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'इतिहास और इतिहासकार' में मतभेद

उपराष्ट्रपति ने कहा कि इतिहास लिखना पढ़ाना जरूरी

जेएनयू में भारतीय इतिहास कांग्रेस का 75वां अधिवेशन

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Sunday 28 December 2014 05:40:32 AM

platinum jubilee session of the indian history congress

नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने आज जवाहर लाल विश्वविद्यालय नई दिल्ली में आयोजित ‘इतिहास और इतिहासकार’ विषय पर भारतीय इतिहास कांग्रेस के 75वें अधिवेशन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने कहा कि आज इतिहास लेखन और इतिहास शिक्षण की समकालीन प्रासंगिकता और अधिक बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि हम राष्ट्र राज्यों की दुनिया में रह रहे हैं, लेकिन समरूप राष्ट्र राज्य का विचार स्पष्ट रूप से समस्या भरा है, आज के अधिकतर समरूप समाजों में भी विविधता की पहचान होती है, आधुनिक समय में वैश्विक परिदृश्य में जटिलताएं और तनाव हैं।
उपराष्ट्रपति ने कहा है कि भारत में 4635 समुदाय हैं और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय पहचान बनाने में सभी समुदायों पर नज़र रखने की जरूरत है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि इतिहासकार के लिए उदार होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि इतिहास को संकीर्ण राजनीतिक और आर्थिक दायरे से ऊपर होने पर अब कोई विवाद नहीं रह गया है। आवश्यकता इस बात की है कि इतिहास व्यापक हो और उसमें समाज के उन समूहों का समावेश हो, जो अभी तक उपेक्षित रहे हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि इतिहास का अध्ययन अलग-थलग रुप में नहीं किया जा सकता। उन्होंने इस संदर्भ में समकालीन फ्रांसीसी इतिहासकार लेरॉय लेदुरे को उदृत किया। फ्रांसीसी इतिहासकार ने कहा था कि इतिहास अतीत की ओर मुड़े सभी सामाजिक विज्ञानों का समिश्रण है।
भारतीय इतिहास कांग्रेस के 75वें अधिवेशन को कई इतिहासकारों ने संबोधित किया। बहुत से इतिहासकारों का अभिमत था कि भारतीय परिप्रेक्ष्य में इतिहास निष्पक्ष नहीं है, क्योंकि इतिहास हमेशा तत्कालीन शासनकर्ताओं के दबाव में रहा है और कुछ शासनकर्ता तो ऐसे आए, जिन्होंने भारत की वास्तविक संस्कृति को अपने हिसाब से लिखवाया। इतिहासकारों का कहना था कि इतिहास विभिन्न रूपों में लिखा गया और इसमें दरबारी कवियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। भारतीय इतिहास के वे पक्ष गायब हैं, जो हिंदुस्तान की जीवन शैली और उसके साहित्यिक एवं आध्यात्मिकता को छिपाते हैं। इतिहासकारों का कहना था कि आज जिन्हें पढ़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है, दरअसल वे राजनीतिक दलों की आवश्यकताएं हैं, जिनमें वोटों की गिनती की जाती है। अधिवेशन को संबोधित करने वाले इतिहासकार कई मुद्दों पर एक नहीं दिखे और उपराष्ट्रपति ने जो कहा उसपर भी मतभेद नज़र आए।

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