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भारत में आतंक के एक मुद्दे का अंत

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Saturday 09 February 2013 07:04:34 AM

afzal guru

नई दिल्ली। भारतीय संसद पर हमले के दोषी जैश-ए-मोहम्मद के कट्टरपंथी आतंकवादी अफजल गुरु को आखिर मुंबई हमले के दोषी अजमल कसाब की तरह गोपनीयता बरतते हुए शनिवार की सुबह आठ बजे तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई। अफजल गुरु के शव को भी पूरे मुस्लिम रिवाज़ से तिहाड़ जेल में ही दफना दिया गया है। इस प्रकार भारत में आतंक के एक मुद्दे का अंत हुआ।
गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने फांसी की पुष्टि करते हुए मीडिया को बताया कि कुछ दिन पहले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उसकी दया याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद पूरी कानूनी प्रक्रिया अपनाते हुए उसे फांसी पर लटका दिया गया। विशेष अदालत ने 2002 में उसे मौत की सजा सुनाई थी। सुरक्षात्मक उपायों के तहत समूची कश्मीर घाटी में अनिश्चितकाल का कर्फ्यू लगा दिया गया है। पाकिस्तान समर्थक अलगाववादी संगठनों ने घाटी में तीन दिन के बंद का आह्वान किया है। संसद पर हमले में शहीदों के परिजनों, कांग्रेस, भाजपा, समाजवादी पार्टी, बसपा सहित देश के राजनीतिक दलों ने फांसी का स्वागत किया है।
भारत में आतंकवाद के पर्याय दो कसूरवारों को सजा-ए-मौत मिलने के बाद देश में इनको फांसी पर लटकाने का एक बड़ा मुद्दा भी समाप्त हो गया है। भाजपा, विश्व हिंदू परिषद और आरएसएस सहित तमाम संगठनों के लिए अफजल गुरू और पाकिस्तानी अजमल कसाब एक मुद्दा थे, जिसको लेकर देश में सत्तारुढ़ यूपीए गठबंधन मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए भारी आलोचनाओं का सामना करता आ रहा था। अफजल गुरू को सुनाई गई फांसी की सजा देने को लेकर भारत सरकार पर भारी दबाव था, दूसरी ओर उत्तरी कश्मीर के सोपोर के रहने वाले इस हत्यारे आतंकवादी अफजल गुरू को फांसी नहीं देने के लिए कश्मीर घाटी में सक्रिय कई गुटों ने भारत को बुरे अंजाम की धमकियां दी हुईं थीं, एक समय तो जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी बड़ी दृढ़ता के साथ उसके पक्ष में बोलते पाए गए, मगर कानून को अपना काम करने से कोई नहीं रोक पाया।
संसद पर 13 दिसंबर 2001 में हमला हुआ था और उसके दोषी अफजल गुरू को 2004 में मौत की सजा सुनाई गई थी। घटनाक्रम के अनुसार तेरह दिसंबर 2001 को भारी हथियारों से लैस पांच आतंकवादी संसद परिसर में घुंसे और अंधाधुंध गोलीबारी कर नौ लोगों को मौत के घाट उतार दिया। मरने वालों में दिल्ली पुलिस के पांच कर्मी, केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल की एक महिला अधिकारी, संसद के वाच एंड वार्ड स्टाफ के दो कर्मचारी और एक माली शामिल था। हमले में एक पत्रकार भी घायल हुआ था जिसकी बाद में मौत हो गई थी। संसद के सुरक्षाबलों ने सभी आतंकवादियों को भी मार गिराया गया था, वे पांच थे। अफजल गुरू को संसद पर हमले के कुछ घंटे के भीतर ही राष्ट्रीय राजधानी में एक बस से गिरफ्तार कर लिया गया था।
संसद पर हमले में अफजल गुरू को दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर एसएआर गिलानी और शौकत हुसैन के साथ मौत की सजा सुनाई गई थी। शौकत हुसैन की पत्नी अफसान को बरी कर दिया गया था। एसएआर गिलानी को उच्च न्यायालय ने 2003 में बरी कर दिया था, जबकि अफजल गुरू और शौकत हुसैन की सजा को बरकरार रखा था। उच्चतम न्यायालय ने अफजल गुरू की सजा को बरकरार रखते हुए शौकत हुसैन की सजा 10 वर्ष के कारावास में बदल दी थी।
फलों का कारोबार करने वाले तेतालीस वर्षीय अफजल गुरू को विशेष अदालत ने संसद पर हमले के मामले में वर्ष 2002 में फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे वर्ष 2005 में उच्चतम न्यायालय ने बरकरार रखा था। अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के बाद देश के संवेदनशील स्‍थानों पर और भारत-नेपाल सीमा पर भी ऐहतियात के तौर पर चौकसी बढ़ा दी गई है। भारत-नेपाल की खुली सीमा की संवेदनशीलता को देखते हुए सीमा पर जवानों की गश्त बढ़ाई गई है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, पुलिस महानिदेशक अशोक प्रसाद तथा वरिष्ठ अधिकारी तड़के ही श्रीनगर पहुंच कर कानून व्यवस्था की स्थिति की निगरानी कर रहे थे।
भारत “सॉफ्ट स्टेट” नहीं है-अरुण जेटली
भारतीय संसद पर आतंकवादी हमले के एक अभियुक्त अफजल गुरु को फांसी दिये जाने पर राज्यसभा में भाजपा के नेता अरुण जेटली ने एक बयान में कहा है कि 13 दिसंबर, 2001 को भारतीय संसद पर आतंकवादियों ने हमला किया। संसद की रक्षा के लिए वहां तैनात कई सुरक्षा और पुलिसकर्मियों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए, संसद के भीतर जो भी लोग थे, उन्होंने एक स्वर में हमले पर दुख व्यक्त किया, हम सभी ने प्रतिबद्धता व्यक्त की कि किसी को यह सोचने की इजाजत नहीं दी जाएगी कि भारत “सॉफ्ट स्टेट” है और इस बात को दोहराया कि हमले के लिए दोषियों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा, बहादुर सुरक्षाकर्मियों ने हमले के स्थान पर ही हमलावरों को ढेर किया, धर दबोचा, अन्य साजिशकर्ताओं से पूछताछ की गई, उन पर मुकदमा चलाया गया और उनमें से कुछ को दोषी ठहराया गया, लेकिन सुरक्षाकर्मियों के समय पर कार्रवाई करने के कारण कोई भी आतंकवादी संसद की इमारत के अंदर प्रवेश नहीं कर पाया, हमलावरों की भारत के राजनेताओं के बड़े वर्ग को निशाना बनाने की योजना विफल हो गई।
अरुण जेटली ने कहा कि हमने कई आतंकवादी हमले देखे हैं, इनमें से अधिकतर की योजना सीमापार बनाई गई थी, जिसे भारत में अंजाम दिया गया, कुछ ठिकाने बड़ी सावधानी से चुने गए,इनमें भारतीय संसद, जम्मू कश्मीर विधानसभा, अक्षरधाम मंदिर और मुंबई शहर शामिल हैं, ये सभी स्थान भारत के संसदीय लोकतंत्र, संप्रभुता, सांस्कृतिक विरासत और अर्थव्यवस्था के प्रतीक हैं, भारतीय संसद पर हमला भारत पर हमला है, भारत ने हमले की एक स्वर में निंदा की है।
उन्होंने कहा कि भारत में व्यवस्था कानून के शासन से चलती है, हमारी पुलिस एजेंसियों की जांच को अदालतें कड़ाई और बारीकी से देखती हैं, लंबे समय तक चले मुकद्दमें, उच्च न्यायालय में अपील और आखिर में उच्चतम न्यायालय में अपील के बाद हमारी न्यायिक व्यवस्था ने सबूतों की सावधानीपूर्वक एवं बारीकी से जांच की, अफजल गुरु के मामले में सभी न्यायिक प्राधिकारियों ने उसके अपराध की पुष्टि की और मृत्युदंड को बरकरार रखा, उसकी दया याचिका को राष्ट्रपति ने अस्वीकार कर दिया, सरकार यह बताने में असमर्थ थी कि उसे सजा देने के मामले में देरी क्यों की जा रही है, लेकिन आखिरकार कानून ने अपना समय लिया। जनभावना ने सरकार को कार्रवाई करने और कानून लागू करने के लिए बाध्य कर दिया। तेरह दिसंबर, 2001 की तरह भारत को आज भी एक स्वर में अपनी बात रखनी चाहिए और दुनिया को स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि भारत “सॉफ्ट स्टेट” नहीं है, भारत की संप्रभुता और उसके संस्थानों पर जो भी हमला करेगा, उसकी जवाबदेही तय की जाएगी, चाहे देर से ही सही, न्याय तो हुआ।
आरएसएस ने कहा-विलंब हुआ फिर भी सही
अफजल गुरु को फांसी देने के संबंध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ मनमोहन वैद्य ने एक वक्तव्य में कहा है कि संसद भवन पर आतंकी हमले के प्रमुख साजिशकर्ता अफजल गुरु को फांसी देने के 2001 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर विलंब से ही सही, अमल होने का हम स्वागत करते हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को यह निर्णय पहले ही करना चाहिए था, भविष्य में भी दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर सभी भारतवासियों को आतंकवाद का एक जुट हो कर मुकाबला करना चाहिए।
देश की जनता के दबाव में फैसला-बसपा
नई दिल्ली से बहुजन समाज पार्टी ने प्रेस-विज्ञप्ति में कहा कि अपने देश की संसद पर, जो लोकतंत्र का अति महत्वपूर्ण स्तंभ है, आज से कई वर्ष पूर्व हुए आतंकवादी हमले के मुख्य आरोपी ‘अफजल गुरू’ को आज जो फांसी की सजा दी गई है, यह फैसला केंद्र सरकार को, देश की जनता के दबाव में आकर, काफी देर बाद लेना पड़ा है, फिर भी केंद्र सरकार के इस फैसले की हमारी पार्टी सराहना करती है। बसपा ने कहा है कि इसके साथ ही, वह केंद्र सरकार से यह भी कहना चाहती है कि आतंकवादी लोग, चाहे किसी भी जाति व धर्म के क्यों न हों, जाति व धर्म के चक्कर में न पड़कर, अपने सभी राजनैतिक स्वार्थों को दरकिनार करते हुए, उनके खिलाफ देश व जनहित में समय से उचित व सख्त कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सके। पूरी उम्मीद है कि केंद्र की सरकार आगे इन सब बातों का जरूर ध्यान रखेगी।
‘देर आए दुरुस्त आए’ समाजवादी पार्टी ने कहा
अफजल गुरू को फांसी देने के मुद्दे पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम आसरे कुशवाहा ने कहा कि आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता है, अफजल गुरू को पहले ही फांसी हो जानी चाहिए थी-आज हुई फांसी को ‘देर आए दुरुस्त आए’ कहेंगे। ऐसी ही प्रति‌क्रिया भाजपा और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भी आई।

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