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कैबिनेट सचिव पर सुप्रीमकोर्ट का नोटिस

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शशांक शेखर सिंह-shashank shekhar singh

लखनऊ।सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह की नियुक्ति पर आखिर सवाल दाग ही दिया है। इससे शशांक शेखर सिंह एक गंभीर कार्मिक विवाद में फंस गए हैं तो मायावती सरकार भी कटघरे में खड़ी हो गयी है। हालांकि शशांक शेखर सिंह इस सरकार में अपनी महत्वपूर्ण पारी खेल चुके हैं और इस समय केवल सेवा विस्तार पर हैं। भारत सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक यह मामला कई बार चर्चा में आ चुका है कि आखिर एक गैर आईएएस या गैर पीसीएस अधिकारी राज्य सरकार के मुख्य सचिव के समानांतर कैबिनेट सचिव के पद पर कैसे आसीन किया गया? कभी अपने कॉडर की सेवाशर्तों से छेड़छाड़ पर तुरंत फुंकारने वाली उत्तर प्रदेश आईएएस एसोसिएशन की हिम्मत नहीं हुई कि वह इस नियुक्ति के विरूद्ध कोई चर्चा कर सके, प्रस्ताव पास करने की बात तो बहुत दूर की है। अब एक याचिका पर मामला उठा है और वह याचिका भी एक गैर आईएएस व्यक्ति की है। यह प्रकरण अत्यंत गंभीर रुख अख्तियार कर सकता है, क्योंकि यह मामला सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थापना में अर्हता और व्यवस्था का है।

उत्तर प्रदेश में शशांक शेखर सिंह राज्य सरकार के हवाई जहाज और हेलीकाप्टर उड़ाने वाले एक पायलेट के रूप में आए थे। राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री बनारसी दास गुप्ता के कार्यकाल में उनकी नियुक्ति हुई थी। आगे चलकर कुछ मुख्यमंत्रियों ने उन्हें पायलेट के साथ-साथ इतर जिम्मेदारियां भी दीं। तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के समय में इन्हें बिना बारी की पदोन्नतियां और जिम्मेदारियां दी गईं। एक समय ऐसा आया जब विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रधानमंत्री रहते भारत सरकार के उड्डयन मंत्रालय में इन्हें इनकी योग्यता और वरिष्ठता को नज़र अंदाज कर महत्वपूर्ण पद देने की कोशिश की गई लेकिन भारी विरोध के चलते ऐसा नहीं हो सका। उत्तर प्रदेश सरकार में इन्होंने अपना अच्छा खासा प्रभाव बनाए रखा और आईएएस संवर्ग के लिए आरक्षित महत्वपूर्ण पदों पर इनकी पदस्थापना की गई। इसका विरोध तो तब भी हुआ था लेकिन मुख्यमंत्री की नजदीकी प्राप्त होने के कारण इनकी पदस्थापना रूक नहीं सकी।

एक समय ऐसा आया जब शशांक शेखर सिंह को केवल उनके पायलेट के कार्य तक सीमित कर दिया गया लेकिन अगली सरकार आने पर इन्हें फिर महत्वपूर्ण पदस्थापनाएं मिलीं। ऐसा आईएएस संवर्ग में आपसी फूट के परिणामस्वरूप भी हुआ। आईएएस एसोसिएशन के एक गुट का शशांक शेखर सिंह को समर्थन मिला जिससे इन्हें आईएएस संवर्ग के पदों पर तैनात होने में कोई परेशानी नहीं हुई। मायावती सरकार इनके लिए वरदान बनी और शशांक शेखर सिंह को मायावती के दो कार्यकालों में महत्वपूर्ण पद मिले और इस कार्यकाल में उन्हें पद न होते हुए भी उत्तर प्रदेश सरकार का कैबिनेट सचिव बनाया गया। ध्यान रहे कि उत्तर प्रदेश में केवल मुख्य सचिव का ही पद है जोकि आईएएस संवर्ग के लिए है और नियम एवं परंपरागत व्यवस्था के अनुसार यहां कैबिनेट सचिव का कार्य भी मुख्य सचिव के पास रहा है।

मायावती के कार्यकाल में शशांक शेखर सिंह की राज्य के कैबिनेट सचिव की कुर्सी पर पदस्थापना का एक बार सशक्त रूप से विरोध हो चुका है और जब सुप्रीम कोर्ट में एक मामले में शपथ पत्र प्रस्तुत करने का सवाल आया था तो राज्य सरकार को यह तय करना पड़ा था कि हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट में राज्य सरकार की ओर से केवल मुख्य सचिव ही जवाबदेह हैं। सरकार को बाकायदा यह घोषणा करनी पड़ी थी लेकिन मंत्रियों को शपथ ग्रहण का कार्य मुख्य सचिव से लेकर कैबिनेट सचिव को दे दिया गया। यह मायावती सरकार का ज़िद्दी भरा और नियम विरूद्ध फैसला था जिस पर मायावती सरकार बेशर्मी से खड़ी है। काफी समय से इस पर विवाद चल रहा था लेकिन शुक्रवार को सुप्रीमकोर्ट ने नोटिस जारी करके मायावती सरकार से पूछ ही लिया है कि आखिर एक गैर आईएएस और पीसीएस अधिकारी को कैबिनेट सचिव के पद पर नियुक्त किया गया है?

इस मामले को लेकर राज्य सरकार में खलबली मच गई है और नौकरशाहों में अफरा-तफरी का माहौल है। सभी जानते हैं कि शशांक शेखर सिंह राज्य की नौकरशाही पर हावी हैं और जिलाधिकारियों से लेकर प्रमुख सचिवों की नियुक्ति तक के मामले में उनका प्रभावशाली हस्तक्षेप है। कारण चाहे जो भी हों, मायावती के वे करीब हैं और इस कारण बहुत से विवादास्पद फैसलों के पीछे शशांक शेखर सिंह को ही जिम्मेदार माना जाता है। वह सेवानिवृत्त हो चुके हैं और फिलहाल सेवा विस्तार पर इस पद पर बने हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट के नोटिस के बाद राजनीतिक दलों ने भी शशांक शेखर सिंह के खिलाफ आवाज़ उठाते हुए मायावती सरकार को घेरा है और शेखर को तत्काल कैबिनेट सचिव के पद से बर्खास्त करने की मांग की है।

शशांक शेखर सिंह को एक पायलेट से अधिक महत्वपूर्ण बनाने में राज्य की नौकरशाही भी कम जिम्मेदार नहीं मानी जाती है। अधिकांश नौकरशाहों की अंदरूनी कमज़ोरियों का शशांक शेखर ने पूरा लाभ उठाया है मुख्यमंत्री कार्यालय में पंचम तल पर उन्होंने आईएएस संवर्ग के ही नौकरशाहों को केवल प्यादों से ऊपर नहीं जाने दिया। शशांक शेखर की अनुमति के बिना मायावती से किसी की मुलाकात भी संभव नहीं है। इसका एक कारण यह है कि शशांक शेखर सिंह, मायावती के करीब हैं। आपने मुख्यमंत्री मायावती के स्थलीय दौरों या समीक्षा बैठकों में मायावती के इर्द गिर्द जिस व्यक्ति को सबसे ज्यादा देखा और पाया है वह शशांक शेखर सिंह ही हैं। कहते हैं कि मायावती के जीवन को खतरा बता कर शशांक शेखर ने कभी जनता दर्शन कार्यक्रम तक नहीं होने दिया। मायावती के वायुयान या हेलीकाप्टर भ्रमण को लेकर भी शशांक शेखर एकाधिकार बनाए हुए हैं। उन्होंने यह भ्रम खड़ा कर रखा है कि उनके या उनके एक दो खास पायलेट के अलावा कोई और मुख्यमंत्री का वायुयान या हेलीकाप्टर भरोसेमंद और सुरक्षात्मक तरीके से नहीं उड़ा सकता, ऐसे कई कारण है जिनको लेकर मायावती की शशांक पर निर्भरता बनी हुई है। इसका शशांक भरपूर लाभ उठाते हैं।

उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने एक बयान जारी कर कहा है कि यदि मायावती सरकार में जरा भी नैतिकता बची हो तो उच्चतम न्यायालय का सम्मान करते हुए वह तत्काल शशांक शेखर सिंह को कैबिनेट सचिव पद से बर्खास्त करे। कांग्रेस प्रवक्ता द्विजेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने मायावती सरकार की असंवैधानिक कार्यप्रणाली पर पूर्व में भी कई बार सवालिया निशान लगाया है, किंतु प्रदेश सरकार ने बार-बार लोकतंत्र को शर्मशार करते हुए न्यायालय के आदेश की धज्जियां उड़ायी हैं। प्रवक्ता ने कहा कि अविलंब कैबिनेट सचिव को बर्खास्त करते हुए उनके कार्यकाल में हुए सभी निर्णयों की न्यायिक जांच होनी चाहिए। त्रिपाठी ने सवाल किया है कि मुख्यमंत्री के सामने आखिर कौन सी ऐसी मजबूरी या कारण हैं, कि शशांक शेखर सिंह को कैबिनेट सचिव पद पर नियुक्त करना पड़ा? इससे न सिर्फ राज्य के आईएएस संवर्ग में रोष पैदा हुआ बल्कि आईपीएस, पीसीसी सहित अन्य कैडर के अधिकारियों में कुंठा व्याप्त हुई और राज्य का प्रशासनिक तंत्र छिन्न-भिन्न हो गया है।

इसी प्रकार भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही ने मायावती पर मुख्यमंत्री की शपथ के तुरंत बाद शशांक शेखर को सारे नियम कानून और संवैधानिक व्यवस्थाओं को दरकिनार कर कैबिनेट सचिव बनाने के निर्णय को प्रदेश प्रशासनिक तंत्र का मनोबल को तोड़ने वाला तथा प्रशासनिक अराजकता पैदा करने वाला बताया। शाही ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने शशांक शेखर सिंह को कैबिनेट सचिव नियुक्त किए जाने की वैधानिकता, अहर्ता और औचित्य पर जो सवाल पूछा है उससे स्पष्ट है कि प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली दिवालियेपन का शिकार है।

शाही ने कहा की बसपा सरकार ने अपने चार वर्ष के शासनकाल में प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था को अराजक स्थित में डाल दिया है, उन्होंने मुख्य सचिव की व्यवस्था का अवमूल्यन किया जिसके कारण समूचे प्रदेश के प्रशासनिक अमले में अफरा तफरी और घोर दिशाहीनता का माहौल व्याप्त है। शशांक शेखर को राज्य योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाकर कैबिनेट मंत्री के दर्जे से नवाज कर प्रशासनिक व्यवस्था और राजनैतिक व्यवस्था को लूट तंत्र में बदल दिया है। भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि प्रदेश में घट रही घटनाएं बसपा सरकार के दंभ, अहंकार और अक्षमता का परिणाम हैं। न्यायालय की बसपा सरकार की कार्य प्रणाली पर लगातार टिप्पणियां उसकी हठधर्मिता, अहंकारी और सत्ता का लोक सेवा के बजाय धन उगाही का तंत्र बना लेने के परिणामस्वरूप है, जनता समय आने पर अपना सटीक निर्णय सुनाएगी।

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