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जय श्रीराम के उद्घोष से गूंजा नीदरलैंड

भारतवंशियों ने बनवाया भव्य मंदिर श्रीराम धाम

नीदरलैंड में भगवान श्रीराम के प्रति गहरी आस्‍था

Friday 7 April 2017 01:36:40 AM

प्रो. पुष्पिता अवस्थी

प्रो. पुष्पिता अवस्थी

shriram dham mandir at amsterdam

एम्सटर्डम (नीदरलैंड)। भारतीयों की आध्यत्मिक चेतना के चरमोत्कर्ष और परम आराध्य, युगयुगांतर से सत्य, धर्म नीति, त्याग और मर्यादा के सर्वोच्च मानदंड स्‍थापित कर जनमानस में सर्वदा के लिए अपनी कीर्ति को अमर करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का सात समंदर पार नीदरलैंड में भी उद्घोष हो रहा है। जी हां, विश्वास भाव आस्‍था का जनक है, आस्‍थाएं सृजन की जननी हैं और सृजन अनंत एवं अविनाशी है, अलौकिक है और संसार को सीमा रहित बनाता है। इस मान्यता के प्रतिमान ऐसे ही महान दृढ़ प्रतिज्ञ महानायकों ने ही स्‍थापित किए हैं, जिनकी सदियों में भी वर्तमान है और भविष्य भी सुनहरे जीवन से आच्छादित है। नीदरलैंड ने भी विश्व के लिए अनुकरणीय आदर्श भगवान श्रीराम के प्रति आत्मिकभाव प्रकट किए हैं, जिसके फलस्वरूप नीदरलैंड के अम्‍स्टर्डम शहर के हाईवे के बगलगोर अपकाउडो स्‍थान पर श्रीराम धाम में गत पांच वर्ष से रामधुन गूंज रही है, जिसका निनाद चारों दिशाओं में है।
नीदरलैंड ऐसा देश है, जहां आर्यसमाजियों और सनातनियों के कई उपासना स्‍थल हैं, जहां हिंदू धर्म औैर भारतीय संस्कृति की अपनी तरह से साधना होती है। सूर्यास्त की बेला से ही भक्तगण श्रीराम धाम मंदिर में सपरिवार सूर्यवंशी श्रीराम के जीवन चरित्र का सरस संगीतमय बखान सुनने के लिए एकत्रित हो जाते हैं, जहां राम संस्कृति के अद्भुत दर्शन होते हैं, जिसमें श्रद्धालुजन अपने चित में विलक्षण परिष्कार का सुख अनुभव करते हैं। 'कलयुग केवल राम आधारा जहिं डूबे तहिं उतरहिं पारा।' वस्तुतः रामचरितमानस की चौपाईयां मनुष्य के मन मस्तिष्क में संपूर्णता और सुरक्षा प्रदान करती हैं और जब इनका गुणगान मंदिरों में विद्मान जन समूह में हो तो वातावरण आगाध भक्तिमय हो जाता है। मंदिर होते ही इसलिए हैं, ताकि मनुष्य को आत्मकेंद्रित होने में तनिक भी व्यवधान न हो, क्योंकि उस समय सभी का मन मस्तिष्क अपने आराध्य की लीला में लीन होता है, नीदरलैंड में यह वंदन का आत्मिक अनुभव और वातावरण अत्यंत मनभावन है और भक्तगण ऐसी चिंताओं से मुक्त होकर अपने आराध्य में लीन हो जाते हैं, जो उनके बाह्य सुरक्षापक्ष से जुड़ी होती हैं।
आध्यात्मिक चेतना के चरम को प्राप्त करने के लिए भी किसी भी प्रकार के विघ्न से निश्चिंत होना आवश्यक है और यह नीदरलैंड में दिखाई देता है, जहां सभी को अपने-अपने धर्मों को अपने धर्मस्‍थलों पर निर्भय और स्वतंत्रता के साथ चिंतन मनन और दर्शन की आजादी है। यदि हम अपने भारत में उपासना पद्धति की स्वतंत्रता का पक्ष देखें तो यह बहुत विलक्षण है और भारत को महान राष्ट्र बनाता है, मगर एक पक्ष बहुत कमजोर है, जिसमें, भारतीय मंदिरों में सभी के मन मस्तिष्क पर इष्ट के दर्शन निमित्त अनेक मुश्किलों और बाधाओं का सामना करना होता है। ख्याति प्राप्त भारतीय मंदिरों में प्रहरी की तरह खड़े पं‌डित-पंडे जब तुरंत आगे बढ़ने के लिए धकियाते हुए आदेश देते हैं या मंदिरों में सुरक्षा के नाम पर यही कर्म पुलिसकर्मी करते दिखाई देते हैं, तो भक्तों को ईश्वर के आशीष की जगह धक्का-मुक्की की पीड़ा झेलनी पड़ती है, जिसकी मार तन पर ही नहीं, बल्कि मन-मानस पर भी नकारात्मक चिन्ह बनाती है, जगह-जगह लिखा होता है-अपने सामान की सुरक्षा स्वयं करें, जेबकतरों से सावधान! जोकि भक्ति से सराबोर मन को कहीं भीतर तक आहत करता है, मगर यहां ऐसा नहीं है। नीदरलैंड के जनजीवन में सभी के लिए सुरक्षा और स्वतंत्रता और विभिन्न पद्धतियों में आध्यात्मिक चेतना का पक्ष बहुत मजबूत है, तभी यहां पर भव्यरूप से श्रीराम धाम का निर्माण हुआ है।
एम्सटर्डम में नीदरलैंड के अन्य मंदिरों की तरह तीन से पांच घंटे तक श्रीराम धाम मंदिर में दर्शन, भजन, कीर्तन, प्रवचन और आरती का समा बना रहता है। शब्दों का अर्थ जाने बिना भी भक्तों के भीतर सारे अर्थ सहसा खुल जाते हैं, जिसके प्रकाश में उनका चेहरा झिलमिलाने लगता है। यहां प्रवासी भारतीयों, सूरीनामी हिंदुस्तानियों के साथ-साथ डच और नीग्रो भक्तों का भी जमावड़ा रहता है, जो पंडित रामदेव कृष्‍ण के सहयोग से डच भाषा में अर्थ अनुवाद किए हुए रामचरितमानस की रोमन लिपि की पंक्तियों को मंदिर के व्यास और रामचरितमानस के सरस गायक आचार्य सुरेंद्र उपाध्याय से विभोर होकर श्रवण करते हैं और उनके साथ भक्ति आनंद में डूबकर गाते हैं। उस सांझ के लिए वे दुख, तनाव और संघर्ष की पीड़ा से स्वयं को मुक्त अनुभव करते हैं। उनके चेहरों पर संतोष की चमक दिखती है। विश्व हिंदू परिषद से संबद्ध नीदरलैंड हिंदी परिषद से जुड़कर श्रीसनातन धर्म नीदरलैंड के तत्वावधान में वर्षभर आयोजनों की गतिविधियां सक्रिय रहती हैं, जिसमें सूरीनामी हिंदु‌स्तानी सविता जगलाल सचिव का कार्य संभालती हैं तो हान्स और प्रेम सांद्रा पांडेय अन्य व्यवस्‍थाओं और जनसंपर्क का विशिष्ट काम करते हैं।
श्रीराम चरितमानस का नीग्रो बाला योहाना पर बड़ा ही प्रभाव है। वह राम की भ‌क्ति में झूमते हुए और राम-राम जपते हुए श्रीराम मंदिर की स्वच्छता का भी भरपूर ख्याल रखती हैं। नीदरलैंड में इस तरह है श्रीराम भजन में लीन भक्तों का यह वैश्विक समुदाय, जहां विभिन्न देशों और संस्कृति तथा भाषा के लोग श्रीराम संस्कृति के सागर में गोते लगाते हुए भेदों से मुक्त हो जाते हैं। वासंतीय नवरात्र में यहां भक्तों का तांता लगा रहा। रामनवमी की छटा देखते ही बन रही थी, जिसका असर यथावथ है। मंजीरा बजाते हुए और रामलीला का बखान करने में निमग्न पंडित सुरेंद्र शंकर की हर्षित मुद्राएं देखने को राम भक्तों की भीड़ उमड़ी हुई थी। वे रामभक्ति का आनंद महसूस कर रहे थे। नवरात्र में आचार्यजी ने साहित्यकार नरेंद्र कोहली का सादर स्मरण करते हुए उनकी 'तोड़ो कारा तोड़ो' (विवेकानंद) और 'अभ्युद्य' कृतियों की विशिष्ट चर्चा की और उन पुस्तकों के महात्म्य का भी बखान किया।
नीदरलैंड में मानस-सेतु नाम से त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन होता है, जिसमें लोगों को मानस को जोड़ने वाली शक्तियों के स्रोत को प्रकट होने से बड़ा ही संतोष मिलता है, जिसमें एक साथ डच और हिंदी भाषा में वैश्विक भक्ति और संस्कृति के भक्तों, साधकों और विद्वानों के आलेख प्रकाशित होने की योजना है, क्योंकि भगतिहिं ग्यानहिं नाहिं कछु भेदा, उभय हरहिं भव संभव खेदा। इसके संपाद‌कीय में आचार्य सुरेंद्र शंकर उपाध्याय ने भक्तों का आह्वान करते हुए जयघोष किया है कि धर्म का मूल उद्देश्य है-जोड़ना, इसलिए गुरू विश्वामित्र ने श्रीराम को धरम सेतु पालक तुम प्राता कहा है। दो वर्ष पूर्व रामचरितमानस के रोमन लिपि के साथ डच भाषा में सरल अनुवाद सहित पुस्तक तैयार हुई, जिसे डच भाषी तथा दूसरी जाति के लोग डच और अंग्रेजी भाषा अनुवाद के साथ रमकर श्रीराम को पढ़ते, गुनते हैं। अंग्रेजी भाषा में अनुवाद के साथ पंडित सुरेंद्र शंकर उपाध्याय और अन्य सहयोगी विद्वान हिंदी भाषा में अन्य कृतियों का उदाहरण देकर विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं। भजन कीर्तन और व्याख्यानों के उपरांत सब मिलकर आरती करते हैं। प्रसाद उपलब्‍ध हो जाने से पूर्व कुर्सी की पंगत में बैठकर सभी भक्तगण मंदिर में ही तैयार हुए भोजन को ग्रहण करते हैं।
यह है धर्म आध्यात्म से ओतप्रोत जीवनशैली का विराट संगम। यही जीवन का चरमोत्कर्ष भी है, जिसमें ना भेद न जाति और न छोटे-बड़े का भान होता है। भजन के दौरान भक्तों के हाथों में भजन की पुस्तिकाएं होती हैं, जिसमें संस्कृत हिंदी के श्लोक भजन देवनागरी लिपि के साथ रोमन लिपि में भी लिखे रहते हैं। आंखों के सामने शब्द होते हैं‌, जबकि मन सहज ही अर्थ में लीन हो जाता है। प्रतिदिन भक्तों की संख्या सौ से दो सौ के बीच रहती है। हिंदी भाषा और श्रीराम संस्कृति के प्रर्वतक गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस ही भजन कीर्तन और प्रवचन का आधार रहती हैं-'सीताराम चरित अति पावन मधुर सरस अरु अति मन भावन।' इसमें भारतीय संस्कृति बनाम मानव संस्कृत‌ि के गुणसूत्र प्रचारित होते हैं, जो मन मानस के परिष्कार सूत्र सिद्ध होते हैं। श्रीराम धाम मंदिर के पंडित आचार्य सुरेंद्र शंकर उपाध्याय भक्तों में भक्ति का तन्मय उन्माद जगाते हैं, जिसमें दृश्योगियों के अनहद नाद का सगुण आनंद शामिल रहता है। हिंदी भाषा से दोहा चौपाई की संगीतमय व्याख्या हिंदी भाषा के प्रचार में संलग्न है।
श्रीराम धाम एक भव्य मंदिर होने के साथ-साथ हिंदी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार की पाठशाला भी है, जहां विभिन्न जाति-भाषा देश के लोग आपस में मिलकर एक हो जाते हैं, क्यों‌कि श्रीराम की संस्कृति एकाकी संस्कृति की घोतक है, जिसके माध्यम से भारतीय संस्कृति की वैश्विक गुणवत्ता उद्घाटित होती है, जिसे हान्स और योहाना जैसे भक्त आचार्य सुरेंद्र शंकर उपाध्याय को मन से एक ओर पापा कहकर उन्हें अपना ईश्वरीय संरक्षक मानते हैं तो दूसरी ओर मानस स्तर पर उन्हें अपना गुरू मानकर अपने जीवन का मार्गदर्शक स्वीकार करते हैं। हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन से जुड़े श्रीराम धाम का लक्ष्य है-परहित सरिस धरम नहीं भाई। आस्‍था किसी भी मनुष्य और प्राणीमात्र का रोम-रोम में समाया हुआ वह तत्व है, जो निःस्वार्थ जीवनशैली की विरासत है, अपने और पराए की कसौटी पर खरा उतरा भाव है। मैं भारतवर्ष में जन्मीं हूं, जिसकी तमाम भेदों से दूर विश्वविख्यात धर्म आध्यात्म संस्कृति, उपासना, पावन प्रेम और सौहार्द जैसा कहीं और वर्णन नहीं मिलता। मुझे गर्व है कि मैं यहां भी इसकी भागीदार बनकर इसको फलते-फूलते देख रही हूं। नीदरलैंड में स्‍थापित श्रीराम धाम मंदिर का पुण्य प्रताप और आशीर्वाद सभी को प्राप्त हो।

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