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राजीव गांधी स्टेडियम का 'कांग्रेस' जैसा हाल!

अमेठी जिले में नरक बन गया है मुसाफिरखाना स्टेडियम

खेल प्रतिभाएं गली-मोहल्लों में खेलने को हुईं मजबूर

रामजी मिश्र

Wednesday 28 September 2016 07:36:48 AM

rajiv gandhi stadium, amethi

अमेठी। 'कांग्रेस के सम्राट' राजीव गांधी और अब 'कांग्रेस के युवराज' राहुल गांधी के राजनीतिक गढ़ अमेठी के कस्बा मुसाफिरखाना में राजीव गांधी स्टेडियम का आजकल 'कांग्रेस जैसा हाल' है। मुसाफिरखाना स्टेडियम आज बदहाली की कल्पना से भी ज्यादा नारकीय है। यहां की बुनियादी सुविधाएं तार-तार हैं और स्टेडियम देखकर लगता है कि कांग्रेस के दिन क्या गए अब राजीव गांधी परिवार की 'चमक' में खड़े किए गए यहां के अनेक 'हब' अपनी दुर्दशा को प्राप्त होते जा रहे हैं। इस स्टेडियम से कभी फर्राटेदार धावक बाबादीन और कबड्डी के खिलाड़ी बृजलाल यादव की धमक सुनाई दी थी, जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर तक की प्रतियोगिता में अपना गज़ब का जौहर दिखाया था, मगर आज यहां के कस्बों या ग्रामीण इलाकों के प्रतिभावान खिलाड़ियों को राज्यस्तर पर भी कोई नहीं पूछ रहा है, क्योंकि उनके लिए अपनी प्रतिभा को धार देने का जो स्टेडियम बना हुआ था, उसपर कौन कब्जा किए हैं, यह इस चित्र में देख लीजिए।
मुसाफिरखाना स्टेडियम, राजीव गांधी स्टेडियम नाम से ज्यादा जाना जाता है, जिसे स्‍थानीय प्रशासन की अनदेखी और भ्रष्टाचार ने बर्बादी का दंश झेलने को मजबूर कर रखा है, इस बात को साबित करने के लिए किसी और प्रमाण की जरूरत नहीं है, यह चित्र ही काफी है। अमेठी के सांसद और देश के प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी ने 22 मई 1984 को मुसाफिरखाना को यह खेल स्टेडियम दिया था, जिसकी उस समय भव्यता देखते ही बनती थी। केंद्रीय खेल मंत्रालय और भारतीय खेल प्राधिकरण के अधिकारियों से लेकर उत्तर प्रदेश शासन के खेल अधिकारी, कमिश्नर और डीएम कभी यहां महीने में दस चक्कर लगाते थे। बड़े क्षेत्रफल में फैला ये स्टेडियम लगभग सभी खेल सुविधाओं से समृद्ध था, खिलाड़ियों के लिए खिलाड़ी कक्ष, दर्शकों के लिए दर्शकदीर्घा और सीढ़ियां देखकर लगता था कि वाकई में यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर का स्टेडियम है, मगर धीरे-धीरे यह अपनी भव्यता उपयोग और महत्व को खोता चला गया और आज स्थिति यह है कि स्टेडियम आवारा पशुओं का सैरगाह और मैदान जगह-जगह पानी के गढ्ढों में तब्दील हो गया है।
उत्तर प्रदेश सरकार की यही खेल नीति है? क्या ग्रामीण खेल प्रतिभाओं को ऐसे ही प्रोत्साहन दिया जा रहा है? राहुल गांधी अपने क्षेत्र को क्या देख रहे हैं कि अपने पिता की विरासत को भी नहीं संभाल पा रहे हैं? उन्हें किसने मना किया है कि वे अपने क्षेत्र की जनता की बुनियादी सुविधाओं का हाल भी नहीं देखें? स्टेडियम की बदहाली के कारण आज यहां के युवा खिलाड़ी अपनी प्रतिभा को निखारने कहां जाएं? यहां से जौहर दिखाने की बात तो दूर गई। खेल सुविधाओं, खेल सामग्री और खेल प्रशिक्षकों के अभाव में यहां के होनहार खिलाड़ियों को अन्य जगहों की ओर रुख करना पड़ रहा है। जिले के मुसफिरखाना, गौरीगंज, अमेठी सहित आधा दर्जन से अधिक स्थानों पर खेल स्टेडियम हैं तो जरूर, लेकिन वे खेलने लायक ही नहीं रहे हैं, ऐसे में खिलाड़ियों के सामने प्रश्न है कि वे राज्य की खेल प्रोत्साहन नीति का कैसे लाभ उठाएं? खेल को अपने कैरियर से कैसे जोड़ें? खेल को गुणवत्ता प्रदान करने के लिए बाहर रहकर तैयारी करने में खराब आर्थिक स्थिति आड़े आ रही है, इसलिए यहां के मेधावी बच्चों का खेल में मेडल लाने का सपना न जाने कब से टूटा पड़ा है।
मुसाफिरखाना स्टेडियम में बारिश के दिनों में जलभराव हो जाता है। दर्शकों के लिए बनी दीर्घा की फर्श उखड़ चुकी है। रखरखाव के अभाव में यहां बड़ी-बड़ी झाड़ियां उग आई हैं, जिनमें आवारा पशुओं ने कब्जा जमा रखा है। क्रिकेट, बास्केटबॉल वालीबॉल ग्रांउड खेलने लायक नहीं बचे हैं। स्टेडियम का काफी समय पहले मुख्यद्वार भी टूट गया है और इसकी बाउंड्री वाल भी टूट-टूटकर गिर रही है। तीन दशक हो गए हैं, एएच इंटर कालेज के प्रधानाचार्य विदुरजी मिश्र की देखरेख में स्टेडियम में मंडल स्तर के खेलों का आयोजन किया गया था, लेकिन उसके बाद इस स्टेडियम में खेलों का कोई बड़ा आयोजन नहीं हो सका है और अब तो यह स्टेडियम क्षेत्रीय स्तर के खेलों तक का आयोजन करने में नाकाम है। कांग्रेसी नेता और पूर्व मंत्री राजकरन सिंह और खेल शिक्षक राजकिशोर सिंह भी दुखी हैं कि जर्जर होने के कारण इस स्टेडियम में मुद्दत से कोई भी खेल प्रतियोगिता नहीं हो पा रही है, जिससे आज खिलाड़ी प्रतिभाएं गली-मोहल्लों में खेलने को मजबूर हैं।

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