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देश-प्रदेश में दलितों का बुरा हाल

दलित उत्पीड़न पर चिंता और एकता पर जोर

उप्र दलित शोषण मुक्ति मंच का राज्य सम्मेलन

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Sunday 5 July 2015 05:10:52 AM

senior journalist santosh valmiki

लखनऊ। उत्तर प्रदेश दलित शोषण मुक्ति मंच के प्रथम राज्य स्तरीय सम्मेलन में दलितों की अवस्‍था और उनके उत्‍थान पर दलित और सवर्ण नेताओं ने मिलकर चिंतन किया। सम्मेलन में सभी ने एक सुर में हल्ला बोला कि उत्तर प्रदेश सहित देशभर में दलितों का घोर उत्पीड़न हो रहा है, उनका बुरा हाल है और उनके अधिकारों में कटौती की जा रही है। अमीरूद्दौला इस्लामिया कालेज लालबाग लखनऊ के सभागार में हुए इस सम्मेलन में दलित समाज की एकजुटता पर जोर दिया गया। सम्मेलन इस तथ्य पर चुप्पी मार गया कि उत्तर प्रदेश में मायावती के शासनकाल में दलितों का कितना विकास हुआ और कितना उत्पीड़न रुका? मायावती की पूर्ण बहुमत की सरकार में भी दलितों का शोषण नहीं रुका और इस बार तो दलित ही दलितों का शोषण करने पर उतर आए। सम्मेलन का उद्घाटन वरिष्ठ पत्रकार संतोष वाल्मीकि ने किया। उन्होंने दलित समाज में खासतौर से सफाई कर्मियों की खराब हालत का जिक्र किया और कहा कि इनके कल्याण के लिए कार्य नीति बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मैला ढोने वालों की स्थिति बदलने के लिए आयोगों की जो रिपोर्ट है, वह सदन में चर्चा हेतु रखी जाने और ठोस फैसले लेने की जरूरत है। उन्होंने सफाई कर्मियों को एकजुट होने की जरूरत पर बल दिया।
संतोष वाल्मीकि ने भी कहा कि संविधान के मौलिक अधिकारों तथा अन्य कानूनी प्राविधानों को नकारते हुए ऊंच-नीच, भेदभाव, छुआछूत अब भी जारी है, देश के कई हिस्सों में दलित पीने का पानी उस हैंडपंप से नहीं ले सकते, जिनसे सवर्ण लेते हैं। उन्होंने कहा कि दलित बाहुल्य गांव को छोड़कर प्राथमिक स्कूलों में दलित रसोइये का बनाया हुआ भोजन ऊंची जाति के बच्चे व अध्यापक नहीं खाते हैं, आधे से अधिक विद्यालयों में भोजन बांटते समय दलित बच्चों को पीछे और अलग बैठाया जाता है। उनका कहना था कि कई ग्रामीण क्षेत्रों में दलितों के बाल नाई नहीं काटते, बोलने के हक की आजादी भी छीनी जाती रही है, हाथ से या सिर पर मैला ढोने की कुप्रथाएं आज भी जारी हैं। उन्होंने कहा कि यदि दलित जातियों के लोग सामाजिक बराबरी और सार्वजनिक सुविधाओं के लिए अपने अधिकारों की मांग करते हैं तो उन्हें गंदी गालियों व शारीरिक हमलों का शिकार होना पड़ता है, सामंती मानसिकता वाले गुंडा गिरोह दलितों की मारपीट, हत्या, महिलाओं से बलात्कार, आगजनी जैसे अपराध करने से जरा भी नहीं हिचकते हैं।
सीपीआईएम की पोलित ब्यूरो सदस्य और पूर्व सांसद सुभाषिनी अली ने लंबा भाषण दिया और कहा कि उत्तर प्रदेश में दलित उत्पीड़न और शोषण सबसे ज्यादा है और यह बात आंकड़ों से सिद्ध होती है। उन्होंने कहा कि सामाजिक विभाजन और भेदभाव खत्म करने के लिए विभिन्न कार्य करने वालों को एकत्र कर उत्तर प्रदेश में एक सशक्त समतावादी आंदोलन का निर्माण किया जाए। उन्होंने कहा कि जाति उत्पीड़न और अन्य मुद्दों पर शोषण मुक्ति मंच को सक्रिय संघर्ष करना होगा और एक-एक घटना की तहकीकात कर उस पर आंदोलन चलाना होगा। सुभाषिनी अली ने कहा कि निजी क्षेत्र में दलितों के लिए आरक्षण का मुद्दा जरूरी हो गया है, इस हेतु तुरंत संसद में कानून बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि दलितों की आरक्षित नौकरियों में ग्रुप ए, बी, सी में क्रमश: 10.15, 12.67, 16.15 फीसदी ही दलित हैं, रिक्त स्थान भरने की बजाय सैकड़ों पद समाप्त कर दलित आरक्षण पर हमला बोला गया है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने दलितों को सरकारी सेवाओं में पदोन्नति में मिलने वाले आरक्षण को खत्म कर दलित विरोधी मानसिकता का प्रदर्शन किया है।
सुभाषिनी अली ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण के चलते अनुसूचित जाति, जनजाति आरक्षण पंगु बनकर रह गया है, स्वास्थ्य व शिक्षा में बढ़ते निजीकरण व व्यापारीकरण के कारण दोनों ही क्षेत्रों से दलितों को वंचित रखने की तैयारी है। उन्होंने कहा कि उदारीकरण की नीतियों से तो विभिन्न क्षेत्रों में पूंजीपतियों, ठेकेदारों, माफियाओं का दबदबा बढ़ गया है, ऐसी परिस्थितियों में दलितों के पहले से खराब हालात और बदतर होते जा रहे हैं। सुभाषिनी अली ने आंकड़े प्रस्तुत करते हुए कहा है कि अनुसूचित जाति/ जनजाति सब प्लान के तहत आवंटित बजट में केंद्र सरकार ने कटौती की है, जहां 2014-15 के बजट में 82,935 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, वहीं बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2015-16 के बजट में केवल 50,830 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं, यानि कुल 32,105 करोड़ रुपए की भारी कटौती की गई है, जबकि अनुसूचित जाति/ जनजाति की आबादी के अनुपात में यह धनराशि आवंटित होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे दलितों के विकास पर बहुत विपरीत प्रभाव पड़ेगा, खासकर दलितों, महिलाओं तथा गरीबों का विकास रुकेगा।
सीपीआईएम के राज्य सचिव मंडल के सदस्य डॉ एसपी कश्यप का कहना था कि अपना वोट बैंक पुख्ता करने के संकीर्ण हिेतों के लिए दलितों को साझा जनवादी आंदोलनों से दूर रखते हुए पूंजीवादी राजनैतिक दल आज जाति की दुहाई दे रहे हैं। डॉ एसपी कश्यप ने कहा कि वर्ण व्यवस्था के चक्रव्यूह व सामंती मानसिकता के तहत दलित जातियां भी आपस में ऊंच-नीच, भेदभाव से ग्रस्त हैं। उन्होंने कहा कि आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद व भाजपा सांप्रदायिक माहौल पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। डॉ एसपी कश्यप ने वर्ण और जाति व्यवस्था के नाम पर मनुस्मृति पर भी हमला बोला और कहा कि यह सामाजिक नियम कायदों से संचालित रही है, जिसकी सबसे बुरी मार दलितों पर पड़ती रही है। उन्होंने कहा कि दलित समाज सदियों से छुआछूत, भेदभाव, ऊंच-नीच का शिकार रहा है, दलितों को सार्वजनिक कुओं से पानी भरने, मंदिरों में घुसने और सार्वजनिक शमशानों में दाह संस्कार तक से वंचित रखा गया है, दलितों के लिए शिक्षा व ज्ञान के दरवाजे बंद ही रहे, भूमि व संपत्ति के स्वामित्व के अधिकारों से वंचित रखकर उनकी आर्थिक प्रगति के दरवाजे भी बंद रहे, यह स्थिति देश-प्रदेश में किसी न किसी रूप में आज भी बनी हुई है।
दलित शोषण मुक्ति मंच की राष्ट्रीय समन्वय समिति के सदस्य बीएल भारती ने कहा कि उत्तर प्रदेश में 2014 में दलित उत्पीड़न की थानों में दर्ज घटनाओं को देखें तो बहुत गंभीर हालात दिखते हैं, दलितों की हत्या से जुड़े 237 मामले, आगजनी से जुड़े 27 मामले, बलात्कार से जुड़े 413 मामले, गंभीर चोटों से जुड़े 327 मामले अन्य अपराधों से जुड़े 6573 मामले यानि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण कानून के अंतर्गत 7577 अभियोग दर्ज किए गए। बहुत सारी घटनाओं को थानों में दर्ज ही नही किया जाता, दर्ज घटनाएं भी पूरी सच्चाई को उजागर नहीं करतीं, क्योंकि पुलिस प्रशासन की सामंती मानसिकता के चलते कुछ आपराधिक घटनाओं की रिपोर्ट दर्ज करने की बजाय पुलिस मामले को रफा दफा कर देती है और थाने से भगा देती है। बीएल भारती ने कहा कि न्याय मिलने में भी कई खामियां होने से ज्यादातर मुकदमों में देरी से सुनवाई होती है, प्रदेश में सत्ता पर काबिज रही भाजपा, बसपा, सपा ने एससी/ एसटी एक्ट को कमजोर करने का ही कार्य किया है। उन्होंने कहा कि देश भर में दलितों पर हो रही आपराधिक घटनाओं में उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर है।
सम्मेलन में 17 सदस्यीय कमेटी का चुनाव भी किया गया, जिसके संयोजक बीके रावत बनाए गए। सम्मेलन की अध्यक्षता ब्रह्मस्वरूप ने की। ब्रह्मस्वरूप ने कहा कि दलित संगठनों को साझा कार्रवाईयों हेतु एकजुट किया जाना चाहिए, शिक्षा और सरकारी सुविधाओं को लेकर संघर्ष तेज करना चाहिए और इनको बुनियादी अधिकारों से जोड़ कर लड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि दलित और गैरदलित गरीबों में व्यापक एकजुटता लाने के लिए वैचारिक और सांस्कृतिक स्तर पर मुहिम चलानी होगी। दलितों के दमन, अत्याचार के खिलाफ जनवादी ताकतों को शामिल कर एक व्यापक आंदोलन खड़ा करना चाहिए, जिससे कि ऐसे समाज की स्थापना की जा सके जो कि सामाजिक न्याय, समानता व भाइचारे पर आधारित हो। दलित सम्मेलन की खास बात यह रही कि इसमें सवर्ण जाति के नेता भी मौजूद थे, जिन्होंने दलित उत्पीड़न और उनके हितों पर भाषण दिए। सुभाषिनी अली इनमें प्रमुख हैं। सम्मेलन में केएन भट्ट, दीनानाथ सिंह यादव, प्रेमनाथ राय, मधु गर्ग, वीना गुप्ता, राधेश्याम वर्मा, प्रवीन पांडेय, सतीश कुमार, जयलाल सरोज और प्रतिनिधि उपस्थित थे।

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