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Tuesday 26 November 2024 04:21:26 PM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने संविधान अंगीकार किए जाने की 75वीं वर्षगांठ पर आज संविधान सदन में आयोजित भव्य समारोह में कहा हैकि संविधान भारत का सबसे पवित्र ग्रंथ है। उन्होंने कहाकि आज हम सभी एक ऐतिहासिक अवसर के भागीदार भी हैं और साक्षी भी, 75 वर्ष पहले आज हीके दिन संविधान सदन के इसी केंद्रीय कक्ष में संविधान सभा ने स्वतंत्र राष्ट्र के संविधान निर्माण का महती कार्य संपन्न किया था, उसी दिन संविधान सभा द्वारा हम भारत के लोगों ने संविधान को अंगीकार, अधिनियमित और स्वयं को समर्पित किया था। राष्ट्रपति ने कहाकि हमारा संविधान हमारे लोकतांत्रिक गणराज्य की सुदृढ़ आधारशिला है, हमारा संविधान हमारी सामूहिक और व्यक्तिगत गरिमा सुनिश्चित करता है। उन्होंने कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से संविधान सभा के सदस्यों और पदाधिकारियों को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहाकि यह देश का सौभाग्य हैकि संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद और प्रारूप समिति के अध्यक्ष बाबासाहेब डॉ भीमराव आंबेडकर ने संविधान निर्माण की प्रक्रिया का मार्गदर्शन किया। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे एवं सदन में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने संस्कृत और मैथिली भाषा में संविधान की प्रतियां जारी कीं, स्मारक डाक टिकट और स्मारक सिक्का भी जारी किया।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि बाबासाहेब डॉ भीमराव आंबेडकर की प्रगतिशील और समावेशी सोच की छाप भारत के संविधान में देखी जा सकती है। उन्होंने उल्लेख किया संविधान सभा में बाबासाहेब के ऐतिहासिक भाषणों से यह स्पष्ट होता हैकि भारत लोकतंत्र की जननी है, अपने लोकतंत्र पर गर्व की इसी भावना के साथ हमसभी आज इस विशेष अवसर पर एकत्रित हुए हैं, यह संविधान सभा की पंद्रह महिला सदस्यों के योगदान को याद करने का भी अवसर है, हमें उन अधिकारियों के अमूल्य योगदान को भी याद करना चाहिए, जिन्होंने पृष्ठभूमि में काम किया, इनमें संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार रहे बीएन राव की प्रमुख भूमिका थी। राष्ट्रपति ने संविधान सभा के सचिव एचवीआर अयंगर, संयुक्त सचिव एसएन मुखर्जी और उप सचिव जुगल किशोर खन्ना का भी जिक्र किया। राष्ट्रपति ने कहाकि भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पर देशवासियों ने 'आजादी का अमृत महोत्सव' मनाया, अगले वर्ष 26 जनवरी को हम अपने गणतंत्र की 75वीं वर्षगांठ मनाएंगे, ऐसे समारोह हमें राष्ट्र की अबतक की यात्रा को समझने और भविष्य की बेहतर योजना बनाने का अवसर प्रदान करते हैं। उन्होंने कहाकि ये समारोह दर्शाते हैंकि राष्ट्रीय लक्ष्यों को पाने के हमारे प्रयासों में हम सभी एकजुट हैं। उन्होंने कहाकि संविधान की भावना के अनुरूप कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की यह जिम्मेदारी हैकि वे आम लोगों के जीवन को बेहतर बनाने केलिए मिलकर काम करें।
राष्ट्रपति ने कहाकि एक अर्थ में भारत का संविधान हमारे महानतम नेताओं के लगभग तीन वर्ष के विमर्श का परिणाम था, लेकिन सही अर्थ में यह हमारे लंबे स्वतंत्रता संग्राम का फल था, उसी अतुलनीय राष्ट्रीय आंदोलन के आदर्शों को संविधान में समाहित किया गया है, ये आदर्श हैं-न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व। राष्ट्रपति ने कहाकि इन आदर्शों ने सदियों से भारत को परिभाषित किया है, संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित आदर्श एक-दूसरे के पूरक हैं और वे एक ऐसा समाज निर्मित करते हैं, जिसमें प्रत्येक नागरिक को फलने-फूलने, समाज में योगदान देने और अन्य नागरिकों की सहायता करने का अवसर मिलता है। राष्ट्रपति ने कहाकि हमारे संवैधानिक आदर्शों को कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका केसाथ ही नागरिकों की सक्रिय भागीदारी से शक्ति मिलती है, संविधान में प्रत्येक नागरिक के मौलिक कर्तव्यों का भी स्पष्ट उल्लेख है, भारत की एकता और अखंडता की रक्षा, समाज में सद्भाव को बढ़ावा देना, महिलाओं की गरिमा सुनिश्चित करना, पर्यावरण की रक्षा करना, वैज्ञानिक समझ विकसित करना, सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा और राष्ट्र को नई ऊंचाईयों पर पहुंचाना नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों में शामिल है। उन्होंने कहाकि संविधान की भावना के अनुरूप आम लोगों का जीवन बेहतर बनाने केलिए कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को मिलकर काम करने का दायित्व मिला है। उन्होंने कहाकि संसद में पारित अनेक अधिनियमों में लोगों की आकांक्षाओं को अभिव्यक्ति मिली है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि बीते कुछ वर्ष में सरकार ने समाज के सभी वर्ग विशेषकर कमजोर वर्गों के विकास केलिए अनेक कदम उठाए हैं, ऐसे निर्णय से लोगों के जीवन में सुधार हुआ है और उन्हें विकास के नए अवसर प्राप्त हो रहे हैं। राष्ट्रपति ने कहाकि उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हुईकि सर्वोच्च न्यायालय के प्रयासों से देश की न्यायपालिका न्यायिक प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास कर रही है। राष्ट्रपति ने कहाकि हमारा संविधान एक जीवंत और प्रगतिशील दस्तावेज है, हमारे दूरदर्शी संविधान निर्माताओं ने बदलते समय की आवश्यकता अनुरूप नए विचारों को अपनाने की व्यवस्था बनाई थी और हमने संविधान द्वारा सामाजिक न्याय और समावेशी विकास से जुड़े कई महत्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल किए हैं। उन्होंने कहाकि एक नई सोच के साथ हम वैश्विक समुदाय के बीच भारत की नई पहचान स्थापित कर रहे हैं, संविधान निर्माताओं ने अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का निर्देश दिया था और भारत अग्रणी अर्थव्यवस्था होने केसाथ ही विश्वबंधु के रूपमें भी अपनी उल्लेखनीय भूमिका निभा रहा है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि 2015 से प्रत्येक वर्ष 'संविधान दिवस' आयोजन युवाओं में राष्ट्र के संस्थापक दस्तावेज संविधान के बारेमें जागरुकता बढ़ाने में सहायक रहा है। उन्होंने नागरिकों से अपने आचरण में संवैधानिक आदर्शों को शामिल करने, मौलिक कर्तव्यों का पालन करने और वर्ष 2047 तक 'विकसित भारत' के निर्माण के राष्ट्रीय लक्ष्य केप्रति समर्पण के साथ आगे बढ़ने का आग्रह किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस यादगार अवसर पर उपस्थित थे। उन्होंने संविधान दिवस पर राष्ट्रपति के अभिभाषण की सराहना करते हुए इसे ज्ञानवर्धक बताया। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसदीय विमर्श में शिष्टाचार और अनुशासन की कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए कहाकि रणनीति के रूपमें अशांति फैलाना लोकतांत्रिक संस्थाओं केलिए ख़तरा है। उपराष्ट्रपति ने कहाकि संविधान के प्रारंभिक शब्द ‘हम भारत के लोग’ नागरिकों के अंतिम अधिकार को स्थापित करते हैं तथा संसद उनकी आवाज़ के रूपमें कार्य करती है। उन्होंने कहाकि सर्वोत्तम रूपसे लोकतंत्र का विकास तब होता है, जब संवैधानिक संस्थाएं अपने अधिकार क्षेत्र का पालन करती हैं। उन्होंने कहाकि अब समय आ गया हैकि हम अपने मौलिक कर्तव्यों के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध हों और विश्व के मंच पर भारत की गूंज हो।