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'अपने में बुनियादी तब्दीली पैदा करो'

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Saturday 29 March 2014 08:40:35 PM

aligarh muslim university convocation

अलीगढ़। उप राष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने आज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के 61वें वार्षिक दीक्षांत समारोह को संबोधित किया। मोहम्मद हामिद अंसारी ने अपने संबोधन की शुरुआत इस शेर से की-
बा नाम-ए-खुदावंद जान आफरीन
हाकिम-ए-सोखां दर ज़ुबान आफरीन।
उप राष्ट्रपति ने एएमयू के तराने की तारीफ करते हुए कहा कि शायद ही दुनिया के किसी अन्य शैक्षिक संस्थान के तराने में ऐसी गीतात्मक खूबी हो। उन्होंने कहा कि पचास के दशक के मध्य और आखिर में इस विश्वविद्यालय के परिसर की यादें अब भी उनके ज़ेहन में बनी हुई हैं।
उप राष्ट्रपति ने आज स्नातक हुए विद्यार्थियों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को अपनी सफलता को अपने उद्योग समर्पण की सफलता बनाने का प्रण करना चाहिए, उन्हें जानना चाहिए कि ज्ञान का दायरा विश्वविद्यालय के पोर्टल में ही समाप्त नहीं होता, जीवन में उनका सफर तो अब शुरू हुआ है, वे रोज़गार के बाजार में प्रवेश करें या और अध्ययन करें, उन्हें याद रखना चाहिए कि शिक्षा के लिए कोई अंत नहीं है। उन्‍होंने कहा कि दीक्षांत समारोह बौद्धिक उत्कृष्टता और उपलब्धि को सम्मानित करने का अवसर होता है, यह ऐसा पल भी होना चाहिए कि जब हम शिक्षा के उद्देश्य, समाज और राष्ट्र के जीवन में में उसकी भूमिका के बारे में फिर से विचार करें। उन्होंने कहा कि दीक्षांत समारोह जीवन का दुर्लभ और अनित्य पल होता है, जब व्यक्ति समकक्षों के दबाव को वहन कर सकता है और अज्ञात एवं अपरंपरागत पथ पर आगे बढ़ सकता है। उन्होंने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की अनेक प्रसिद्ध हस्तियों ने अतीत में ऐसा किया है।
उप राष्ट्रपति ने विश्वविद्यालय के अनोखपन का जिक्र करते हुए कहा कि यह ऐसा स्थान है, जहां स्त्री और पुरुष जीवन के हर क्षेत्र का ज्ञान लेने के लिए एकत्र होते हैं, वे ऐसा करते हैं, क्योंकि इब्न खाल्दुन ने कहा था-'मूर्खता का चरागाह मानवता के लिए अहितकर है, झूंठ की बुराई को ज्ञान की कल्पना के साथ लड़ना पड़ता है।' उपराष्ट्रपति ने कहा कि 1947 में साक्षरता की दर 12 प्रतिशत थी, जो 2011 में 74 प्रतिशत तो हो गई, लेकिन वैश्विक औसत 84 प्रतिशत से यह अब भी नीचे है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का अधिकार कानून से निश्चित रूप से दाखिला लेने वालों की संख्या बढ़ी है, लेकिन इससे शिक्षा की गुणवत्ता अभी नहीं बढ़ पाई, इसके फलस्वरूप स्कूल से निकलने वाले बच्चों में प्रायः कालेज और विश्वविद्यालय में जाने की क्षमता नहीं होती, न ही वे माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण की नई योजनाओं से फायदा उठा पाते हैं, तकनीकी और पेशेवर शिक्षा के क्षेत्र में भी यह बात सही है।
मोहम्‍मद हामिद अंसारी ने कहा कि वर्तमान संकट को दूर करने का उपाय शिक्षा को उत्कृष्ट बनाना ही है। एक सदी पहले इकबाल ने कहा था-
इस दौर में तालीम है अमराज़-ए-मिल्लत की दवा
है खून-ए-फासिद के लिए तालीम मिस्ल-ए-नैश्तर।
उप राष्ट्रपति ने विद्यार्थियों को मौलाना आजाद की अक्तूबर 1947 की यह सलाह भी याद दिलाई कि अजीजो अपने अंदर एक बुनियादी तब्दीली पैदा करो...तब्दीलियों के साथ चलो, ये ना कहो कि हम इस तगय्युर के लिए तैयार नहीं हैं। उप राष्ट्रपति ने कहा कि नागरिक का फर्ज प्रक्रिया में भागीदारी करना, उसकी मदद करना और अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए गतिविधि करना है। उन्‍होंने एक और शेर पढ़ा-
ये बज्म-ए-मय है यां कोताह दस्ती में है महरूमी
जो बढ़ के खुद उठा ले हाथ में मीना उसी की है।
उप राष्ट्रपति ने विद्यार्थियों की सफलता की कामना करते हुए कहा-
देख जिंदां से परे, रंग-ए-चमन शोर-ए-बहार
रक्स करना है तो फिर पांवों की जंजीर ना देख।

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