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राम सरूप अणखी स्मृति कहानी-गोष्ठी

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 18 January 2013 06:48:08 AM

ram sarup ankhi memory story-seminar

डलहौजी। राम सरूप अणखी स्मृति कहानी-गोष्ठी का डलहौजी के होटल मेहर में आयोजन हुआ। गोष्ठी में हिंदी, असमिया, पंजाबी, डोगरी की कहानियों का पाठ स्वयं कहानीकारों ने किया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में संयोजक अमरदीप गिल ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और तीन दिवसीय संगोष्ठी की रूपरेखा रखी। संगोष्ठी के आयोजक और कहानी पंजाब के संपादक डॉ क्रांति पाल ने इन संगोष्ठियों के आयोजन की सुदीर्घ परंपरा कोस्पष्ट करते हुए बताया कि समकालीन कथा रचनाशीलता को व्यापक तौर पर देखने समझने के उद्देश्य से प्रारंभ हुई यह संगोष्ठी अब धीरे धीरे अखिल भारतीय स्वरुप लेती जा रही है।
इस वर्ष अतानु भट्टाचार्य (असमिया कहानीकार), पंकज कुमार (डोगरी कहानीकार), गुरसेवक सिंह प्रीत(पंजाबी कहानीकार ), सिमरन धालीवाल (युवा पंजाबी कहानीकार), अग्निशेखर (हिंदी लेखक), संजीव कुमार (हिंदी आलोचक और कथाकार) ने अपनी कहानियों का पाठ किया। संगोष्ठी का उदघाटन रामस्वरूप अणखी की प्रतिनिधि कहानी 'सोया हुआ सांप' कहानी से हुआ जिसका पाठ आलोचक और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के सह आचार्य डॉअजय बिसारिया ने किया। यहां से प्रारंभ हुई चर्चा की उत्तेजना और गर्मजोशी अंत तक बनी रही और चर्चा को युवा हिंदी आलोचकों संजीव कुमार, नीरज कुमार,वेदप्रकाश, पल्लव के साथ असमिया लेखक उत्पल बरुआ, अंग्रेजी आलोचक आशुतोष मोहन व शोध छात्र विकास कौशल ने लगातार जीवंत बनाए रखा। संजीव कुमार की हिंदी कहानी 'घोंघा' और अतानु भट्टाचार्य की असमिया कहानी 'मैं, सिस्टम और वे' को विशेष रूप से पसंद किया गया।
संगोष्ठी की कहानियों में स्त्री पुरुष संबंधों के साथ व्यवस्था के निरंतर अमानवीय होते जा रहे चेहरे पर कहानी कारों ने खासा ध्यान खींचा, वहीं संजीव कुमार की कहानी अपनी वर्ग चेतना और चरित्रनिरोपण के कारण विशेष पसंद की गई। संगोष्ठी में हिंदीतर भाषा की कहानियों को भी अनुवाद के मार्फ़त हिंदी में ही प्रस्तुत किया जाता है, ताकि सभी श्रोता पाठ तक पहुंच सकें।
प्रतिवाद प्रस्तुत कहानियों का केंद्रीय स्वर कहा जा सकता है और इस अर्थ में भिन्न भाषा भाषी होने पर भी भारतीय कहानी का मूल स्वर एक ही है। इस तीनदिवसीय संगोष्ठी का आयोजन प्रतिवर्ष कहानी पंजाब पत्रिका के संयोजन औरमनमोहन बावा के होटल मेहर के सौजन्य से किया जाता है। संगोष्ठी में बीते दिनों दिवंगत कथाकार अरुण प्रकाश और पंजाब में जीवन भर सक्रिय रहे कामरेड सुरजीत गिल को श्रद्धांजलि दी गई।

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