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देश को नई राजनीतिक संस्कृति की जरूरत-मोदी

राजनेता और सांसद चंद्रशेखर के जीवन से प्रेरणा लें-उपराष्‍ट्रपति

संसद भवन में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर पर पुस्तक का विमोचन

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Thursday 25 July 2019 01:05:28 PM

release of 'chandrasekhar-the last icon of ideological politics' book

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बालयोगी ऑडिटोरियम संसद पुस्‍तकालय भवन में एक समारोह में राज्‍यसभा के उपसभापति हरिवंश और रविदत्त बाजपेयी की पुस्तक ‘चंद्रशेखर-द लास्‍ट आइकन ऑफ आइडियोलॉजिकल पॉलिटिक्स' का विमोचन किया। प्रधानमंत्री ने पुस्‍तक की प्रथम प्रति उपराष्‍ट्रपति एम वेंकैया नायडू को भेंट की। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर कहा है कि आज के राजनीतिक संदर्भ में यह उल्‍लेखनीय है कि निधन के लगभग 12 वर्ष बाद भी पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के विचार हमारा मार्गदर्शन करते हैं और हमेशा की तरह जीवंत हैं। उपसभापति हरिवंश को पुस्‍तक रचना पर बधाई देते हुए प्रधानमंत्री ने चंद्रशेखर के साथ जुड़ी कुछ यादें और उनके साथ हुई अपनी बातचीत के किस्‍से साझा किए। उन्होंने कहा कि वे पहलीबार 1977 में चंद्रशेखर से मिले थे, वे पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत के साथ यात्रा कर रहे थे, दिल्ली एयरपोर्ट पर उनसे मुलाकात हुई। उन्होंने कहा कि दोनों राजनेताओं के बीच राजनीतिक विचारधारा में अंतर होने के बावजूद उनमें नजदीकी संबंध था। प्रधानमंत्री ने कहा कि चंद्रशेखर अटल बिहारी वाजपेयी को गुरूजी कहकर संबोधित करते थे। उन्होंने चंद्रशेखर के बारे में कहा कि वे एक सिद्धांत वाले व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने समय की मजबूत राजनीतिक पार्टी का विरोध करने में भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई, क्योंकि वे कुछ मामलों पर उस राजनीतिक पार्टी से असहमत थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मोहन धारिया और जॉर्ज फर्नांडिस जैसे राजनीतिक नेता चंद्रशेखर का बहुत सम्मान करते थे। नरेंद्र मोदी ने चंद्रशेखर के साथ अपनी अंतिम मुलाकात का स्मरण किया। उन्होंने कहा कि वे बीमार थे और उन्होंने टेलीफोन पर मुझे मुलाकात करने का आमंत्रण दिया था, उस बातचीत में उन्होंने गुजरात के विकास के बारे में पूछताछ की और कई राष्ट्रीय मुद्दों पर अपने विचार साझा किए। प्रधानमंत्री ने उनके विचारों की स्पष्टता, लोगों के लिए प्रतिबद्धता तथा लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति समर्पण की सराहना की। प्रधानमंत्री ने किसानों, गरीबों और हाशिये पर पड़े लोगों के लिए चंद्रशेखर की ऐतिहासिक पदयात्रा का भी स्मरण किया। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम उस समय उन्हें वह सम्मान नहीं दे पाए, जिसके वे हकदार थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसे लोगों की एक चौकड़ी है, जिन्होंने बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर और सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे महान भारतीय नेताओं की प्रतिकूल छवि बनाने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों के स्मरण में दिल्ली में एक संग्रहालय बनाया जाएगा। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्रियों के परिजनों से इन प्रधानमंत्रियों के जीवन एवं उत्कृष्ट कार्यों के विभिन्न पहलुओं को साझा करने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि देश को राजनीतिक अस्पृश्यता से परे एक नई राजनीतिक संस्कृति की जरूरत है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश एवं राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू नेकहा कि आज जब सिद्धांतनिष्ठ राजनीति का चिंतनीय ह्रास हो रहा है, मुझे विश्वास है कि युवा पीढ़ी के राजनेता और सांसद चंद्रशेखर के जीवन से प्रेरणा लेंगे। उन्होंने कहा कि आज यह आवश्यक है कि लोग ऐसे व्यक्तित्व और कृतित्व से प्ररेणा लें, जिन्होंने बदलती राजनीति में भी अपने राजनैतिक विचारों, विश्वासों, सिद्धांतों का समझौता नहीं किया। वेंकैया नायडू ने कहा कि मेरे लिए और राज्यसभा के प्रत्येक सदस्य के लिए यह गौरव और हर्ष का विषय है कि चंद्रशेखर ने 1962 में 35 साल की युवा आयु में ही अपना संसदीय कैरियर वरिष्ठों के सदन राज्यसभा से प्रारंभ किया था। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक सामान्य परिवार में जन्मे एक ऐसे लोकप्रिय राष्ट्रीय जननेता का जीवनवृत्त है, जिसके पास न कोई वंशानुगत राजनैतिक पृष्ठभूमि थी, न विदेश के प्रतिष्ठित संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करने के अवसर, न समृद्ध वंश के संसाधन और न ही वर्ग, जाति, धर्म पर आधारित वोट बैंक। उन्होंने कहा कि चंद्रशेखर हमेशा मानते थे कि राजनीति हाशिए पर खड़ी जनता की सेवा का माध्यम है, सिर्फ सत्ता मात्र प्राप्त करने का साधन नहीं।
उपराष्ट्रपति ने चंद्रशेखर के संसदीय आचरण के उच्च मानदंडों की चर्चा करते हुए कहा कि वे सदैव विचार, व्यवहार और आचरण में मर्यादा के कायल रहे, वरिष्ठों और सहयोगियों के प्रति आदर, कनिष्ठों के प्रति स्नेहिल सद्भाव, आचरण में मर्यादित सौम्यता और बराबरी का व्यवहार उनकी जीवनशैली की नैसर्गिक प्रवृत्ति रहे। उन्होंने कहा कि चंद्रशेखर न केवल आदर्शों और विचारधारा पर आधारित राजनीति के हिमायती थे, बल्कि उन्होंने विचार के साथ आचार और आचरण की मर्यादा का सदैव पालन किया। आपातकाल के दौरान हुए अधिकारों के हनन की चर्चा करते हुए उपराष्ट्रपति ने उस अवधि में चंद्रशेखर की महत्वपूर्ण भूमिका का ज़िक्र किया। उन्होंने याद दिलाया कि व्यक्ति परस्त तानाशाही के विरुद्ध जेल जाने वाले महत्वपूर्ण नेताओं में चंद्रशेखर भी थे, जो उस समय सत्ताधारी दल में ही थे। इस दौरान उपराष्ट्रपति ने चंद्रशेखर की कन्याकुमारी से राजघाट तक की पदयात्रा का ज़िक्र किया और कहा कि चंद्रशेखर सदैव आम आदमी के ज़मीनी सरोकारों से जुड़े रहे। उपराष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री द्वारा दिल्ली में सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों के व्यक्तित्व और कृतित्व को दर्शाने के लिए संग्रहालय निर्माण की घोषणा का स्वागत किया।

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