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आगरा में उठी आवाज़ 'ककरेठा गोदी बचाएं'

ककरेठा गोदी है 1875 के भारत का नहर परिवहन तंत्र

गोदी पर एकत्र हुए आगरा के नदी एवं पर्यावरण प्रेमी

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 22 March 2017 04:14:05 AM

kakretha dockyard in agra

आगरा। आगरा शहर के नदी एवं पर्यावरण प्रेमी ऐतिहासिक ककरेठा गोदी डबल फाटक की दयनीय स्थिति पर बहुत चिंतित हैं। उन्होंने आज उसी स्थल पर एकत्रित होकर आगरा शहर के लिए इस नदी के महत्व, योगदान और आगे भी उसकी वैसी ही उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए तत्काल उसके संरक्षण के उपाय करने की आवाज़ उठाई। इस अवसर पर जागरुक कार्यक्रम की अध्यक्षता पर्यावरणविद् ब्रिज खंडेलवाल ने की। गौरतलब है कि ककरेठा गोदी 1875 के भारत के नहर परिवहन तंत्र की ऐसी हकीकत है, जो आज सिर्फ इतिहास और आगरा का सपना बनकर रह गई है। यह उस वक़्त के वास्तविक महत्व की एक मात्र नहर है, जो यमुना से कुल आठ मील दक्षिण दिल्ली में ओखला में उसके हाथों की मानिंद हुआ करती थी।
इतिहास बताता है कि सन् 1864 के वक़्त जब आगरा, मथुरा और गुड़गांव क्षेत्र के कुओं का पानी काफी नीचे चला गया और खारा हो गया था, सिंचाई के योग्य भी नहीं रहा था, उस वक़्त पानी की अप्रिय स्थिति से बचने के लिए इसका खुदना घोषित किया गया और कार्य मार्च 1891 में पूर्ण हुआ। यह नहर इन क्षेत्रों की जीवनदायनी कहलाई, मगर आज यह सिर्फ गंदे पानी का नाला है, जिसमें 1875 का लगा हुआ एक पत्‍थर ही देखने को बचा हुआ है। यह नहर जोधपुर में आगरा, मथुरा जिलों की सीमाओं पर समाप्त होती है और यहीं से ये तीन हिस्सों में बंट जाती है, पहला आगरा टर्मिनल और दूसरा सिकंदरा टर्मिनल, जो इस जिले में सिंचाई का काम करते हैं। आगरा के अंत में इसका एक चौथा हिस्सा भी है, जिसे कीठम एस्केप का नाम दिया गया, इसका काम बचे हुए जल को कीठम झील में पहुंचाना था।
वास्तविकता में इस नहर को इस तरीके से बनाया गया था कि इससे 1100 क्यूसेक पानी रबी तक और 2000 क्यूसेक पानी खरीफ की फसल तक जा सके। इसकी कुल कैपिटल 31 मार्च 1891 में 91,62,337 थी। वर्ष 1896 में ये नहर दोनों जिलों के लगभग 1,32,266 और 1,07,041 एकड़ क्षेत्र तक जाती थी। वर्ष 1905 से 1912 तक इसे और भी कई हिस्सों में बढ़ाया गया, इसी में फतेहपुर सीकरी का भाग था, जो खारी नदी और उतागन तक जाता है। वर्ष 1912 से 1921 के बीच में इसे कुल 123 लाख रुपये लगाकर फिर से तैयार किया गया, लेकिन इसमें पानी के आने जाने की मात्रा में कोई फेरबदल नहीं किया गया। वर्ष 1954 में इस नहर को अंतिम बार निम्न स्तर से तैयार करने में कुल 6,00,984 रुपये का खर्चा हुआ था। यद्यपि तब इसके विलुप्त होने का दायरा सीमित लगता था और अन्य जगहों पर यमुना में पर्याप्त पानी था।
ककरेठा गोदी जहां पर है, वह स्थान वन विभाग के अधीन है और यहां पर नहर परिवहन तंत्र तो मृत हालत में है। इस पर एक लघु फिल्म का भी निर्माण किया गया है, जिसका विमोचन विश्व जल दिवस पर किया गया। कार्यक्रम में विकास, हुतेंद्रपाल, रजनीश वर्मा, कुलदीप, सुरेंद्र, सुरजीत, शैलेंद्र शर्मा, मीनू वर्मा, पूनम, नेहा, सुनीता, पूजा आदि उपस्थित थे। गोदी के संरक्षण के लिए कुछ मांगें रखी गई हैं, जिनके अंतर्गत केनाल्स की सफाई की जाए और उन्हें फिर से चालू किया जाए, पुरातत्व विभाग इसे संरक्षित करे, इसे पर्यटन स्थल बना देना चाहिए, इसके इतिहास से संबंधित नक्शे यहां पर लगाए जाएं, इसे एक प्रदर्शनी स्थल भी बनाया जाए।

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