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केवीआईसी की मधुमक्खी बाड़ परियोजना

प्रोजेक्ट री-हैब के जरिए हाथी-मानव संघर्ष को कम करना

कर्नाटक के गांवों में मधुमक्खी बाड़ पायलट प्रोजेक्ट शुरु

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Tuesday 16 March 2021 04:19:45 PM

project re-hab of kvic

बैंगलुरू। हाथियों के एक झुंड की कल्पना करें, जो सबसे बड़ा जानवर होता है और समान रूपसे बुद्धिमान भी, उन्हें शहद वाली छोटी-छोटी मधुमक्खियों से मानव बस्ती से दूर भगाया जा रहा है। इसे अतिशयोक्ति कहा जा सकता है, लेकिन यह कर्नाटक के जंगलों की एक वास्तविकता है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने देश में मानव-हाथी टकराव को कम करने के लिए मधुमक्खी बाड़ बनाने की एक अनूठी परियोजना शुरु की है। प्रोजेक्ट री-हैब यानी मधुमक्खियों के माध्यम से हाथी-मानव संघर्ष को कम करने की परियोजना का उद्देश्य शहद वाली मधुमक्खियों का उपयोग करके मानव बस्तियों में हाथियों के हमलों को विफल करना है और इस प्रकार से मनुष्य व हाथी दोनों के जीवन को बचाना है। कर्नाटक के कोडागु जिले के चेलूर गांव के आसपास यह पायलट प्रोजेक्ट शुरु हो चुका है। ये सभी स्थान नागरहोल नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व के बाहरी इलाकों में हैं और मानव-हाथी संघर्ष को रोकने के लिए कार्यरत री-हैब परियोजना की कुल लागत 15 लाख रुपये है।
केवीआईसी के राष्ट्रीय शहद मिशन के तहत प्रोजेक्ट री-हैब एक उप मिशन है, चूंकि शहद मिशन मधुवाटिका स्थापित करके मधुमक्खियों की संख्या बढ़ाने, शहद उत्पादन और मधुमक्खी पालकों की आय बढ़ाने का एक कार्यक्रम है तो प्रोजेक्ट री-हैब हाथियों के हमले को रोकने के लिए मधुमक्खी के बक्से को बाड़ के रूपमें उपयोग करता है। केवीआईसी ने हाथियों के प्रवेश मार्ग को मानवीय आवासों के लिए अवरुद्ध करने में हाथी-मानव संघर्ष क्षेत्रों के मार्ग के सभी चार स्थानों में से प्रत्येक जगह पर मधुमक्खियों के 15-20 बॉक्स स्थापित किए हैं। बक्से एक तार के साथ जुड़े हुए हैं, ताकि जब हाथी गुजरने का प्रयास करें, तब एक टग या पुल हाथी के झुंड को आगे बढ़ने से रोक दे। मधुमक्खी के बक्से को जमीन पर रखा गया है, साथ ही हाथियों के मार्ग को अवरुद्ध करने के लिए पेड़ों से लटकाया गया है। हाथियों पर मधुमक्खियों के प्रभाव और इन क्षेत्रों में उनके व्यवहार को रिकॉर्ड करने के लिए रणनीतिक बिंदुओं पर किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए नाइट विजन कैमरे भी लगाए गए हैं।
केवीआईसी के अध्यक्ष विनय सक्सेना ने मानव-हाथी संघर्ष रोकने केलिए प्रोजेक्ट री-हैब को एक अनोखी पहल बताया है। उन्होंने कहा कि यह समस्या देश के कई हिस्सों में आम बात है और वैज्ञानिक रूपसे भी माना गया है कि हाथी, मधुमक्खियों से घबराते हैं और वे मधुमक्खियों से डरते भी हैं, हाथियों को डर रहता है कि मधुमक्खी के झुंड सूंड और आंखों के उनके संवेदनशील अंदरुनी हिस्से को काट सकते हैं। विनय सक्सेना ने बताया कि मधुमक्खियों का सामूहिक झुंड हाथियों को परेशान करता है और यह उन्हें वापस चले जाने केलिए मजबूर करता है। हाथी, जो सबसे बुद्धिमान जानवर होते हैं और लंबे समयतक अपनी याददाश्त में इन बातों को बनाए रखते हैं, वे उन जगहों पर लौटने से बचते हैं, जहां उन्होंने मधुमक्खियों का सामना किया होता है। विनय सक्सेना ने कहा कि प्रोजेक्ट री-हैब का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह हाथियों को कोई नुकसान पहुंचाए बिना ही उन्हें वापस लौटने को मजबूर करता है, इसके अलावा यह गड्ढों को खोदने या बाड़ को खड़ा करने जैसे कई अन्य उपायों की तुलना में बेहद प्रभावी है।
भारत में हाथी के हमलों के कारण हर साल लगभग 500 लोग मारे जाते हैं। यह देशभर में बड़ी बिल्लियों की वजह से हुए घातक हमलों से लगभग 10 गुना अधिक है। वर्ष 2015 से 2020 तक हाथियों के हमलों में लगभग 2500 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, इसमें से अकेले कर्नाटक में लगभग 170 मानवीय मौतें हुई हैं, इसके विपरीत इस संख्या का लगभग पांचवां हिस्सा यानी पिछले 5 वर्ष में मनुष्यों के प्रतिशोध में लगभग 500 हाथियों की भी मौत हो चुकी है। इससे पहले केवीआईसी की एक इकाई केंद्रीय मधुमक्खी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान पुणे ने हाथियों के हमलों को कम करने के लिए महाराष्ट्र में मधुमक्खी-बाड़ बनाने के क्षेत्रीय परीक्षण किए थे। हालांकि यह पहलीबार है कि खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने इस परियोजना को समग्रता में लॉंच किया है। केवीआईसी ने परियोजना के प्रभाव मूल्यांकन के लिए कृषि और बागवानी विज्ञान विश्वविद्यालय पोन्नमपेट के कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री की सहायता ली है। इस अवसर पर केवीआईसी के मुख्य सलाहकार (रणनीति और सतत विकास) डॉ आर सुदर्शन और कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री के डीन डॉ सीजी कुशालप्पा उपस्थित थे।

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