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रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद

देश में आखिर क्या चाहता है ये मीडिया?

दिनेश सिंह

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद/ram janam bhoomi-babri masjid

नई दिल्ली। हिंदुस्तान के सूर्यवंशी राजाओं की विश्व प्रसिद्ध नगरी अयोध्या को लेकर हज़ारों साल से चले आ रहे एक अंतहीन 'मालिकाना युद्ध' का अब कोर्ट को फैसला सुनाना है। तकनीकी दृष्टि में यह साठ साल पुराना युद्ध है लेकिन व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से हज़ारों साल पुराना यह एक ऐसा युद्ध है जिसे कभी खत्म होते न देखा गया और न सुना गया। यूं तो दोनों पक्षों के पास इस बहुप्रतीक्षित फैसले के खिलाफ भी ऊपरी अदालत में जाने का एक विकल्प खुला होगा तथापि सैद्धांतिक रूप से सदा के लिए यह झंझट समाप्त हो जाएगा कि यहां का वास्तविक मालिक कौन है यानि राम या बाबर? यह मुकदमा अयोध्या में विवादित भूमि की मालिकाना लड़ाई का ही नहीं है बल्कि इससे अयोध्या और राम के अस्तित्व पर खड़े अनेक लोकापवादों और प्रश्नों का समूल नाश होगा। ध्यान रहे कि जबसे राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद ने सर उठाया है तो यह भी आवाज़ें सुनी गईं हैं कि राम काल्पनिक हैं और उनका कोई अस्तित्व नहीं है। बहरहाल इस मुकदमे का फैसला तो भूमि के मालिकाना हक पर होगा जिसमें आगे देश की दशा और दिशा भी स्वत: ही प्रकट हो जानी है।

जबसे इस मामले के निपटारे की तारीख़ मुकर्रर हुई है तब से देश की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष शक्तियों को मानो सांप सूंघ गया है। ये शक्तियां अभी तक अदालत के फैसले की बात किया करती थीं लेकिन फैसले की तारीख़ आने के बाद अब इन्होंने देश को किसी अनहोनी और कोर्ट को फैसले की दहशत भरी प्रतिक्रियाओं की संभावनाओं से ही डराना शुरू कर दिया है। कोर्ट को धन्यवाद देना होगा जिसने ऐसी छद्म धर्मनिरपेक्ष शक्तियों को उनकी हैसियत बताकर न केवल उन पर जुर्माना ठोका बल्कि देश को बता भी दिया कि अदालतें इस प्रकार डराने या बहकावे में नहीं चलती हैं अपितु वे अपना न्यायिक धर्म और फर्ज निभाती हैं। देश में इस फैसले की रोशनी में अपने जनाधार की चिंता में सहमी राजनीतिक पार्टियों के नेता, अकर्मण्य एवं किंकर्त्तव्यविमूढ़ सरकार और कुछ मीडिया वालों का चेहरा सामने आ रहा है। इन्होंने देश की जनता को एक अजीब दहशत में झोंक रखा है और कानून व्यवस्था का एक बड़ा हौआ खड़ा करके सामान्य और शांत जनजीवन में खलल डाला हुआ है। फर्ज कीजिए कि इस मामले पर इतना बड़ा शोर है तो देश की अदालतों में जो दूसरे इससे भी बड़े मामले चल रहे हैं, उनके फैसलों के अमल पर क्या होगा? आपको मालूम ही है कि संसद पर हमले या देशद्रोह के दूसरे गंभीर मामलों में कुछ गुनहगारों को फांसी पर लटकाया जाना है और देश के बड़े राजनीतिक दल उन पर किस तरह खुलकर राजनीति कर रहे हैं।

यह मामला राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद तक ही सीमित नहीं रह सकेगा। इस पर स्पष्ट फैसला आने के बाद कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में इस विवाद की लाइन बदल जाएगी। इतिहास भी एक ऐसी दुविधा का सामना करेगा कि वह इस घटनाक्रम को किस प्रकार नए तथ्यों और विश्वास के रूप में स्थापित करे। यह देश की राजनीतिक-सामाजिक और आध्यात्मिक उथल-पुथल को भी निशाना बनाएगा। कई सामाजिक या धार्मिक संगठनों के लिए भी यह मुश्किल भरा समय होगा क्योंकि देश में आग लगाने के लिए इनके पास ऐसे अवसर सिमट जाएंगे। मगर जबसे इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने मालिकाना मामले पर फैसले की तारीख़ मुकर्रर की है तब से मीडिया और कुछ अवसरवादी लोगों ने देश पर अनहोनियों और आशंकाओं का हमला बोल रखा है। कुछ खतरनाक और दोगले किस्म के गिरोह, हाईकोर्ट के दरवाजे पर ही जा खड़े हुए ताकि फैसला बाहर न निकल सके और हज़ारों साल से इस आग में जलता हिंदुस्तान जलता ही रहे। इसकी आड़ में उनकी और उनकी पीढ़ी की दुकानें चलती रहें। जिस प्रकार से जो आशंकाएं जताई जा रही हैं वे केवल देश को गुमराह करने वालों की सुनियोजित रणनीति से ज्यादा कुछ नहीं लगतीं हैं। जहां तक जन सामान्य की बात है तो उसके लिए राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद काफी पहले ही महत्वहीन हो चुका है।

इन दिनों मीडिया के कुछ चेहरों को आप टीवी चैनलों में और समाचार पत्रों में उनके खतरनाक विश्लेषणों और बयानों के रूप में पहचान सकते हैं। धर्मनिरपेक्षता और निष्पक्ष पत्रकारिता का रूप धरे, घोर साम्प्रदायिक सोच वाले ऐसे मीडिया वालों को आप जरूर पहचानिए जो अयोध्या मामले पर प्रतिक्रियाएं हासिल करने के लिए किन-किन पेशेवर और बदनाम लोगों को और किस प्रकार से बार-बार आपके सामने पेश करते हैं और कर रहे हैं। आप देख और समझ सकते हैं कि इन्हें भारत की और बड़ी समस्याएं, बाढ़ में डूबते हुए लोग और भारत के हाथ से जाता कश्मीर नहीं दिख रहा है बल्कि अयोध्या और उसकी कथित विवादित भूमि पर मालिकाना हक की लड़ाई हिंदुस्तान की लड़ाई के रूप में दिख रही है। इसे 'महायुद्ध' बनाने वाले एक नहीं बल्कि कई कारक हैं जिनमें मीडिया के कुछ अंधो में काने 'सियार' भी शामिल हैं और वे ऐसे मामलों में हर समय सक्रिय रहते हैं।

भारतीय जनता पार्टी के नेता मुरली मनोहर जोशी ने खुलकर कहा है कि इस मामले को मीडिया बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है। देश में अमन-चैन के लिए खतरा बताए जाने वाले हिंदुवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी कहा है कि वह फैसला आने के बाद ही अपनी राय प्रकट करेगा। उसने भी देश में किसी अनहोनी के प्रचार का कोई संज्ञान नहीं लिया है और न ही राम की नगरी कही जाने वाली अयोध्या में इस फैसले को लेकर कोई दहशत या कोई शोर है। वहां सुरक्षाबलों की मौजूदगी जरूर यह अहसास कराती है कि जैसे अयोध्या पर कोई हमला होने वाला हो जिसे ये सुरक्षाबल नाकाम करने के लिए तैनात किए गए हैं। मीडिया के कुछ तथाकथित खोजी रिपोर्टर जरूर कुछ जातियों और धर्म के लोगों को अपने समाचारों का पात्र बनाकर या अयोध्या पर 'विशेष कार्यक्रम' बनाकर अपने-अपने तरीके से अयोध्या की उलटी-सीधी तस्वीरें पेश कर रहे हैं। इन्होंने वो हालात पैदा कर दिए हैं कि भारत सरकार को देश की जनता से गुमराह न होने और संयम बरतने की अपील करनी पड़ी है। समाचार माध्यमों ने भारत सरकार की इस अपील को भी अपने अंदर के पृष्ठों पर डालकर महत्वहीन साबित करने की कोशिश की है और उस अपील के विज्ञापन को प्रमुखता से जरूर लपका है। क्या भारत सरकार की अपील देश के समाचार माध्यमों के लिए अंदर के पृष्ठों का ही समाचार है?

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच में फैसले के लिए 24 सितंबर को सूचीबद्ध होते ही मामले के फैसले को टलवाने के लिए दाखिल अपीलों में जो आधार बताए गए हैं वे शर्मनाक-बोदे और ज़हरीले हैं जिनका त्रास हिंदुस्तान अब तक झेलता आ रहा है और यदि इनके आधार पर कोर्ट का फैसला स्थगित होता तो हिंदुस्तान की पीड़ा और ज्यादा बढ़ जाती। राजनीतिक दल और उनके नेता, अदालत का फैसला मानने की बात कहते आए हैं तो लीजिए मालिकाना हक पर फैसला आ रहा है। मगर ये राजनीतिज्ञ अदालती फैसलों की क्या इज्जत करते हैं क्योंकि शाहबानों के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संसद में कानून लाकर रद्द किया गया था इसलिए क्या गारंटी है कि यह फैसला भी स्वीकार कर लिया जाएगा? केंद्र सरकार की अयोध्या मामले पर आई अपील अभी से ही कोई और संकेत दे रही है।

अभी तो फैसला भी नहीं आया है और हिंदुस्तान में कई तथाकथित शुभचिंतक और मीडिया के धर्मनिरपेक्ष चेहरे अभी से ही देश में आग लगाने की भाषा बोल रहे हैं। इन्हें अपनी टीआरपी बढ़ाकर ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन राजस्व खींचने और अपना अखबार बेचने की चिंता है। मीडिया के कई लोगों से सामान्य वार्तालाप में पता चला कि इलेक्ट्रानिक मीडिया में तो 24 सितंबर के मद्देनज़र मार्केटिंक के विज्ञापन टार्गेट तक तय कर दिए गए हैं। कोर्ट के फैसले की ब्रेकिंग न्यूज और मीडिया वालों के झूठे-सच्चे विश्लेषणों को सच के रूप में सुनने के लिए जनता-जनार्दन टीवी के सामने ज्यादा ही बैठी होगी इसलिए उस दिन टीवी चैनलों पर अफवाहों और विज्ञापनों का बाज़ार भी काफी गर्म होगा। इसलिए अयोध्या का यह मामला किसी एक के लिए नहीं बल्कि बहुतों के लिए फायदे का मामला बन गया है। फैसले के बाद राजनीति करने वालों को देश को अपना रंग दिखाने की बारी होगी ताकि वे इसे अपनी रोज़ी-रोटी के लिए जीवित रख सकें और येन-केन उनका महत्व हरदम बना रहे।

इस प्रकरण का और भी ज्यादा ध्यान देने वाला पहलू यह है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के संभावित फैसले को देखते हुए एक प्रस्ताव पारित कर देशवासियों से अपील करनी पड़ी है कि किसी वर्ग के उकसाने मे आकर कोई ऐसा प्रयास नहीं किया जाना चाहिए या ऐसी कोई बात नहीं की जानी चाहिए जो दूसरों की भावनाएं आहत करे। प्रस्ताव में सभी भारतवासियों से अपील की गई कि इस फैसले को न्यायिक प्रक्रिया के एक हिस्से के समुचित परिदृश्य के रूप में देखा जाए क्योंकि यह फैसला एक लंबे समय की न्यायिक प्रक्रिया का परिणाम होगा। यदि किसी भी पक्ष को यह महसूस होता है कि इसके लिए अभी और न्यायिक प्रक्रिया की जरूरत है तो उसके वैधानिक हल उपलब्ध हैं और उनका सहारा लिया जा सकता है। मंत्रिमंडल ने प्रस्ताव में आगे कहा है कि भारत के सभी वर्गों के लोगों के लिए इस फैसले के बाद धैर्य और शांति कायम रखना जरूरी होगा, उकसाने का कोई प्रयास नहीं किया जाना चाहिए।

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