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संसद जनविश्वास का केंद्र बिंदु है-नरेंद्र मोदी

नई संसद जाने से पहले 75 साल की संसदीय यात्रा का स्मरण

प्रधानमंत्री का संसद के विशेष सत्र पर लोकसभा में संबोधन

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Monday 18 September 2023 06:28:59 PM

pm narendra modi

नई दिल्ली। नई संसद में जाने से पहले आज पांच दिनी विशेष सत्र की शुरुआत करते हुए पुरानी संसद के सदन लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की 75 वर्ष की संसदीय यात्रा का पुन: स्‍मरण किया और कहाकि हमसब इस ऐतिहासिक भवन से विदा ले रहे हैं, ये अवसर प्रेरक पलों को इतिहास की महत्‍वपूर्ण घड़ी को स्‍मरण करते हुए आगे बढ़ने का है। उन्होंने कहाकि आजादी के पहले ये सदन शाही विधान परिषद का स्‍थान हुआ करता था, आजादी केबाद संसद भवन के रूपमें इसको पहचान मिली। प्रधानमंत्री ने कहाकि ये सही हैकि इस इमारत के निर्माण करने का निर्णय विदेशी सांसदों का था, लेकिन ये बात हम न कभी भूल सकते हैं और हम गर्व से कह सकते हैंकि इसके निर्माण में पसीना हमारे देशवासियों का लगा, परिश्रम देशवासियों का लगा और पैसे भी देश के लोगों के लगे थे। उन्होंने कहाकि 75 वर्ष की हमारी यात्रा ने अनेक लोकतांत्रिक परम्पराओं और प्रक्रियाओं का उत्तम से उत्तम सृजन किया है, सदन में रहते हुए सबने उसमें सक्रियता से योगदान दिया है और साक्षी भाव से उसको देखा भी है। उन्होंने कहाकि हम भले ही नए भवन में जाएंगे, लेकिन पुराना भवन भी आनेवाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा, ये भारत के लोकतंत्र की स्वर्णिम यात्रा का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो दुनिया को भारत की रगों में लोकतंत्र के सामर्थ्‍य का परिचित कराने का काम इस इमारत से होता रहेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि अमृतकाल की प्रथम प्रभा का प्रकाश, राष्‍ट्र में एक नया विश्‍वास, नया आत्‍मविश्‍वास, नई उमंग, नए सपने, नए संकल्‍प और राष्‍ट्र का नया सामर्थ्‍य उसे भर रहा है, चारों तरफ आज भारतवासियों की उपलब्धि की चर्चा हो रही है और गौरव केसाथ हो रही है। उन्होंने कहाकि ये हमारे 75 साल के संसदीय इतिहास का एक सामूहिक प्रयास का परिणाम है, जिसके कारण विश्‍व में आज वो गूंज सुनाई दे रही है। प्रधानमंत्री ने चंद्रयान 3 की सफलता का जिक्र करते हुए कहाकि यह भारत की क्षमताओं का एक और आयाम सामने लाता है, जो आधुनिकता, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और हमारे वैज्ञानिकों के कौशल और 140 करोड़ भारतीयों की ताकत से जुड़ा है। प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिकों को उनकी उपलब्धि केलिए सदन और राष्ट्र की ओर से बधाई दी। उन्होंने याद किया कि कैसे सदन ने अतीत में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के शिखर सम्मेलन के समय देश के प्रयासों की सराहना की थी और अध्यक्ष द्वारा जी20 की सफलता की स्वीकृति केलिए आभार व्यक्त किया था। प्रधानमंत्री ने कहाकि जी20 की सफलता 140 करोड़ भारतीयों की है, किसी व्यक्ति विशेष या पार्टी की नहीं। उन्होंने भारत में 60 से अधिक स्थानों पर 200 से अधिक आयोजनों की सफलता को भारत की विविधता की सफलता की अभिव्यक्ति के रूपमें चिन्हित किया। उन्होंने समावेशन के भावनात्मक क्षण को याद करते हुए कहाकि भारत इस बात केलिए गर्व करेगाकि जब भारत जी20 का अध्यक्ष रहा, तब अफ्रीकन यूनियन इसका सदस्य बना।
भारत की क्षमताओं के बारेमें संदेह पैदा करने की कुछ लोगों की नकारात्मक प्रवृत्ति की ओर इशारा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि जी-20 घोषणापत्र केलिए सर्वसम्मति और भविष्य के लिए एक रोडमैप तैयार किया गया। इस बात पर जोर देते हुएकि भारत की जी-20 अध्यक्षता नवंबर के अंतिम दिन तक है और राष्ट्र इसका पूरा उपयोग करने का इरादा रखता है प्रधानमंत्री ने अपनी अध्यक्षता में पी-20 शिखर सम्मेलन (संसदीय 20) आयोजित करने के अध्यक्ष के संकल्प का समर्थन किया। प्रधानमंत्री ने कहाकि यह सभी केलिए गर्व की बात हैकि भारत ने 'विश्व मित्र' के रूपमें अपनी जगह बनाई है और पूरी दुनिया भारत को एक मित्र के रूपमें देख रही है, उसका कारण वेदों से लेकर स्वामी विवेकानंद तक से मिले हमारे संस्कार हैं और सबका साथ सबका विकास का मंत्र हमें दुनिया को अपने साथ लाने केलिए एकजुट कर रहा है। एक नए घर में स्थानांतरित होने वाले परिवार की उपमा देते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि पुराने संसद भवन को विदाई देना एक बहुत ही भावनात्मक क्षण है, इन सभी वर्षों में सदन में विभिन्न मनोभावों पर विचार करते हुए कहाकि ये यादें सदन के सभी सदस्यों की संरक्षित विरासत हैं, इसका गौरव भी हमारा है। उन्होंने कहाकि इस संसद भवन के 75 साल के इतिहास में देश ने नए भारत के निर्माण से जुड़ी अनगिनत घटनाएं देखी हैं और आजका दिन भारत के आम नागरिकों के प्रति सम्मान व्यक्त करने का अवसर है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस दिन को याद किया, जब पहली बार सांसद के रूपमें वे संसद आए थे और भवन को नमन किया था। उन्होंने कहाकि यह एक भावनात्मक क्षण था और वह इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते थे। उन्होंने कहाकि यह भारत के लोकतंत्र की शक्ति हैकि एक ग़रीब बच्चा जो रेलवे स्टेशन पर आजीविका कमाता था, वह संसद तक पहुंच गया, मैंने कभी नहीं सोचा थाकि देश मुझे इतना प्यार, सम्मान और आशीर्वाद देगा। प्रधानमंत्री ने संसद के गेट पर अंकित उपनिषद वाक्य का हवाला देते हुए कहाकि संतों ने कहा हैकि लोगों केलिए दरवाजे खोलो और गौर करोकि उन्हें उनका अधिकार कैसे मिलता है। नरेंद्र मोदी ने कहाकि सदन के वर्तमान और पूर्व सदस्य इस कथन की सत्यता के गवाह हैं। प्रधानमंत्री ने समय केसाथ सदन की बदलती संरचना पर प्रकाश डाला, क्योंकि यह अधिक समावेशी हो गया और समाज के सभी वर्गों के प्रतिनिधि सदन में आने लगे। उन्होंने कहाकि समावेशी माहौल लोगों की आकांक्षाओं को पूरी शक्ति से प्रकट करता रहा है। प्रधानमंत्री ने महिला सांसदों के योगदान के बारेमें बतायाकि इससे सदन की गरिमा बढ़ाने में मदद मिली है। प्रधानमंत्री ने कहाकि दोनों सदनों में 7500 से अधिक जन प्रतिनिधियों ने सेवा की है, जहां महिला प्रतिनिधियों की संख्या लगभग 600 रही है। उन्होंने यहभी बतायाकि इंद्रजीत गुप्ता ने इस सदन में लगभग 43 वर्ष तक सेवा की है और शफीकुर रहमान ने 93 साल की उम्र में सेवा की। उन्होंने चंद्रानी मुर्मु का भी जिक्र किया, जो 25 वर्ष की कम उम्र में सदन केलिए चुनी गईं थीं।
प्रधानमंत्री ने तर्क-वितर्क और कटाक्ष के बावजूद सदन में परिवार की भावना का जिक्र किया और इसे सदन का प्रमुख गुण बताया, क्योंकि कड़वाहट कभी नहीं टिकती। उन्होंने याद कियाकि कैसे गंभीर बीमारियों के बावजूद सदस्य महामारी के कठिन समय सहित अपने कर्तव्यों का पालन करने केलिए सदन में आए। एक ही सदन में 2 साल और 11 महीने तक संविधान सभा की बैठकों और संविधान को अपनाने और लागू करने के दिनों का स्मरण करते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि 75 वर्ष में सबसे बड़ी उपलब्धि साधारण व्यक्ति का उनकी संसद में बढ़ता विश्वास रहा है। उन्होंने कहाकि डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ एपीजे अब्दुल कलाम से रामनाथ कोविंद और द्रौपदी मुर्मु तक विभिन्न राष्ट्रपतियों के अभिभाषण से सदन लाभांवित हुआ है। प्रधानमंत्री ने पंडित जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के समय का स्मरण करते हुए कहाकि उन्होंने अपने नेतृत्व में देश को नई दिशा दी है और आज उनकी उपलब्धियों को सामने लाने का अवसर है। उन्होंने सरदार वल्लभभाई पटेल, राम मनोहर लोहिया, चंद्र शेखर, लाल कृष्ण आडवाणी और अन्य लोगों का भी जिक्र किया, जिन्होंने सदन में सार्थक चर्चा की और आम नागरिकों की आवाज़ को अभिव्यक्ति दी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन में विभिन्न विदेशी नेताओं के संबोधन को भी याद किया, जो देश के प्रति उनके सम्मान को प्रदर्शित करता है। उन्होंने पीड़ा के उन क्षणों को भी याद किया, जब देश ने तीन पदासीन प्रधानमंत्रियों-नेहरूजी, शास्त्रीजी और इंदिराजी को खो दिया था। प्रधानमंत्री ने कई चुनौतियों के बावजूद वक्ताओं द्वारा सदन के कुशल संचालन को भी याद किया। उन्होंने कहाकि उन्होंने अपने निर्णयों में संदर्भ बिंदु बनाए। उन्होंने याद कियाकि गणेश वासुदेव मावलंकर से सुमित्रा महाजन और ओम बिड़ला तक 2 महिलाओं सहित 17 अध्यक्षों ने सभीको साथ लेकर सदन की कार्रवाई को सुनियोजित ढंग से चलाने में योगदान दिया। प्रधानमंत्री ने संसद के कर्मचारियों के सराहनीय योगदान को याद किया। प्रधानमंत्री ने संसद पर हुए आतंकी हमले को याद करते हुए कहाकि यह इमारत पर हमला नहीं, बल्कि लोकतंत्र की जननी पर हमला था, यह भारत की आत्मा पर हमला था। प्रधानमंत्री ने उन वीरों के योगदान को स्वीकार किया, जो अपने सदस्यों की रक्षा केलिए आतंकवादियों और सदन के बीच अटल खड़े थे, उन्होंने संसद की रक्षा में जान न्यौछावर करने वाले बहादुरों को श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री ने उन पत्रकारों को भी याद किया, जिन्होंने नवीनतम तकनीक के उपयोग के बिना भी संसद की कार्यवाही की रिपोर्टिंग केलिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने कहाकि पुरानी संसद को विदा कहना उनके लिए और भी कठिन काम होगा, क्योंकि वे संसद से एक सदस्य के रूपमें ही नहीं, बल्कि इस प्रतिष्ठान से भावात्मक रूपसे जुड़े हुए हैं।
नाद ब्रह्म के अनुष्ठान पर प्रधानमंत्री ने कहाकि कोईभी स्थान अपने आसपास के क्षेत्र में निरंतर मंत्रोंच्चार से तीर्थ स्थली के रूपमें परिवर्तित हो जाता है, 7500 प्रतिनिधियों की गूंज ने संसद को तीर्थस्थल के रूपमें बदल दिया है, भलेही यहां चर्चाएं बंद हो जाएं। प्रधानमंत्री ने कहाकि संसद वह स्थल है, जहां भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने अपनी शौर्य और साहस से अंग्रेजों में दहशत पैदा कर दी थी। उन्होंने कहाकि पंडित जवाहरलाल नेहरू के 'स्ट्रोक ऑफ मिडनाइट' की गूंज भारत के प्रत्येक नागरिक को प्रेरणा देती रहेगी। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के प्रसिद्ध भाषण कोभी याद किया और कहाकि सरकारें आएंगी और जाएंगी, पार्टियां तो बनेंगी और टूटेंगी, यह देश बचना चाहिए, इसका लोकतंत्र बचना चाहिए। पहली मंत्रिपरिषद का स्मरण करते हुए उन्होंने याद कियाकि कैसे बाबासाहेब डॉ भीमराव आंबेडकर ने दुनियाभर की सर्वोत्तम प्रथाओं को शामिल किया था। उन्होंने नेहरू मंत्रिमंडल में बाबासाहेब द्वारा निर्मित उत्कृष्ट जल नीति का भी जिक्र किया। उन्होंने कहाकि बाबासाहेब ने दलितों के सशक्तिकरण केलिए औद्योगीकरण पर बल दिया। उन्होंने इस बात का भी स्मरण कियाकि कैसे डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी पहले उद्योग मंत्री के रूपमें पहली औद्योगिक नीति लाए थे।
प्रधानमंत्री ने कहाकि संसद में ही लाल बहादुर शास्त्री ने 1965 के युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों के उत्साह को बढ़ाया था। उन्होंने शास्त्रीजी की हरित क्रांति को भी याद किया। नरेंद्र मोदी ने प्रकाश डालाकि बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई भी इंदिरा गांधी के नेतृत्व में इसी सदन का परिणाम थी। उन्होंने आपातकाल के दौरान लोकतंत्र पर हमले और आपातकाल हटने केबाद लोगों की शक्ति के फिरसे उभरने का भी स्मरण किया। प्रधानमंत्री ने पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह के नेतृत्व में ग्रामीण विकास मंत्रालय के गठन को याद किय। प्रधानमंत्री ने कहाकि मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 इसी सदन की विशेषता रही। उन्होंने कहाकि उस समय पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में नई आर्थिक नीतियों और उपायों को अपनाया गया, जब देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था। उन्होंने अटलजी के सर्व शिक्षा अभियान, जनजातीय मामलों के मंत्रालय के गठन और परमाणु युग के आविर्भाव के बारेमें भी बात की, वोट के बदले नोट घोटाले का भी जिक्र किया। दशकों से लंबित ऐतिहासिक फैसलों को मंजूरी देने का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने अनुच्छेद 370, जीएसटी, वन रैंक वन पेंशन और गरीबों केलिए 10 प्रतिशत आरक्षण का मुद्दा उठाया। प्रधानमंत्री ने कहाकि यह सदन लोगों के विश्वास का साक्षी है और लोकतंत्र के उतार-चढ़ाव केबीच उस विश्वास का केंद्रबिंदु रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस समय कोभी याद किया, जब अटल बिहारी सरकार एक वोट से गिर गई थी। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों से पार्टियों के उद्भव होने को आकर्षण के एक केंद्र बिंदु के रूपमें बताया। प्रधानमंत्री ने अटलजी के नेतृत्व में छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड सहित 3 नए राज्यों के गठन पर प्रकाश डाला और तेलंगाना के गठन में सत्ता हथियाने के प्रयासों पर खेद जताया। उन्होंने कहाकि दोनों राज्यों में उत्सवों का आयोजन नहीं किया गया, क्योंकि विभाजन दुर्भावनापूर्ण इरादे से किया गया था। नरेंद्र मोदी ने याद कियाकि कैसे संविधान सभा ने अपना दैनिक भत्ता कमकर दिया था और कैसे सदन ने अपने सदस्यों केलिए कैंटीन सब्सिडी समाप्त कर दी थी, इसके अतिरिक्त संसद सदस्यों ने अपनी संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना निधि से महामारी के दौरान देश की मदद की और वेतन में 30 प्रतिशत की कटौती की। उन्होंने बतायाकि सदस्यों ने जन प्रतिनिधित्व कानून में बदलाव लाकर खुद को अनुशासित किया था। प्रधानमंत्री ने रेखांकित कियाकि सदन के वर्तमान सदस्य बेहद भाग्यशाली हैं, क्योंकि उन्हें अतीत को भविष्य केसाथ जोड़ने का अवसर मिला है, वे कल पुरानी इमारत को विदाई देंगे, आजका अवसर उन 7500 प्रतिनिधियों केलिए गौरवांवित क्षण है, जिन्होंने संसद दीर्घा से प्रेरणा हासिल की है। संबोधन का समापन करते हुए प्रधान मंत्री ने विश्वास व्यक्त कियाकि सदस्य बड़े जोश और उत्साह केसाथ नए भवन में पदार्पण करेंगे। उन्होंने ऐतिहासिक क्षणों का स्मरण करने का अवसर प्रदान करने केलिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को धन्यवाद दिया।

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