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लेखिका गीता गैरोला की समाज को खरी-खरी

हिंदू कालेज में 'रचना और रचनाकार' विषय पर संगोष्ठी

गीता गैरोला के 'प्यारे चक्खू' की श्रोताओं में सराहना

मोनिका शर्मा

Wednesday 8 February 2017 05:27:16 AM

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नई दिल्ली। सुप्रसिद्ध स्त्रीवादी कार्यकर्ता और लेखिका गीता गैरोला ने नई दिल्ली के हिंदू कालेज में 'रचना और रचनाकार' विषय पर हुई एक संगोष्ठी में बड़े ही विचारशील और झकझोरने वाले सवाल उछाले। उन्होंने समाज से पूछा कि हमारी जड़ें कहां हैं? हमारे बच्चों की जड़ें कहां हैं? हम बिना जड़ों के कब तक जी पाएंगे? हमारी पहचान क्या है? कहीं हम समाज के उस वंचित समूह की तरह ही तो नहीं हो गए, जिन्हें औरत कहते हैं, जो बिना जड़ों के, बिना खाद-पानी के, किसी भी जलवायु में पनपने का भ्रम पैदा करती है। यह संगोष्ठी हिंदू कालेज के महिला विकास प्रकोष्ठ की ओर से आयोजित की गई थी, जिसमें गीता गैरोला ने अपनी चर्चित संस्मरण पुस्तक 'मल्यो की डार' से दो प्रसंग भी सुनाए।
लेखिका गीता गैरोला के चकोर पक्षी पर लिखे 'प्यारे चक्खू' को श्रोताओं से विशेष सराहना मिली तो एक अन्य प्रसंग में पहाड़ की स्त्रियों की आत्मीय छवियां भी मन को मोहने वाली थीं। आयोजन में युवा कवि और 'दखल' के संपादक अशोक कुमार पांडेय ने पुस्तक पर टिप्पणी करते हुए कहा कि स्मृतियों को जीवित रखने में साहित्य बड़ी मदद करता है, उसके सहारे हम जान पाते हैं कि मनुष्यों ने किस तरह संघर्ष कर अपना विकास किया है। उत्तराखंड के जन संघर्षों और स्त्रीवादी आंदोलनों में गीता गैरोला की भूमिका को रेखांकित करते हुए अशोक कुमार पांडेय ने कहा कि उनका लेखन रोशनी देने वाला है। उन्होंने सांप्रदायिक कट्टरता और धर्मांधता को समाज के लिए खतरा बताया और कहा कि रिवर्स गियर में चलकर कोई भी समाज आगे नहीं बढ़ सकता।
हिंदी विभाग के अध्यापक डॉ पल्लव ने 'मल्यो की डार' पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हम सबके जीवन में ऐसे अनेक लोग आते हैं, जो मामूली और साधारण हैं, लेकिन इनका लेखा करना हम सब के लिए सम्भव नहीं हो पाता, गीता गैरोला ऐसा करती हैं तो न केवल पहाड़ (और भारत भी) की सामाजिक संस्कृति का निजी आख्यान रच देती हैं, अपितु जबड़े फैलाते उपभोक्तावाद के सामने सामूहिकता का निजी प्रतिरोध भी खड़ा करती हैं, साहित्य ऐसे ही अपने पाठकों को संस्कारवान बनाता है। डॉ पल्लव ने कहा कि स्त्री मुक्ति की छटपटाहट इन संस्मरणों में भी है और पितृसत्ता की जकड़न की प्रतीति भी, फिर भी जो नहीं है, वह है स्त्री मुक्ति की वे तस्वीरें जो हिंदी की स्त्री विमर्शवादी लेखिकाओं ने बहुधा प्रयुक्त की हैं।
डॉ पल्लव ने कहा कि यौन स्वतंत्रता और देह कामना भी जीवन से जुड़ी सचाइयां हैं, लेकिन इन सचाइयों से गीता गैरोला आक्रांत नहीं हैं। आयोजन में बीए प्रतिष्ठा संस्कृत के विद्यार्थी सत्यार्थ ग्रोवर ने पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की। अतिथियों ने आयोजन के दूसरे भाग में महिला विकास प्रकोष्ठ की प्रकाशित पत्रिका 'सुबह' के प्रवेशांक का लोकार्पण किया। प्रकोष्ठ की परामर्शदाता डॉ रचना सिंह ने पत्रिका के बारे में बताया कि स्त्री विषय पर केंद्रित प्रवेशांक में मूर्धन्य कला चिंतक कपिला वात्स्यायन से साक्षात्कार तथा कवयित्री अनामिका की कविताएं विशेष सामग्री के रूप में प्रकाशित की गई हैं। समारोह का संयोजन प्रकोष्ठ की आकांक्षा ने किया तथा अध्यक्ष सिमरन ने शाल ओढ़ाकर गीता गैरोला का अभिनंदन किया।

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