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'संविधान लोकतांत्रिक संरचना का सर्वोच्च कानून'

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का संविधान दिवस पर संसद में संबोधन

संविधान की सत्तरवीं वर्षगांठ पर संसद में स्मरणोत्सव कार्यक्रम

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Tuesday 26 November 2019 04:12:26 PM

president ram nath kovind's address to parliament on constitution day

नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भारत के संविधान की 70वीं वर्षगांठ पर देशवासियों को हार्दिक बधाई देते हुए कहा है कि 70 साल पहले आज ही के दिन इसी सेंट्रल हॉल में संविधान सभा के सदस्यों के माध्यम से हम भारत के लोगों ने संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया था। उन्होंने कहा कि वर्ष 2015 में बाबासाहेब डॉ भीमराव आंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष पर भारत सरकार ने 26 नवंबर के दिन को प्रतिवर्ष संविधान दिवस के रूपमें मनाने का निर्णय लिया था, जो हमारे संविधान के प्रमुख शिल्पी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने की दिशा में एक सराहनीय पहल है। राष्ट्रपति ने कहा कि दोनों सदनों के सदस्यों की भागीदारी के साथ हमसब संविधान दिवस को सेंट्रल हॉल में मना रहे हैं, इस ऐतिहासिक अवसर का साक्षी और प्रतिभागी होना हम सभी केलिए सौभाग्य की बात है। राष्‍ट्रपति ने भारत के संविधान को अपनाने की 70वीं वर्षगांठ पर संसद में आयोजित स्मरणोत्सव में शिरकत की।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने अपने ज्ञान, विवेक, दूरदर्शिता और परिश्रम से एक ऐसा कालजयी और जीवंत दस्तावेज़ तैयार किया, जिसमें हमारे आदर्शों और आकांक्षाओं के साथ-साथ हम सभी भारतवासियों का भविष्य भी संरक्षित है। उन्होंने कहा कि भारत का संविधान विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का आधार ग्रंथ है, यह हमारे देश की लोकतांत्रिक संरचना का सर्वोच्च कानून है, जो निरंतर हम सबका मार्गदर्शन करता है। राष्ट्रपति ने कहा कि यह संविधान हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था का उद्गम भी है और आदर्श भी। उन्होंने कहा कि हम भारतवासियों में सभी स्रोतों से मिलने वाले अच्छे विचारों का स्वागत करने के साथ-साथ अपनी भारतीयता को बनाए रखने की परंपरा रही है, हमारी यही सांस्कृतिक विशेषता हमारे संविधान के निर्माण में भी झलकती है। राष्ट्रपति ने कहा कि हमने विश्व के कई संविधानों में उपलब्ध उत्तम व्यवस्थाओं को अपनाया है, साथ ही हजारों वर्ष से चले आ रहे हमारे जीवन मूल्यों और स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों ने भी हमारे संविधान पर अपनी छाप छोड़ी है। उन्होंने कहा कि हमारा संविधान भारत के लोगों के लिए भारत के लोगों द्वारा निर्मित भारत के लोगों का संविधान है, यह एक राष्ट्रीय दस्तावेज़ है, जिसके विभिन्न सूत्र भारत की प्राचीन सभाओं और समितियों, लिच्छवि तथा अन्य गणराज्यों और बौद्ध संघों की लोकतांत्रिक प्रणालियों में भी पाए जाते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि असाधारण सूझबूझ से युक्त डॉ राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान सभा ने विभिन्न विचारधाराओं के संतुलन एवं समन्वय का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि डॉ भीमराव आंबेडकर की अध्यक्षता में संविधान सभा की प्रारूप समिति ने कुल 141 बैठकों में असाधारण विवेक, ईमानदारी, साहस और परिश्रम से संविधान को मूर्तरूप प्रदान किया। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान में भारतीय लोकतंत्र का दिल धड़कता है, इस जीवंतता को बनाए रखने के लिए संविधान निर्माताओं ने भावी पीढ़ियों केलिए समयानुसार आवश्यक समझे जाने वाले संशोधनों के लिए भी प्रावधान शामिल किए। उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र की मिसाल पूरे विश्व में दी जाती है, इसी वर्ष हमारे देशवासियों ने 17वें आम चुनाव में भाग लेकर विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सम्पन्न किया है, इसमें 61 करोड़ से अधिक लोगों ने मतदान किया, मतदान में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के लगभग बराबर रही है। राष्ट्रपति ने कहा कि 17वीं लोकसभा में आजतक की सबसे बड़ी संख्या में 78 महिला सांसदों का चुना जाना हमारे लोकतंत्र की गौरवपूर्ण उपलब्धि है, महिलाओं को शक्‍तियां प्रदान करने संबंधी स्थायी संसदीय समिति में आज शत-प्रतिशत सदस्यता महिलाओं की है। उन्होंने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनैतिक परिवर्तन है, जिसमें आने वाले कल की सुनहरी तस्वीर झलकती है।
रामनाथ कोविंद ने कहा कि 70 वर्ष की अवधि में भारतीय संविधान ने जो उपयोगिता और सम्मान हासिल किया है, उसके लिए सभी देशवासी बधाई के हकदार हैं, साथ ही केंद्र व राज्य सरकार के तीनों अंग अर्थात विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सराहना के पात्र हैं, संघ और राज्यों के तालमेल को आगे बढ़ाते हुए सहकारी संघवाद यानि को-ऑपरेटिव फेडरलिज़्म तक की हमारी यह यात्रा संविधान की गतिशीलता का उदाहरण है। राष्ट्रपति ने कहा कि 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में अपना अंतिम भाषण देते हुए डॉ भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि संविधान की सफलता भारत की जनता और राजनीतिक दलों के आचरण पर निर्भर करेगी, भय, प्रलोभन, राग-द्वेष, पक्षपात और भेदभाव से मुक्त रहकर शुद्ध अंतःकरण के साथ कार्य करने की भावना को हमारे महान संविधान निर्माताओं ने अपने जीवन में पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपनाया था। राष्ट्रपति ने कहा कि उनमें यह विश्वास जरूर रहा होगा कि उनकी भावी पीढ़ियां अर्थात हम सभी देशवासी भी उन्हीं की तरह इन जीवन मूल्यों को उतनी ही सहजता और निष्ठा से अपनाएंगे। राष्ट्रपति ने कहा कि आज इसपर हम सबको मिलकर आत्मचिंतन करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि डॉ भीमराव आंबेडकर ने संविधान सभा के अपने एक भाषण में संवैधानिक नैतिकता के महत्व को रेखांकित करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया था कि संविधान को सर्वोपरि सम्मान देना तथा वैचारिक मतभेदों से ऊपर उठकर संविधान सम्मत प्रक्रियाओं का पालन करना संवैधानिक नैतिकता का सार तत्व है।
राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार के तीनों अंगों, संवैधानिक पदों को सुशोभित करने वाले सभी व्यक्तियों, सिविल सोसाइटी के सदस्यों तथा सभी सामान्य नागरिकों द्वारा संवैधानिक नैतिकता का पालन किया जाना अपेक्षित है। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह संविधान के आदर्शों और संस्थाओं का आदर करे, आज़ादी की लड़ाई के आदर्शों को दिल में संजोए रखे और उनका पालन करे, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध हैं, हमारी संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे, इनके अतिरिक्त संविधान में नागरिकों के अन्य कर्तव्यों का भी उल्लेख किया गया है। राष्ट्रपति ने कहा कि कर्तव्य और अधिकार के विषय में महात्मा गांधी ने कहा था कि अधिकारों की उत्पत्ति का सच्चा स्रोत कर्तव्यों का पालन है, यदि हमसब अपने कर्तव्यों का पालन करें तो अधिकारों को ज्यादा ढूंढने की जरूरत नहीं रहेगी, लेकिन यदि हम कर्तव्यों को पूरा किए बिना अधिकारों के पीछे दौड़े तो वह मृग-मरीचिका के पीछे पड़ने जैसा ही व्यर्थ सिद्ध होगा। उन्होंने कहा किहमारी संसद ने मूल कर्तव्यों के प्रावधानों को संविधान में शामिल करके यह स्पष्ट किया है कि नागरिकों को अपने अधिकारों के बारे में सचेत रहने के साथ-साथ अपने कर्तव्यों के प्रति भी जागरुक रहना है, ‘मूल कर्तव्य’ नागरिकों को उनकी नैतिक ज़िम्मेदारी का एहसास भी कराते हैं।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि हमारे संविधान की प्रस्तावना, मूल अधिकारों, निदेशक तत्वों और मूल कर्तव्यों में संविधान की अंतरात्मा को देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, हमारे संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल अधिकार भी है और सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखने तथा हिंसा से दूर रहने का कर्तव्य भी, अतः ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का गलत अर्थ लगाकर यदि कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक संपत्ति को क्षति पहुंचाने जा रहा है तो उसे ऐसे हिंसात्मक व अराजकतापूर्ण काम से रोकने वाले व्यक्ति, जिम्मेदार नागरिक कहलाएंगे। राष्ट्रपति ने कहा कि जरूरत इस बात की है कि हमसब अपने कर्तव्यों को निभाकर ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करें, जहां अधिकारों का प्रभावी संरक्षण हो सके। उन्होंने कहा कि मानववाद की भावना का विकास करना भी नागरिकों का एक मूल कर्तव्य है, सबके प्रति संवेदनशील होकर सेवा करना इस कर्तव्य में शामिल है। राष्ट्रपति ने इस अवसर पर गुजरात की मुक्ताबेन डगली का उल्लेख किया, जिनको इसी वर्ष राष्ट्रपति भवन में पद्मश्री से सम्मानित कि‌या गया है, बचपन में ही अपनी आंखों की रोशनी खो देने के बावजूद उन्होंने अपना जीवन दूसरों के कल्याण में समर्पित कर दिया। उन्होंने अनेक दृष्टिबाधित बेटियों के जीवन में प्रकाश फैलाया है, अपनी संस्था के माध्यम से वे भारत के अनेक राज्यों की नेत्रहीन महिलाओं के जीवन में आशा की किरण फैला रही हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे नागरिक सही अर्थों में हमारे संविधान के आदर्शों को यथार्थ रूप देते हैं, वे राष्ट्रनिर्माता कहलाने के हकदार हैं। उन्होंने सांसदों से कहा कि उन्होंने विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखने तथा भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखने की शपथ ली है, उनकी तरह राष्ट्रपति के रूपमें उन्होंने भी अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करने तथा भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहने की शपथ ली है। राष्ट्रपति ने कहा कि हम सबको अपनी शपथ व प्रतिज्ञान को निरंतर ध्यान में रखने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा किभारत के नागरिक और मतदाता सभी अपने जनप्रतिनिधियों से यह अपेक्षा रखते हैं कि उनके कल्याण से जुड़े मुद्दों का समाधान, उनके प्रतिनिधिगण अवश्य करेंगे। राष्ट्रपति ने कहा कि अधिकांश लोग अपने सांसदों से कभी मिल भी नहीं पाते हैं, परंतु वे सभी आप सबको अपनी आशाओं और आकांक्षाओं का संरक्षक मानते हैं, इस आस्था और विश्वास का सम्मान करते हुए जनसेवा में निरत रहना हम सभी की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। राष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र के इस पावन मंदिर में आकर जनसेवा का अवसर मिलना बड़े सौभाग्य की बात होती है। उन्होंने कहा कि संविधान द्वारा हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया गया सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य और आदर्श है-सभी नागरिकों के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय तथा प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त कराना।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि संविधान निर्माताओं द्वारा सुनिश्चित किए गए समान अवसर के बल पर ही मुझे राष्ट्रपति के रूपमें संसद की इस ऐतिहासिक बैठक को संबोधित करने का अवसर मिला है। उन्होंने कहा किहमारे संविधान में समावेशी समाज के निर्माण का आदर्श भी है और इसके लिए समुचित प्रावधानों की व्यवस्था भी। उन्होंने कहा कि आज संविधान संशोधन जैसे शांतिपूर्ण माध्यम के जरिये क्रांतिकारी परिवर्तन की व्यवस्था देने वाले संविधान निर्माताओं के प्रति हृदय से आभार व्यक्त करने का दिन है। राष्ट्रपति ने कहा कि पिछले कुछ वर्ष में समावेशी विकास के हित में किए गए संवैधानिक संशोधनों को पारित करने के लिएसभी सांसद बधाई के हकदार हैं। उन्होंने कहा किहमारे देश में हर प्रकार की परिस्थिति का सामना करने के लिए संविधान सम्मत रास्ते उपलब्ध हैं, इसलिए हम जो भी कार्य करें, उसके पहले यह जरूर सोचें कि क्या हमारा कार्य संवैधानिक मर्यादा, गरिमा व नैतिकता के अनुरूप है? राष्ट्रपति ने कहा कि मुझे विश्वास है कि इस कसौटी को ध्यान में रखकर अपने संवैधानिक आदर्शों को प्राप्त करते हुए हमसब भारत को विश्व के आदर्श लोकतंत्र के रूपमें सम्मानित स्थान दिलाएंगे। राष्ट्रपति ने कहा कि आइये आज यह संकल्प लें कि ‘हम भारत के लोग’ अपने संविधान के आदर्शों को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयासरत रहेंगे और करोड़ों देशवासियों के सपनों को साकार करेंगे।

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