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उत्तर प्रदेश में नई जंग : मायावती बनाम पीएल पुनिया

सुनीता गौतम

मायावती-पीएल पुनिया/mayawati-pl punia

लखनऊ। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पीएल पुनिया के आयोग के अध्यक्ष के रूप में प्रथम बार राजधानी आगमन पर सरकार में हुई उनकी घोर उपेक्षा की चर्चा थमी भी नहीं थी कि उन्हें फिर नगर निगम लखनऊ के त्रिलोकनाथ हाल में अखिल भारतीय स्वच्छकार एसोसिएशन का सम्मेलन नहीं करने देने का एक और मामला उठ गया है। लखनऊ नगर निगम प्रशासन ने अपरिहार्य कारण बताते हुए सम्मेलन के लिए पहले से बुक त्रिलोकनाथ हाल की बुकिंग को निरस्त कर दिया। यह शनिवार की घटना है, इससे रूष्ट एसोसिएशन ने बाहर सड़क पर ही यह सम्मेलन आयोजित कर लिया जिसमें इस हरकत के पीछे मुख्यमंत्री मायावती को खड़ा मानकर वक्ताओं ने खुलकर आक्रोश व्यक्त किया। मुख्य अतिथि के रूप में आए पीएल पुनिया ने सम्मेलन में आरोप भी लगाया कि अगर दलितों के हक के लिए कोई दलित आवाज उठाता है तो मुख्यमंत्री मायावती को यह नागवार गुजरता है, क्योंकि मायावती दलितों को अपना गुलाम बनाकर रखना चाहती हैं।

अखिल भारतीय स्वच्छकार एसोसिएशन ने सम्मेलन के लिए त्रिलोकनाथ हाल का आवंटन रद्द करने को मुद्दा बना लिया है। मेयर डॉ दिनेश शर्मा ने भी इस बात पर हैरत जताई है कि उनकी मंजूरी के बाद भी आवंटन निरस्त कर दिया गया। दूसरे राजनीतिक दलों ने भी इसे मायावती सरकार की ओछी हरकत कहा है। राजधानी में राजनीतिक एवं प्रशासनिक क्षेत्रों में इसकी अच्छी खासी प्रतिक्रिया हुई है और माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री मायावती, कभी उनके प्रमुख सचिव रहे और आज कांग्रेस सांसद और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पीएल पुनिया के उत्तर प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य पर तेजी से उभरने के कारण बौखलाई हुई हैं और वे पुनिया का हर तरह से रास्ता रोकना चाहती हैं। पुनिया, अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बनने पर जब पहली बार लखनऊ आए थे तो तब भी उनके कार्यक्रमों में बाधा पहुंचाई गई थी। मायावती सरकार ने उनको आयोग के अध्यक्ष के रूप में लखनऊ आने पर शिष्टाचार और संविधान प्रदत्त सम्मान भी नहीं दिया और न ही आयोग के कामकाज के संबंध में कोई सहयोग ही दिया। सार्वजनिक रूप से यह दूसरी बार हुआ है जब इस सम्मेलन से उनका नाम जुड़ते ही सम्मेलन स्थल का आवंटन निरस्त कर दिया गया। इसे राजनीतिक दृष्टि से मायावती की जबरदस्त बौखलाहट माना जा रहा है।

पीएल पुनिया को इस सम्मेलन के माध्यम से मायावती की कार्यप्रणाली को बेनकाब करने का अच्छा मौका मिला। इसका राजनीतिक लाभ उठाते हुए उन्होंने कहा कि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के बनाए संविधान का मायावती मखौल उड़ा रही हैं। उन्होंने मायावती को चेतावनी दी कि वे बाबा साहब का नाम लेकर ऐसी घटिया राजनीति करना बंद कर दें और दलित समाज भी अपने अच्छे और बुरे नेताओं की समीक्षा करे। पुनिया ने दलितों से कहा कि वे उनका उत्पीड़न करने वाले अधिकारियों और नेताओं की सूची बना लें, जब उत्तर प्रदेश में सत्ता बदलेगी तो ऐसे लोगों को भरे बाजार घुमाया जाएगा। उन्होंने कहा कि दलित उत्पीड़न के मामलों में आयोग का सहयोग नहीं करने पर राज्य सरकार के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को तलब किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन की घटना को भी आयोग काफी गंभीरता से लेगा। मायावती सरकार पर पीएल पुनिया के तेवर तीखे थे और सम्मेलन में इस बात का स्पष्ट संदेश जा रहा था कि राज्य में दलित राजनीति में वर्चस्व को लेकर एक बड़ा घमासान शुरू होने जा रहा है। संदेश यह भी गया कि मुख्यमंत्री मायावती राज्य में दलितों में लीडरशिप विकसित नहीं होने दे रही हैं और बसपा में रहकर कोई दलित नेता नहीं बन सकता जिसका आने वाले समय में दलित समाज को भारी नुकसान होगा और इसका लाभ दूसरे समाज के लोग उठा ले जाएंगे।

राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि बसपा अध्यक्ष मायावती को पीएल पुनिया से जबरदस्त राजनीतिक टक्कर मिल रही है और अगर ऐसा ही होता रहा तो हो न हो उत्तर प्रदेश में राजनीतिक लड़ाई मायावती बनाम पीएल पुनिया हो जाए। ध्यान देने वाली बात है कि मायावती, बाराबंकी लोकसभा चुनाव से ही पीएल पुनिया का भारी विरोध करती आ रही हैं। उन्होंने इस चुनाव के बाद बसपा कार्यकर्ताओं के साथ बैठक में पीएल पुनिया पर भद्दे आरोप लगाकर जोरदार हमला किया था। कार्यकर्ताओं में इस हमले की प्रतिक्रिया यह हुई थी कि बहनजी ने मुलायम सिंह यादव के बजाए अब पीएल पुनिया को अपना प्रमुख राजनीतिक प्रतिद्वंदी मान लिया है। हाल के घटनाक्रमों से बसपा कार्यकर्ताओं की यह धारणा सिद्ध होती जा रही है कि बसपा कार्यकर्ताओं की इस प्रतिक्रिया में दम है। जबसे कांग्रेस ने पीएल पुनिया को अनुसूचित जाति आयोग का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवाया है तबसे मायावती में राजनीतिक बौखलाहट और ज्यादा देखी जा रही है।

आज यह सर्वविदित है कि बहुजन समाज पार्टी का कार्यकर्ता पार्टी और सत्ता में अपनी भारी उपेक्षा से कुपित है और वह अभी तक इस मजबूरी में मायावती के साथ खड़ा है क्योंकि उसे मायावती का कोई विश्वसनीय सजातीय विकल्प दिखाई नहीं दे रहा है। पीएल पुनिया बसपा के नाराज कार्यकर्ताओं का तेजी से समर्थन हासिल कर रहे हैं और राज्य में वे जहां भी जा रहे हैं उनका दलित समाज और दलित संगठनों में जोरदार स्वागत हो रहा है। पुनिया ने जबसे यह घोषणा की है कि वे प्रत्येक जिलों का दौरा करेंगे और दलित समाज के पीड़ित लोगों को न्याय दिलाने का काम करेंगे तबसे मायावती सरकार में एक अफरातफरी का माहौल है, शायद इसीलिए मायावती ने भी उत्तर प्रदेश के जिलों का दौरा करने का झटपट कार्यक्रम घोषित कर दिया है। इस कार्यक्रम के बहाने जब पीएल पुनिया को जिलों में दौरा करने से रोकने की कोशिश की जाएगी तभी मायावती और पीएल पुनिया के बीच असली सत्ता संघर्ष की शुरूआत हो जाएगी। कांग्रेस इस राजनीतिक घटनाक्रम की ही प्रतीक्षा कर रही है। अधिकतर कांग्रेसी नेता भी मानते हैं कि मायावती का माकूल उत्तर पीएल पुनिया हैं और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास उनसे बेहतर कोई विकल्प नहीं है। बसपा कार्यकर्ताओं में यह धारणा तेजी से विकसित हो रही है और राज्य के जिलों से दलित समाज की ओर से पीएल पुनिया के कार्यक्रमों की मांग हो रही है।

अतीत में जाएं तो पाएंगे कि एक समय ऐसा था जब पीएल पुनिया ने मायावती को मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करने का क ख ग सिखाया लेकिन मायावती के अत्यधिक आत्मविश्वास और भ्रष्ट महत्वाकांक्षाओं के सामने सबकुछ धराशाई हो गया। मायावती का एजेण्डा दलित समाज के उत्थान के उद्देश्य से भटक गया और इस कदर भटका कि मायावती एक लोकतांत्रिक नेता का मार्ग छोड़कर तानाशाही मार्ग पर चल पड़ी हैं। उन्होंने दलित समाज को एक ऐसा वोट बैंक बना लिया जिसे कहीं भी और कभी भी बेचा जा सकता है। इसी वोट बैंक की शक्ति से मायावती का राजनीतिक व्यवहार हर एक राजनीतिक दल को अखरने लगा है। यदि मायावती भ्रष्ट कार्यप्रणालियों को लात मारकर प्रधानमंत्री की कुर्सी को लक्ष्य बनातीं तो कदाचित आज वे प्रधानमंत्री होतीं, लेकिन उन्होंने अपनी राग-द्वेष, बदनाम और भ्रष्ट कार्यप्रणालियों से न केवल प्रधानमंत्री पद के दलित समाज के दावे को कमजोर कर दिया अपितु वे उस समाज में भी अपनी सहानुभूति खो रही हैं जिसने उन्हें सर आंखों पर बैठाकर अपना मसीहा और कुलदेवी मान लिया था।

राजनीति में गलती, भूल और रहम का कोई स्थान नहीं है और इसी पर पीएल पुनिया की नजर गड़ गई है। भले ही अभी इस सच्चाई को गंभीरता से न लिया जाए किंतु यह सत्य है कि उत्तर प्रदेश की सत्ता और दलित राजनीति की लड़ाई 'मायावती बनाम पीएल पुनिया' में शीघ्र ही बदल जाएगी। कहने वाले कहते हैं कि मायावती जिस 'भ्रष्ट सिंडिकेट' के चंगुल में हैं उससे उनका बाहर निकलना नामुकिन है इसलिए हो न हो पीएल पुनिया ही इसका पूरा लाभ उठाएंगे।

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