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भारत के चौदहवें राष्ट्रपति कौन?

सुमित्रा महाजन और केशूभाई का भी नाम?

राष्ट्रपति पद के लिए 17 जुलाई को चुनाव

Thursday 8 June 2017 03:12:42 AM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

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नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिए यह पहला मौका है, जब उसका समर्थक प्रत्याशी भारत का राष्ट्रपति होगा। भाजपा ने अभी अपने प्रत्याशी का नाम स्पष्ट नहीं किया है, तथापि सांकेतिक रूपसे समझा जा रहा है कि हों न हों वे सुमित्रा महाजन हों जो इस समय लोकसभा अध्यक्ष हैं और देश में महिला सश‌क्तिकरण से लेकर एक सौम्य योग्य और राष्ट्रवादी जैसे गुणों से युक्त हैं। सबने देखा है कि वे कितने शानदार ढंग से लोकसभा की कार्रवाई का संचालन करती हैं और यदि उनका नाम भारत के राष्ट्रपति पद के लिए सामने आता है तो विपक्ष के सामने भी उन जैसा प्रत्याशी लाना मुश्किल ही होगा। यद्यपि भारतीय जनता पार्टी में लालकृष्‍ण आडवाणी एक प्रमुख नाम भी हैं, किंतु इस नाम के सामने दुर्भाग्य से अदालत में बाबरी विवाद विचाराधीन है और जो और भी नाम हैं, उनमें गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके केशूभाई पटेल भी हैं, जिनसे नरेंद्र मोदी एक तीर से कई निशाने लगा सकते हैं, बहरहाल घूमफिर कर सबसे बेहतर नाम सुमित्रा महाजन का सामने आ जाता है। सुमित्रा महाजन मध्य प्रदेश से आती हैं।
भारत के राष्ट्रपति पद पर इस समय कांग्रेस के दिग्गज़ नेता और कभी देश के प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में रहे प्रणब मुखर्जी विराजमान हैं, जो कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के प्रत्याशी के रूप में भारत के तेरहवें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे। प्रणब मुखर्जी का यह कार्यकाल बहुत अनुकरणीय माना जाता है, जिसमें उन्होंने अपनी योग्यताओं की और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारियों की अमिट छाप छोड़ी है। भाजपा गठबंधन भी ऐसे ही प्रत्याशी को लाना चाहता है, जिनमें भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्‍ण आडवाणी सबसे आगे थे, लेकिन तकनीकि स्थितियां उनके अनुकूल नहीं हैं। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन का नाम इसलिए दूसरे नंबर पर है, क्योंकि वे एक साथ कई विशेषताओं से समृद्ध हैं और जहां तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और पटेल समुदाय के दिग्गज़ नेता के रूप में विख्यात केशूभाई पटेल के नाम का सवाल है तो यह नाम इसलिए खास मायने रखता है, क्योंकि इससे भाजपा के कई सामाजिक और राजनीतिक फायदे भी जुड़े हैं। उंगली उठाने के लिए उनसे एक दो बातें जरूर जुड़ी हैं कि उनसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मतभेद भी हुए ‌थे, जो अब सामान्य रूप ले चुके हैं और दूसरे वे गुजरात के रहने वाले हैं और गुजरात से पहले से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हैं, किंतु केशूभाई पटेल से एक तो देश के कुर्मी समुदाय को यह संदेश दिया जा सकता है कि एनडीए ने पिछड़े वर्ग के नेता को राष्ट्रपति जैसे पद पर अवसर दिया है और दूसरे गुजरात में यह हवा चल सकती है कि भाजपा के अलावा अब किसी और को वोट नहीं मिलना है।
एनडीए गठबंधन यानी भाजपा के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार वास्तव में कौन होंगे, जल्द ही नाम सामने आ जाएगा। राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के पास जो नाम होगा, उस पर सर्वानुमति नामुमकिन है। पिछले चुनाव में पीए संगमा को विपक्ष का प्रत्याशी बनाया गया था, लेकिन सभी को पता था कि बहुमत यूपीए के प्रत्याशी प्रणब मुखर्जी के पास है, जो राष्ट्रपति निर्वाचित भी हुए। भारतीय जनता पार्टी के पास इस बार पहलीबार यह अवसर होगा, जब वह जिसको चाहेगी राष्ट्रपति बना सकती है, क्योंकि भाजपा गठबंधन के पास इसके लिए पूर्ण बहुमत है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही जानते हैं कि उन्होंने इस पद के लिए किनके लिए मन बनाया है और उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए घोषित प्रत्याशी के संबंध में क्या रणनीतिक प्राथमिकताएं निश्चित की हैं, 2019 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव का भी राष्ट्रपति प्रत्याशी से बड़ा गहरा संबंध होगा। यह तो सर्वविदित है और सुस्पष्ट है कि राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रणनीतियों में फिट बैठना चाहिए, उसके बाद उसकी बाकी विशेषताओं की गणना की जाएगी। बहरहाल यह एक तात्कालिक विश्लेषण है और देखना है कि इस पद पर भाजपा की क्या प्राथमिकताएं हैं।
राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल 24 जुलाई 2017 को समाप्‍त हो रहा है। संविधान के अनुच्‍छेद 62 के अनुसार राष्‍ट्रपति के कार्यकाल की अविध के समाप्‍त होने से पहले निवर्तमान राष्‍ट्रपति से उत्‍पन्‍न पद की रिक्‍तता को भरने के लिए चुनाव कराया जाना आवश्‍यक है। कानून में कहा गया है कि चुनाव की अधिसूचना निवर्तमान राष्‍ट्रपति के कार्यकाल के समाप्‍त होने से पहले 60वें दिन या उसके बाद जारी की जाएगी। संविधान के अनुच्‍छेद के अनुसार राष्‍ट्रपति एवं उपराष्‍ट्रपति चुनाव अधिनियम 1952 एवं राष्‍ट्रपति एवं उपराष्‍ट्रपति चुनाव नियम 1974 राष्‍ट्रपति पद के चुनाव के संचालन का निरीक्षण, निर्देश एवं नियंत्रण का दायित्‍व भारत के चुनाव आयोग पर है। भारतीय चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करने का अधिदेश है कि राष्‍ट्रपति पद, जोकि देश में सर्वोच्‍च निर्वाचक पद है, का चुनाव निष्‍पक्ष तरीके से हो। चुनाव आयोग अपनी संवैधानिक जिम्‍मेदारी के निर्वहन के लिए सभी आवश्‍यक कदम उठा रहा है। राष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्‍य और राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्‍ली एवं केंद्र शासित प्रदेश पुद्दुचेरी समेत सभी राज्‍यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्‍य करते हैं। राज्‍यसभा और लोकसभा या राज्‍यों की विधानसभाओं के नामांकित सदस्‍य निर्वाचक मंडल में शामिल होने के पात्र नहीं होते हैं, इसलिए वे इस चुनाव में भाग लेने के ‍हकदार नहीं होते हैं, इसी प्रकार विधानपरिषदों के सदस्‍य भी राष्‍ट्रपति चुनाव के मतदाता नहीं होते हैं।
संविधान के अनुच्‍छेद 55 (3) में प्रावधान है कि चुनाव एकल हस्‍तांतरणीय वोट से समानुपातिक प्रतिनिधित्‍व की प्रणाली के अनुरूप किया जाएगा और ऐसा चुनाव गुप्‍त मतदान के जरिए संचालित किया जाएगा। इस प्रणाली में निर्वाचक उम्‍मीदवार के नाम के आगे वरीयता चिन्हित करेंगे। चुनाव में मार्किंग के लिए चुनाव आयोग विशिष्‍ट पेन का उपयोग करेगा। चुनाव आयोग केंद्र सरकार के परामर्श से निर्वाचन अधिकारी के रूप में बारी-बारी से लोकसभा एवं राज्‍यसभा के महासचिव की नियुक्ति करता है। इसीके अनुरूप वर्तमान चुनाव के लिए निर्वाचन अधिकारी के रूप में लोकसभा के महासचिव की नियुक्ति की जाएगी। चुनाव के लिए मतदान संसद भवन में तथा राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्‍ली एवं केंद्र शासित प्रदेश पुद्दुचेरी समेत राज्‍यों की विधानसभाओं के परिसरों में आयोजित किया जाएगा। भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त ने अधिसूचित कर दिया है कि 17 जुलाई को भारत के राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होगा, जिसके अंतर्गत 14 जून को अधिसूचना जारी होगी, नामांकन 28 जून तक होंगे और जरूरत हुई तो 17 जुलाई को वोटिंग होगी, जिनकी 20 जुलाई को गिनती होगी। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि राष्ट्रपति चुनाव में आम आदमी पार्टी के वो विधायक वोट दे सकेंगे, जिनके विरुद्ध नियमविरुद्ध लाभ का पद हांसिल करने का मामला विचाराधीन है।

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