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कांग्रेस के 'भारत रत्‍न' से जगमग बाज़ार

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Sunday 9 February 2014 02:36:55 PM

sachin tendulkar

मुंबई। ‌‌‌हिंदुस्‍तान के गौरव और परंपरागत खेल हाकी की ‌स्‍टिक से गेंद को पलक झपकते ही गोल की दिशा दिखाने का विश्‍वविख्‍यात हाकी खिलाड़ी ध्‍यान चंद 'दद्दा' जैसा करिश्‍मा कम से कम क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर में तो नहीं ही था। ध्‍यान चंद हाकी के बादशाह थे, जिन्‍होंने जर्मन के प्रचंड शासनकर्ता हिटलर को भी भारतीयता और अपनी जादुई हाकी के सामने यह कहकर नतमस्‍मक करा दिया था कि 'मै 'अपने हिंदुस्‍तान' के लिए खेलता हूं', उन ध्‍यान चंद का 'अपने हिंदुस्‍तान' का सर्वोच्‍च सम्‍मान 'भारत रत्‍न' मिलने का जब अवसर आया तो भारत सरकार 'दद्दा' को किनारे कर 'क्रिकेट के भगवान' सचिन तेंदुलकर के साथ चल दी। बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों के उत्‍पादों के 'अवतार' क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर के गले में उस दिन राष्‍ट्रपति भवन में जब राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी 'भारत रत्‍न' पहना रहे थे, तब देश को ध्‍यान चंद की रह-रह कर याद आ रही थी और सबके सर पर चढ़े ये सवाल अपना जवाब मांग रहे थे कि क्‍या क्रिकेट भारत का खेल है? खेल में 'भारत रत्‍न' के सबसे पहले हकदार ‌कौन थे? और हाकी के बादशाह ध्‍यान चंद का क्‍या हुआ? सचिन तेंदुलकर भारत और दुनिया के महान क्रिकेट खिलाड़ी तो हैं, लेकिन उनके लिए 'भारत रत्‍न' की इतनी क्‍या जल्‍दी थी?
हिंदुस्‍तान में इलेक्‍ट्रानिक मीडिया ने भी 'भारत रत्‍न' पर ध्‍यान चंद के पहले 'हक' को उतने जोर-शोर से नहीं उठाया, वह सचिन तेंदुलकर की पैरवी में दीवाना था। काश! देश में किसी खेल और खिलाड़ी को पहला 'भारत रत्‍न' हाकी और ध्‍यान चंद को जाता और काश! 'भारत रत्‍न' के महा अभियान में मीडिया की प्राथमिकता पर राष्‍ट्रवाद और ध्‍यान चंद होते। खासतौर से इसलिए कि कभी-कभी ही ऐसे अवसर आते हैं, जिनसे स्‍वतः ही जनसामान्‍य में राष्‍ट्रवाद और आदर्श के कीर्तिमान स्‍थापित हो जाते हैं-यह वही अवसर था। देश ने देखा कि मीडिया और दूसरे अनेक लोग किस जोर-शोर से सचिन तेंदुलकर को 'भारत रत्‍न' मिलने के लिए लामबंद थे। मीडिया में और देश में उस समय केवल कुछ ही आवाज़ें सुनाई दीं कि पहली बार खेल में दिया जानेवाला पहला 'भारत रत्‍न सम्‍मान' अपने राष्‍ट्रीय खेल हाकी और ध्‍यान चंद को ही मिलना चा‌हिए, मगर हाकी और ध्‍यान चंद को छोड़, सचिन तेंदुलकर के पक्ष में हवा जो चलाई जा रही थी। बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों का भी दबाव था, ताकि उनके विज्ञापन प्रचारक का और ज्‍यादा कद बढ़े, तब देश-दुनिया से अपने उत्‍पाद के साथ यह भी कहा जाए कि उनका 'मॉडल' यानी विज्ञापन प्रचारक स‌चिन तेंदुलकर 'भारत रत्‍न' भी है। यूपीए सरकार को भी मीडिया के तेंदुलकर को भारत रत्‍न महा अभियान का लाभ समझने में कोई देर नहीं लगी और उसने ध्‍यान चंद की उपेक्षा करते हुए बिना अवसर गंवाए उपयुक्‍त समय से पहले ही सचिन तेंदुलकर को 'भारत रत्‍न' के लिए चुन लिया।
टीवी चैनलों पर विज्ञापन प्रचार करते हुए आज भी देखा जा सकता है कि किस प्रकार विज्ञापनों में दर्शकों को लालच दिया जाता है कि यदि उन्‍होंने 'ये' ब्रांड खरीदा तो उसकी इनामी योजना में सचिन तेंदुल्‍ाकर से मिलने और उनका ऑटोग्राफ लेने का मौका प्राप्‍त होगा। यानी 'भारत रत्‍न सम्‍मान' की ख्‍याति अब इतनी बाज़ारू हो गई है कि अपने देश के 'भारत रत्‍न' से मिलने के लिए कोई इनामी ब्रांड खरीदना होगा या उन्‍हें किसी कार्यक्रम में आमंत्रित करने के लिए भी उसकी पेशगी और बड़ी कीमत देनी होगी। इससे पता चलता है कि क्रिकेट से अरबों रुपये कमाने के बाद भी सचिन तेंदुलकर का धन एकत्र करने से पेट नहीं भरा है और 'भारत रत्‍न' प्राप्‍त हो जाने के बाद उनका बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों के उत्‍पादों का विज्ञापन प्रचार करना अपने चरम पर है। यहीं एक और गंभीर विचार उठता है कि देश का सर्वोच्‍च सम्‍मान प्राप्‍त होने के बाद देश के नागरिक की देश और समाज के प्रति प्राथमिकताएं भी तय होनी चाह‌िएं। यूं तो सम्‍मान और पुरस्‍कार कोई बंधनकारी नहीं होता है, जिसके प्राप्‍त होने के बाद उसकी स्‍वतंत्रता छिन जाए और वह नागरिक अपनी आजीविका के साधन नहीं जुटाएगा, ‌किंतु उसकी आजीविका के हितों की सम्‍मान सम्‍मत रक्षा करते हुए सरकार यह भी तय करे कि इस प्रकार का सम्‍मान प्राप्‍त होने के बाद उसकी देश और समाज के प्रति जिम्‍मेदारियां, कर्तव्‍य और व्‍यवहार क्‍या हों और वह अपनी आजीविका के स्रोत का चयन करते हुए भी उस सम्‍मान की गरिमा का ध्‍यान रखे, क्‍योंकि पुरस्‍कार और सम्‍मान में अंतर होता है, जिसका अंतर समझने की सचिन तेंदुलकर से अपेक्षा की ही जानी चाहिए।
दरअसल जैसी कांग्रेस की फितरत है, उसके राजनीतिक सलाहकारों ने लोकसभा चुनाव को देखते हुए वोटों के लिए यह भी एक अच्‍छा फार्मूला खोज निकाला कि क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को सम्‍मान के नाम पर 'भारत रत्‍न' 'बेच' दिया जाए और बदले में उनसे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रचार कराया जाए और यदि वह कांग्रेस का प्रचार करने के लिए उसके मंच पर नहीं आ सकें, तो कम से कम वह कांग्रेस का नमक खाकर भाजपा या दूसरी राजनैतिक पार्टियों के चुनाव प्रचार में तो नहीं जा पाएंगे। यह अलग प्रश्‍न है कि राजनीति में सचिन तेंदुलकर की अपील पर देश के कितने क्रिकेट प्रेमी कांग्रेस को वोट देंगे। आमतौर पर देखा गया है कि बड़े-बड़े फिल्‍मी कलाकारों, ‌खिलाड़ियों या दूसरे सेलेब्रिटीज़ से राजनीति कोई खास प्रभावित नहीं देखी गई है, सामाजिक जागरुकता कार्यक्रमों में भीड़ जुटाने में उनकी भूमिका अवश्‍य हो सकती है, उसमें भी अगर सलमान खान को 'वन्‍यप्राणियों का जीवन बचाएं' जैसे जागरुकता कार्यक्रम में शामिल कर लिया जाए तो क्‍या होगा, इसे आप समझ सकते हैं। सुपर स्‍टार अमिताभ बच्‍चन का कांग्रेस की राजनीति में आने का हस्र दुनिया देख चुकी है, वह राजनीति से ही तौबा कर गए। सचिन तेंदुलकर भी कुछ ऐसी ही लाइन पर जाते दिखाई पड़ रहे हैं, भले ही उन्‍होंने कहा हो कि मेरे पिता कह गए हैं कि राजनीति के चक्‍कर में नहीं पड़ना, किंतु कांग्रेस उनसे 'भारत रत्‍न' की कीमत वसूल किए बिना नहीं रहेगी। वह किसी और दल का भी प्रचार नहीं करें, कांग्रेस के लिए तब भी चलेगा। रही बात बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों के उत्‍पादों के विज्ञापन प्रचार की तो बाद के वर्षों में तेंदुलकर मीडिया की बदौलत क्रिकेट टीम में बने रहे, जिसने उन्‍हें अभियान चलाकर 'भारत रत्‍न' तक भी पहुंचाया और इस टैग के साथ क्रिकेट के भगवान को अपना आ‌र्थिक कारोबार चमकाने के लिए बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों का साथ मिला, जिन्‍होंने 'भारत रत्‍न' तेंदुलकर को अब अपना विज्ञापन प्रचारक बना दिया है।
भारतीय खेल जगत में सचिन तेंदुलकर को 'भारत रत्‍न' सम्‍मान मिलना और इतनी जल्‍दी यह सम्‍मान मिलना, भारत सरकार का दबाव भरा फैसला तो कहा ही जाएगा। आसान सा सवाल है कि यदि इलेक्‍ट्रानिक मी‌डिया के कैमरे का माइक किसी के मुंह में घुसेड़ कर बार-बार पूछा जाएगा कि वह बताए कि तेंदुलकर को भारत रत्‍न मिलना चाहिए कि नहीं तो वह बेचारा हां के अलावा और क्‍या कहेगा? वह यह तो नहीं कहेगा कि नहीं मिलना चाहिए। इसका मनोवैज्ञानिक दबाव क्‍या दर्शक वर्ग से लेकर सरकार तक पर नहीं पड़ा? मीडिया ने राजनेताओं अभिनेताओं या समाज के प्रतिष्‍ठित लोगों और खेल प्रेमियों को उनके ड्राइंगरूम में घुसकर या उन्‍हें सड़क पर घेरकर प्रतिक्रिया देने को मजबूर किया कि तेंदुलकर को 'भारत रत्‍न' मिलना चाहिए। इसका फैसला होते वक्‍त भारत सरकार इस मनोवैज्ञानिक दबाव में देखी गई। हां! सचिन तेंदुलकर भारत और दुनिया के महान क्रिकेट खिलाड़ियों मे से एक हैं, इस रूप में यह देश उनसे बेहद प्‍यार करता और सम्‍मान देता है, लेकिन यह भी सच है कि वे क्रिकेट के भगवान नहीं हैं-भावनाओं से ऊपर उठकर इस सच्‍चाई को स्‍वीकार किया जाना चाहिए। एक समय बाद उनसे ज्‍यादा पराक्रमी क्रिकेट खिलाड़ियों से उनको चुनौती मिली है, जिसका उन्‍हें एहसास भी हो गया था, नहीं तो वे इतनी आसानी से बल्‍ला छोड़ने वाले नहीं थे। काफी समय से तो वे अपने और बाजार के लिए ही खेलते नज़र आए हैं और लगे हाथ देश के लिए खेले जिसे लेकर उनको गंभीर आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा-यह बात कौन नहीं जानता है?
देश के ऐसे नागरिकों के सामने भावी पीढ़ी के लिए आदर्श और नैतिकता के कीर्तिमान स्‍थापित करने की जिम्‍मेदारी और ज्‍यादा बढ़ जाती है, क्‍योंकि उनका कृत्‍य सामाजिक और जनसामान्‍य एवं बाकी दुनिया के लिए भी दार्शनिक हो जाता है। वह जो करता या कहता है, समाज उसका अनुसरण करने लगता है। उसे सार्वजनिक रूप से वही व्‍यवहार करना होता है, जो न्‍याय सम्‍मत हो, भले ही उसमें उसके मन की खुशी क्‍यों न दबी हो। भारत रत्‍न जैसे सम्‍मान का आशय ही उसकी गरिमा की सदैव रक्षा करने और नई पीढ़ी को जागरुक एवं प्रेरित करने से है। भारत की स्‍वर कोकिला लता मंगेशकर, पेप्‍सी, कोकाकोला और अन्‍य अंतर्राष्‍ट्रीय उत्‍पादों की विज्ञापन प्रचारक नहीं हैं। एपीजे अब्‍दुल कलाम भी कहीं जिलट जैसे बाजार के लिए इस प्रकार से इस्‍तेमाल नहीं हो रहे हैं और पंडित भीमसेन जोशी भी नहीं। 'भारत रत्‍न' देते समय इनके लिए सचिन जैसा बाजार भी नहीं सजाया गया था। वह मुंबई के वानखेड़े स्‍टेडियम में आतिशबाज़ियों से चमचमाता हुआ बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों का शो था, उसके बाद पांच सितारा पार्टियों में जश्‍न और बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों में भारत रत्‍न का उपयोग। सचिन तेंदुलकर ही देश के अकेले महान ‌खिलाड़ी हैं, ऐसा नहीं है। भारत में हाकी के जादूगर ध्‍यान चंद उनसे पहले और उनसे भी महान खिलाड़ी हैं, जिनका उनसे पहले ही देश के महान खिलाड़ी रूप में जन्‍म हो चुका है।
भारत रत्‍न सम्‍मान की पात्रता के लिए समय जैसी और बहुत सी भी अहर्ताएं हैं, जिन्‍हें सचिन अभी पूरा नहीं करते। कुछ टीवी चैनल पर 'सचिन तेंदुलकर को भारत रत्‍न दो' के महा अभियान और इसमें कांग्रेस के राजनीतिक मुनाफे के तड़के ने सचिन तेंदुलकर और बाज़ार के लिए बड़ा काम किया है। मार्केटिंग मैनेजर आज चाहे जो कहें, यह सीधे कारपोरेट का खेल था, क्‍योंकि तेंदुलकर पर बाजार के प्रचार का करोड़ों रुपया लगा है, इसलिए तेंदुलकर के सूखे संन्‍यास लेने के बाद बाजार को बड़ा नुकसान होना था। रिटायर होने के बाद कई नामी खिलाड़ी सड़क पर घूम रहे हैं। तेंदुलकर को अब 'भारत रत्‍न' का टैग लग गया है, जिससे उनकी कीमत और कीर्ति भी बढ़ गई है। जब तक उनका जहान है, अंतर्राष्‍ट्रीय बाजार में 'भारत रत्‍न' के साथ उनकी समृद्धशाली पताका फहराती रहेगी। कोई कहे या न कहे, लेकिन सचिन बिना प्रचार में उतरे ही कांग्रेस के अघोषित ब्रांड बन गए हैं। हां, यह सम्‍मान उन्‍हें हाकी खिलाड़ी ध्‍यान चंद को मिलने के बाद और कुछ और समय बाद दिया जाता या सचिन स्‍वयं सामने आकर कहते कि यह सम्‍मान पहले दद्दा को ही मिलना चाहिए तो इसकी महत्‍ता शायद और गरिमामय हो जाती। सचिन तब भी भारत रत्‍न ही कहलाते। इस समय इस सम्‍मान का मतलब ‌तो बिल्‍कुल साफ है।

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