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सुल्तानपुर में विरासत और सियासत का फाइनल

फिरोज़ वरुण गांधी को सुल्तानपुर ने सर आंखों पर बैठाया

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varun gandhi

सुल्तानपुर। ‘नीम कड़वा है, उसे कोई पशु खाता नहीं।
जल समंदर का है खारा, काम में आता नहीं।
है मेरी आधीनता से, ये ही सारे हौसले।
आप चढ़ते ही गए हम जिस कदर नीचे ढले।।’
राधेश्याम कथावाचक की लिखी ये पंक्तियां भाजपा के स्टार नेता फिरोज़ वरुण गांधी के लिए उनके पारिवारिक संदर्भ में बड़ी ही सटीक बैठती हैं, खासतौर से तब जब उनके संसदीय क्षेत्र सुल्तानपुर में उन पर पहला राजनीतिक हमला परिवार की तरफ से हुआ है। यह दूसरा हमला है। इससे पहले वरुण गांधी के एक सामान्य कथन को मीडिया के कुछ ‘थैली पाउच टाइप’ पत्रकारों ने वरुण गांधी के अमेठी में राहुल गांधी को समर्थन से जोड़कर चला दिया था। उस कथन का कोई दूसरा राजनीतिक मतलब निकलने से पहले ही वरुण गांधी ने बयान जारी कर दिया था। इस बार का हमला अखबारों ने अपनी लीड बनाया, मगर वरुण गांधी ने यह बयान जारी कर नए अभियान की भी हवा निकाल दी। बयान हू-ब-हू यह है-
‘मै मर्यादित राजनीति करता हूं, मैंने दूसरों के मान-सम्मान को हमेशा अपना मान-सम्मान माना है, इस पिछले दशक में मैंने अपने भाषणों में किसी भी व्यक्ति को लेकर, चाहे मेरे परिवार का काई सदस्य रहा हो या अन्य किसी राजनैतिक दल का कोई वरिष्ठ नेता, मर्यादा की लक्ष्मण-रेखा पार नहीं की है, मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि मेरी निहित शालीनता और उदारता को मेरी कमजोरी ना समझा जाए। आजकल मेरे पथ की बातें हो रही हैं, मैने अपने पथ से हमेशा देश के पथ को अधिक महत्वपूर्ण समझा है, अपने जीवनकाल में यदि मैं राष्ट्र निर्माण में रचनात्मक योगदान दे जाने में समर्थ हो पाता हूं तो अपने जीवन को सार्थक समझूंगा। मैने सदैव सिद्धांतों पर आधारित राजनीति की है, जो समकालीन महत्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्रित हो। मेरा सभी से यह आग्रह है कि हम व्यक्तिगत आक्षेप लगाने के बजाए, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, निरक्षरता जैसे मुद्दों पर चर्चा करें, विचार-विमर्श के स्तर को गिराने के बजाए इसे ऊंचे स्तर पर ले जाएं, जब हम व्यक्तिगत निंदा की राजनीति पर केंद्रित होते हैं तो अपने समकालीन महत्वपूर्ण मुद्दों से भटक जाते हैं, यदि भारत को एक आशावादी राजनीति की तरफ बढ़ना है तो हमें बहस का स्तर ऊंचा उठाना होगा।’
भारत के युवाओं के कभी ह्दय सम्राट कहे जाने वाले संजय गांधी के ओजस्वी पुत्र और पिताश्री की संसदीय सीट सुल्तानपुर से भाजपा के प्रत्याशी वरूण गांधी को सुल्तानपुर आते ही अपने खिलाफ राजनीतिक साजिशों का किस प्रकार सामना करना पड़ा है, वरूण गांधी का इस चुनाव को लड़ने के दौरान दूसरी बार आया यह बयान पढ़कर अंदाजा लगाइए। वरूण गांधी इस संसदीय सीट पर चुनाव लड़ने क्या आ गए, राजीव गांधी परिवार में मानों भूचाल आ गया। वरुण गांधी यहां जिस टकराव से बचकर चलना चाहते थे, सबसे पहले उसी से उनका सामना हो रहा है। कहा जा रहा है कि वरुण गांधी कोतो सुल्तानपुर की जनता चुनाव लड़ा रही है, किंतु सगी तहेरी बहिन प्रियंका गांधी ने इससे बौखलाकर वरुण गांधी पर वो हमला बोला है कि वरुण गांधी को कल फिर पारिवारिक मर्यादा और शालीनता पर केंद्रित मार्मिक बयान जारी करना पड़ा। वरूण गांधी पर हमला उनकी तहेरी बहिन प्रियंका गांधी से शुरू हुआ है, कभी जिसकी गोद में वरूण ने खूब किलकारियां भरी हैं, दुलार पाया है और हर मौके पर उसके हाथ उंगली अपनी मुठ्ठी में रखी है। आज वही भाई जब राजनीतिक रूप से जवान हुआ है और अपना रास्ता बना रहा है, तब वह उसी बहिन और परिवार को खटक रहा है। वरूण गांधी को इसके पहले लोकसभा चुनाव लड़ने के दौरान उन्हें मिली सीख एवं शिक्षा का असर कहें या राजनीति परिपक्वता कि वह बहिन प्रियंका गांधी के शब्दवाणों से मर्माहत तो हैं, लेकिन कोई धैर्य नहीं खो रहे हैं और यही उनकी ताकत और यहां से विजय का एक रूप माना जा रहा है।
वरूण गांधी पर प्रियंका गांधी के राजनीतिक हमलों की पहल से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वरूण और उनके हर कथन पर आज राजीव गांधी परिवार पूरी तरह सक्रिय है। वरूण गांधी ने अमेठी में अपने एक कार्यक्रम में बिना किसी राजनीतिक लाग-लपेट के यही तो कहा था कि मैने सुना है कि अमेठी में स्वयं सहायता समूह के एनजीओज का अच्छा प्रयास है और वे भी इस प्रकार आत्मनिर्भर बनाने के लिए लोगों के सशक्तिकरण पर बल देना चाहेंगे। इस बयान का अमेठी से कांग्रेस प्रत्याशी और उनके तेहरे भाई राहुल गांधी एवं उनके मैनेजरों ने तुरंत राजनीति इस्तेमाल किया। वरूण गांधी को एक बयान जारी करके कहना पड़ा कि उनके कथन को किसी राजनीतिक दल या उम्मीदवार को समर्थन से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। वरूण गांधी के इस कथन पर भाजपा में भी कुछ आवाज़ें उठीं थीं, लेकिन सब जान गए हैं कि वरूण गांधी ने क्या कहा होगा और उसका राहुल ब्रिगेड क्या मतलब निकाल रही है। यहां यह भी समझना जरूरी है कि सुल्तानपुर में अमेठी के राजा संजय सिंह की पत्नी अमिता सिंह कांग्रेस की उम्‍मीदवार हैं और दूसरी तरफ राजीव गांधी के पुत्र राहुल गांधी अमेठी संसदीय सीट पर कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे हैं। इन दोनों को चुनाव जीतने के लिए एक दूसरे की पूरी जरूरत है। कहा जा रहा है कि प्रियंका गांधी को अमेठी में अपने भाई राहुल गांधी के लिए संजय सिंह के वोट लेने हैं, तो उन्हें सुल्तानपुर में चुनाव लड़ रहीं संजय सिंह की पत्नी अमिता सिंह को उनके प्रभाव के वोट दिलाकर उन्हें जिताने की कोशिश करनी होगी, जिसके लिए उन्होंने सुल्तानपुर से भाजपा प्रत्याशी वरूण गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
हो क्या रहा है? सुल्तानपुर से संजय गांधी सांसद रह चुके हैं, तब वरूण गांधी बहुत छोटे थे। बड़े हुए, पिताश्री की राजनीतिक विरासत संभाली तो मां मेनका गांधी की पीलीभीत संसदीय सीट से भाजपा के टिकट पर पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और सांसद निर्वाचित हुए, मगर उनकी पसंद और नज़र सुल्तानपुर पर ही रही, इसलिए इस लोकसभा चुनाव में वे पिताश्री संजय गांधी की मनचाही सीट पर आ गए और इस समय भाजपा के शक्तिशाली उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं। वरूण गांधी के सुल्तानपुर कदम रखते ही यहां की राजनीतिक सियासत उलट-पलट गई। कहना न होगा कि इस पूरे इलाके के जो कांग्रेसी अब तक राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी के आगे-पीछे हुआ करते थे, आज उनमें से बहुत से वरूण गांधी का कमल का फूल अपने सीने से लगाए घूम रहे हैं। संजय गांधी के समय के कई कांग्रेसी वरूण गांधी में अपने नेता संजय गांधी की छवि देखकर या उस दौर को याद करके वरूण गांधी के पीछे हो लिए हैं। भाजपा का परंपरागत वोट तो वरूण के साथ है ही भाजपा के लिए एक नया वोट भी सुल्तानपुर में विकसित हुआ, जिसके कंधों पर संजय गांधी, मतलब वरूण गांधी बैठै हुए हैं। यहां की आम जनता ही वरूण गांधी को चुनाव लड़ा रही है, जिससे कांग्रेस के नेता संजय सिंह और कांग्रेस प्रत्याशी अमिता सिंह की स्थिति डांवाडोल हो गई है।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने इलाहाबाद के बाहुबली अतीक अहमद को सुल्तानपुर से सपा का प्रत्याशी बनाया था, किंतु अतीक अहमद, वरूण गांधी के सामने अपनी संभावित दुर्गति को भांप कर यहां से चुनाव लड़ने को तैयार ही नहीं हुए। प्रियंका गांधी के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं है कि वह संजय सिंह का समर्थन लेने के लिए वरूण गांधी के खिलाफ मोर्चा खोले और जब मोर्चा खुल गया है, तो शब्दवाण और भितरघात से लेकर सारे ही कर्मकांड वरूण गांधी के खिलाफ प्रयोग किए जाने हैं। प्रियंका गांधी के लिए निराशाजनक स्थिति यह भी है, कि देर-सवेर उनको भी सुल्तानपुर सीट पर चुनाव लड़ने जाना पड़ सकता था, वरुण गांधी के अब यहां आ जाने से इसकी संभावना अब नहीं बची है, प्रियंका गांधी को यहां से राजनीति करने के लिए कि अब अपने ही तहेरे भाई वरुण गांधी के खिलाफ खड़ा होना पड़ेगा। वरूण गांधी के भाजपा में होने और वहां उनकी मजबूत स्थिति के कारण आने वाले समय में इस इलाके का राजनीतिक घमासान ज्यादा बढ़ जाने की उम्मीद है, जिसमें दोनों परिवारों में मतभेद फिर से एक नए रूप और नई चुनौती के रूप में बढ़ रहे हैं। इससे राहुल गांधी के लिए सहज‌ राजनीतिक स्थिति अब नहीं रह सकेगी। राजनीतिक विश्लेषक तो यहां तक कहते हैं कि यदि भाजपा ने इसबार उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में वरूण गांधी को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश कर दिया होता तो भाजपा को भारी फायदा होता और यहां सपा और बसपा को भी अपनी हैसियत पता चल जाती, जिसमें सपा को पूर्ण बहुमत बिल्कुल नहीं मिल पाता। कहने वाले तो कहते हैं कि वरूण गांधी में राहुल गांधी के मुकाबले ज्यादा शक्तिशाली राजनीतिक सम्मोहन है और वे इस समय एक परिपक्व राजनेता की तरह सुल्तानपुर से चुनाव मैदान में है, उनके व्यक्तित्व और उनकी राजनीतिक कार्यशैली के सामने राहुल गांधी कहीं नहीं टिकते, भले ही वो कांगेस में प्रधानमंत्री पद के एकमात्र दावेदार हों।
सुल्तानपुर में वरुण गांधी की शानदार जीत अवश्यंभावी मानी जा रही है, जो राहुल गांधी और प्रियंका की ज़ुबानी राजनीति पर हावी और भारी पड़ रही है। सुल्तानपुर, अमेठी में मीडिया के ‘मुखबिरों’ का जमावड़ा ‌है और उसका तो फोकस केवल इसी पर है कि इनके पारिवारिक मतभेदों से क्या नई सनसनी निकल सकती है। अमेठी सुल्तानपुर और रायबरेली की जनता में वरूण और राहुल में अब कौन सबसे ज्यादा शक्तिशाली और लोकप्रिय है, यह चुनाव इस दृष्टि से भी ध्यान देने योग्य माना जाता है। भले ही दोनों की अलग-अलग संसदीय सीटें हैं। प्रियंका गांधी के बयानों ने इस क्षेत्र में राजनीतिक हलचल जरूर मचा रखी है, किंतु इससे वरुण गांधी का मतदाता विचलित नहीं दिखता, क्योंकि वह उसी दिन से वरूण गांधी के पीछे चल पड़ा था, जिसदिन उसने सुना था कि संजय गांधी के बेटे वरूण गांधी अपने पिता की राजनीतिक विरासत पर आ रहे हैं। तभी से सोनिया गांधी परिवार भी क्षेत्र की राजनीतिक दिशा को लेकर पूरी तरह सक्रिय और असहज है, तभी प्रियंका गांधी बार-बार कह रही हैं कि भाई गलत रास्ते पर चला गया है, उसे हराना है।
टीवी चैनलों पर लखनऊ के ‘कांग्रेसी पैनलिस्ट’ और क्षेत्र के दौरों में राजीव गांधी परिवार के आगे-पीछे नाचने दिखने वाले प्रियंका, राहुल और सोनिया गांधी को वरुण गांधी के चुनाव में चाहे जो सब्जबाग दिखा रहे हों, मगरहमने जो यहां देखा है, यह उसकी तस्वीर है। इसका सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि वरूण गांधी पारिवारिक मतभेदों को किसी भी तरह से चुनावी मुद्दा नहीं बनने देना चाहते हैं। उन्होंने फिर से बयान जारी करके यह स्पष्ट कर दिया कि वे इस चुनाव को ‘अन्यथा’ अखाड़ा नहीं बनने देंगे, जहां तक पारिवारिक मामले हैं, वे औरों की तरह उनकी मर्यादाओं को पार नहीं करेंगे। उन्होंने बड़ी सावधानी से चुनाव की यह गेंद प्रियंका गांधी, राहुल गांधी एवं सोनिया गांधी के पाले धकेल दी है, जिसपर फिलहाल यही प्रतिक्रिया आ रही है कि वरूण गांधी को सुल्तानपुर से हराना प्रियंका, राहुल एवं सोनिया गांधी के बाहर की बात हो चुकी है-सोलह मई की प्रतीक्षा कीजिए !

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