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'मीडिया राष्‍ट्रीय संपदा है, किंतु पेड न्‍यूज़ दुखद'

मुनाफे के लिए 'अन्‍य' मार्केटिंग नीतियों का सहारा क्‍यों?

आईएनएस की हीरक जयंती समारोह में बेलाग बोले राष्‍ट्रपति

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 28 February 2014 03:47:29 PM

pranab mukherjee

नई दिल्‍ली। भारत के राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इंडियन न्‍यूज़ पेपर सोसाइटी (आईएनएस) के हीरक जयंती समारोह में कहा है कि भारत का विशाल, वैविध्‍यपूर्ण तथा गतिशील मी‍डिया एक राष्‍ट्रीय संपदा है। इसी के साथ राष्‍ट्रपति ने पेड न्‍यूज़ और अन्‍य बाजारी नीति के जरिए राजस्‍व बढ़ाने की नीति को दुखद बताया और मीडिया को इनसे ऊपर उठकर सार्वजनिक जीवन में शुद्धता के लिए अहम भूमिका निभाने का आह्वान किया। राष्‍ट्रपति ने कहा कि मीडिया कुल मिलाकर न केवल लोगों को जानकारी से अवगत कराता है, अपितु नीति निर्माण और इसके कार्यान्‍वयन में विचार तथा विकल्‍प रखने का अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण कार्य भी निष्‍पादित करता है। उन्‍होंने कहा कि हीरक जयंती समारोह आईएनएस के सदस्‍यों के लिए एक महत्‍वपूर्ण उपलब्धि है, क्‍योंकि यह सभी भारतीयों के लिए है, इंडियन न्‍यूज़ पेपर सोसाइटी ने वर्षों से समय की चुनौतियों का सामना किया है और इसने भारत के अत्‍यंत प्रभावशाली समाचार पत्रों और आवधिक पत्रिकाओं का प्रतिनिधित्‍व भी किया है।
राष्‍ट्रपति ने कहा कि आईएनएस ने स्‍वतंत्र प्रेस को आगे बढ़ाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो लोकतंत्र का एक अहम अंग है। उन्‍होंने कहा कि इस संगठन के प्रयासों से ही प्रेस ट्रस्‍ट ऑफ इंडिया और ऑडिट ब्‍यूरो ऑफ सरकुलेशन का गठन हुआ। उन्‍होंने कहा कि प्रेस भारत में सरकार के सरंक्षण के जरिए नहीं, बल्कि व्‍यक्तियों की प्रतिबद्धता से विकसित हुआ, जिन्‍होंने इसे अपने ऊपर विचारों को थोपे जाने के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्‍तेमाल किया और देशभर में समाज सुधार आंदोलन का मंच निर्मित कर दिया। उन्‍होंने कहा कि यह गर्व का विषय है कि 1780 से भारत को 1947 में आजादी मिलने तक लगभग प्रत्‍येक भारतीय भाषाओं में 120 से अधिक समाचार पत्र और पत्रिकाएं आरंभ की गईं, इनमें से प्रत्‍येक प्रकाशन ने लोकतंत्र के आदर्शों को लोगों के घरों तक पहुंचाने का प्रण किया था और स्‍वतंत्रता के संदेश का प्रसार किया। राष्‍ट्रपति ने आईएनएस और इसके सभी सदस्‍यों को उत्‍तरदायी पत्रकारिता की मशाल थामे रखने को कहा और उनसे हमेशा न्‍याय और समानता के आगाज़ तथा आशा और तर्क का प्रवक्‍ता बनने का आह्वान किया।
राष्‍ट्रपति ने कहा कि 75 वर्ष पूर्व यह दुनिया काफी विचित्र थी, हमारे राष्‍ट्र को अन्‍य देशों के बीच अपना स्‍थान कायम करना था, लाखों भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम में जुटे थे, उस समय के समाचार पत्रों ने इस परिप्रेक्ष्‍य में न केवल अभावों के चलते अपना अस्‍तित्‍व कायम रखा, अपितु हमारे इतिहास की क्षण प्रतिक्षण की घटनाओं से लोगों को अवगत कराने का जटिल काम भी किया, इस समिति के निर्माण में लगे संस्‍थापकों के स्‍तर पर संकल्‍प, दूरदृष्टि तथा नियति का निर्माण करना था, ताकि इसके सदस्‍य आम हितों के मुद्दों को आगे बढ़ा सकें। उन्‍होंने कहा कि आईएनएस के सदस्‍यों ने स्‍वतंत्र प्रेस की संकल्‍पना को संपोषित करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो हमारे लोकतंत्र का महत्‍वपूर्ण घटक है। राष्‍ट्रपति ने कहा कि अनेक वर्षों से आईएनएस के सदस्‍यों ने समाज को जानकारी से अवगत रखा तथा राष्‍ट्र को उद्वेलित करने वाले महत्‍वपूर्ण प्रश्‍नों और बहस को आगे बढ़ाया है। उन्‍होंने कहा कि यह युद्ध की विभिषिका अथवा बंगाल का दुर्भिक्ष था, जिसने विभाजन के उपरांत राष्‍ट्र को जीर्ण-क्षीर्ण कर डाला, आज के भारत के निर्माण में समाचार पत्रों ने लोगों को शिक्षित करने, समाज में व्‍याप्‍त विविध विचारों को प्रकट करने और विचारों एवं अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता को कायम रखने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि अब समय बदल रहा है और विचारों के आविर्भाव के परिणामों तथा प्रौद्योगिकी को अंकीकार करने से अपने को अलग रख पाना समाचार पत्रों के लिए अब संभव नहीं है, समाचार पत्रों के लिए यह परम आवश्‍यक है कि वे प्रौद्योगिकी की चुनौती का सामना करें और अपने सनिन्‍कट अवसरों का जिम्‍मेदारी से दोहन करें। राष्‍ट्रपति ने आगे कहा कि यह नोट करना दुख:दायी है कि कुछ प्रकाशन ‘पेड़ न्‍यूज़’ और अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए ‘अन्‍य’ मार्केटिंग नीतियों का सहारा ले रहे हैं, ऐसी ‘अन्‍य’ विसंगतियों को रोकने के लिए आत्‍म विश्‍लेषण की आवश्‍यकता है, ‘अकल्‍पनीय’ समाचारों के उतावलेपन की प्रवृत्ति से भी बचने की जरूरत है, हमारा देश महत्‍वपूर्ण चुनौतियों के दौर का सामना कर रहा है, जो ‘ब्रेकिंग न्‍यूज़’ तथा तत्‍काल हेडलाइन के दबाव से परे है। उन्‍होंने कहा कि एक ओर जहां समाचार पत्रों को सजग प्रहरी के रूप में चलना होगा, वहीं उन्‍हें विचारवान राष्‍ट्र निर्माता भी बनना है।
राष्‍ट्रपति ने कहा कि हमारी मीडिया का प्रभाव, विश्‍वसनीयता और गुणवत्‍ता जगजाहिर है, समाचार पत्रों को हमारे देश के ज़ेहन का संरक्षक होना चाहिए, उन्‍हें सभी नागरिकों के लिए न्‍याय और मूलभूत आजादी के लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के लिए प्रतिबद्ध प्रजातांत्रिक मूल्‍यों के संपोषण में हमारे सतत प्रयासों में सक्रिय भागीदार बनना होगा, पत्रकारों को ऐसी बुराइयों और विरोधाभासों का खुलासा करना होगा, जो हमारे देश के बहुसंख्‍यक लोगों की अनदेखी कर जाते हैं, चाहे वह चाहे कुपोषण हो, समाज के वर्गों, विशेषकर दलितों के विरूद्ध भेदभावपूर्ण रवैया अथवा ऋण ग्रस्‍तता के बोझ और इसके दुष्‍परिणाम। यद्यपि ये उद्देश्‍य पूर्ण एवं संतुलित समाचार देते हैं, फिर भी उन्‍हें जनता की धारणा को आकार और प्रभाव देने का प्रयास किया जाना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि आधारहीन खबरों के प्रति मोह पर भी काबू पाना होगा, मीडिया को सार्वजनिक जीवन में शुद्धता लाने के लिए महत्‍वपूर्ण भूमिका निभानी है, इसके लिए उसे खुद भी बहुत सारी बुराईयों से ऊपर उठना होगा।

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