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समग्र जीवन में सफलता की कुंजी है गीता!

'श्रीमद्भागवत गीता और व्यवस्था परिवर्तन' पर संगोष्ठी

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Monday 16 December 2013 03:24:45 AM

geeta jayanti

लखनऊ। गीता जयंती-कर्तव्य दिवस पर 'श्रीमद्भागवत गीता और व्यवस्था परिवर्तन' विषय पर विश्व संवाद केंद्र में कर्तव्य फाउंडेशन की ओर से आयोजित संगोष्ठी में मुख्यवक्ता विद्यांत हिंदू पीजी कालेज के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ विजय कर्ण ने कहा है कि समता और कर्म के सिद्धांतों की स्थापना करना गीता और स्वामी विवेकानंद का उद्देश्य है, समता का अभाव और विभिन्न भेदों के होने के कारण भारतीय समाज का ताना बाना छिन्न-भिन्न दिखाई दे रहा है, सभी को एक दृष्टि से देखने एवं इस समय जितने प्रकार के भेद व्याप्त हैं, उन सबका निराकरण भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से कही गई गीता में वर्णित है।
डॉ विजय कर्ण ने कहा है कि व्यवस्था को पुन: सुगठित करने के लिए स्वामी विवेकानंद ने अपने उपदेश तथा चिंतन में समता, ममता और कर्म में सभी को प्रवृत होने की प्रेरणा दी है। उन्होंने कहा कि विवेकानंद के समग्र चिंतन का अवलोकन करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि द्वापर के उस महानायक श्रीकृष्ण के संपूर्ण चिंतन रहस्य को नवनीत के रूप में स्वामी विवेकानंद ने अपने अल्प जीवन में उद्घाटित किया, जो आज प्रासंगिक है, क्योंकि स्वामीजी संक्रमण काल में हमारे बीच में आते हैं, आज वही संक्रमण काल चल रहा है, गीता के संदेशों को आत्मसात कर ही व्यवस्था परिवर्तन संभव है।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि किंग जार्ज मेडिकल कालेज के रेडियोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ एमसी पंत ने कहा कि श्रीमद्भागवत गीता सफलता के द्वार की कुंजी है, यह जीवन के यथार्थ रहस्यों को सुलझाती है, इसमें सारे वेदों, पुराणों और उपनिषदों का सार का संग्रह है, वर्तमान के इस जीवन संघर्ष में गीता की उपयोगिता और भी बढ़ गई है, क्योंकि यह किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो चुके मानव को जीवन जीने का सही रास्ता दिखलाती है। कार्यक्रम के अध्यक्ष लखनऊ जनसंचार संस्थान के निदेशक डॉ अशोक सिन्हा ने कहा कि श्रीकृष्ण के मुखारबिंद से निकली गीता में संसार की सभी समस्याओं का समाधान है, इसलिए यह आईआईएम एवं आईआईटी जैसे देश के बड़े संस्थानों में पढ़ाई जा रही है, अमेरिका के एक विश्वविद्यालय में तो गीता पढ़ाना अनिवार्य ही कर दिया गया है, गीता के उपदेशों को सामान्य मनुष्य अपनाकर उन्नति की ओर अग्रसर हो सकता है, परिवार एवं शिक्षण सस्थानों में गीता का समावेश होना वर्तमान की मांग है, कर्तव्य करने वाला व्यक्ति हमेशा सुखी रहता है और सम्मान पाता है।
विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह प्रांत संघ चालक डॉ हरमेश सिंह चौहान ने कहा कि भारत वर्ष में ज्ञान, भक्ति एवं कर्म क्षेत्र में गीता से प्रभावित होने वाले महापुरूषों की अखंड परंपरा रही है, पंडित मदन मोहन मालवीय, महर्षि अरविंद, महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद ने गीता को अपने जीवन व्यवहार में उतारा था और आज पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम तक गीता को प्रेरणादायी ग्रंथ मानते हैं। उन्होंने कहा कि गीता अध्यात्म भी है और व्यावहारिक होने के कारण विज्ञान भी। संसार भी एक प्रकार का युद्ध स्थल है, जिसमें प्रत्येक प्राणी सत्य और अच्छाईयों के लिए किसी न किसी रूप में बुराईयों से संघर्ष कर रहा है, गीता का संदेश है कि यदि अपने कर्म में निरंतर रत रहा जाए तो अंत में विजय अच्छाईयों की ही होती है, श्रीकृष्ण ने गीता के माध्यम से मानव समाज के समक्ष उपस्थित सभी प्रश्नों के उत्तर दिए हैं, जिसे अपनाकर इंसान कर्मपथ पर आगे बढ़ सकता है, गीता का अनुकूल आचरण ही हमें वर्तमान यांत्रिक और भौतिकतावादी जीवन की चुनौतियों से पार लगाकर सुख-शांति एवं समृद्धि प्रदान कर सकता है।
कर्तव्य फाउंडेशन के अध्यक्ष राजकुमार ने कहा कि युद्ध के मैदान में दिया गया ज्ञान गीता है, जो अर्जुन की निराशा को दूर करने के लिए दिया गया, भगवान धर्म के साथ रहते हैं और अधर्म का साथ देने वालों का नाश करते हैं, आधुनिकता के इस दौर में सभी अपने अधिकारों की बात तो करते हैं, परंतु परिवार समाज और राष्ट्र के प्रति क्या हमारे कर्त्तव्य हैं, उन्हें भूलते जा रहे हैं, गीता हमारे कर्त्तव्यों की याद दिलाती है, इस पावन दिवस पर हम सभी अपने जीवन में गीता के आदर्शों का पालन करने का संकल्प लें, तभी समाज व परिवार सुरक्षित रह सकता है। फाउंडेशन के संरक्षक एवं समाज सेवी सुभाषचंद्र अग्रवाल ने कहा कि जीवन रोने या जीवन क्षेत्र से पलायन करने के लिए नहीं अपितु हंसते-खेलते, मुसीबतों के सामने हिम्मत से जूझते हुए उनका सामना करने के लिए है, गीता निष्प्राण लोगो में प्राणों का संचार कर मानव मात्र को इस बात की अनुभूति कराती है कि मृत जीवन की अपेक्षा जीवंत मृत्यु श्रेष्ठ है, गीता का संदेश तभी सफल कहा जाएगा जब हमारा जीवन गीता का जीवंत भाष्य बनें।
कार्यक्रम के संचालक कर्तव्य फाउंडेशन के महासचिव डॉ हरनाम सिंह ने कहा कि जीवन-दर्शन के अनुसार मनुष्य, असीम शक्तियों का भंडार है, ज्ञान की प्राप्ति से ही मनुष्य की सभी जिज्ञासाओं का समाधान होता है, इसीलिए गीता को सर्वशास्त्रमयी भी कहा गया है, मनुष्य का कर्त्तव्य क्या है? इसी का बोध कराना ही गीता का परम लक्ष्य है। संगोष्ठी में सुमंगलम प्रभा त्रैमासिक के राष्ट्रीय सुरक्षा अंक का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से पंकज अग्रवाल, हिमांशु सिंह, लोकेश अवस्थी, रीतेश शुक्ला, गुजंन केशरवानी, राजेंद्र, दिव्य भूषण शर्मा, देवेश अवस्थी, डॉ मीता विशेन, मृत्युंजय दीक्षित, शशिकांत गोपाल, विनय, अनंत शर्मा आदि उपस्थित थे। 

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