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कॉमन वेल्थ में भी दलालों का अरबों का खेल

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कॉमनवेल्थ-commonwealth

नई दिल्ली। एक लंबी अंतराष्ट्रीय बातचीत और प्रयास के बाद जाकर भारत को राष्ट्रमंडल खेलों को आयोजित कराने का अवसर मिला है। भारतीयों के लिए यह गौरव का विषय है कि भारत इस दशक का सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय खेल आयोजक है। यद्यपि सरकार राष्ट्र मंडल खेलों की तैयारी के संबंध में गंभीरता और सक्रिय प्रयासों का एहसास कराती आ रही है परन्तु तैयारी के संबंध में और समय पर तैयारी पूरा होने  में कई मंचों से सन्देहास्पद खबरें भी आ रही हैं जो इस खेल की महत्ता के दृष्टिगत देश को एक असम्माननक एवं अजीब परिस्थति में खड़ी कर सकती हैं। राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी के नाम पर कितने बड़े घपले हो रहे हैं और उन्हें कितनी बेशर्मी से दबाया जा रहा है इस पर जरा गौर कीजिएगा-

भारतीयप्रर्वतन निदेशालय ने राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों से जुड़ी से मुख्य कम्पनी इमार-एमजीएफ के कार्यालयों में 3 और 4 दिसम्बर 2009 को छापामारी कर वहां से कई सनसनीखेज दस्तावेज बरामद किए। इस कम्पनी ने ठेका पाने के बाद डीडीए में अपनी वित्तीय कमी का जिक्र करके 500 करोड़ रूपये उधार लिए ताकि खेलों की तैयारी समय पर हो सके। डीडीए ने बताया कि यह धन इन्हें तथाकथित वित्तीय झंझावातों से उबारने के लिए दिया जा रहा है, परन्तु इस कंपनी की सच्चाई इसके ठीक विपरीत है। इमार-एमजीएफ दुबई की इमार प्रापर्टीज और भारत की एमजीएफ का एक संयुक्त प्रतिष्ठान है जिसमें एफआईपीबी के पत्रांक FC2 106(2005)/37 (2005) दिनांक12/5/2005 के द्वारा इमार प्रापर्टीज से 7000 करोड़ रूपया रीयल इस्टेट के विकास के लिए एफडीआई ले आने की अनुमति प्रदान की गयी। इस अनुमति अनुबंध में कृषि भूमि खरीदना प्रतिबंधित है।

प्रवर्तननिदेशालय ने छापे के बाद बताया कि इस कम्पनी ने उतर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब में 8700 एकड़ कृषि भूमि इस धनराशि से खरीदी है और पूछताछ में कम्पनी के प्रबन्ध निदेशक श्रवण गुप्ता ने इस धन के गलत इस्तेमाल को स्वीकार भी किया है जिसमें इस धन से कम्पनी ने एक हवाई जहाज भी खरीदा है। इन छापों के दौरान इनके कार्यालयों से पांच लाख रूपये की विदेशी मुद्रा, दो किलोग्राम सोना और 9 करोड़ रूपये नकद बरामद किए गए हैं। कंपनी ने अपने कम वेतन भोगी कर्मचारियों को निदेशक बनाते हुए 350 से भी अधिक कम्पनियां बनाईं जिनमें से अधिकांश साइप्रस, केमन आइसलैंड, मारीशस, सिंगापुर में कार्यरत हैं और ये लोग हवाला कारोबार के माध्यम से काफी बड़ा धन इन्ही कम्पनियों के माध्यम से भारत से बाहर ले गए और उसी धन  को फिर वापस लाए। निदेशालय ने इस कम्पनी के खिलाफ फेमा के तहत केस भी दर्ज किया था।
परन्तु आश्चर्यजनक रूप से ईडी ने अब तक कोई कार्रवाई, मुकदमा या गिरफ्तारी नहीं की और ना ही खुले रूप से इस कम्पनी को क्लीनचिट दिया। इससे भी आश्चर्यजनक बात यह है कि छापे के एक महीना बाद सेबी ने इस कम्पनी को कई हजार करोड़ रूपये की आईपीओ की मंजूरी दी, जिससे ये झूठ बोलकर आम जनता का धन इकठ्ठा कर रहे हैं जो कि सुरक्षित नहीं है। डॉ संतोष कुमार सिंह ने ईडी से सूचना के अधिकार के तहत इस मामले की अद्यतन स्थिति की जानकारी मांगी, परन्तु ईडी ने आरटीआई एक्ट के धारा 24 के तहत बताने से इन्कार कर दिया। तदोपरान्त डॉ सिंह ने प्रधानमंत्री, वित्त एवं रेवेन्यु सचिव सीबीआई, डीडीए, सेबी, कम्पनी मंत्रालय, सीवीसी, एफआईपीबी और रजिस्ट्रार सुप्रीम कोर्ट के यहां सूचना के अधिकार के तहत आवेदन किया। परन्तु सही जानकारी देने के बजाय ये कार्यालय अपने जवाब में केवल दाएं-बाएं घुमा रहे हैं। इसके बाद डॉ सिंह ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यमंत्री-प्रधानमंत्री कार्यालय, वित्तमंत्री, कैबिनेट सेक्रेटरी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, निदेशक रॉ, सीबीआई, सेबी एवं यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी के यहां भी पत्र भेज करके जांच की मांग की। इनके उत्तर अभी प्रतीक्षा में है।
इन परिस्थितियों में लोग यह मानने पर बाध्य हैं कि यह एक बहुत बड़ा घोटाला हुआ है और प्रर्वतन निदेशालय अपने स्तर पर या किसी बड़े शक्ति सम्पन्न ओहदेदार के दबाव में इस कम्पनी के विरूद्ध काम करने के बजाय उसकी मदद कर रहा है। इसमें दुबई की कम्पनी शामिल है जिसके कारण कई तरह के संदेह हो रहे है। इस तरह की कम्पनी जब राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी योजना को पूरी कर रही है तब इस योजना के साथ किसी भी तरह की गड़बड़ी से इन्कार नहीं किया जा सकता। मांग की जा रही है कि इस कम्पनी के इन गोरखधन्धों की सीबीआई से विस्तृत, पारदर्शी और खुली जांच कराई जाए ताकि दोषी व्यक्तियों, किसानों का शोषण करने वाली राष्ट्र के सम्मान से खेलने वाली और देश की सुरक्षा एवं आर्थिक संतुलन बिगाड़ने वाली ताकतों को सजा दी जा सके और उन्हें उनकी सही जगह कारागार में भेजा जा सकें।

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