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'उत्तर प्रदेश की लोककला विरासत को जानें'

अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस पर ऑनलाइन प्रदर्शनी

स्लाइड शो के माध्यम देखें पांरपरिक लोककलाएं

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Tuesday 19 May 2020 12:08:19 PM

online exhibition on international museum day

लखनऊ। अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस पर उत्तर प्रदेश लोककला संग्रहालय की ओर से पहली बार ऑनलाइन प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है। प्रदर्शनी में यू-ट्यूब, फेसबुक, वॉट्सप पर प्रदेश के विभिन्न खंडों की पांरपरिक लोककलाओं की जानकारियां स्लाइड शो के माध्यम से दी गई हैं। अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस पर प्राणी उद्यान संग्रहालय परिसर में हर साल विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से हर उम्र के लोगों को जोड़ा जा रहा है। इस साल कोरोना संकट के दौर में भी यह क्रम रुका नहीं, बल्कि इसने वैश्विक रूप प्राप्त किया है।
लोककला संग्रहालय की प्रभारी संग्रहालयाध्यक्ष डॉ मीनाक्षी खेमका की परिकल्पना में ऑनलाइन प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। डॉ मीनाक्षी खेमका ने बताया कि यू-ट्यूब के कारण इस प्रदर्शनी को लोग अपने सुविधा से कभी भी और कहीं भी नि:शुल्क देख सकेंगे। उन्होंने बताया कि ऑनलाइन प्रदर्शनी का क्रम आगे भी जारी रहेगा और प्रयास है कि हर महीने लोक परंपराओं पर आधारित ज्ञानवर्धक और रोचक ऑनलाइन प्रदर्शनी अपलोड की जाए। लोककला प्रदर्शनी में लोकसंगीत वाद्यों और लोक हस्तशिल्प को भी शामिल किया गया है। वर्ष 1983 में 18 मई को संयुक्तराष्ट्र ने संग्रहालय की विशेषता एवं महत्व को समझते हुए अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस मनाने का निर्णय लिया था।
'लोककला के विविध आयाम' नाम से दिलचस्प और गागर में सागर समेटती ऑनलाइन प्रदर्शनी में भोजपुर क्षेत्र के दर्शन होते हैं, प्रदर्शनी में प्रचलित वाद्ययंत्र में ढोलक की तरह दिखने वाले मादक, उंगलियों से बजने वाला झांझ और करताल-मंजीरे को दर्शाया गया है। मुखौटा कला में प्रथम देव गणेश के साथ काली माई और महादेव के मुखौटे देखते ही बने। रामलीला के बिना तो प्रदेश की कला यात्रा ही अधूरी रह जाएगी। इसमें जरीदार कपड़े और आभूषण भी ऑनलाइन प्रदर्शनी का आवश्यक अंग बने। अवध क्षेत्र में प्रचलित ब्रास का हुक्का, रामतीर्थ की मूर्ति, टेराकोटा में बनी पहाड़ी औरत, बंदगोभी, हरदल का भित्ती चित्र ज्ञानवर्धक लगा। प्रदर्शनी के माध्यम से बताया गया कि अवध में प्रचलित जांघिया नटवरी लोकनृत्य की पोशाक खास होती है, उसमें लाल रंग की जाघियां में घुंघरू लगे होते हैं।
ब्रज क्षेत्र में बहु प्रचलित सांझी कला में पनिहारिन, गज-ग्राह की कहानी को चित्रित किया गया है। बुंदेलखंड क्षेत्र का अलंकृत हाथ का पंखा, धातु से तैयार खिलौना घोड़ा गाड़ी, मटकी, दवात ही नहीं हरदौला बाबा का चित्र भी आकर्षित करता है। इसमें वह अश्व पर सवार तलवार थामे दर्शाए गए हैं। रुहेलखंड क्षेत्र के लड़की का पात्र हो या फिर कुमायूं क्षेत्र की ज्यूति ऐपण प्रदेश की विविधता को बखूबी दर्शाते हैं। गढ़वाल में प्रचलित जन्माष्टमी और गोवर्धन पट्टा आस्था और कला के गहरे सम्बंधों को उजागर करता है। यू-ट्यूब पर संग्रहालय की ऑनलाइन प्रदर्शनी के लिंक https://www.youtube.com/watch?v=iBViTHepsPU की मदद से उत्तर प्रदेश की उन्नत लोक विरासत को जानें।

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