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अमरीका तक में छा गए हैं नरेंद्र भाई मोदी

वाशिंगटन पोस्ट ने भारतीय लीडर‌शिप को दिखाया आईना

दिनेश शर्मा

Saturday 27 July 2013 11:30:53 AM

narendra modi

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के नेता और भारत में प्रधानमंत्री पद के प्रमुख दावेदार नरेंद्र मोदी को वीजा न देने के अमरीकी राष्ट्रपति बरॉक ओबामा को भेजे गए कुछ भारतीय सांसदों के फर्जी हस्ताक्षरयुक्त फैक्स पर अमरीका के प्रत‌िष्‍ठित अख़बार वाशिंगटन पोस्ट ने भारतीय लीडर‌शिप को तगड़ा जूता मारा है। बड़ी प्रसार संख्या वाले वाशिंगटन पोस्ट ने कहा है कि इस बात की कल्पना ही नहीं की जा सकती है कि भारतीय सांसद अमरीका से अपने अंदरूनी मसले पर सहयोग करने की अपील करेंगे, बल्कि ज्यादातर तो इस विचार मात्र से ही भड़क उठेंगे। इस घटनाक्रम से अमरीका का बच्चा-बच्चा भी आज जान गया ‌है कि भारत में कोई नरेंद्र मोदी है, जिसे दुनिया में अमरीकी राष्ट्रपति के बराबर प्रसिद्धि और लोकतांत्रिक ताकत हांसिल है। इस टिप्पणी ने नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता ग्राफ ही नहीं बढ़ाया है, अपितु उनकी भारत के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी और उसे समर्थन को और भी ज्यादा विकसित और मज़बूत कर दिया है।
महत्वपूर्ण मामलो में यह भारत की आंतरिक राजनीतिक रणनीतियों और विदेश नीति की बड़ी विफलता और पतन की घोर पराकाष्ठा ही कही जाएगी कि अमरीकी अख़बार वाशिंगटन पोस्ट को भी कहना पड़ा है कि भारतीय राजनीति और उसके नेताओं का क्या स्तर है। अब सवाल उठता है कि भारत के अंदरूनी मामले में अमरीका को तीसरा एंपायर बनाने की कोशिश करने वालों के खिलाफ भारत की संसद और यहां की जनता क्या करती है, क्योंकि सांसदों का फर्जी हस्ताक्षरयुक्त फैक्स सामने आया है, जिसे एक सांसद मोहम्मद अदीब की मुहिम पर कुछ मुसलिम सांसदो ने अंजाम दिया है और उन्होंने उस फैक्स पर कई दूसरे सांसदों के फर्जी हस्ताक्षर किए हैं। नरेंद्र मोदी विरोध के इस फर्जीवाड़े की धमक पूरी दुनिया को सुनाई दी है, इसलिए जो मोदी को नहीं जानते थे, वो भी अब जान गए हैं। सोशल मीडिया, नरेंद्र मोदी के खिलाफ इस तरह की साजिशों को पहले से ही बेनकाब करता आया है। इस फर्जीवाड़े से तो साबित ही हो गया है कि इसके पीछे हो न हो कांग्रेस और उसके भाड़े के लोग हैं, जिन्होंने नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक ऐसी सुनियोजित साजिश को अंजाम दिया है, जिसकी दुनियाभर में निंदा हो रही ‌है और इस बात की तस्दीक हो रही है कि वाकई में कांग्रेस और देश के गैर भाजपाई नेता, नरेंद्र भाई मोदी के भावी प्रधानमंत्री होने के भय से उनके खिलाफ साजिशों के लाक्षाग्रह बनाने में लगे हैं।
कहा जा रहा है कि गुजरात में नरेंद्र भाई मोदी का काम अच्छा न होता और देश-दुनिया में सोशल मीडिया क्रांति न हुई होती तो कांग्रेस के गुर्गे और देश के तथाकथित सेक्यूलर, भाजपा के इस स्टार नेता का कब का ‘एंकाउंटर’ कर दिए होते। नरेंद्र मोदी को सोशल मीडिया का शुक्रगुजार होना चाहिए, जिसने उन पर आए साजिशों के हर संकट और हमले का तथ्यात्मक तरीके से मुंहतोड़ जवाब दिया है और वह मोदी के राष्ट्रवाद एवं विकास मॉडल के साथ चट्टान की तरह खड़ा है, जिससे आज भारत से लेकर अमेरीकी संसद के उच्च सदन में उनको देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखा और माना जा रहा है, जबकि मीडिया ने गुजरात के दंगों में नरेंद्र मोदी की छवि, दुनिया के उन खलनायकों जैसी प्रस्तुत कर दी है, जिन्होंने मानवता के खिलाफ बड़े जघन्य अपराध किए हैं। सोशल मीडिया ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ मीडिया से लेकर राजनीतिक दलों के एजेंडों और नेताओं के नरेंद्र मोदी पर विष वमन को प्रभावहीन किया है। देश-दुनिया में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तो नरेंद्र मोदी को मानवता का हत्यारा और मौत का सौदागर तक कहकर प्रचारित किया है, मगर अमेरिका ने केवल सुनी-सुनाई बातों और आरोपों पर अपने यहां जिस नरेंद्र मोदी के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया, आज वही नरेंद्र मोदी अमरीकी संसद के उच्चसदन में भारत के भावी प्रधानमंत्री के रूप में गूंज रहा है और उसके लिए अब अमरीका कह रहा है कि यदि नरेंद्र मोदी, अमरीकी वीजा के लिए आवेदन करें तो वह उस पर विचार करेगा।
अब यह अलग बात है कि नरेंद्र मोदी अमरीका जाना चाहेंगे कि नहीं। अमरीका ने इतने साल से नरेंद्र मोदी को अपने यहां का वीज़ा नहीं दिया, इससे भी नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता नहीं रूकी, बल्कि आज वह भार‌तीय जनमानस में भारतीय जनता पार्टी की ओर से भारत के भावी प्रधानमंत्री के एकमात्र दावेदार बन चुके हैं, जिसे अमरीका भी मान रहा है और वह यह भी मान चुका है कि भारत के मुसलमानों के एक धर्मांध वर्ग को छोड़कर बाकी भारत में नरेंद्र मोदी की लहर है और देश की जनता उन्हें गुजरात दंगो के लिए किसी भी कीमत पर दोषी नहीं मानती है, बल्कि गोधरा में रेल विध्वंस को गुजरात क्या पूरे देश की जनता बर्दाश्त नहीं कर सकी और वह प्रतिशोध में सड़कों पर उतर आई, जिसे उस वक्त रोक पाना किसी भी सरकार या किसी देश की सेना के भी वश में नहीं था। ध्यान रहे कि आरोप लगाया गया था कि गोधरा रेल कांड के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहते हुए नरेंद्र मोदी ने गुजरात मे दंगा नहीं रोका। इसमें उनके मंत्री अमित शाह, कार्यकर्ताओं, कई शीर्ष अधिकारियों तक को जेल जाना पड़ा है।
गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रियों और अफसरों की संलिप्तता की राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय स्तर पर इतनी बार जांचें हो चुकी हैं, इसकी चर्चा दुनिया भर में होती है। इतनी जाचें भी शायद ही किसी राजनेता के खिलाफ हुई हों। इससे ज्यादा क्या हो सकता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई भी नरेंद्र मोदी को उनका राजधर्म समझाने लगे, मगर किसी भी जांच में नरेंद्र मोदी की दंगों में संलिप्तता नहीं पाई गई। यह बात भारतीय मीडिया ने भी ईमानदारी से कहीं नहीं लिखी कि मोदी को नाहक ही गुजरात दंगों में बलि का बकरा बनाया जा रहा है। यह केवल सोशल मीडिया ने ही कहा है और आज सोशल मीडिया ने गोधरा से लेकर कांग्रेस के सांसद एहसान जाफरी तक और मुठभेड़ में मारी गई आतंकवादी लड़की इशरत जहां एवं उसके पाकिस्तानी गैंग के सदस्यों का पूरी तरह से सच उजागर किया हुआ है। वास्तव में माना जाता है कि नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगी मंत्रियों ने अपने खिलाफ बाहर और पार्टी के भीतर भी जिस तरह के षड़यंत्रों का लगातार सामना किया है और कर रहे हैं, वैसा सामना किसी नेता ने नहीं किया, नरेंद्र मोदी ने अपने राजनीति जीवन की सफलताओं को अग्निपथ से गुजर कर हासिल किया है।
गुजरात के केशु भाई पटेल जैसे दिग्गजों और कुछ अपनों के भी तीव्र विरोध के बावजूद नरेंद्र मोदी को गुजरात में मिली भारी राजनीतिक सफलताओं, उनके प्रधानमंत्री के दावे एवं लोकप्रियता से चिढ़ी कांग्रेस और तथाकथित सेक्यूलरवादियों को लगता है कि देश के प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया को खरीदना या उसके लोगों और गुलाम बनाकर रखना तो कोई मुश्किल नहीं रहा है, लेकिन ऑनलाइन मीडिया उसके क्या सभी के काबू से बाहर है, इसलिए कांग्रेस गठबंधन सरकार सोशल मीडिया को मैनेज करने और उसे सख्त कानून से घेरने पर उतर आई है, लेकिन तब, जब सोशल मीडिया में कांग्रेस और देश के परंपरागत मीडिया की भ्रष्ट करतूतों का जनाजा निकल चुका है और मोदी के राष्ट्रवाद और विकास का जादू सर चढ़ कर बोल रहा है। आज सोशल मीडिया के हर तीसरे पेज पर नरेंद्र मोदी हैं और यह पेज क्लिक भर में पूरी दुनिया में जाता है, जिसमें बेबाकी से गुजरात दंगो से लेकर गुजरात के विकास मॉडल और देश के हालात एवं उसके नेताओं तक पर खुलकर चर्चा होती है। इससे कांग्रेस बौखलाई हुई है और देश के गैरभाजपाई क्षेत्रीय दलों को यकीन हो गया है कि लोकसभा चुनाव में मुकाबला नरेंद्र मोदी बनाम कांग्रेस में सिमट रहा है। अब तो प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के अलंबरदारों और स्तंभकारों ने भी पलटी मार दी है, जो टीवी चैनलों पर पानी पी-पी कर मोदी को फांसी पर लटका रहे थे। अब वह कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री पद के लायक भी हैं, दावेदार भी हैं। टीवी मीडिया में कईयों में इस बात की होड़ है कि कौन नरेंद्र मोदी को सबसे ज्यादा कवरेज दे रहा है।
राहुल गांधी की कांग्रेस का जहाज तो डूब रहा है, यह बात इस देश के जनसमान्य से लेकर सात समंदर पार तक मालूम है। यह भी मालूम हो गया है कि नरेंद्र मोदी ही देश के अगले प्रधानमंत्री होने जा रहे हैं, जिन्हें इस पद की दौड़ से हटाने के लिए कांग्रेस, सपा और बसपा जैसी पार्टियां अपने मनभेद और मतभेद भुलाकर साथ-साथ चल रही हैं। दूसरी ओर ब्रिटेन सहित कई देशों ने तो नरेंद्र मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़ने शुरू कर दिए हैं। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने अमरीका के पांच दिवसीय प्रवास में अमरीकी संसद के उच्च सदन में भाषण देते हुए बोला है कि नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं। उनकी इस अमरीका यात्रा ने जिन विवादों को जन्म दिया है, उनका पूरा लाभ नरेंद्र मोदी को मिला है। यह सोचना यूं ही नहीं है, बल्कि यर्थाथ है कि जब देश में लोकसभा का चुनाव हो रहा होगा, तब भारत के मतदाताओं का पहले से माइंड सेट होगा कि उनका वोट कहां जाना है। अब तो भारत के गांवों में भी कहा जाने लगा है कि वोट मोदी को देंगे, उनके लिए मोदी ही भाजपा है। जहां जनसामान्य में यह स्थिति आ जाए तो वहां नकारात्मक विरोध की गुंजाइश ही कहां रहती है? मोदी पर झ़ूंठे आरोपों को ‌सिद्ध करने के लिए कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने हाल ही में जो षड़यंत्र रचे हैं, वे उल्टे उन पर ही भारी पड़ रहे हैं। उनकी बैठकों, चुनावी एजेंडों और ज़ुबान पर मोदी हैं और मोदी का बगैर किसी खर्च के जोरदार प्रचार हो रहा है। सोशल मीडिया ने इन तथ्यों को प्रमुखता से लिखा है और बहस को जन्म दिया है कि भारत का प्रधानमंत्री कैसा और कौन होना चाहिए।
देश में ही नहीं पूरे विश्व में ऑनलाइन मीडिया के बिना काम नहीं चल रहा है और ये वो मीडिया है, जो पूरी दुनिया के हर खास और आम व्यक्ति, राजनेता, शासनाध्यक्ष के बारे में अपनी वास्तविक राय प्रकट कर रहा है और इसी राय से देश-दुनिया को पता चला है कि भारत में नरेंद्र मोदी को किस तरह फांसी पर लटकाए जाने की तैयारी की जा रही थी और किस प्रकार देश का प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया, मोदी विरोधी साजिशों में शामिल था, जिन्हें ऑनलाइन मीडिया ने विफल किया है। सोशल मीडिया ने कांग्रेस, समाजवादी पार्टीऔर बसपा जैसी विघटनकारी पार्टियों और उनके भ्रष्ट नेताओं को बेनकाब ही नहीं किया है, अपितु उसने मीडिया के भी उन चेहरों को धराशाई किया है, जो अपने को देश का अग्रिम मीडिया कहलाते हैं। देश के मुसलमानों में एक भय बैठाया जा रहा है और समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव सहित कई नेता भयभीत हैं कि नरेंद्र मोदी आ गया तो उनकी सरकार कैसे चल पाएगी, उनके एजेंडों का क्या होगा, क्योंकि यह तो लगभग तय है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से मुलायम मायावती जैसे राजनीतिक अवसरवादियों, सोनिया गांधी के कुनबे और देश में सांप्रदायिकता एवं सेक्यूलरवाद का पर्दाफाश होगा, जिसमें इनकी वास्तविक परिभाषा देश के सामने होगी और देश को पाकिस्तान, चीन और अन्य कई देशों की रोज-रोज की धमकियों से भी निजात मिल सकेगी।
वास्तव में नीचता और षडयंत्रों की घटिया राजनीति से देश के हालात बेहद गंभीर हैं, विस्‍फोटक और चिंताजनक हैं। भारत के कथित अर्थशास्‍त्री प्रधानमंत्री मनमोहन ‌सिंह और कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी ने इस देश की जनता को गुमराह और बेहद निराश किया है, यही काम उनके प्‍यादे कर रहे हैं। इन्‍होंने देश को चारों ओर से ख़तरे में डाल दिया है। ये भारत को पूरी दुनिया में बेइज्‍जत करा रहे हैं। कहने वाले कह रहे हैं कि बैंक की नौकरी से रिटायरमेंट के बाद मनमोहन सिंह का बुढ़ापा तो प्रचंड राजयोग में कट गया है और सोनिया गांधी देश में बगैर ताज के राज कर रही है, इसलिए इन्‍हें देश से और क्‍या चाहिए? अभी ही कथित अर्थशास्‍त्री प्रधानमंत्री मनमोहन ‌सिंह के 'क्‍लोन' अर्थशास्‍त्री के नाम से जाने जाने वाले अमर्त्य सेन का बयान आया है, वह कह रहे हैं कि उन्‍हें भारत के प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी नहीं चाहिए। वे भारत रत्‍न हैं, मगर भारत में वोटर तक नहीं हैं, उनसे कोई पूछे कि वो करते क्‍या हैं? और एक अर्थशास्‍त्री होने के नाते ही बताएं कि उन्‍होंने भारत की अर्थव्‍यवस्‍था के सुधार में क्‍या योगदान दिया है? उन्‍हें नोबल पुरस्‍कार भी मिला है, उससे क्‍या भारत की गरीबी मिट गई, जो अब भारत की राजनीति में टांग अड़ा रहे हैं?
अब देखना है कि भारतीय जनता पार्टी की रणनीतियां केंद्र में अपनी सरकार बनाने में कितनी कारगर साबित होती हैं। जहां तक देश की जनता का सवाल है, तो उसका फैसला लगभग सामने है, बाकी काम भाजपा का है कि वह किस तरह के मोहरे चुनाव में उतारती है। देश के पूरे राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और देश की सुरक्षा के वर्तमान परिदृश्य के साथ सोशल मीडिया और देश की जनता की इस पर भी ‌कड़ी नज़र है कि नरेंद्र मोदी किस तरह चल रहे है। आज देश ने उन्हें उनके सुशासन और राष्ट्रवाद पर अपनी पलकों पर बैठाया ‌है। देश में नरेंद्र मोदी को लेकर जोश और उनसे जो आशा है, उसका दायरा व्यापक है एवं वह अभी से कसौटी पर है, चुनौती से भरा है। देश की जनता बड़े विश्वास के साथ नरेंद्र मोदी पर दाव लगाने जा रही है, जिसकी सफलता में कोई संशय नहीं दिखता है। भारत में वह नरेंद्र मोदी का भी सुशासन देखना चाहती है। ध्यान रहे कि शासन और राजनीति के शब्दकोष में रहम का कोई अस्‍तित्व नहीं है और देश किसी प्रयोग की विफलता को बर्दाश्त करने को कदापि तैयार नहीं होगा।

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