स्वतंत्र आवाज़
word map

कहां है आर्य समाज आंदोलन?

राम बहादुर राय

राम बहादुर राय

आर्य समाज

याद कीजिए! ढाई साल पहले दिल्ली में आर्यसमाज का सम्मेलन हुआ था। आर्य समाज के इतिहास में इस प्रकार का सम्मेलन पहले कभी नहीं हुआ होगा। संख्या के हिसाब से सम्मेलन विशाल था। आर्य प्रतिनिधियों में विदेशों से आये आर्य समाजी भी थे। इसी आधार पर आयोजकों ने इसे सार्वदेशिक अर्थात अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन बताया। इस तरह का सम्मेलन पंद्रह सालों बाद हो रहा था। इतने अंतराल के बाद जब आर्य समाज के प्रतिनिधि कई दिनों तक एक जगह इकट्ठे हुए हों तो उम्‍मीद की जाए कि उसमें से कोई घोषणा निकलनी चाहिए। आखिरी दिन सम्मेलन के संयोजक ब्रह्मचारी राज सिंह आर्य ने जो कहा उसे सम्मेलन का ऐसा रहस्य माना जा सकता है जो जितने मुंह उतनी बातें के मुहावरे में फिट बैठता है। संयोजक ने इतना ही कहा कि हमने अपना वचन निभाया। अपने विवादों की यहां चर्चा नहीं की।
जाहिर है कि आर्य समाज इस समय विवादग्रस्त है। पूरा आंदोलन रोगग्रस्त है। स्वामी रामदेव के हाथों सम्मेलन की शुरूआत हुई थी । उन्हें सलाह दी गयी थी कि वे न आयें। अब यह भी एक विवाद है कि वे क्यों आये। नेतृत्व में मारामारी से आर्य समाज की दुर्दशा हो रही है। सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के पदाधिकारियों का मामला अदालत में है। कार्यालय पर स्वामी अग्निवेश काबिज हैं। जिन लोगों का कार्यालय पर अधिकार था उन्हें एक दिन छोड़ना पड़ा। गौतम नगर के गुरूकुल में प्रधान का चुनाव हुआ। स्वामी अग्निवेश प्रधान चुने गये। हौजखास के एसडीएम ने चुनाव करवाया। उसके बाद 28 फरवरी 2005 से स्वामी अग्निवेश का कार्यालय पर अधिकार है। उसे ही दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी है। विवाद का एक स्वरूप यह है कि सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा किसके हाथ में रहे। इससे पहले भी आर्य समाज को नेतृत्व देने वाली यह संस्था धड़ेबाजी की शिकार रही है। राम गोपाल शालवाले के निधन के बाद जो सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा बनी उसके अध्यक्ष कैप्टन देव रत्न आर्य हुए। कई सालों से शारीरिक अस्वस्थता के शिकार होने के कारण उनकी ओर से जो सज्जन संस्था का काम देख रहे थे, उनसे स्वामी अग्निवेश ने बात की। वे चाहते थे कि मिलजुल कर काम करें। तब दूसरे पक्ष ने अदालत में जाना मुनासिब समझा। उनका कहना था कि कोर्ट से ही फैसला होगा।
प्रधान चुने जाने के बाद स्वामी अग्निवेश ने एक अपील की। 'छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी। नये दौर में लिखेंगे, मिलकर नयी कहानी।' इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। आर्य समाज की संस्थाओं पर जो धड़ा काबिज है वह स्वामी अग्निवेश को नेतृत्व के स्थान पर मान्यता देने के लिए तैयार नहीं है। आम धारणा बनी हुई है कि वे यूपीए सरकार के परोक्ष समर्थन से चुने गये हैं। आर्य समाज के बुजुर्ग नेता रामफल बंसल का कहना था कि 'वे सरकार की सहायता से प्रधान पद पर बैठे हैं।' स्वामी अग्निवेश ने सुलह की अपनी कोशिश में यह आश्वासन दिया कि पहली बार विधिवत निर्वाचन कराया जा सकता है। इसका मतलब यह हुआ कि सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा में निर्वाचन लोकतांत्रिक तरीके से नहीं होता रहा है और उस बार भी वही हुआ। केंद्र की सरकार का प्रभाव सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के गठन में काम करता रहा है। आंदोलन के थम जाने के बाद उसकी संस्थाओं पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए सरकारों की मदद जरूरी हो जाती है। अटल बिहारी वाजपेयी पहले प्रधानमंत्री हुए हैं जिन्होंने अपना संबंध आर्य समाज आंदोलन से माना। हर बार शपथ लेने के बाद उन्होंने इसे चिन्हित किया कि उन पर महर्षि दयानंद के सत्यार्थ प्रकाश का गहरा प्रभाव पड़ा। उनके कार्यकाल में आर्य समाज में विवाद पैदा नहीं हुआ। इस समय जो विवाद है उसका एक कारण केंद्र में सत्ता परिवर्तन भी है। यह नहीं कहा जा सकता कि यही एक मात्र कारण है। क्योंकि यूपीए अध्यक्ष या उसके प्रधानमंत्री दोनों की दिलचस्पी आर्य समाज में नहीं है। आर्य समाज में कोई नेता भी नहीं है जो उसे आंदोलन में उतार सके।
यह भी नहीं कहा जा सकता कि स्वामी अग्निवेश आर्य समाजी नहीं हैं। उनको चुनौती देने वाला धड़ा भी उन्हें घुसपैठिया नहीं मानता। हां, अवांछनीय जरूर मानता है। दूसरा धड़ा राम गोपाल शालवाले की विरासत को चलाना चाहता है। अपने जीते जी राम गोपाल शालवाले ने जैसा चाहा वैसा चलाया। उन्होंने स्वामी अग्निवेश को आर्य समाज से हमेशा के लिए निष्कासित कर दिया था। यह उन दिनों की बात है जब देश में आपातकाल था। रामगोपाल शालवाले ने अध्यक्ष बनने के बाद विधान में परिवर्तन कर यह अधिकार प्राप्त कर लिया था कि अध्यक्ष पंद्रह दिनों में अंतरंग सभा बुलाकर फैसले कर सकता है। इस अधिकार का उपयोग कर उन्होंने स्वामी अग्निवेश को हमेशा के लिए निकाला। यह आरोप भी लगाया कि स्वामी अग्निवेश ने गबन किया है और धर्म बदलकर ईसाई हो गये हैं।
उस समय आर्य प्रतिनिधि सभा इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ लड़ाई लड़ने के बजाय उन लोगों को बाहर कर रही थी जो बचपन से ही महर्षि दयानंद से प्रेरित थे। आर्य समाज आंदोलन का वह काला अध्याय है। अपने रास्ते से भटकने के कारण आर्य समाज अपनी संस्थाओं और उसकी संपत्ति में सिमटता गया है। आर्य समाज जिंदा है, अपनी शैक्षिक संस्थाओं और उंचे भवनों में। आर्य समाज में वह आंदोलन के रूप में मृतप्राय है। उसकी गतिविधियां हर रविवार को हवनकुंडों तक सिमट गयी हैं। यह पिछले 35-40 सालों से आर्य समाज की गति बन गयी है। इसीलिए आर्य समाज को संध्या-हवन एंड कंपनी कहा जाने लगा है।
क्या जिस बड़े उद्देश्य से आर्य समाज की स्थापना हुई उसके सभी लक्ष्य पूरे हो गये हैं? महर्षि दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना आर्य राष्ट्र के सपने से की थी। उनके जीवनकाल में पूरा उत्तर भारत आर्य समाज के प्रभाव से प्रेरित हो उठा था। उनके निधन के बाद आजादी के आंदोलन की बड़ी प्रेरणाओं में से आर्य समाज भी रहा है। आर्य समाज की स्थापना करने के बाद वे मात्र आठ साल ही जिंदा रहे। लेकिन उनके विचारों का इतना गहरा असर था कि 1948 तक चाहे क्रांतिकारी रहे हों, चाहे कांग्रेस के नेता, चाहे हैदराबाद मुक्ति संग्राम के सिपाही सभी महर्षि दयानंद के मानसपुत्र थे। इसीलिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने कहा कि संगठन कार्यों के सामर्थ्य और प्रसार की दृष्टि से आर्य समाज अनुपम संस्था है।' उस आर्य समाज ने भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल जैसे क्रांतिकारियों को जीवन शक्ति दी। आजादी के बाद हाल तक लोकसभा में आर्य समाज से किसी न किसी रूप में जुड़े हुए दर्जनों सदस्य चुनकर आते थे। प्रकाशवीर शास्त्री और स्वामी रामेश्वरानंद का नाम सब जानते हैं। कम लोग जानते हैं कि चौधरी चरण सिंह मूलत: आर्य समाजी थे।
उस दौर में आर्य समाज के लक्ष्य स्पष्ट थे। इस समय उसके सामने रास्ता साफ नहीं है। उसे यह नहीं मालूम है कि लक्ष्य क्या है? किन सवालों पर समाज को जगाना है? जब महर्षि दयानंद ने शुरूआत की थी तब चारों ओर अंधेरा था। उन्होंने करीब-करीब पूरे देश में डंका बजाया और वेद को सजीव धर्म पुस्तक के रूप में स्थापित कर दिया। उससे पहले वेद पर बहुत भाष्य हो चुके थे। वेद का सबसे बड़ा विद्वान सायण माने जाते हैं। उन्होंने जो व्याख्या प्रस्तुत की उससे वेद कर्मकांड का ग्रंथ माना जाता था। टी परमशिव अय्यर ने भी काम किया। इन दोनों से भिन्न पश्चिम के विद्वानों ने वेद से भारत का इतिहास और भूगोल खोजा। इनकी व्याख्याओं से वेद के बारे में वास्तविक चित्र सामने नहीं आता। वास्तविकता की जानकारी तो श्री अरविन्द ने दी। उन्होंने बताया कि महर्षि दयानंद का योगदान क्या है? वह यह कि वेद को उन्होंने धार्मिक, नैतिक और वैज्ञानिक सत्य से भरा ईश्वर प्रेरित ज्ञान के रूप में स्थापित किया।
आर्य समाज की मूल प्रेरणा वही बनी। उसने वक्त की सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक चुनौतियों को पहचाना। उनसे टक्कर ली। बलिदान की लड़ी लगा दी। क्या वे सवाल आज खत्म हो गए हैं कि आर्य समाज दुविधा में पड़ा हुआ है? यह नहीं माना जा सकता। जिन चुनौतियों से लड़ने के कारण आर्य समाज की पहचान बनी है वे मौजूद हैं। फिर भी आंदोलन में कोई दम नहीं दिखता। इसके कारण कुछ गहरे हैं। उन्हें पहचाने बिना आर्य समाज को जिन्दा नहीं किया जा सकता। यह भी एक विडम्बना है कि आर्य समाज जिनके साथ है वे लोग नेतृत्व के काबिल नहीं हैं। दिल्ली के सम्मेलन ने यही साबित किया। इससे एक निष्कर्ष यह निकलता है कि आर्य समाज में नेतृत्व का मूलत: अभाव है।
जो व्यक्ति इस समय नेतृत्व दे सकता है उसके साथ आर्य समाज नहीं है। महर्षि दयानंद ने अपने एक उपदेश में कहा था कि 'लोग अपने को हिंदू न कहकर आर्य और वैदिक धर्मी कहें।' स्वामी अग्निवेश क्या इस आदर्श को अपनाने के लिए तैयार हैं? वेदपाठी श्याम राव ही सन्यास के बाद अग्निवेश बने। कलकत्ता से सीधे झज्जर गुरूकुल की राह चुनने वाला वह युवक सातवें दशक में तब आर्य राष्ट्र बनाने के लिए सन्यासी बना। उस लक्ष्य के लिए स्वामी इंद्रवेश के साथ उन्होंने जो मुद्दा बनाया वह हरियाणा में शराबबंदी के आंदोलन के रूप में जाना गया। तब दो सन्यासी राजनीति को बदलने के लिए अलख जगाने निकले थे। वैदिक समाजवाद को विचारधारा बनाया। अब यह समय पुनरावलोकन का है। गो-वध बड़े पैमाने पर हो रहा है। शराब की पौ बारह है। और ऐसे तमाम प्रश्न अधिक विकराल बन गये हैं। समतामूलक समाज को बाजारवाद लीलने जा रहा है। ऐसे समय में इन सवालों से अलग स्वामी अग्निवेश जिस काम में लगे हैं वह आभास देता है कि वे आर्य समाज का नेतृत्व करने की बजाय एक एनजीओ चला रहे हैं।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]