स्वतंत्र आवाज़
word map

'कोरोना महामारी मानव सभ्यता को चुनौती'

उपराष्ट्रपति ने लिखी कोविड-19 पर विस्तृत फेसबुक पोस्ट

कोविड-19 के साथ अधिक समय तक रहना पड़ सकता है!

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Monday 18 May 2020 05:56:46 PM

vice president venkaiah naidu

नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने लॉकडाउन 4.0 में प्रस्तावित छूट का स्वागत किया है और लोगों का कोरोना अनुभव से मिली सीख के साथ नई जीवनशैली अपनाने का आह्वान किया है। उपराष्ट्रपति ने हर वर्ग के मीडिया से भी आग्रह किया कि वह कोरोना महामारी के बारे में सिर्फ प्रामाणिक और वैज्ञानिक सूचना का ही प्रसार करे, इसे किसी विप्लव या प्रलय के तौर पर न प्रचारित करे। उन्होंने कहा कि हमें कोविड-19 के साथ उम्मीद से अधिक समय तक रहना पड़ सकता है। लॉकडाउन 4.0 की घोषणा के बाद उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कोविड-19 संक्रमण के गभीर वैचारिक और नैतिक प्रश्नों पर एक विस्तृत फेसबुक पोस्ट लिखी है, जिसमें उन्होंने भावी जीवनशैली पर विमर्श किया है। उपराष्ट्रपति ने लिखा है कि कोरोना संक्रमण ने हमारी आपसी निर्भरता को रेखांकित किया है और जीवन को अलग-थलग अकेले नहीं जिया जा सकता है।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने लिखा कि भौतिक सुखों और उपभोग की अंधी दौड़ में मनुष्य अकेला बन गया था, परिवार और समाज उसके लिए बंधन मात्र थे, उसका आत्मविश्वास अभिमान की सीमा तक बढ़ गया था, जिसने उसे यकीन दिला दिया कि दूसरों के जीवन को नज़रंदाज करके भी वह अकेले सिर्फ अपने लिए ही जी सकता है। उन्होंने लिखा है कि पहले की महामारियों की तुलना में जीन एडिटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बिग डाटा आदि कहीं बेहतर तकनीकों से लैस आज का मानव भगवान बनने की कोशिश कर रहा है। कोरोना के बाद के जीवन पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने लिखा है कि खुद के लिए जीने वाले मानव की आत्मकेंद्रित जीवनशैली को कोरोना वायरस ने हिलाकर रख दिया है और प्रकृति एवं अखिल मानवता के साथ जीने की आवश्यकता को उजागर किया है। उन्होंने लिखा कि कोरोना महामारी ने जीवन के अर्थ और उद्देश्य को लेकर सवाल उठाए हैं कि सहचर जीव-जंतुओं से हमारे रिश्ते कैसे हों? वर्तमान विकास नीति का प्राकृतिक परिवेश तथा समावेशी सामाजिक विकास की अवधारणा पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? इस विषय पर गंभीर नैतिक सवाल उठाए हैं।
उपराष्ट्रपति ने लिखा है कि कोरोना वायरस ने समाज में विकास के साथ साथ पनपी गहरी आर्थिक विषमताओं को भी रेखांकित किया है, अनिश्चितताएं अभी भी मनुष्य को घेरे हुए हैं। उन्होंने लिखा कि हर सभ्यता का उद्देश्य मानवजीवन के अवसरों, उसकी संभावनाओं का संरक्षण और संवर्धन करना होता है, कोरोना महामारी सिर्फ व्यक्ति के निजी जीवन के लिए ही नहीं, बल्कि मानव सभ्यता के लिए एक चुनौती है, वर्तमान सभ्यता को बचाने के लिए नए मूल्य और मानदंड अपनाने होंगे। वेंकैया नायडू ने लिखा कि जीवन को अधिक समय तक बांधा नहीं जा सकता, एचआईवी के विरुद्ध वैक्सीन के अभाव में भी अपनी आदतों में सुधार लाकर प्रभावित लोगों द्वारा सामान्य जीवन जिए जाने का ज़िक्र करते हुए कोरोना वायरस के साथ भी अपनी जीवनशैली में बदलाव लाने तथा प्रकृति और साथी नागरिकों के प्रति दृष्टिकोण बदलने का आग्रह किया है।
वेंकैया नायडू ने कोरोना काल में 12 सूत्री नव नॉर्मल प्रस्तावित किए हैं जैसे प्रकृति और साथी नागरिकों के साथ सद्भावपूर्वक रहना, यह समझना कि जीवन की सुरक्षा परस्पर हम सबपर निर्भर है, हर कदम या गतिविधि का संक्रमण के प्रसार पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका विवेकपूर्ण आंकलन करना, किसी स्थिति का सामना भावावेश में आकर नहीं, बल्कि यह विश्वास रखकर करना कि विज्ञान और तकनीकी इसका समाधान ढूंढ ही लेंगे, हमारे व्यवहार में आए अच्छे परिवर्तनों जैसे मास्क पहनना, निजी स्वच्छता, सामाजिक दूरी को बनाए रखना, संक्रमित लोगों को जांच उपचार के लिए प्रेरित करने के लिए उनके विरुद्ध पूर्वाग्रह से बचना, आपने साथी नागरिकों को संक्रमण के लिए दोषी मानने वाले भ्रामक प्रचार से बचना और उसे समाप्त करना, चारों ओर व्याप्त निराशा की जगह हमारी साझा नियति और परस्पर निर्भरता पर विश्वास करना बहुत आवश्यक है।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]