स्वतंत्र आवाज़
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'अखिलेश ही सपा' और 'सपा ही अखिलेश'!

उत्तर प्रदेश में जातियों के गठजोड़ को तोड़ना मुश्किल

भाजपा के लिए अनुकूल परिणामों पर अभी संशय

सूर्यप्रताप सिंह

Thursday 5 January 2017 01:55:45 AM

akhilesh yadav

आज 'अखिलेश ही सपा' और 'सपा ही अखिलेश'! सपा में मची अनिर्णयपूर्ण कलह में दंगाई व आपराधिक छवि वाली पुरानी सपा के मुकाबले अखिलेश यादव की अपनी एक अलग पहचान ज़रूर बनी है। यथापेक्षा नोटबंदी के कालेधन पर प्रहार के अनुकूल परिणामों पर अभी संशय है। उत्तर प्रदेश चुनाव में नोटबंदी मुख्य मुद्दा नहीं रहने वाला, इसमें किसी को संशय नहीं होना चाहिए। जाति और धर्म ही टिकट वितरण व वोटिंग में मुख्य आधार रहेगा। सपा शासन में अपराध और कदाचार सपा के ख़िलाफ़ एक मुद्दा होगा। पूर्व की बसपा सरकारों में भ्रष्टाचार भी मुद्दा होगा, परंतु बसपा शासन में अपराधियों पर लगाम ज़रूर लगती है, यह उसका पॉज़िटिव पहलू है। भाजपा में कोई चेहरा न डिक्लेअर करना व नोटबंदी के अनुकूल प्रभाव दिखने में समय लगने के कारण भाजपा को केवल सपा और बसपा की पूर्व सरकारों की सत्ताविरोधी लहर फ़ैक्टर वाला लाभ ज़रूर मिलेगा।
लोग चाहे जो कहें परंतु लखनऊ की रैली में भीड़ तो जुटाने में भाजपा कामयाब रही, यद्यपि कोई नई बात या घोषणाओं के अभाव में जोश कम ही रहा। भावी प्रत्याशियों के बलबूते पर भीड़ इक्कट्ठी हुई, परंतु जैसे ही चुनाव लड़ने वालों की लिस्ट आएगी, आपसी मार-काट चालू हो जाएगी, इसी आपसी प्रतिद्वंद्व‌िता को भाजपा को जरूर संभालना होगा। जब तक पूर्ण भाजपा लहर न आ जाए, तब तक उत्तर प्रदेश में जातियों के गठजोड़ को तोड़ना मुश्किल होगा। यदि यादव और मुस्लिम अखिलेश यादव के साथ आता है और अखिलेश यादव कुछ प्रतिशत सवर्ण व अन्य पिछड़ी जातियों को अपने साथ लाने में सफल हो गए तो भाजपा को उत्तर प्रदेश में जीतना अत्यंत मुश्किल होगा। यदि अधिकांश मुसलमान और कुछ अन्य सवर्ण मायावती के पाले में जाता है तो बसपा भी प्रदेश में कड़ी चुनौती दे सकती है।
सपा की पारिवारिक कलह से लोगों में यह संदेश ज़रूर गया है कि अखिलेश यादव अपराधियों व भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ हैं, चाहे सच्चाई इसके इतर है। लोकतंत्र में लोगों के मध्य अवधारणा का महत्व कई बार वास्तविकता से भी अधिक होता है, इसीलिए राजनीतिक दल मार्केटिंग या मीडिया पर बढ़-चढ़कर पैसा ख़र्च करते हैं। सपा में चाहे यह सब मिलीभगत का ड्रामा ही हो, परंतु अखिलेश यादव की एक साफ़-सुथरे युवा चेहरे की अनुभूति ज़रूर सामने आई है। आज अखिलेश यादव के चेहरे वाली सपा, भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, यद्यपि बसपा अब तक भाजपा के लिए असली टक्कर देने की स्थिति में रही है। अतः आज की तारीख में उत्तर प्रदेश में कोई भी दल पूर्ण बहुमत के नज़दीक है, यह कहना मुश्किल है। त्रिशंकु स्थिति है। सावधान! यदि कहीं कांग्रेस या लोकदल अखिलेश यादव के साथ आ गए तो 'अखिलेश वाली सपा' जातियों व धार्मिक समीकरण के बल पर चाहे पूर्ण बहुमत न पा सके फिर भी नंबर एक की स्थिति में आ जाए तो इसमें आश्चर्य नहीं होगा।
'सूर्यप्रताप सिंह उत्तर प्रदेश काडर के एक रिटार्यड आईएएस अधिकारी हैं और सामाजिक एवं प्रशासनिक सुधार जैसे विषयों पर बेबाक टिप्पणियों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका प्रशासनिक जीवन कड़े फैसलों के लिए जाना जाता है। सूर्यप्रताप सिंह सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं। उनके फेसबुक पेज पर उत्तर प्रदेश की वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर यह विश्लेषण काफी पसंद किया गया है। स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम ने इसे उनके पेज से लिया है। सूर्यप्रताप सिंह का कहना सही है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में आज जो हालात हैं, वो बिल्कुल यही हैं, उनमें परिस्थिति या समझौतों के अनुसार बदलाव भी हो सकता है, क्योंकि सत्ता की राजनीति का असली खेल अब शुरू हुआ है। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि फिलहाल तो दलित-मुस्लिम के एक साथ आने से बसपा को यूपी की सत्ता में आने से कोई नहीं रोक सकता।'

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