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'पंजाब-एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य' पर वेबिनार

प्रतिभागियों ने की पंजाब के इतिहास एवं पर्यटक स्थलों की सैर

पंजाब और सिख धर्म की संस्कृति एवं परंपरा 550 वर्ष पुरानी

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Wednesday 9 September 2020 01:46:01 PM

webinar on 'punjab- a historical perspective'

नई दिल्ली। केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय की देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला में 'पंजाब-एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य' शीर्षक से वेबिनार में प्रतिभागियों को इतिहास और पर्यटक स्थलों के जरिए राज्य की सैर कराई गई। इसमें विराट-ए-खालसा संग्रहालय केंद्रबिंदु में रहा, जो नायाब वास्तुशिल्प का एक नमूना है। यह इंसानों के सबसे बड़े पलायन पर दुनिया का पहला संग्रहालय है, जो बंटवारे के दर्द की याद दिलाता है। यह पंजाब और सिख धर्म की संस्कृति और परंपरा के 550 वर्ष की कहानी भी कहता है। देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला एक भारत श्रेष्ठ भारत कार्यक्रम के तहत भारत की समृद्ध विविधता को प्रदर्शित करने का एक प्रयास है। टाउन प्लानिंग में व्यापक अनुभव वाले सिविल इंजीनियर हरजप सिंह औजिला, यूनिवर्सिटी इंस्टिट्यूट ऑफ होटल एंड टूरिज्म मैनेजमेंट, पंजाब यूनिवर्सिटी की सहायक प्रोफेसर डॉ लिपिका कौर गुलियानी, विभाजन संग्रहालय/ कला और सांस्कृतिक विरासत ट्रस्ट की चेयरपर्सन किश्वर देसाई और सहायक प्रोफेसर जसविंदर सिंह ने वेबिनार को प्रस्तुत किया। इसमें विभिन्न प्राचीन स्मारकों, गुरुद्वारों, मंदिरों, आश्रमों, झीलों, पवित्र तीर्थस्थलों, संग्रहालयों और वन्यजीव अभयारण्य के साथ ही पंजाब के आकर्षक शहरों और कस्बों को दिखाया गया।
प्रोफेसर जसविंदर सिंह ने पंजाब का अर्थ पांच नदियों-झेलम, चिनाब, रावी, सतलज और ब्यास की भूमि समझाते हुए प्रस्तुति शुरू की। उन्नीसवीं शताब्दी की शुरुआत में ज्यादातर सीमांत इलाकों पर महाराजा रणजीत सिंह का शासन था, जिन्हें शेर-ए-पंजाब कहा जाता है और बाद में 1849 में पंजाब पर ईस्ट इंडिया कंपनी का कब्जा हो गया। पंजाब राज्य को तीन भागों में बांटा गया है-माजा, दोआबा और मालवा। पंजाब के कई त्यौहार तीज, लोहड़ी, बसंत पंचमी, बैसाखी और होला महल्ला ऐसे हैं, जो खेती के लोकाचार को दर्शाते हैं। वास्तव में पंजाब का पारंपरिक नृत्य भांगड़ा भी इसी का संदेश देते हुए एक किसान के दैनिक जीवन को दिखाता है। ऐतिहासिक रूपसे पंजाब ने आर्यों, फारसियों, यूनानियों, अफगानों और मंगोलों सहित कई जातीय समूहों के लिए मेजबान की भूमिका निभाई है और इस तरह से उसकी विरासत समृद्ध है। पंजाब के लोकप्रिय नृत्य भांगड़ा और गिद्दा हैं। पंजाब का दक्षिणपूर्वी शहर पटियाला कभी जाट सिख सरदार बाबा आला सिंह के अधीन एक रियासत हुआ करती थी। उन्होंने किले की नींव रखी और अब यह किला मुबारक क्षेत्र में है।
पंजाब में काली मंदिर, बारादरी गार्डन, शीश महल, गुरुद्वारा दुख निवारण साहिब, किला मुबारक परिसर आदि महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल हैं। पटियाला यहां की शाही पगड़ी (पग) और पटियाला पेग के लिए प्रसिद्ध है। सिख तीर्थस्थलों में सबसे पवित्र स्वर्ण मंदिर दुनियाभर के भक्तों के लिए एक प्रमुख धार्मिक केंद्र और साथ ही एक लोकप्रिय पर्यटन आकर्षण भी है। अमृतसरोवर (अमृत का तालाब) का निर्माण तीसरे गुरु गुरु अमरदास ने 1570 में शुरू कराया था और चौथे गुरु गुरु रामदास ने इसे पूरा कराया था। उनके उत्तराधिकारी गुरु अर्जन देव ने 1588 में इमारत की आधारशिला रखने के लिए सूफी संत मियां मीर को आमंत्रित करने के बाद काम शुरू कराया। तीन साल बाद हरिमंदिर साहिब या दरबार साहिब पूरा हो गया। सिख धर्म के भाईचारे और सभी समावेशी लोकाचार के मूल सिद्धांत को प्रदर्शित करने वाले स्वर्ण मंदिर में सभी दिशाओं से पहुंचा जा सकता है। महत्वपूर्ण पर्यटन आकर्षण जलियांवाला बाग, विभाजन संग्रहालय, गोबिंदगढ़ किला और वाघा सीमा हैं। गुरुद्वारे में लंगर की परंपरा काफी प्रसिद्ध है, जहां धर्म, जाति, लिंग, आर्थिक स्थिति या सामाजिक समूह के भेद के बिना सभी आगंतुकों को मुफ्त में भोजन कराया जाता है।
पंजाब में ढाबे में भी भोजन परोसा जाता है और प्रसिद्ध व्यंजन हैं-बटर चिकन, बटर नान, शाही पराठा, मां की दाल, तंदूरी चिकन, लस्सी आदि। फतेहगढ़ साहिब शहर का सिखों के लिए विशेष महत्व है। 'फतेहगढ़' शब्द का अर्थ है 'विजय नगर' और ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि 1710 में बाबा बंदा सिंह बहादुर के नेतृत्व में सिखों ने इस क्षेत्र पर विजय प्राप्त की थी और मुगल किले को नष्ट कर दिया था। बंदा सिंह बहादुर ने नगर में सिख शासन की स्थापना की और मुगल शासन के अत्याचार की समाप्ति की घोषणा की, जिसमें आतंक और अन्याय का बोलबाला था। गुरु गोबिंद सिंह के अनुयायी टोडर मल किसी तरह गुरु गोबिंद सिंह के दो छोटे बेटों का अंतिम संस्कार करने में कामयाब रहे, जिनका नाम साहिबजादा फतेह सिंह और साहिबजादा जोरावर सिंह था। उन्हें मुगलों ने अपना धर्म न छोड़ने के कारण शहीद कर दिया था, ऐसा अनुमान लगाया गया है कि अंतिम संस्कार करने को पर्याप्त भूमि खरीदने के लिए कम से कम 78 हजार सोने के सिक्कों की आवश्यकता थी। दीवान ने सिक्के बनाए और अंतिम संस्कार के लिए जरूरी भूमि का टुकड़ा खरीदा। उन्होंने जमीन पर सोने की मुहरें बिछाकर उसे खरीदा था। उन्होंने तीनों शवों का अंतिम संस्कार किया और एक कलश में राख डाली और खरीदी हुई जमीन में दफन कर दिया।
लिपिका गुलियानी ने आनंदपुर साहिब में विरासत-ए-खालसा पर प्रस्तुति दी, जो गुरु गोबिंद सिंह के खालसा पंथ की स्थापना की तीसरी शताब्दी की याद में 1999 में शुरू हुआ था। करीब 6500 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला हाल में खुला विरासत-ए-खालसा संग्रहालय हाथ से तैयार की गई कलाकृतियों और नवीनतम तकनीक के इस्तेमाल से पंजाब और सिख धर्म की एक यादगार कहानी कहता है। प्रसिद्ध वास्तुकार मोशे सफी द्वारा डिजाइन, यह कहानी कहने वाला भंडार दुनिया में अपनी तरह का पहला है और इसे दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संग्रहालय के रूप में माना गया है, जो एक समुदाय को समर्पित है। इमारत के दो एकीकृत हिस्सों में से पश्चिमी परिसर शहर के लिए प्रवेश द्वार की तरह काम करता है और 165 मीटर पुल के रास्ते पैदल लोगों के लिए पूर्वी परिसर तक पहुंच प्रदान करता है। अद्भुत कुंडों की श्रृंखला मेहराबदार पैदल मार्ग और उद्यानों के साथ ही दोनों परिसरों के बीच एक विशाल जल निकाय बनाती है। सार्वजनिक सुविधाएं और एक कैफेटेरिया पुल के बेस के पास हैं। किश्वर देसाई ने विभाजन संग्रहालय को प्रस्तुत किया, जो स्वर्ण मंदिर से 5 मिनट की पैदल दूरी पर है।
भारत का विभाजन उपमहाद्वीप के इतिहास में सबसे बड़ी घटनाओं में से एक रहा है। यह मानव इतिहास में सबसे बड़ा पलायन था और इससे 20 मिलियन लोग प्रभावित हुए थे। जीवन और संपत्ति के भारी नुकसान के बावजूद 70 साल बाद भी दुनिया में कहीं भी उन लाखों लोगों को याद करने के लिए कोई संग्रहालय या स्मारक मौजूद नहीं था। विभाजन संग्रहालय या पीपुल्स म्यूजियम इस शून्य को भरता है और उन लोगों की आवाज़ के माध्यम से कहानी बताता है, जो उस समय रहे थे। संग्रहालय को 17 अगस्त 2017 को खोला गया तो बहुत से लोग अपनी कहानियों, पत्रों, कलाकृतियों आदि को साझा करने के लिए आगे आए। हरजप सिंह औजिला ने पंजाब में विभिन्न सर्किटों को बढ़ावा देने तथा ज्यादा पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए बुनियादी सुविधाओं को विकसित करने के महत्व पर प्रकाश डाला। वेबिनार के समापन पर पर्यटन मंत्रालय में अतिरिक्त महानिदेशक रुपिंदर बरार ने यात्रा और स्थलों, व्यंजनों, संस्कृति और विरासत के बारे में जानने पर जोर दिया।

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