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पर्यटक पूछते हैं कि हल्दीघाटी किधर है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नया भारत ऐसे ही बनेगा?

महाराणा प्रताप की जयंती पर रस्मों की अदायगी

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Sunday 28 May 2017 05:24:21 AM

haldighati

खमनोर (राजसमंद)। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप भारतवर्ष की जनता के वीरता, राष्ट्रवाद और देशभक्ति के परम आदर्श हैं, किंतु देशवासियों को यह जानकर बड़ी निराशा होगी, कि देश के इस महान योद्धा की उनके द्वारा बड़ी उपेक्षा होती आ रही है, जिनको सरकार ने इनकी जन्मभूमि से लेकर इनके युद्धक्षेत्र तक और इनके पराक्रम की गाथाओं को सहेजकर रखने की जिम्मेदारी दी हुई है और यही नहीं, इस सबके रखरखाव के लिए भारी बजट भी दिया है, इसके बावजूद महाराणा प्रताप की जयंती हरसाल एक रस्म अदायगी रह गई है और हल्दीघाटी एवं महाराणा से जुड़े अन्य ऐतिहासिक स्‍थान बदहाली को प्राप्त होते जा रहे हैं। महाराणा प्रताप को अपना आदर्श मानने वाले या उनके युद्धक्षेत्र हल्दीघाटी को उत्सुकता से देखने की तमन्ना से पर्यटक जब वहां पहुंचते हैं, तो उनका सारा उत्साह चकनाचूर हो जाता है और वे ठगे से रह जाते हैं।
सोचिएगा कि जिस वीर की धरा के स्पर्श मात्र से वीरता के जोश का एहसास होना चाहिए, वहां पहुंचकर पर्यटक यदि राहगीरों से पूछें कि हल्दीघाटी किधर है, तो किसका अपमान हुआ? आप क्या कहेंगे और इसके लिए कौन जिम्मेदार हैं? प्रचंड पराक्रमी म‌हाराणा प्रताप और उनकी हल्दीघाटी के साथ ऐसा ही होता आ रहा है। जी हां, यहां का पर्यटन प्रबंधन ध्वस्त है और महाराणा की वीरता मानो आज यहां क्रंदन और चीत्कार कर रही है। भारत सरकार से लेकर स्‍थानीय प्रशासन के दावे और कार्यक्रम उल्टे उनके मुह पर तमाचे से कम नहीं हैं, भला हो यहां के नवयुवकों और कुछ ही संस्‍थाओं का, जिन्होंने महाराणा प्रताप की यादों को किसी न किसी रूप में जीवंत बनाए रखा है, जो अपने विविध कार्यक्रमों के माध्यम से इस परमवीर के आज भी जिंदा होने का एहसास कराते हैं, मगर जहां तक पर्यटन विभाग और सरकार की जिम्मेदारियों और कार्यप्रणाली का सवाल है तो उनपर बात क‌रते हुए ग़ुस्सा ही फूटता है।
भारत सरकार पर्यटन और ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बड़ी-बड़ी योजनाएं चला रही है, परंतु ये योजनाएं टीवी या कुछ अखबारों में विज्ञापनों में दिखती हैं और छूमंतर हो जाती हैं। इन योजनाओं की जानकारी आमव्यक्ति तक सम्पूर्ण रूपसे पहुंच ही नहीं पाती हैं। केंद्रीय पर्यटन मंत्री की मौजूदगी में गत वर्ष यहां राज्यस्तरीय महाराणा प्रताप जयंती के आयोजन से हल्दीघाटी के विकास की आस जगी थी, लेकिन इस राष्ट्रीय स्मारक की आरक्षित भूमिपर नाले को मूंदकर उसपर अतिक्रमण देखकर कोई भी ग़ुस्सा खा सकता है। राजसमंद जिले के ग्रामीण पर्यटन क्षेत्र में महाराणा प्रताप के जन्मस्थल कुम्भलगढ़ और रणभूमि हल्दीघाटी एवं मृणकला केंद्र मोलेला का आकर्षण बढ़ाने के उद्देश्य से वर्ष 2001 में उदयपुर के दरबार हाल और शिल्पग्राम में अंतरराष्ट्रीय स्तर का भारत में ग्रामीण पर्यटन विषय पर पर्यटन मंत्रालय और उदयपुर चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के सहयोग से संगोष्ठी एवं प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था, जिसके तहत कुम्भलगढ़, हल्दीघाटी आदि स्थलों का कई विशिष्ट जनों ने भ्रमण भी किया था, किंतु उस भ्रमण और गोष्ठी की सार्थकता धरी की धरी रह गई।
महाराणा प्रताप से जुड़े स्‍थलों पर 16 वर्ष बाद भी पर्यटन प्रबंधन पर्यटकों को वहां की जानकारियां देने और उन्हें आकर्षित करने तक में पूरी तरह विफल दिखाई देता है। केंद्रीय पर्यटन मंत्री और राज्यपाल भी अपनी हल्दीघाटी यात्रा के दौरान यहां की सारी वस्तुस्तिथि से अवगत हो चुके हैं, मगर नतीजा आज भी सिफर है। हल्दीघाटी का पर्यटक, रक्त तलाई से लेकर राष्ट्रीय स्मारक तक सूचना पट्ट पर उपलब्ध जानकारी पर ही निर्भर है। चेतक गेस्ट हाउस बंद है तो राष्ट्रीय स्मारक का संचालन भी 2009 से ही पूंजीपतियों के संस्थान में निजी स्वार्थ से बाधित है। यहां के इतिहास की जानकारी निजी व्यापारी की दुकान बन गई है। सरकारी उपेक्षा के चलते पर्यटक महाराणा प्रताप के युद्ध स्थल की वास्तविकता से वंचित होकर बलीचा में चल रहे व्यावसायिक प्रदर्शन केंद्र में जाकर अपने को ठगा सा महसूस करते हैं। मोलेला जैसे विश्वविख्यात मूर्तिकला के केंद्रों तक आम पर्यटक नही पहुंच पा रहे हैं, हल्दीघाटी का दर्रा और मुख्य रणधरा रक्त तलाई स्थित रक्त का ताल पूरी तरह उपेक्षित दिखाई देते हैं। सरकार की कथनी और करनी में कितना अंतर है, इसे यहां आकर देखा जा सकता है।
हल्दीघाटी आने वाले पर्यटक खमनोर बसस्टैंड पर खड़े राहगीरों से पूछते हैं कि हल्दीघाटी किधर है? उन्हें एक ही जवाब मिलता है कि तीन किलोमीटर आगे। आलम यह है कि राहगीर भी हल्दीघाटी रणक्षेत्र के छह किलोमीटर दायरे में फैला होने और रक्त तलाई, जहां महाराणा प्रताप का मुगल सेना के साथ घमासान हुआ था, उसके बारे में भी कोई खास जानकारी नहीं दे पाते हैं। पर्यटक महाराणा के मूलस्थल पर आकर भी बलीचा में संचालित निजी मूर्तियों की दुकान में 100 रुपए देकर नीरसता भरी आधी-अधूरी जानकारी प्राप्त करके लौट जाता है। ग्रामीण पर्यटन में रक्त तलाई, शाहीबाग, मूल दर्रे स्मारक के नज़दीक रोज़गार की काफी संभावनाएं हैं, मगर यहां का पर्यटन बस जनता की जागरुकता पर निर्भर है। बहरहाल महाराणा प्रताप जयंती समारोह धूमधाम से मनाया जा रहा है, फ़ोटो खिंचवाए जा रहे हैं, बड़ी-बड़ी आदर्शवादी और स्वाभिमानी बातें कही जा रही हैं, किंतु यहां के कड़वे सच ने वीर महाराणा प्रताप के तेज को ढका हुआ है। भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी और प्रातःस्मरणीय महाराणा प्रताप को पहचान दिलाने वाली धरोहर हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप जयंती समारोह महज औपचारिक और स्थानीय मनोरंजन का साधन बन गया है।
महाराणा प्रताप राष्ट्रीय स्मारक, चेतक समाधि से रक्त तलाई तक फैली हल्दीघाटी की पावन धरा आज विकास और पर्यटन से दूर जाती दिख रही है। हल्दीघाटी युद्ध की तिथि 18 जून है, जिसपर हल्दीघाटी पर्यटन समिति, प्रेस क्लब, जय हल्दीघाटी नवयुवक मंडल और बाकी नवयुवक मंडलों के सहयोग से इस उम्मीद से दीपांजलि का आयोजन जारी है कि आज नहीं तो कल सरकार इस रणधरा पर चल रहे भ्रष्टाचार को मिटाएगी और इससे देश के युवाओं में महाराणा जैसी देशभक्ति और पराक्रम का संचार करेगी। हल्दीघाटी पर्यटन समिति संस्थापक कमल मानव का इस विषय पर कहना है कि पुरातत्व महत्व के स्थलों, कला, संस्कृति का संरक्षण होने के साथ ही पर्यटन विभाग को अपनी जिम्मेदारियों को सही ढंग से निभाना होगा, जिससे भारत में ग्रामीण पर्यटन क्षेत्र की योजनाओं की जानकारी आम ग्रामीणों तक को हो और हल्दीघाटी तक आने वाले पर्यटकों को उत्साहपूर्वक युद्धस्थल पर पहुंचने पर अपने महान राष्ट्रवादी योद्धा महाराणा से जीवंत मुलाकात का एहसास हो, जिसके लिए युद्धतिथि के आयोजन को पूरा महत्व मिलना चाहिए।
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की 477वीं जयंती पर पंचायत समिति खमनोर ने तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया है, जिसमें जय हल्दीघाटी नवयुवक मंडल के सहयोग से महाराणा प्रताप की भव्य शोभायात्रा ‌निकाली गई। समारोह में सांसद हरिओम सिंह राठौड़, विधायक कल्याणसिंह चौहान, जिला प्रमुख प्रवेश सालवी, जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, पंचायत समिति के जनसेवक आदि शामिल हुए और विविध साहसिक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से महाराणा प्रताप की वीरगाथाओं को याद किया गया है। प्रश्न है कि आज जब पूरा भारतवर्ष अपने अभिन्न-अंग जम्मू और कश्मीर राज्य से चल पड़ी राष्ट्रवाद की जोत के साथ चलकर अपनी सेना का मनोबल बढ़ा रहा है, अपने देश के वीरों के पराक्रम और उनके वीरतापूर्ण स्‍थलों को विकसित करने में लगा है, तब हम महाराणा प्रताप और उनकी जन्मभूमि और उनकी रणभूमि के साथ ये क्या कर रहे हैं? पर्यटन विभाग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नया भारत ऐसे ही बनाएगा?

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