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हे प्रभु! ऐसा अनिष्ट? कभी न हो!!

रज़िया बानो

जापान-japan

जापान के उन हज़ारों परिवारों को विनम्र श्रद्धांजलि जो इस असहनीय त्रासदी में समूल कालकल्वित हो गए हैं और उनके प्रति गहरी संवेदनाएं, जिनके परिजन इस महाकाल में समा गए हैं। प्रभु से प्रार्थना है कि वह जापान और उसकी जनता पर आए इस महान संकट से जल्दी से मुक्ति दे। जापान में हज़ारों जिंदगानियों और खरबों के जान-माल के नुकसान से दुनिया दहली हुई है। पल-भर में दुनिया के सबसे खूबसूरत और विकसित देश जापान के अनेक शहर और गांव देखते ही देखते मरघट में बदल गए हैं। किसी ने ऐसी तबाही न देखी होगी और न सुनी होगी। इस कहर ने हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका के परमाणु हमले को भी मात देदी है, वास्तव में जापान पर कुदरत का यह चौतरफा कहर बरपा है। हर किसी की ज़ुबान पर ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वह जल्द से जल्द मानवता पर अपनी कृपा करे।

दुनिया के देशों ने जापान की मदद के लिए अपने हाथ बढ़ाए हैं, मगर दुश्वारी यह है कि वे महाप्रलय के परमाणु रिसाव से कैसे निपटें क्योंकि जापान में भूकंप और सुनामी से आई प्रलय का असर बाकी दुनिया की तरफ बढ़ रहा है। फूकूशिमा के परमाणु संयंत्रों के इस जलजले की चपेट में आने के बाद रियक्टरों में हुए धमाकों ने इसे महाप्रलय में बदल दिया है। पूरी दुनिया को डर है कि इस परमाणु रिसाव से जापान के शहरों या उसके निकटवर्ती देशों में ही नहीं बल्कि दूर तक भारी तबाही मच सकती है। दुनिया भर के परमाणु संयंत्रों में भी ख़तरा बढ़ गया है क्योंकि भारी मात्रा में रेडियोधर्मी पदार्थ के रिसाव को रास्ते में नहीं रोका जा सकता। वायुमंडल में घुलता जा रहा इसका खतरनाक विकिरण हवा के साथ सरहदें पार कर रहा है जो दुनिया में कहीं न कहीं फिर तबाही ला सकता है। रूस तक तो यह पहुंच ही चुका है। मानवता और वन्य प्राणियों में नई किस्म की बीमारियों का ख़तरा भी साथ-साथ चल रहा है। चिकित्सा जगत के सामने यह एक बड़ी चुनौती आ गई है कि वह ख़तरनाक विकिरण से उत्पन्न बीमारियों का कैसे पता लगाए।

जापान के प्रधानमंत्री नाओतो कान ने भी अपने देश की जनता को बता दिया है कि वह सुरक्षित नहीं है और देर सवेर उसे इस रिसाव का असर भुगतना पड़ेगा। जापान की राजधानी टोक्यो के वायुमंडल में इस खतरनाक रेडियोधर्मी पदार्थ के पहुंच जाने का सभी को पता चल गया है, जिसके अगले परिणाम मानवता के लिए विनाशकारी साबित हो सकते हैं। जापान सरकार के पास ऐसे संकट से निपटने के लिए जितने उपाय थे वे पहले से ही सुनामी और भूकंप की चपेट में आकर निष्प्रभावी चुके हैं इसलिए इस समय जो उपाय चल रहे हैं, उनका कोई भरोसा नहीं है। सुनामी और भूकंप का अभी खतरा टला नहीं है, मंगलवार को भी जापान को भूकंप के तेज झटके लगे जिनकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर छह नापी गई जोकि खतरनाक स्थिति है। ये झटके टोक्यो और उसके करीब 120 किलोमीटर के दायरे में महसूस किए गए।

जापान के नागरिकों और चिकित्सा दलों में ऐसे रिसाव से सर्तक रहने की महारत और जागरूकता तो है लेकिन महाभयानक स्थिति का सामना करने की शक्ति नहीं दिखाई देती। जापान के परमाणु संयंत्र यदि वहां के विकास का वृहद रास्ता हैं, तो विनाश का भी आईना हैं, जिसके साथ लापरवाही के साथ पेश नहीं आया जा सकता और यह घटना तो निहत्थी जनता पर एक बड़े सटीक हमले जैसी ही है जिसमें किसी को हिलने तक का मौका ही नहीं मिल पाया और पलभर में तबाही ओर तबाही मच गई। भूकंप और सुनामी से भारत सहित और देशों का भी भारी सामना हुआ है, लेकिन परमाणु संयंत्रों में विस्फोट और परमाणु रिसाव भूकंप और सुनामी से भी ज्यादा भयानक है। दुनिया भर के लोग जापान में विकास की गतिविधियों से जुड़े हैं और उनकी सुख-सुविधाओं की एक बड़ी श्रृंखला में परमाणु संयंत्रों से संचालित मशीनों और उत्पादों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस घटना से विकास की यह श्रृंखला छिन्न-भिन्न हो गई है, जिसके बनने में जापान को बहुत वक्त लगेगा।

जापान में लोगों के सामने मुसीबतों के पहाड़ खड़े हो गए हैं। राहत प्रबंधों में बर्फबारी आड़े आ गई है। चारों रियक्टरों में आग लग चुकी है और विकिरण का रिसाव खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। यह दुनिया की और सदियों की सबसे बड़ी परमाणु विकिरण दुर्घटना मानी जा रही है। इसमें कोई भी उपाय कारगर नहीं हो रहा है इसलिए कई स्थानों पर राहतकार्य बंद कर दिए गए हैं। जापान के राजा अकिहितो ने राष्ट्रीय टेलीविजन पर देशवासियों से संकट की घड़ी में सावधानी बरतने और धैर्य से काम लेने की अपील की है। उन्होंने परमाणु विकिरण पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए विश्वास व्यक्त किया कि उनका देश जल्द ही इस संकट से उबर जाएगा। उधर विकिरण के खातक प्रभावों को देखते हुए विभिन्न देशों के लोग जापान छोड़कर जा रहे हैं। जापान में फैलते विकिरण को देखते हुए समझा जा रहा है कि यह देश भयानक कैंसर की चपेट में आ सकता है। इन आशंकाओं से डरे दूसरे देशों में भी स्वदेश लौटने वालों की शारीरिक जांच पड़ताल की जा रही है।

संपूर्ण भूमंडल पर ऐसी महाप्रलय की इस संकेतात्मक प्रलय से विचार उठता है कि कहीं भी विकास की योजनाएं लागू करते समय और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करते समय, भूकंप और सुनामी जैसे खतरों से निपटने के लिए आपात प्रबंधों की भारी उपेक्षा की जाती है। दैवीय आपदाओं पर किसी का वश तो नहीं है, लेकिन प्राकृतिक संपदाओं के दोहन और उनके रख-रखाव के बीच भारी असंतुलन और कुव्यवस्था जरूर चरम पर है, जिस कारण मानवता को ऐसे ही भयानक हादसों की विकरालता से सामना करना पड़ता है। जापान और अमेरिका समेत कई देशों में शोध और नई तकनीकों पर जितना काम हो रहा है उसमें यह कमज़ोरी विकराल रूप से सामने आई है इसलिए यह प्रश्न खड़ा हो गया है कि भूगर्भ में अथवा पृथ्वी पर विद्यमान प्राकृतिक संसाधनों के साथ किसकी कीमत पर और किस प्रकार पेश आया जाए।

धरती पर अनियंत्रित विकास एवं प्राकृतिक संसाधनों के क्षमता से अधिक दोहन के दुष्परिणामों का अभी यह कोई अंत नहीं हुआ है। जापान का यह विनाश दुनिया के लिए एक और चेतावनी भर है जिसमें यह संदेश बिल्कुल स्पष्ट है कि यदि दुनिया में ऐसे ही विकास की होड़ और आंधी चलती रही तो किसी दिन पूरी दुनिया सोती ही रह जाएगी और धरती और पाताल का पता भी नहीं होगा। जापान में इस त्रासदी में न जाने कितने हज़ार परिवार समूल तबाह हो गए हैं, प्रभु से पुन: प्रार्थना है कि ऐसी त्रासदी कभी न हो, कभी न हो और कभी न हो।

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