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बिजनौर में 'धरोहर' के साहित्यिक कुंभ में प्रतिभाएं सम्मानित

साहित्यिक कुंभ में साहित्यकारों की पुस्तक प्रदर्शनी भी लगी

Tuesday 25 March 2014 04:48:35 PM

श्रीगोपाल नारसन

श्रीगोपाल नारसन

literary aquarius in bijnor

बिजनौर। साहित्यकारों की संस्‍था धरोहर स्मृति न्यास के 23 मार्च को बिजनौर में हुए साहित्यिक कुंभ 2014 में मानवसेवा धर्मियों, कथाकारों, शायरों, व्यंग्यकारों और कवियों की मौजूदगी में विभिन्न क्षेत्रों की दस शीर्ष प्रतिभाओं को सम्मानित किया गया, जिनमें विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के कुलाधिपति एवं उज्जैन के जाने-माने संत सुमन भाई को मानवसेवा के लिए और सांगली के पदमश्री डॉ विजय कुमार शाह को जीवनभर की उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया गया। संत सुमन भाई ने सम्मान ग्रहण करते हुए इस साहित्य कुंभ को किसी यज्ञ के समान बताया। उन्होंने धर्म शब्द की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की और मानव और साहित्य सेवा को परमात्मा की सेवा कहा। उन्होंने गौ सेवा पर प्रकाश डाला और उज्जैन के मौनतीर्थ धाम में अनूठी गौशाला से प्ररेणा लेने का आह्वान किया। संत सुमन भाई ने रचनाकारों और उनकी कृतियों को सरस्वती साधना का नाम दिया और साहित्य कुंभ में लगी पुस्तक प्रदर्शनी का अवलोकन किया।
साहित्यिक कुंभ में देशभर के साहित्यिक मनीषियों की भागीदारी रही। कार्यक्रमकी अध्यक्षता राष्ट्रीय साहित्य अकादमी के पूर्व सदस्य डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा ने की। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान सदैव से संसारभर को सन्मार्ग दिखाता आया है, इसी कारण प्राय: हर देश में कहीं न कहीं भारतीयता और यहां की धरोहर की छाप देखने को मिलती है। उन्होंने कहा कि भारत की श्रीरामलीला दशहरा एवं होली दीपावली आदि पर्व मैक्सिको, मॉरीशस, इंडोनेशिया, पेरू, थाईलैंड जैसे देशों में मनाया जाना आज आम बात है। डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा ने कहा कि जिस तरह से जर्मनी में वेद को विकास की आधारशिला माना जाता है, उसी तरह यूरोप, ईरान, इराक और यूनान में भी भारतीयता किसी न किसी रूपमें परिलक्षित होती है। उन्होंने कहा कि दुनियाभर में कई ऐसे देश हैं, जहां भारत जैसे रीति-रिवाज़, धर्म-कर्म, पूजा-पाठ, संस्कार देखने को मिलते हैं, दक्षिण अमेरिका में नागवंशी शिल्पियों की आबादी सिद्ध करती है कि भारत सदियों से पूरी दुनिया में राजनीतिक रूपमें न सही, वेद ज्ञान व धर्म-संस्कृति की राह दिखाता आ रहा है, शायद ही ऐसा कोई देश हो जहां भारत की प्रतिभाएं अपना लोहा न मनवा रही हों।
बिजनौर के लोकप्रिय सांध्य समाचार पत्र चिंगारी के संपादक सूर्यमणि रघुवंशी, बाल साहित्यकार डॉ अजय जनमेजय, शकील बिजनौरी, डॉ राजेंद्र बटोही, डॉ अनिल चौधरी, मनोज अबोध आदि कवियों और साहित्यकारों ने धरोहर स्मृति न्यास के माध्यम से झनकिया देवी, एक ‌हिंदी पत्रकारिता युग के जाने-माने संपादक बाबूसिंह चौहान, शायर निश्तर खानक़ाही, कांता निशा, रणवीर सिंह, लाला ओमप्रकाश रस्तोगी, चौधरी वीरेंद्र सिंह, ब्रजेश्वर स्वरूप शर्मा, जीएस सेठी, गोविंद सिंह की स्मृतियों को चिरस्थाई रूपसे संजोये रखने के लिए उनके नाम से विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिभाएं सम्मानित करने की पहल की है। 'धरोहर' ने इस बार जिन विभूतियों को सम्मानित किया है, उनमें नारी सशक्तिकरण के लिए मुरादाबाद के डॉ महेश दीवाकर, सांप्रदायिक सद्भाव के लिए खारी के डॉ अख्तर हुसैन अंसारी, ग़ज़ल क्षेत्र से सागर के अशोक मिजाज, नारी प्रेरणा के लिए बिजनौर की डॉ मीना अग्रवाल, व्यंग्य विधा महाराष्ट्र में रह रहीं चंद्रपुर की डॉ बानो सरताज, बाल साहित्य पद्य के लिए जबलपुर के अश्वनी कुमार पाठक, बाल साहित्य गद्य के लिए गुड़गांव के लक्ष्मी चंद सुमन, गीत के लिए मेरठ के डॉ ज्ञानेश दत्त हरित शामिल हैं।
साहित्यिक कुंभ में देशभर के साहित्यिक मनीषियों की भागीदारी रही। इसमें डॉ दर्शन सिंह आसट की पुस्तक पापा अब ऐसा नही होगा, डॉ भूपेंद्र सिंह की पुस्तक नन्हे पंख ऊंची उड़ान, डॉ श्रीगोपाल नारसन की पुस्तक प्रवास, सत्येंद्र गुप्ता की पुस्तक वो खुशबू कहां है, डॉ अजय जनमेजय की पुस्तक मां जैसी नदियां व दादीजी क्या और लिखूं का विमोचन किया गया। ज्योतिष विद्वान एवं वैज्ञानिक गोपाल राजू की पुस्तकें साहित्यिक कुंभ का हिस्सा बनीं। पुस्तक प्रदर्शनी को भरपूर सराहना मिली। साहित्यिक कुंभ के सम्मान निर्णायक मंडल के सदस्यों को भी सम्मानित किया गया, इनमें डॉ महेश चंद्र, डॉ अनिल चौधरी, शनावर किरतपुरी, आचार्य जयनारायण अरूण, डॉ ब्रजेश मिश्र शामिल थे। गौरतलब है कि धरोहर स्मृति न्यास बिजनौर हर साल विभिन्न क्षेत्र की प्रतिभाओं को सम्मानित करता है।

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