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दुनिया में भारत की शर्मनाक आर्थिक पराजय !

डॉ मनमोहन सिंह साबित हुए एक नाकाम अर्थशास्‍त्री प्रधानमंत्री !

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Friday 6 September 2013 09:19:33 AM

manmohan singh

नई ‌दिल्‍ली। प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने भारत के आर्थिक हालात पर लोकसभा में दिए वक्तव्य में रुपये की विनिमय दर में उतार-चढ़ाव पर स्‍वीकार किया है कि इसका भारत की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा। मुख्‍यरूप से एक अर्थशास्‍त्री होते हुए अपनी नाकामियों पर ढीठ बनकर खड़े मनमोहन सिंह ने अपने घटिया फैसलों पर फिर पर्दा डालने की नाकाम कोशिश की और लोकसभा में फिर वही घिसापिटा बयान दिया कि मई के अंतिम सप्ताह से डालर के मुकाबले भारतीय रुपए में भारी गिरावट आई है, इसके अलावा इस गिरावट के कुछ घरेलू कारण भी हैं, जो सरकार के लिए चिंता का विषय हैं। अर्थशास्‍त्री प्रधानमंत्री के इस बयान से देश भारी ग़ुस्‍से में है, लेकिन देशवासी बेहद लाचार हैं, क्‍योंकि वे फिलहाल कुछ नहीं कर सकते। देशवासी मान रहे हैं कि वाकई में देश प्रायोजित आर्थिक संकट और दुनिया में भारत की बुरी तरह गिरती साख से घिरा है। मनमोहन सिंह के बोगस अर्थशास्‍त्र की भारत को आर्थिक पराजय के रूप में भी कीमत चुकानी पड़ रही है। आइए जानते हैं कि प्रधानमंत्री ने लोकसभा में काग़ज का टुकड़ा बना दिए गए भारतीय रुपए पर क्‍या-क्‍या कहा-
प्रधानमंत्री मममोहन सिंह ने कहा कि देश के बाहर घटी कुछ अप्रत्याशित घटनाओं से बाजार पर विपरीत प्रतिक्रिया हुई है, जिसके कारण रुपये की कीमत में तेजी से और अप्रत्याशित गिरावट आई। लगातार नौ साल से अपनी आर्थिक विफलताओं को लोकसभा की कार्यवाही रिकॉर्ड में गुमराह करते और छिपाते गुए फिर एक बहाना तलाश लाए कि 22 मई 2013 को यूएस सेंट्रल बैंक ने यह संकेत दिया था कि वह जल्द ही मात्रात्मक मूल्य में धीरे-धीरे कमी लाएगा, क्योंकि अमेरिका की अर्थव्यवस्था में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है, इसीसे उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में पूंजी के प्रवाह पर विपरीत प्रभाव पड़ा, जिसके फलस्वरूप न केवल रुपये में, बल्कि ब्राजील की रियाल, तुर्की की लीरा, इंडोनेशिया के रुपिया, दक्षिण अफ्रीका के रैंड और अन्य मुद्राओं में भी तेजी से गिरावट आ रही है। उन्‍होंने कहा कि जहां वैश्विक कारणों जैसे कि सीरिया में तनाव और यूएस फेडरल रिज़र्व के मात्रात्मक मूल्य में धीरे-धीरे कमी लाने की नीति अपनाए जाने से उभरती बाजार मुद्राओं में सामान्य गिरावट आई है, वहीं हमारे चालू खाते में भारी घाटे और कुछ अन्य घरेलू कारणों से विशेष रुप से रुपया प्रभावित हुआ है, हम चालू खाता घाटे को कम करना चाहते हैं तथा अर्थव्यवस्था में सुधार लाना चाहते हैं।
प्रधानमंत्री का कहना है कि वर्ष 2010-11 और इससे पूर्व के वर्षों में हमारा चालू खाता घाटा काफी सामान्य था और 2008-09 के संकट वाले वर्ष में भी इसका वित्त पोषण करना मुश्किल नहीं था, तभी से इसमें गिरावट आने लगी है, जिसके मुख्य कारण भारी मात्रा में सोने का आयात, कच्चे तेल के आयात और हाल ही में कोयले की ऊंची कीमतें रही हैं। निर्यात के क्षेत्र में, हमारे प्रमुख बाजारों में कमजोर मांग के कारण हमारा निर्यात का बढ़ना रुक गया है, लौह अयस्क के निर्यात में आई गिरावट के कारण भी निर्यात और अधिक प्रभावित हुआ है, इन सभी कारणों से हमारा चालू खाता घाटा निरंतर बढ़ा है, स्पष्ट है कि हमें सोने के प्रति अपना मोह कम करना होगा, पेट्रोलियम उत्पादों का मितव्ययतापूर्ण इस्तेमाल करना होगा और अपने निर्यातों को बढ़ाने के उपाय करने होंगे, हमने चालू खाता घाटे को कम करने के उपाय किये हैं, वित्त मंत्री ने संकेत दिया है कि इस वर्ष चालू खाता घाटा 70 बिलियन डालर से नीचे रहेगा तथा हम इसे और कम करने का हर संभव उपाय करेंगे, इनके नतीजे जून और जुलाई में व्यापार घाटे में आई कमी के रूप में दिखाई भी देने लगे हैं।
मनमोहन सिंह ने कहा कि सरकार को यकीन है कि वह अपने चालू खाता घाटे को 70 बिलियन डालर से कम कर लेगी, हमारा मध्यम कालिक उद्देश्य चालू खाता घाटे को अपने सकल घरेलू उत्पाद के 2.5 फीसद तक कम करना है, हमारा अल्पकालिक उद्देश्य चालू खाता घाटे का व्यवस्थित तरीके से वित्त पोषण करना है, हम विदेशी पूंजी प्रवाह के अनुकूल वृहद् आर्थिक ढांचा बनाए रखने का हर प्रयास करेंगे, ताकि चालू खाता घाटे का व्यवस्थित तरीके से वित्त पोषण किया जा सके। रुपये के अवमूल्यन के प्रभावों पर फिर से चर्चा करते हुए उन्‍होंने कहा कि हमें यह समझना होगा कि इस अवमूल्यन का एक हिस्सा केवल समायोजन था, भारत में मुद्रास्फीति विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कहीं अधिक रही है, इसलिए यह स्वाभाविक है कि इस अंतर के कारण विनिमय दर में सुधार करना होगा, कुछ हद तक अवमूल्यन अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा हो सकता है, क्योंकि इससे हमारी निर्यात संबंधी प्रतिस्पर्द्धी क्षमता को बढ़ाने तथा आयात को कम करने में मदद मिलेगी, ऐसे कई क्षेत्र हैं, जिनमें विनिमय दर में गिरावट के कारण निर्यात बाजारों में फिर से प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता बढ़ रही है, अगले कुछ महीनों में इसका प्रभाव निर्यात तथा निर्यात क्षेत्रों की आर्थिक स्थिति-दोनों में और अधिक मजबूती से दिखाई देगा, इससे कुछ हद तक चालू खाता घाटे में सुधार होगा, फिर भी विदेशी विनिमय बाजारों में अचानक तेजी आने का इतिहास रहा है, दुर्भाग्य से यह न केवल रुपये के साथ हो रहा है, बल्कि अन्य मुद्राओं के साथ भी हो रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय रिज़र्व बैंक तथा सरकार ने रुपये को स्थिर करने के कई उपाय किये हैं, कुछ उपायों से कुछ हलकों में यह संदेह पैदा हुआ है कि यह पूंजी नियंत्रण के लिए की जा रही कार्रवाई है। उन्‍होंने यह कहकर सदन तथा विश्व को भरोसा दिलाने की कोशिश की कि सरकार इस तरह के कोई उपाय करने पर विचार नहीं कर रही है, विगत दो दशकों में भारत एक खुली अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित हुआ है और इसका उसने लाभ उठाया है, पूंजी और मुद्रा बाजार में कुछ उथल-पुथल के कारण इन नीतियों को बदलने का कोई सवाल ही नहीं उठता है, विनिमय दर में अचानक गिरावट निश्चित रूप से एक आघात है, लेकिन हम इसका मुकाबला अन्य उपायों के माध्यम से करेंगे, न कि पूंजी नियंत्रण अथवा सुधारों की प्रक्रिया को पलटकर। उन्‍होंने कहा कि वित्त मंत्री ने इसे स्पष्ट कर दिया है और मैं इस अवसर पर हमारी स्थिति की पुनः पुष्टि करना चाहूंगा, आखिर, रुपये का मूल्य हमारी अर्थव्यवस्था के मौलिक आधारों से निर्धारित होता है, हालांकि हमने उन मौलिक आधारों को मजबूत करने के लिये कई कार्रवाइयां की हैं, फिर भी हम इसे और अधिक मजबूत करना चाहते हैं, हाल की तिमाही में विकास दर घटी है और मैं आशा करता हूं कि वर्ष 2013-14 की पहली तिमाही में विकास दर अपेक्षाकृत सामान्य रहेगी, लेकिन मेरा यकीन है कि जैसे-जैसे अच्छे मानसून के नतीजे सामने आएंगे, वैसे-वैसे विकास दर भी बढ़ेगी।
उन्‍होंने कहा कि इस आशावादिता के कई कारण हैं, रुकी हुई परियोजनाओं को फिर से शुरु करने के निवेश संबंधी मंत्रिमंडल समिति के निर्णयों के नतीजे वर्ष की दूसरी छमाही में सामने आने लगेंगे, विगत छह महीनों में किए गए विकास अनुकूल उपायों जैसे कि एफडीआई मानदंडों को उदार बनाना, उद्योगों से जुड़े कुछ कर संबंधी मुद्दों का निराकरण और ईंधन सब्सिडी में सुधार के पूरे नतीजे साल भर में सामने आएंगे, जिससे विकास दर बढ़ेगी, खासतौर से विनिर्माण के क्षेत्र में। निर्यात के क्षेत्र में भी कुछ बढ़ोतरी दिखाई दे रही है, क्योंकि दुनिया के दूसरे देश अपनी विकास दर में सुधार ला रहे हैं, इसलिए मेरा विश्वास है कि यदि विकट अप्रत्याशित घटनाएं न घटें तो वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में विकास दर बढ़ने लगेगी, वित्तीय घाटे के आकार के बारे में भी कुछ चिंताएं हैं, सरकार इस वर्ष वित्तीय घाटे को 4.8 फीसद तक सीमित रखने के लिए सभी उपाय करेगी, इस वित्तीय घाटे को नियंत्रित रखने का सबसे बेहतर तरीका यह है कि हम सावधानी से खर्च करें, विशेषकर उन सब्सिडियों पर, जो गरीबों तक नहीं पहुंच पाती हैं और हम इस दिशा में प्रभावी उपाय करेंगे, थोक मूल्य सूचकांक से आंकी गई मुद्रास्फीति में कमी आ रही है, हालांकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से आंकी गई मुद्रास्फीति अभी भी काफी अधिक है।
मनमोहन सिंह ने कहा कि रुपये के अवमूल्यन और पेट्रोलियम उत्पादों के डालर मूल्यों में बढ़ोत्तरी से निःसंदेह कीमतें आगे भी बढ़ने की संभावना है, इसलिए भारतीय रिज़र्व बैंक महंगाई कम करने पर सतत ध्यान देता रहेगा, अनुकूल मानसून और अच्छी फसल होने के पूर्वानुमान से अनाज के मूल्यों में कमी आएगी तथा महंगाई को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी, कुल मिलाकर अपनाई जा रही वृहद्-स्थिरीकरण की प्रक्रिया जारी है, जिससे रुपये की कीमत बढ़ेगी। उन्‍होंने कहा कि यद्यपि हम आवश्यक प्रयास कर रहे हैं, फिर भी यह स्वीकार करना जरूरी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के मूल आधार मजबूत बने रहेंगे। सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में भारत का समग्र सार्वजनिक ऋण वर्ष 2006-07 में सकल घरेलू उत्पाद के 73.2 फीसद से घटकर 2012-13 में 66 फीसदी हो गया है, इसी तरह भारत का विदेशी ऋण सकल घरेलू उत्पाद के केवल 21.2 फीसद है, अल्पकालिक ऋण बढ़ा है, लेकिन यह सकल घरेलू उत्पाद के 5.2 फीसदी पर स्थिर है, हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 278 बिलियन अमेरिकी डालर है और यह भारत की बाह्य वित्त पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त है, कई विदेशी विश्लेषक मुद्रा संकट के कारण बैंकिंग समस्याओं के बारे में चिंतित हैं, भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में डूबंत ऋण में कुछ बढ़ोत्तरी हुई है।
लोकसभा में उन्‍होंने कहा कि सवाल यह है कि क्या तरलता की समस्या है अथवा कर्जदारों के दिवालियेपन की समस्या है? इस पर मेरा यह मानना है कि तरलता की समस्या है, कई परियोजनाएं अव्यवहार्य नहीं हैं, बल्कि वे केवल विलंबित हैं, जबकि इसके विपरीत, दूसरे देशों में काफी संख्या में परियोजनाएं बनाए जाने के कारण बैंकिंग क्षेत्र में समस्याएं उत्पन्न हुई हैं, जैसे-जैसे ये परियोजनाएं सुचारु होंगी, वैसे-वैसे वे राजस्व सृजित करेंगी तथा ऋणों का भुगतान करेंगी, हमारे बैंकों के पास आधारभूत मानदंडों से अधिक पूंजी है और गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों के निष्पादनकारी होने तक उन्हें वित्तपोषित करने की क्षमता है, विगत में आसान सुधार किए जा चुके हैं, अब हमें सुधार के लिए कड़े कदम उठाने होंगे, इन सुधारों में सब्सिडी में कमी, बीमा और पेंशन संबंधी सुधार, अफसरशाही लाल फीताशाही को दूर करना और माल एवं सेवा कर लागू करना शामिल हैं, ये आसान सुधार नहीं हैं, इनके लिए राजनैतिक सहमति की आवश्यकता है, मैं यहां सभी राजनैतिक दलों के सदस्यों से अनुरोध करुंगा कि वे समय की मांग पर ध्यान दें, कई आवश्यक कानून राजनैतिक सहमति न होने के कारण लंबित हैं, माल तथा सेवा कर जैसे सुधार, जिसे सभी लोग विकास दर फिर से हासिल करने हेतु आवश्यक मानते हैं, के लिये राज्यों की सहमति की आवश्यकता है।
उन्‍होंने कहा कि हमारी अर्थव्यवस्था को अल्पकालिक आघात लग सकते हैं और हमें उनका मुकाबला करना होगा, वैश्विक अर्थव्यवस्था की यही सच्चाई है, जिसका लाभ हम सभी ने उठाया है, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे मूलभूत आधार सुदृढ़ रहें, ताकि भारत आगामी कई वर्षों तक एक बेहतर विकास दर को बरकरार रख सके, हम इसे सुनिश्चित करेंगे, हमारे सामने कई चुनौतियां हैं, परंतु उनका मुकाबला करने की हममें क्षमता है, यही वह वक्त है जब देश को यह दिखाना होता है कि वह सही मायनों में कितना सक्षम है। क्‍या आप प्रधानमंत्री के इस वक्‍तव्‍य ये सहमत और संतुष्‍ट हैं? उन्‍होंने भारतीय रुपए में गिरावट के वे कुछ घरेलू कारण नहीं बताए।

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