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कुश्ती संघ के चुनाव में कूदा लोकसभा चुनाव?

देश ने देखा था जंतर-मंतर धरने पर पहलवानों का नंगा नाच!

मीडिया चैनल भी इसमें फिर पक्षकार की तरह सक्रिय हुए

Tuesday 26 December 2023 12:55:58 PM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

kusti

नई दिल्ली। भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के गोंडा, बलरामपुर, कैसरगंज क्षेत्र की राजनीति में अपना दबदबा रखने वाले भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने यदि महिला पहलवानों का यौन शोषण किया है तो उसका कारण भी इन्हीं पहलवानों की शर्मनाक चुप्पी रही है। हाईकोर्ट के आदेश से बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दिल्ली के थाने में यौन शोषण का मुकद्मा दर्ज है, जिसपर कानून अपना काम कर रहा है, मगर यह बात अब किसी से छिपी नहीं हैकि इन आंदोलनजीवी पहलवानों ने भारतीय कुश्ती संघ पर भी अपना आधिपत्य स्थापित कर पहलवानों के चयन में मनमर्जी के मंसूबे पालकर कितने, कैसे समझौते और शर्मनाक हथकंडे अपनाए हैं और बहुत समय बाद यौन शोषण को प्रमुख आधार बनाया है, यह स्वत: ही इनके जंतर-मंतर पर आंदोलन से सिद्ध हुआ है। वास्तव में इन पहलवानों ने यौन शोषण के नाम पर जंतर-मंतर पर नंगा नाच ही किया है और अभी भी कर रहे हैं। क्या बात है, ये अपने बयानों में उन्हें सारे देश का समर्थन मिलने की बात करते हैं, जबकि उनका यह दावा सही नहीं है और यह सारे पहलवानों को न्याय का भी मुद्दा नहीं है। यह कुछ अनैतिक धंधेबाजों की भारतीय कुश्ती संघ पर येन-केन प्रकारेण आधिपत्य स्थापित करने की ही लड़ाई है। इसका एक पक्ष यह भी हैकि इसकी आग में फिर से घी डालकर बाकी कसर कुछ मीडिया चैनल पूरी करने आ गए हैं। आज जब खेल मंत्रालय ने भारतीय कुश्ती संघ के चुनाव को पूरी तरह रद्द किया है तो कुछ मीडिया चैनल फिर एक पक्षकार की तरह इसमें कूद पड़े हैं।
इसमें दो राय नहीं हो सकतीं कि बृजभूषण शरण सिंह खेल और अपनी राजनीतिक जीवनशैली में कोई दूध के धुले नहीं हैं, उनसे गंभीर विवादों का नाता है, मगर वो पहलवान भी अपनी फितरतों में कोई कम नहीं हैं, जिन्होंने न्याय के नाम पर बृजभूषण शरण सिंह पर गंभीर चारित्रिक आक्षेप लगाए हुए हैं और दिल्ली में जंतर-मंतर पर उनके खिलाफ भारतीय कुश्ती संघ से लेकर भाजपा तक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इन पहलवानों ने भारतीय कुश्ती संघ पर अपना आधिपत्य जमाने केलिए कोई भी कसर नहीं छोड़ी है। इन्होंने कांग्रेस सहित राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों का इसमें बेजा इस्तेमाल किया है, यही कारण हैकि ये पहलवान बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ अपने अभियान में विफल होते आ रहे हैं और उनका भारतीय कुश्ती संघ पर कब्जा करने का आखिरी दांव भी धराशायी हो गया है। भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और बाकी पदाधिकारियों के चुनाव में बृजभूषण शरण सिंह समर्थित संजय सिंह 'बबलू' भारी मतों से अध्यक्ष पद का चुनाव जीते और उनके खिलाफ खड़े कुश्ती के मसीहा कुछ ही वोटों पर सिमट गए। पराजय के बाद अब ये फिर बरसात के मेंढकों की तरह बाहर आ गए हैं और मीडिया के सामने रो रहे हैं, कह रहे हैंकि कुश्ती संघ में महिला अध्यक्ष होनी चाहिए थी। दरअसल इन पहलवानों का कोई एक एजेंडा नहीं है, इनके आका कोई और हैं, इन्हें जो पढ़ाया-सिखाया जाता है, वह यह कर रहे हैं। किसी से छिपा नहीं हैकि हरियाणा की राजनीति और जाट राजनीति में भाजपा के खिलाफ इनका इस्तेमाल किया जा रहा है।
दिल्ली में जंतर-मंतर पर बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ तूफान खड़ा करने वालों के सामने अब क्या बचा है? खेल मंत्रालय ने यह चुनाव रद्द कर दिया है और बृजभूषण शरण सिंह भी कुश्ती की राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा कर दी है। कुश्ती महासंघ के चुनाव में पहलवान साक्षी मलिक, बजरंग पुनिया, विनेश फोगाट ने पराजय के बाद फिर से कुश्ती से सन्यास लेने, राष्ट्रीय सम्मान पद्मश्री सरकार को वापस करने का एक भावनात्मक खेल खेला है। बजरंग पुनिया तो अपना पद्मश्री प्रधानमंत्री आवास के पास रखकर आया है। इन्हें लगता हैकि इससे ये पहलवान राजनीतिज्ञों और समाज की फिर से सहानुभूति अर्जित कर लेंगे, मगर बाकी खिलाड़ियों और देश की इस धारणा पर फिर से मुहर लग गई हैकि इन पहलवानों ने कुश्ती और देश की छवि को नुकसान पहुंचाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। इन्होंने जंतर-मंतर पर जिस तरह टुकड़े-टुकड़े गैंग से मोदी सरकार को गालियां दिलाईं। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी और उनके नेताओं ने पहलवानों और हरियाणा की खाप पंचायतों ने बृजभूषण शरण सिंह के विरोध के नाम पर भाजपा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को निशाना बनाया है। उसी समय लग गया थाकि ये पहलवान अब अपने लिए न्याय की लड़ाई हार गए हैं। इनका आंदोलन उन हाथों में चला गया, जिन्होंने सोचा थाकि इनसे नई संसद के उद्घाटन में बाधा पहुंचवाकर नरेंद्र मोदी अमित शाह और भाजपा को बुरी तरह घेर लिया जाएगा, जिससे भविष्य में इनका भारी नुकसान होगा, मगर यह हो न सका।
भारतीय कुश्ती संघ ही क्या और भी खिलाड़ी संघों की कोई उज्जवल स्थिति नहीं है। देश के क्रिकेट संघों का तो इससे भी बुरा हाल है, जिनके यहां टैलेंट सर्च और टैलेंट को खेलने का मौका देने केलिए उनसे पैसा और 'लड़कियों' की मांग की जाती है। इसके अनेक प्रमाण हैं, मगर सरकार में बैठे कुछ हुक्मरानों से इनकी मिलीभगत के कारण इन तत्वों पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाती है और खिलाड़ी घुट-घुटकर मरने या इन तत्वों के सामने समर्पण करने को मजबूर हैं। कई राज्यों के क्रिकेट में खिलाड़ियों के चयन में भ्रष्टाचार के परिणाम भी सामने हैं। उत्तर प्रदेश में तो निराशाजनक चयन और प्रदर्शन किसी से छिपा नहीं है। भारतीय कुश्ती संघ के तत्कालीन अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर कुछ पहलवानों के अगर गंभीर आरोप हैं तो उन्होंने कुश्ती को भी लोकप्रिय बनाया है, जिसे कभी कोई नहीं पूछता था। बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आज जो पहलवान खड़े हैं, वे भी बृजभूषण शरण सिंह के समर्थन और सहयोग से ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल पाए हैं और अब बिना ट्रायल के ही बुढ़ौती तक खेलना चाहते हैं। इन पहलवानों को गलतफहमी हो गई हैकि वे बाकी पहलवानों को अपनी अंगुलियों पर नचाएंगे, लेकिन माना जा रहा हैकि इन पहलवानों ने जो यश सम्मान कमाया था, वह अपनी हरकतों से पूरी तरह गंवा दिया है, जिसमें इनका भविष्य हमेशा केलिए समाप्त हो गया है।
सवाल हैकि ये पहलवान जब अपने मेडल और राष्ट्रीय सम्मान वापस करने की घोषणा कर चुके हैं तो मीडिया के सामने बार-बार इस नौटंकी को दोहराने की क्या जरूरत है? बृजभूषण शरण सिंह कह रहे थेकि देश और हरियाणा के पहलवान उनके साथ हैं, नहीं तो आंदोलनजीवी पहलवानों को भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष पद के चुनाव में केवल सात वोट नहीं मिलते। बृजभूषण शरण सिंह कुश्ती राजनीति से सन्यास की घोषणा कर चुके हैं, मगर जहां तक अध्यक्ष पद पर उनके समर्थित संजय सिंह के चुने जाने का सवाल है तो राजनीति में भी तो ऐसा होता आया है। किसी न किसी के पीछे कोई होता है, समर्थक होता है और वैसे भी इस प्रकार की प्रतिष्ठापूर्ण लड़ाईयां अकेले नहीं लड़ी जाती हैं। इसमें बृजभूषण शरण सिंह को घेरने केलिए क्या-क्या नहीं हुआ है, खेल मंत्रालय ने यह चुनाव ही रद्द कर दिया है, जिसके कारणों का यहां उल्लेख करने की जरूरत नहीं है, सब जानते हैं। बृजभूषण शरण सिंह ने भारतीय कुश्ती संघ के चुनाव में अपने करीबी संजय सिंह 'बबलू' को जितवाकर भारतीय कुश्ती संघ में अपना दबदबा तो दिखा दिया है, उसके आगे ओलंपिक पदक विजेता बुरी तरह हारे हैं। यह भी सच हैकि बृजभूषण शरण सिंह ने भले ही कुश्ती से सन्यास लेने की घोषणा कर दी है, तथापि आगामी वर्षों में भी कुश्ती की राजनीति इनके इर्द-गिर्द ही दिखाई देगी। सब समझ रहे हैंकि खेल मंत्रालय ने जो यह चुनाव रद्द किया है, उसके पीछे हरियाणा की खाप राजनीति है, जिसमें भाजपा नहीं चाहती हैकि लोकसभा चुनाव में इन पहलवानों की ये नौटंकी चलती रहे।
पहलवान साक्षी मलिक ने कुश्ती से यूं ही सन्यास का ऐलान नहीं किया है या पहलवान बजरंग पुनिया ने अपना पद्मश्री वापस करने की घोषणा की है या कुछ और लोगों ने भी यह नाटक किया है, ये सब जानते हैं कि जंतर-मंतर पर उनके कुकृत्यों से उनकी पहलवानी और खेल राजनीति का अंत हो चुका है। पहलवान बजरंग पुनिया ने भी क्या नौटंकी की है! उसने उसे 2019 में मिला पद्मश्री सम्मान प्रधानमंत्री निवास के बाहर ही रख दिया और यह कोशिश कीकि उसे कोई मनाने आएगा, मगर ऐसा नहीं हुआ। साक्षी मलिक और विनेश फोगाट रोकर सहानुभूति बटोरने की कोशिश करती हैं, मगर इनको नवोदित पहलवानों का कोई समर्थन नहीं रहा है, क्योंकि वो जानते हैंकि यदि ये कुश्ती संघ में पदाधिकारी चुनी गईं तो ये पहलवानों के साथ न्याय नहीं करेंगी, बल्कि अपनी दुकान चलाएंगी, जिसके लिए उन्होंने जंतर-मंतर पर नौटंकी की थी, जिस वास्तव में बृजभूषण शरण सिंह ने विफल किया है। महिला पहलवानों के यौन शोषण की कहानी बहुत पीछे छूट गई है और शायद ही कोई खिलाड़ी अब इस विषय पर मुंह खोलने की हिम्मत कर पाएगा। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकताकि यदि महिला पहलवानों का यह आंदोलन राजनीति और टुकड़े-टुकड़े गैंग के हाथों में नहीं जाता तो कदाचित पहलवानों के यौन शोषण के कथित आरोपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह का उसी समय राजनीतिक जीवन खत्म हो जाता, मगर उन्होंने अब कुश्ती से सन्यास लेकर इस विवाद पर विराम लगाने की कोशिश की है, जिसके चक्रव्यूह में ये जंतर-मंतर आंदोलनजीवी पहलवान फिर उलझ गए हैं।

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