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हॉकी के हत्यारे कौन?

अकेले गिल ही कैसे जिम्‍मेदार?

डी कुमार

हॉकी

नई दिल्ली। सौ करोड़ के भारत में हाकी ने दम तोड़ दिया है। अस्सी सालकी कमाई इस बार मिट्टी में मिल गई। बीजिंग में जब ओलंपिक खेल होंगे तो वहां भारतहाकी में नजर नहीं आएगा। हाकी भारत का राष्ट्रीय खेल है और भारत ने आठ बार ओलंपिकका गोल्ड और रजत पदक जीता है। आज वह हाकी ब्रिटेन के सामने क्वालीफाइंग मैच मेंभरभराकर गिर पड़ी। देश भर में जैसे शोक की लहर है और हाकी के हत्यारे मूछों पर तावदेकर घूम रहे हैं। एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने का और इस्तीफे देने का नाटक चलरहा है। विश्लेषक और पूर्व हॉकी खिलाड़ी, भारतीय हॉकी फेडरेशन के अध्यक्ष केपीएस गिल के पीछे हाथ धोकरपड़े हैं और वह उनसे हाकी की ऐसी दुर्दशा के लिए इस्तीफे की सलाह दे रहे हैं।फेडरेशन के उपाध्यक्ष नरेंद्र बत्रा ने क्वालीफाइंग मैच में पराजय के तुरंत बाद हीअपने पद से इस्तीफा देते हुए सारा गुस्सा गिल और भारत सरकार के खेल मंत्रालय परउतारा है। हाकी के जादूगर ध्यानचंद के वंशज अशोक ध्यानचंद भी कह रहे हैं कि बुराहुआ है और यह इसलिए है कि हाकी में दम नहीं रहा है। उन्होंने किसी पर आरोप लगानेके बजाय यही कहा है कि यह घटना शर्मनाक है कि भारत इस बार ओलंपिक में नहीं जापाएगा।
भारतीय हाकी का स्वर्णिम इतिहास यह कहता है कि जब तक हाकीखिलाडि़यों के हाथ में थी तब तक उसे कोई दूसरा देश छू नहीं पाया जैसे ही हाकीराजनीतिज्ञों, नौकरशाहों और खेल के नाम पर दलालों केहाथों में पहुंच गई हाकी अपना मूल खेल खो बैठी। जो लोग भारतीय हाकी फेडरेशन केअध्यक्ष केपीएस गिल को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं वह कितने दूध के धुले हुए हैं वहजरा इस पर भी सोचे। भारतीय हाकी पर किसी एक तरफ से हमला नहीं हुआ है इसके हत्यारेइसी के भीतर छिपे हैं। हाकी में घुसे गिरोहोबाजो ने इसे नौकरी पाने का ऐसा जरियाबनाया कि इसमें सभी ने हाथ धोने शुरू कर दिए। देश के किसी भी स्टेडियम में आप जाइएऔर वहां हाकी खेल रहे खिलाडि़यों से उनकी बात लीजिए तो उनका सबसे पहले यही उत्तरहोगा कि जब कहीं नौकरी नहीं मिल रही तो खेलों के जरिए नौकरी पाने से अच्छा कोईरास्ता नहीं है।
हाकी खेलने वालों में आज कितने खिलाड़ी हैं और कितने खिलाडि़योंके रिश्तेदार, नातेदार खेल रहे हैं इसका भी आंकड़ा सामनेआना चाहिए। हाकी के ओलंपिक खिलाड़ी केडी सिंह बाबू और ऐसे ही अन्य खिलाडि़यों केखानदान का कोई न कोई लड़का या लड़की हाकी का राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ीबनना चाहिए चाहे उसमें खेल की योग्यता हो या नहीं हो। एक बार शिखर पर पहुंचने केबाद कई अंतरराष्ट्रीय खिलाडि़यों ने हाकी छोड़ दी और हाकी के नाम पर नौकरी औरनौकरी में रहकर राजनीति शुरू कर दी। इसके एक नहीं बल्कि बहुत सारे उदाहरण हैं। ऐसेकई लोगों के नाम लिए जा सकते हैं जिन्होंने हाकी में केवल इसलिए प्रवेश किया किउन्हें उसके कोटे से केवल नौकरी चाहिए थी। स्टेडियम के हास्टलों में चयन कीप्रक्रिया का आधार क्या वास्तव में खेल की मेरिट है। यह जानने के लिए आप हास्टलमें जाइए और देखिए कि वहां कितने खिलाड़ी होनहार हैं और कितने जुगाड़ू हैं।
यह माना कि पारदर्शिता कोई आसान काम नहीं है और चयन कामापदंड निश्चित नहीं है, लेकिन यह जानना भी बहुत जरूरी है कि आखिरहाकी इतने पीछे किसलिए चली गई। क्या मैदान पर हाकी फेडरेशन के अधिकारियों औरप्रशिक्षकों को खेलना है? वहां केवल खिलाड़ी को खेलना हैजिसका चयन मेरिट पर किये जाने का दावा किया गया है। खिलाडि़यों के चयन पर इनवर्षों में जबरदस्त उंगलियां उठ रही हैं और हाकी के यह बेशर्म चयनकर्ता अपनेभाई-भतीजों से बाहर निकलने को तैयार नहीं है। भेदभाव की इंतहा हो गई है अब यह भीहोने लगा है कि टीम में जातिगत समीकरण का ध्यान रखा जाए। एक समय फेडरेशन पर जिसकाकब्जा है वह क्षेत्रवाद का शिकार है और चयनसमिति में जिसका दबदबा है वह खिलाडि़योंमें अपना भविष्य ढूंढने की फिराक में है। आखिर यह आरोप कहां से आया कि चयनसमिति केसदस्य खिलाड़ी को खिलाने के लिए सौदेबाजी करते हैं। ऐसा हुआ इसलिए इस तरह के आरोपसच्चाई में बदलते जा रहे हैं चाहे पुरुष हाकी टीम का मामला हो या महिला हाकी टीमकी बात हो। खिलाडि़यों को यदि खेलना है तो उन्हें अनचाहे समझौतों से भी गुजरनाहोगा।
देश के ओलिम्पयन खिलाडि़यों ने जैसे हाथ खड़े किए हुए हैं।उनकी दिलचस्पी हाकी से खत्म हो चुकी है। कई ओलिम्पयन ऐसे हैं जो अपने चेहरे दिखानेके लिए टीवी चैनलों पर मजमा लगाते हैं और अपने मन की भड़ास निकालकर फिर उसी ट्रैकपर वापस हो जाते हैं जिस पर उनके कारण हाकी दम तोड़ रही है। क्या ओलिम्पयन इस बातका जवाब देंगे कि सरकारी नौकरी में आने के बाद वह कितनी बार हाकी के नौनिहालों केलिए मैदान पर उतरे और उनके साथ हाकी खेली? अस्सी प्रतिशत सेज्यादा ऐसे खिलाड़ी हैं जो नौकरी पा गए और उन्होंने फिर मैदान की तरफ मुड़कर नहींदेखा। आज इनमें से कई हाकी की राजनीति में कीचड़ उछालने के अलावा दूसरा काम नहींकर रहे हैं। उत्तर प्रदेश से लेकर देश की राजधानी और देश के अन्य राज्यों तक केखिलाडि़यों के चेहरे रंगे सियार की तरह चमचमाते हैं और वह बेशर्मी से हाकी कीदुर्दशा पर भाषण देते हैं। यह अगर खेल विभाग में ही नौकरी पर आ गए हैं तो वहां भीगंदगी ही फैला रहे हैं। यहां किसी खिलाड़ी का नाम इसलिए नहीं लिया जा रहा है किइनमें एक हो तो उसकी चर्चा की जाए यहां तो आवा का आवा ही खराब है। बहुत सेओलिम्पयन आज इस दुनिया में नहीं है। यदि वह जिंदा होते तो आज के अपमान को देखकरउनका हार्टफेल हो गया होता। केपीएस गिल को जिम्मेदार ठहराने से पहले हाकी केपुरोधा अपने आप को देखें और देश के सामने हाजिर होकर अपने जुर्म को कबूल करें।राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने ऐसो के बारे में कहा है-

समर शेष है नहीं हिंस्र का दोषी केवल बाघ।
तो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध॥

यदि जंगल में बाघ हिंसा फैला रहा है और वह किसी वन्य प्राणीकी जान ले रहा है तो इसके लिए वह भी जिम्मेदार हैं जो बाघ को किसी प्राणी पर हमलाहोते देखने के बावजूद तटस्थ खड़े हैं। इसलिए इन तटस्थ लोगों को समय कभी नहींबख्शेगा।

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