स्वतंत्र आवाज़
word map

चौंतीस साल पुरानी राष्ट्रीय शिक्षा नीति बदली

दुनिया में हिंदुस्तान बनेगा ज्ञान का महान केंद्र और शिक्षा गंतव्य

मोदी सरकार ने ऐतिहासिक बदलाव के साथ नीति को मंजूरी दी

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 30 July 2020 02:22:05 PM

national education policy 2020

नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी सरकार ने बड़े बदलाव के साथ भारत में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी है। भाजपा सरकार में बहुप्रतीक्षित इस शिक्षा नीति पर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 से देश की स्कूल और उच्चशिक्षा प्रणाली में बड़ा परिवर्तनकारी सुधार आएगा। मोदी कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री ने मीडिया से कहा कि भारत में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति अपनी तरह की सबसे बड़े परामर्श और चर्चा प्रक्रिया का परिणाम है। उन्होंने बताया कि इसके मसौदे को विचार-विमर्श के लिए सार्वजनिक पटल पर रखे जाने के बाद 2.25 लाख सुझाव मिले थे। एचआरडी मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रिमंडल का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस शिक्षा नीति को लागू किए जाने के बाद भारत दुनिया में ज्ञान के एक महान केंद्र और शिक्षा गंतव्य के रूपमें उभरेगा। नई शिक्षा नीति में मानव संसाधन विकास मंत्रालय अब शिक्षा मंत्रालय कहलाएगा।
मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बदलाव और उसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह शिक्षा नीति नए भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी। उन्होंने छात्रों, शिक्षकों, अभिभावकों और हितधारकों को इसके लिए बधाई दी और कहा कि यह देश के लिए ऐतिहासिक पल है। उन्होंने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पूरे भारत में बच्चों की उच्च गुणवत्ता वाली प्रारंभिक देखभाल और शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करेगी। उन्होंने कहा कि हम सामाजिक क्षमताओं, संवेदनशीलता, अच्छे व्यवहार, नैतिकता, टीमवर्क और बच्चों के बीच सहयोग पर ध्यान केंद्रित करेंगे। उन्होंने कहा कि यह 21वीं शताब्दी की पहली शिक्षा नीति है, जिसने चौंतीस साल पुरानी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का स्‍थान लिया है। रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि पहुंच, निष्पक्षता, गुणवत्ता, वहनीय और जवाबदेही के मूलभूत आधारों पर निर्मित नई शिक्षा नीति सतत विकास के एजेंडा 2030 से जुड़ी हुई है और इसका उद्देश्य स्कूल-कॉलेज शिक्षा को अधिक समग्र बनाकर भारत को एक जीवंत ज्ञान वाले समाज और वैश्विक ज्ञान महाशक्ति में बदलना है।
एचआरडी मंत्री ने दोहराया कि नई शिक्षा नीति 21वीं सदी की जरूरतों के अनुकूल, लचीला, बहुविषयक और प्रत्येक छात्र की अद्वितीय क्षमताओं को सामने लाएगी। ग़ौरतलब है कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 1986 में शिक्षा नीति लागू की थी, इसके बाद 1992 में इसमें कुछ संशोधन किए गए थे, अब 34 साल बाद इसे बदल दिया गया है। इसरो के भूतपूर्व अध्यक्ष वैज्ञानिक और पद्म विभूषण डॉ के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में जून 2017 में गठित विशेषज्ञों की समिति ने नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार किया था, जो 31 मई 2019 को मानव संसाधन विकास मंत्री को प्रस्तुत किया था, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने बुधवार को मंज़ूरी दी है। नई शिक्षा नीति में स्कूल शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किए गए हैं। भारतीय संविधान के चौथे भाग में उल्लेखित नीति निदेशक तत्वों में कहा गया है कि प्राथमिक स्तर तक के सभी बच्चों को अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाए। इस तरह वर्ष 1948 में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के गठन के साथ ही भारत में शिक्षा प्रणाली को व्यवस्थित करने का काम शुरू हुआ था।
भारतीय शिक्षा नीति के अतीत पर दृष्टि डालें तो लक्षमण स्वामी मुदलियार की अध्यक्षता में 1952 में गठित माध्यमिक शिक्षा आयोग, तथा 1964 में दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में गठित शिक्षा आयोग की अनुशंशाओं के आधार पर 1968 में शिक्षा नीति पर एक प्रस्ताव प्रकाशित किया गया था, जिसमें राष्ट्रीय विकास के प्रति वचनबद्ध, चरित्रवान तथा कार्यकुशल युवक युवतियों को तैयार करने का लक्ष्य रखा गया। इसपर कार्य करते हुए मई 1986 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू कर दी गई। जो अभी तक चलती रही है। इस दौरान भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति की समीक्षा के लिए 1990 में आचार्य राममूर्ति की अध्यक्षता में एक समीक्षा समिति और 1993 में प्रोफेसर यशपाल समिति का गठन किया गया था। भारत की शिक्षा नीति अनेकबार विवादों में आई है और अध्ययनों में यह पाया गया है कि शिक्षा नीति कई प्रमुख बिंदुओं पर विफल एवं दोषपूर्ण है, जिसमें प्राइमरी शिक्षा प्रमुख तत्व है, जो किसी भी देश के संस्कार और चरित्र निर्माण की नींव है, जो मुख्यतः पराए हाथों में है और जिसकी घोर उपेक्षा होती आ रही है, यही कारण है कि आज भी सबसे बड़ा संकट प्राइमरी शिक्षा पर व्याप्त है। उम्मीद की जाती है कि मोदी सरकार की इस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस संकट का समाधान हो सकेगा।
मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री संजय धोत्रे ने भी इस अवसर पर मीडिया से कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 इस देश के शैक्षिक इतिहास में सबसे व्यापक, परिवर्तनकारी और भविष्यवादी नीति का दस्तावेज़ है। उन्होंने कहा कि यह प्रत्येक और सभी के लिए गुणवत्ता और परिणाम आधारित शिक्षा मुहैया कराने को लेकर किसी भी बाधा को मान्यता नहीं देती है, इसमें अब बच्चों को उनकी देखभाल और उनकी शिक्षा के लिए सबसे अधिक अहम वाले वर्षों के दौरान यानी 3-5 साल को शामिल किया गया है। उन्होंने कहा कि आलोचनात्मक सोच, अनुभवात्मक और अनुप्रयोग आधारित शिक्षा, सीखने में लचीलापन, जीवन कौशल पर ध्यान केंद्रित करना, बहुविषयक और निरंतर समीक्षा इस नीति की कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं। उन्होंने कहा कि 2 करोड़ स्कूल नहीं जाने वालों और ड्रॉप आउट बच्चों को वापस लाना और 3 साल से स्कूली शिक्षा का सार्वभौमिकरण 'कोई भी पीछे न छूटे' के दर्शन के प्रति मोदी सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। संजय धोत्रे ने कहा कि अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स, नेशनल रिसर्च फाउंडेशन और नेशनल मिशन ऑन फाउंडेशनल लिट्रेसी एंड न्यूमेरसी कुछ ऐतिहासिक नीतियां हैं, जो देश के शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र को मौलिक रूपसे बदल देगी।
नई शिक्षा नीति ऐतिहासिक है-गृहमंत्री
गृहमंत्री अमित शाह ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 पर विशेष टिप्पणी की है। इसका स्वागत करते हुए उन्होंने इसे भारतीय शिक्षा व्यवस्था के इतिहास में एक वास्तविक असाधारण दिन बताया है। एक ट्वीट संदेश में अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 21वीं शताब्दी के लिए नई शिक्षा नीति 2020 को मंजूरी दी है, यह नीति स्कूल और उच्चशिक्षा दोनों में आवश्यक ऐतिहासिक सुधार लाएगी। अमित शाह ने कहा कि अपनी संस्कृति और मूल्यों को छोड़कर दुनिया में कोई भी देश उत्कृष्ट नहीं बन सकता, नई शिक्षा नीति का उद्देश्य सभीको भारतीय लोकाचार पर आधारित उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान कर ऐसी शिक्षा प्रणाली देना है, जो भारत को फिरसे वैश्विक ज्ञान की महाशक्ति बना सके। उन्होंने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति यही सुनिश्चित करेगी और समाज के हर वर्ग तक पहुंचेगी, इसके लिए एक विशेष ज्वाइंट टास्क फोर्स भी बनाई जाएगी, उच्चशिक्षा में दाखिला लेने वालों की कुल संख्या बढ़ाने के लिए निरंतर कदम उठाए जाएंगे। नई शिक्षा नीति में स्कूल शिक्षा में 5+3+3+4 व्यवस्था, 4 साल के नए कोर्सस की शुरुआत, सिंगल पॉइंट कॉमन रेग्युलेटरी सिस्टम, फीस स्थिरीकरण और बोर्ड नियामक व्यवस्था के अंतर्गत सामान्य मानक के साथ ही उच्चशिक्षा में मल्टिपल एंट्री और एक्ज़िट पॉइंट्स जैसी अनेक विशेषताएं हैं।
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि अकैडमिक क्रेडिट बैंक, शिक्षा व्यवस्था में निवेश बढ़ाना, शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयवाद, सुविधाहीन क्षेत्रों के लिए विशेष शिक्षा क्षेत्र, कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालियों को 12वीं तक करना और लोकविद्या पर अधिक ध्यान तथा तकनीक के उपयोग को बढ़ावा देने का भी प्रावधान होगा। अमित शाह ने कहा कि शिक्षा नीति का उद्देश्य समग्र और बहुविषयी दृष्टिकोण से भारतीय शिक्षा व्यवस्था में विशाल संरचनात्मक परिवर्तन लाना है। उन्होंने कहा कि विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने से देशभर के बच्चों का सर्वांगीण विकास होगा। गृहमंत्री ने कहा कि शिक्षा किसी भी राष्ट्र की नींव है और पिछले 34 वर्ष से भारत को इस परिवर्तन की प्रतीक्षा थी। उन्होंने कहा कि मैं प्रधानमंत्री और केंद्रीय शिक्षामंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के प्रति आभार व्यक्त करता हूं, यह ऐतिहासिक निर्णय न्यू इंडिया के निर्माण में अभूतपूर्व भूमिका निभाएगा। गौरतलब है कि नए पाठ्यक्रम और शैक्षणिक संरचना के साथ प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा पर जोर देते स्कूल पाठ्यक्रम के 10 + 2 ढांचे की जगह 5 + 3 + 3 + 4 का नया पाठ्यक्रम संरचना लागू किया जाएगा, जो क्रमशः 3-8, 8-11, 11-14, और 14-18 उम्र के बच्चों के लिए है। इसमें अब तक दूर रखे गए 3-6 साल के बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम के तहत लाने का प्रावधान है, जिसे विश्वस्तर पर बच्चे के मानसिक विकास के लिए महत्वपूर्ण चरण के रूपमें मान्यता दी गई है।
नई राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली में तीन साल की आंगनवाड़ी/ प्री स्कूलिंग के साथ 12 साल की स्कूली शिक्षा होगी। स्कूल के पाठ्यक्रम और अध्यापन कला का लक्ष्‍य यह होगा कि 21वीं सदी के प्रमुख कौशल या व्‍यावहारिक जानकारियों से विद्यार्थियों को लैस करके उनका समग्र विकास किया जाए और आवश्यक ज्ञान प्राप्ति एवं अपरिहार्य चिंतन को बढ़ाने व अनुभवात्मक शिक्षण पर अधिक फोकस करने के लिए पाठ्यक्रम को कम किया जाए। विद्यार्थियों को पसंदीदा विषय चुनने के लिए कई विकल्‍प दिए जाएंगे। कला एवं विज्ञान के बीच पाठ्यक्रम एवं पाठ्येतर गतिविधियों के बीच और व्यावसायिक एवं शैक्षणिक विषयों के बीच कोई भिन्‍नता नहीं होगी। स्कूलों में छठे ग्रेड से ही व्यावसायिक शिक्षा शुरू हो जाएगी और इसमें इंटर्नशिप शामिल होगी। एक नई एवं व्यापक स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा ‘एनसीएफएसई 2020-21’ एनसीईआरटी विकसित करेगी।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]