर तक कुछ कार्य किया भी गया।
आपदा से राहत के दौरान ऐसे भवन बनाने की तकनीक विकसित की जाने लगी जो आपदा से प्रभावित न हो सकें। सोच यही था कि ऐसे भवन बना लेने से वह आपदा आदि में नही गिरेंगे और इससे काफी हदतक जनहानि से भी बचा जा सकेगा। इस दृष्टिकोण से भवन बनाने वाले कारीगरों तकको प्रशिक्षण दिया गया, मगर एक समय बाद कोई तथ्यात्मक निष्कर्ष सामने लाए बिना यह परियोजना बंद कर दी गई। परिणाम यह हुआ कि योजना के बंद होने से प्रशिक्षित वालंटियर्स निराश होकर अपने घर बैठ गए हैं। जरूरत इस बात की थी कि ये कार्य अनवरत चलता रहता। स्काउट, एनसीसी और एनएसएस की तरह युवाओं छात्रों को भी इसके लिए प्रशिक्षित करने का कार्य होना चाहिए था। इसके लिए अलग से गांव-गांव तक कार्य किया जाना चाहिए था। प्रत्येक गांव में प्रधान और वार्ड सदस्य होते हैं। विकास समिति होती हैं। कितना अच्छाहोता कि ग्राम प्रधान के अधीन भी आपदा प्रबंधन टीम सक्रिय होती। समुद्र तकके इलाकों में तो इनकी हर समय जरूरत है।
आवश्यकता पड़ने पर आज पुलिस, अर्धसैनिक बल लगा दिए जाते हैं। गंभीर हालात को देखते हुए सेना बुला ली जाती है। युद्ध जैसे हालात होने पर ही इनका प्रयोग किया जाना चाहिए और यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सेना यदि युद्ध में व्यस्त हो तब क्या हो, इसके लिए हमारी अगल से पूरी तैयारी होनी चाहिए। लद्दाख सीमा पर चीन के आचरण को देखते हुए वहां हमें सेना लगानी पड़ी है। एक साल से वहां दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। भूटान में डोकलाम विवाद और चीन के विस्तारवादी इरादों को देख भूटान सीमा पर भी हमारी सेना सक्रिय है। पाकिस्तान का रवैया कभी हमसे मैत्रीपूर्ण नहीं रहा। हमारी मदद पर सदा पला-बढ़ा नेपाल भी अब चीन के उकसावे में आकर हमें ही आंखें दिखा रहा है। ऐसे में सेना का दूसरे कार्य में प्रयोग उचित नहीं है। शांतिकाल में ही सेना का प्रयोग होना चाहिए। देशमें आपदा के लिए आपदा में राहत कार्य केलिए पूरा तंत्र अलग होना चाहिए। स्कूल और कॉलेज स्तर से ही इसके लिए वालंटियर्स तैयार किए जाने चाहिएं। इस रणनीति के लिए उस आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को देशभर में सक्रिय किया जाए, ताकि बहुत ही गंभीर आपदा में सेना की सहायता ली जाए। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]