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यूपीएससी परीक्षा में हिंदी माध्यम अभिशाप?

यूपीएससी में त्रुटिपूर्ण हिंदी अनुवाद को लेकर बड़ा विवाद

हिंदी माध्यम के उम्मीदवारों की संख्या में खासी गिरावट

Wednesday 18 November 2020 12:41:54 PM

प्रोफेसर निरंजन कुमार

प्रोफेसर निरंजन कुमार

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संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी का ग़लत और भ्रामक अनुवाद कम से कम हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों पर बड़ा भारी पड़ रहा है। यूपीएससी के प्रश्नपत्र मूल रूपसे अंग्रेजी में बनते हैं, फिर उनका हिंदी में अनुवाद किया जाता है। इन प्रश्नों के त्रुटिपूर्ण हिंदी अनुवाद को लेकर ही बड़ा विवाद खड़ा हुआ है। त्रुटिपूर्ण हिंदी अनुवाद के कारण संघ लोक सेवा आयोग का हिंदी माध्यम अब जैसे निर्रथक साबित हो रहा है। क्या इस तथ्य से इंकार किया जा सकता है कि भारतीय राजव्यवस्था को सुचारू रूपसे चलाने में सरकार के अलावा जिन संवैधानिक संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है, उनमें चुनाव आयोग, उच्चतम न्यायालय के साथ ही साथ संघ लोक सेवा आयोग भी प्रमुखता से शामिल है। संघ लोक सेवा आयोग का प्रमुख कार्य सिविल सेवा में नियुक्ति संबंधी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाएं कराना है और परिक्षाओं में भाषा, प्रश्न और उनके सही उत्तर ही आयोग की सर्वोच्च प्राथमिकता है।
अपवादों को छोड़ दें तो देश की अन्य संवैधानिक संस्थाओं के मुकाबले यूपीएससी कभी विवादों से मुक्त रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यूपीएससी की परीक्षा पद्धति पर हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों ने गंभीर सवाल खड़े किए हुए हैं। आज यह परीक्षा हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों के लिए टेढ़ी खीर बनती जा रही है। मानों कि यूपीएससी की परीक्षा में हिंदी माध्यम अभिशाप बन गया है। कभी-कभी तो लगता है कि यूपीएससी में हिंदी माध्यम के विरुद्ध कोई सुनियोजित साजिश हो रही है, वरना क्या कारण है कि ग़लत अनुवाद के सारे तथ्य सामने आने के बावजूद आयोग ने इस संबंध में कोई भी सुधार नहीं कर रहा है? सबसे गंभीर सवाल तो यह है कि प्रश्नपत्र मूल रूपसे अंग्रेजी में बनते हैं तो फिर उनका हिंदी में अनुवाद क्यों किया जाता है? जाहिर सी बात है कि अनुवाद कहीं न कहीं त्रुटिपूर्ण रह जाता है और जब यूपीएससी परीक्षा की बात हो तो इसपर अनिवार्य रूपसे ध्यान दिया जाना चाहिए। दरअसल विभिन्न विषयों के प्रश्नपत्र मूल रूपसे अंग्रेजी में बनते हैं, और फिर उनका अनुवाद किया जाता है। इन प्रश्नों के हिंदी अनुवाद को लेकर ही विवाद खड़ा हुआ है।
यूं तो पहले भी प्रश्नपत्र अंग्रेजी में ही बनते थे, फिर उनका हिंदी में अनुवाद होता था। लगता है कि अनुवाद में अब तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है, इसीलिए भी गड़बड़ियां हो रही हैं। अनुवाद में तकनीक का उपयोग कई तरीकों से होता है। एक तो मशीनी या कंप्यूटराइज्ड ट्रांसलेशन है, जिसे गूगल ट्रांसलेशन भी कहते हैं, इसमें दिक्कत यह है कि इस अनुवाद में कई बार वाक्यों और शब्दों का सही अर्थ नहीं हो पाता। इसका एक कारण यह है कि अंग्रेजी की वाक्य रचना हिंदी से काफी अलग होती है। अंग्रेजी वाक्यों के मशीनी ट्रांसलेशन में हिंदी में अर्थ कई बार स्पष्ट नहीं हो पाते हैं। हिंदी की वाक्य रचना में कर्ता, कर्म और क्रिया का क्रम होता है (राम घर जाता है), जबकि अंग्रेजी में कर्ता, क्रिया और कर्म (राम गोज होम)। यह उदाहरण अत्यंत सरल और छोटे वाक्य का है, इसलिए इसे समझना कठिन नहीं, लेकिन जटिल और बड़े अंग्रेजी वाक्यों के मशीनी ट्रांसलेशन में हिंदी में अर्थ कई बार स्पष्ट नहीं हो पाता, जिसका खामियाजा हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों को भुगतान पड़ रहा है।
मशीनी ट्रांसलेशन में शब्दों के अर्थ का अनर्थ होने की आशंका रहती है। इसका कारण यह है कि शब्दों के अर्थ अपनी संस्कृति और संदर्भ से भी निकलते हैं। उदाहरण के लिए मशीनी ट्रांसलेशन में कई बार अंग्रेजी के ‘बिग ब्रदर’ का अनुवाद ‘बड़ा भाई’ हो जाता है। समझना जरूरी है कि जॉर्ज ऑरवेल के प्रसिद्ध उपन्यास ‘1984’ से चर्चित हुआ मुहावरा ‘बिग ब्रदर’ अंग्रेजी में नकारात्मक अर्थो में प्रयुक्त होता है, जहां इसका अर्थ है डराने-धमकाने वाला व्यक्ति या देश, जबकि इसके उलट भारत में बड़े भाई का प्रयोग अत्यंत सकारात्मक अर्थो में होता है। भारतीय संदर्भो में बड़ा भाई तो संरक्षक और अभिभावक होता है। कहने का आशय यह है कि हिंदी या भारतीय भाषाओं में अनुवाद करते समय संदर्भ को ध्यान में न रखने से मशीनी या गूगल अनुवाद भ्रामक हो सकता है। इसी तरह का एक और उदाहरण है अंग्रेजी शब्द ‘हॉट पोटैटो’। इसका अर्थ होता है एक विवादास्पद विषय या असहज करने वाला विषय, लेकिन इसका गूगल ट्रांसलेशन ‘गर्म आलू’ मिलता है, जो कहीं से भी मूल अर्थ को संप्रेषित नहीं करता।
अनुवाद में तकनीक के उपयोग से होने वाली गड़बड़ी का एक अन्य आयाम यह है कि यूपीएससी अथवा विभिन्न एजेंसियों के अनुवादक मानक शब्दकोशों जैसे कि गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग के ई-महाशब्दकोश की जगह अन्य वेबसाइटों के आधार पर अनुवाद कर देते हैं। जैसे इसी साल सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा में पूछे गए एक प्रश्न में अंग्रेजी के डिलीवरी शब्द का अनुवाद परिदान किया गया है। राजभाषा विभाग के ई-महाशब्दकोश के अनुसार इसका अर्थ वितरण या सुपुर्दगी है। परिदान शब्द न केवल अप्रचलित है, बल्कि इसका अर्थ भी थोड़ा भ्रामक है। इसी तरह अंग्रेजी के सिनेरियो का अनुवाद दृश्यलेख कर दिया गया है, जो सही नहीं है। कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि अगर हिंदी अनुवाद गलत या भ्रामक है तो परीक्षार्थियों को मूल अंग्रेजी पाठ देख लेना चाहिए, लेकिन प्रारंभिक परीक्षा में समय इतना कम होता है कि बार-बार हिंदी और अंग्रेजी दोनों पाठों में मिलान करना मुमकिन नहीं है। दुबरेध, अबोधगम्य और भ्रामक अनुवाद के अतिरिक्त कई बार अनुवाद में अर्थ का अनर्थ भी कर दिया जाता है। जैसे 2020 की ही प्रारंभिक परीक्षा में सिविल डिसओबेडिएंस मूवमेंट अर्थात सविनय अवज्ञा आंदोलन को असहयोग आंदोलन अनूदित कर दिया गया जो नितांत गलत है।
गलत और भ्रामक अनुवाद के कारण न केवल उनके उत्तर गलत हो जाते हैं, बल्कि भ्रामक अनूदित शब्दावलियों में उलझकर परीक्षा के दौरान उनका सीमित बहुमूल्य समय भी बर्बाद होता है। गलत अनुवाद अवसर की समानता से भी वंचित करता है। जिस कठिन परीक्षा में एक-एक अंक के लिए संघर्ष होता हो, जहां एक-एक क्षण मूल्यवान हो, वहां जटिल, भ्रामक, दुबरेध और गलत अनुवाद से हिंदी माध्यम के लोग अवसर से वंचित हो रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों से हिंदी माध्यम से सफल होने वाले उम्मीदवारों की संख्या में खासी गिरावट आई है। उसका एक बड़ा कारण इस तरह के अनुवाद भी हैं। अच्छे अनुवाद के लिए जरूरी है कि मशीनी अनुवाद का न्यूनतम सहारा लिया जाए। अनुवादक को भी विषय का भी सम्यक ज्ञान होना चाहिए। अनुवाद के इस बुनियादी सिद्धांत को ध्यान में रखा जाए कि अनुवादक को न केवल दोनों भाषाओं अर्थात स्रोत भाषा जिससे अनुवाद किया जा रहा है और लक्ष्य भाषा जिसमें अनुवाद किया जा रहा है का ठीक-ठाक ज्ञान हो, बल्कि विषय का भी सम्यक ज्ञान हो। भ्रामक अनुवाद से हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों के साथ अन्याय हो रहा है, जो परीक्षा के उद्देश्य के विपरीत है। भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति नहीं होगी, यूपीएससी जैसी प्रोफेशनल संस्था से यह अपेक्षा तो की ही जानी चाहिए। (प्रोफेसर निरंजन कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)।

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